शनिवार, 22 अप्रैल 2023

युवा शक्ति क्या करें?

भारत में युवा शक्तियों की आबादी विश्व में सबसे अधिक है| इन पर ही देश का वर्तमान और भविष्य टिका हुआ है| बाकी अधिकतर लोगों में बहुतायत “थके” हुए हैं,  “पके”  हुए हैं और "बिके" हुए हैं| मैंने युवाओं की प्रकृति को ध्यान में रख कर इनकी उर्जा को सकारात्मक, रचनात्मक और सृजनात्मक दिशा में उत्पादक बनाने के लिए एक पंच सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया है| यह इन वर्तमान युवाओं के मनोविज्ञान और समाज की आवश्यकताओं  के अनुकूल है। इस पंच सूत्रीय कार्यक्रम में ‘उद्यमिता’, ‘वित्तीय जागरूकता’, ‘सामाजिक अंकेक्षण’, ‘संस्कृति का विज्ञान’ और ‘सफलता का विज्ञान’ शामिल है।

उद्यमिता :

सबसे पहले उद्यमिता है। आज सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में नौकरियों की जो स्थिति है और कई कारणों से जो भविष्य में संभाव्यताएं है; उसमें उद्यमिता ही एकमात्र विकल्प है। तकनीकी सुधार, आटोमेशन, सेवाओं का आउटसोर्सिंग आदि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो उद्यमिता के विकास को ही प्रेरित करते हैं। लाभ के साथ समस्या का समाधान करना ही उद्यमिता है। उद्यमिता एक नजरिया है, सोच है, तकनीक है, कौशल है और कार्य पद्धति है, जिसे कोई भी मनोयोग से सीख सकता है। यह जन्मजात प्रतिभा नहीं है। यह कोई भी खीख सकता है, वशर्ते उसमें बड़ा होने सपना हो, बड़ा जज्बा हो। बड़ा सपना क्या है? जब आप अपने सपनों में बहुत से लोगों के कल्याण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में शामिल कर लेते हैं, तो आपका सपना बड़ा हो जाता है। इसी के साथ आपकी उद्यमिता में सफलता शुरू हो जाती है। आप अपने मेंटर (प्रणेता) उन्हें बनाए, जो धरातल पर वास्तविक सफलता पाई है। असफल और नकारात्मक, थके हारे लोगों से बचिए, वे आपको बुरु तरह संक्रमित कर सकते हैं| सदैव रोने वाले अर्थात सारा दोष व्यवस्था में देखने वाले से भी बचिए।

डा भीमराव आंबेडकर का सूत्र याद रखिए - Educate, Agitate, Organize अर्थात ईच्छित उद्यमिता का अध्ययन कीजिए, उसका मनन, मंथन कीजिए और निष्कर्ष पर पहुंचिए। इस निष्कर्ष के लिए संगठन बनाइए या पूर्व से बने संगठन में शामिल होइए, ताकि आपको यथावश्यक दिशा निर्देश मिलता रहे। यह मनोबल बढ़ाए और बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। इसके लिए ‘Out of Box चिन्तन’ और ‘आलोचनात्मक चिन्तन’ विकसित कीजिए| इसी कारण इसे नई शिक्षा नीति में स्थान दिया गया है|

उद्यमिता के लिए आप अर्थव्यवस्था के पाँचो सेक्टर में से किसी का भी चयन कर सकते हैं| प्राथमिक (Primary) क्षेत्र वह है, जिसमें में प्रकृति प्रदत्त उत्पादों या संसाधनों का दोहन किया जाता है, जैसे इसमें कृषि, बागवानी, खनन, जलजीव उत्पादन, वनोत्पाद आदि शामिल है। द्वितीयक (Secondary) क्षेत्र में  प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त वस्तुओं का मूल्य संवर्धन किया जाता है, उसकी उपयोगिता को कई तरीकों से बढ़ाया जाता है। इसे औद्योगिक उत्पादन भी कहा जाता है। तृतीयक (Tertiary) क्षेत्र में सेवा क्षेत्र आता है। चतुर्थक (Quaternary)  क्षेत्र ज्ञान आधारित नया उभरता हुआ सितारा क्षेत्र है। इसमें सूचनाओं को आधार बनाकर नीचे के क्षेत्र को ज्यादा उपयोगी बनाया जाता है। प्रसिद्ध प्रबंधन चिंतक फिलिप कोटलर कहते हैं, कि यह युग “सूचनाओं के शक्तियों” से बदलकर “सूचनाओं के शेयरिंग की शक्तियों” का हो गया है| पंचम (Quinary) क्षेत्र में वे गतिविधियां शामिल हैं, जिसमें चतुर्थ क्षेत्र से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर नीतियों का निर्धारण किया जाता है। इसमें इन सूचनाओं के आधार पर आइडिया का नवनिर्माण किया जाता है, सूचनाओं का पुनर्गठन किया जाता है, नए और पुराने सूचनाओं की नई व्याख्या कर नए आईडिया का निर्माण किया जाता है, नई तकनीक विकसित की जाती है और पूर्वानुमान भी किया जाता है। यह क्षेत्र भारत में पूरी तरह से नया है, पर पूरी संभावनाओं से भरा हुआ है। विचार ही धन है। आप विचार करेंगे और संभावनाओं का दरवाजा खुल जाएगा। अब कोई भी बाजार वैश्विक हो गया है|

अब आप उद्यमिता का वैधानिक पहलू भी समझ लें। शुरुआती कारोबार में व्यवसाय एकल स्वामित्वाधीन (Proprietorship) होना चाहिए, यदि आप नए है और छोटा स्तर पर कर रहे हैं। इसमें कराधान में विशेष छूट नहीं मिलता, पर करना आसान होता है। इसमें आपमें और आपके व्यवसाय के उत्तरदायित्व में अन्तर नहीं किया जाता है। एक से अधिक व्यक्तियों के द्वारा साझेदारी फर्म (Partnership Firm) होता है, जो ‘साझेदारी अधिनियम, 1932’ के द्वारा संचालित और नियंत्रित होता है। इसमें उत्तरदायित्व का बंटवारा वैधानिक रूप से नहीं किया जाता है, जो मुख्य वैधानिक नकारात्मक पहलू है। उत्तरदायित्व के सीमित निर्धारण करने के लिए दो वैधानिक फर्म है – ‘कम्पनी’ और ‘एल एल पी’। ‘कम्पनी’ ‘भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013’ से और  ‘एल एल पी’ ‘सीमित उत्तरदायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008’ से संचालित और नियंत्रित किया जाता है। सामाजिक कार्यों और अलाभकारी उद्यमिता के लिए ‘सोसायटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1860‘भारतीय न्यास (ट्रस्ट) अधिनियम, 1882, ‘सहकारिता अधिनियम, 1912, ‘कम्पनी अधिनियम, 2013 आदि के प्रावधान है। यहां यह बताना ही प्रर्याप्त है, कि आप इनकी समझदारी और जानकारी रखें; अन्यथा विधि (Law) आपको सब चीजों का जानकार मानता है और संबंधित पदाधिकारियों के “तथाकथित सहयोगात्मक यानि नकारात्मक रवैया से आप भी वाकिफ होंगे। इसमें कई विभिन्न शुभचिंतकों से राय ले सकते हैं, गूगल से भी सलाह लें सकते हैं। बाजार में कई रूपों में सलाहकार हैं, जिनकी अज्ञानता, और उनकी नियत भी ध्यान देने योग्य है।

मैंने कई सरकारी प्रशिक्षकों को देखा है, जो खुद उद्यमी नहीं बन सके और आज भी नौकर है; पर वे उद्यमिता का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उद्यमिता एक संस्कार है, और इसका संचरण वे नहीं कर पाते, जिसमें यह संस्कार है ही नहीं। हमें प्रेरणा (Motivation) और अन्तप्रेरणा (Inspiration) में अन्तर समझना जरूरी है। प्रेरणा बाहरी कारक है और अन्तप्रेरणा आन्तरिक कारक है। प्रेरणा बाहरी सुविधाएं, अनुदान आदि से संचालित होता है, जबकि अन्तप्रेरणा आन्तरिक कारणों से जो ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसीलिए उद्यमिता के लिए कोई ठोस आन्तरिक कारणों का होना अनिवार्य है, जिसे कोई भी बना सकता है| अन्यथा इनके अभाव में उनके जल्दी टूट जाने का ख़तरा है। भावनात्मक रूप से मजबूत होना ज्यादा जरूरी है। मन के सारे हार है। इसीलिए कहा गया है कि हर दस “उद्यम” में आठ असफल हो जाते हैं, परन्तु हर दस “उद्यमी” में नौ सफल होते हैं। उद्यमिता एक नाज़ुक, परन्तु महत्वपूर्ण एवं विशाल अवधारणा है, और इसी कारण इसे पूर्णतया संतोषजनक नहीं बताया जा सकता है। इसका सतत विकास होता है, और इसलिए सरल, एवं छोटा उद्यम से शुरू कर जटिल, एवं बड़ा की ओर अग्रसर होना चाहिए।

वित्तीय जागरूकता :

यह ‘धन’ (Wealth) को ‘पूँजी’ (Capital) बनाने से सम्बन्धित है| यह धन सम्बन्धी आपकी भावनाओं को समझने और नियंत्रण करने से सम्बन्धित है| यह धन एवं पूँजी का मनोविज्ञान है| यह धन एवं पूँजी का बाजार की क्रिया विधि है| इसे अलग से विस्तार से बाद में बताया जायगा, क्योंकि यह भी काफी स्थान घेरता है|

सामाजिक अंकेक्षण :

सामाजिक अंकेक्षण सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त करने का अमोघ अस्त्र है। इसमें कोई भी नागरिक ‘सूचना अधिकार अधिनियम, 2005’ के अन्तर्गत सरकारी धन से संचालित योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारियों को प्राप्त करता है। व्यक्ति, समिति, या संस्था को भी एक नागरिक के रूप में ही आना होता है, इसीलिए समिति या संस्था को अपना पता बताने के रूप में करना होता है| इस अधिकार अधिनियम से प्राप्त इन जानकारियों एवं प्रगति का सत्यापन उस क्षेत्र में किए गए वास्तविक कार्य का मिलान लाभार्थी एवं स्थल पर प्रत्यक्ष अवलोकन से करता है और सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य एवं प्रक्रिया के आलोक में अंकेक्षण करता है। इससे भ्रष्ट प्रक्रिया पर अंकुश लगता है, और बेहतर परिणाम के लिए सुझाव आते हैं। इसका प्रशिक्षण युवाओं में नवनिर्माण के लिए सकारात्मक और उत्पादक जोश पैदा करता है, और सरकारी तंत्र स्वस्थ्य एवं बेहतर परिणाम देता है। इस अंकेक्षण प्रतिवेदन को सरकार के साथ साथ प्रिंट और डिजिटल मीडिया में दिया जा सकता है। इसका व्यवहारिक पहलू इस अंकेक्षण को कई गुणा कर प्रसारित कर वाइरस की तरह तेजी से फैलाता है और भ्रष्ट आचरण पर रोक लगाता है। इस कार्य से युवाओं में प्रभावकारी स्थानीय नेतृत्व पैदा होता है|

संस्कृति का विज्ञान :

संस्कृति का विज्ञान को जानना हर युवाओं के लिए अनिवार्य है। विचारों की जड़ता (Inertia of Thought) और संस्कारों की जड़ता (Inertia of Encultration) को दूर करने के लिए इसे समझना चाहिए| संस्कृति समाज का वह अदृश्य साफ्टवेयर है, जो समाज को लगातार चलाता रहता है| संस्कृति हमारे समाज रुपी कम्प्यूटर का वह साफ्टवेयर है, जो समाज को अचेतन, अवचेतन और सचेतन स्तर पर संचालित और नियंत्रित करता है। संस्कृति इतिहास के बोध (Perception of History) से बनती है| यह इतिहास तथ्यों, तर्कों और वैज्ञानिक प्रविधियों पर आधारित होना चाहिए; न कि भावनाओं, आस्थाओं और मनगढ़ंत मान्यताओं पर आधारित हो। आज यदि हम रुढिवादिता, अंधविश्वास, जड़ता और पाखंड में अपना महत्तम ऊर्जा, समय, और संसाधन बर्बाद कर रहे हैं, तो उसका एकमात्र कारण हमारा दूषित संस्कृति है, जो गलत और सामंतवादी इतिहास बोध से उत्पन्न हुआ है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो ई एच कार What is History में लिखते हैं कि ऐतिहासिक चिंतन हमेशा उद्देश्यवादी होता है।

भारत के लोग जाति, वर्ण, और धर्म के आधार पर कई वर्गो में विभक्त है। भारत का सामाजिक विकास का इतिहास अवैज्ञानिक है। भारत के इतिहास पर सामंतवाद के प्रभाव का सम्यक अध्ययन नहीं किए जाने से सामंतवादी मानसिकता को मजबूती मिली हुई है। मानव की उत्पत्ति, प्रवास और सामाजिक विकास की गाथा को यथास्थितिवाद बनाएं रखने को ही व्याख्यापित है। भारत के सशक्त और अग्रणी राष्ट्र निर्माण की पहली अनिवार्य शर्त इस कम्प्यूटर रुपी तंत्र का संस्कृति रुपी साफ्टवेयर को सुधारना है, जो इतिहास के वैज्ञानिक लेखन से ही होगा।

सफलता का विज्ञान :

सफलता का विज्ञान यानि सफलता प्राप्त करने की वह वैज्ञानिक और व्यवहारिक प्रविधि है, जिसको जानना और समझना हर भारतीय युवाओं के लिए जरूरी है। ‘ढोंग’, ‘पाखंड’, ‘अंधविश्वास’ और ‘कर्मकांड’ की वास्तविकता को समझने के लिए ‘ईश्वर’, ‘आत्मा’, पुनर्जन्म’ 'कर्मवाद', 'स्वर्ग नर्क', 'भाग्य' आदि की वैज्ञानिकता समझनी चाहिए| विचार एवं मानसिकता कैसे भौतिकता में रुपांतरित होता है और यह क्रियाओं को कैसे संचालित करता है - यह जानना जरूरी है। भारतीय बौद्धिक (बुद्धि का) दर्शन में मन यानि चेतना को सभी चीजों का केन्द्र बिन्दु स्वीकार किया है।  मन ब्रह्मांड में फैला क्वांटम फील्ड पर अतिरिक्त ऊर्जा डालकर उन चीजों को उत्पन्न करता है, जिनको मन उत्पन्न करना चाहता है (क्वांटम फील्ड थ्योरी और अवलोकर्ता का सिद्धांत)। मन यदि नियंत्रण में है, तो सब कुछ नियंत्रण में है। मन ही सभी मानसिक क्रियाओं में प्रधान है, जो सुविचारित लक्ष्यों को भौतिक तथ्यों में रुपांतरित करता है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने इसलिए ही ‘कल्पना’ (imagination) अर्थात ‘मन की उड़ान’ को ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण माना। वैज्ञानिक सर रोजर पेनरोज ने मन एवं चेतनता के संबंधों की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए बताते हैं, कि जब हम किसी चीज पर मन को स्थिर करते हैं अर्थात अपनी सोच को स्थिर करते हैं, तो उस वस्तु के उन तरंगीय ऊर्जा में से प्रकटीकरण की संभावना बढ़ जाती है, जिस वस्तु को हम प्रकट देखना चाहते हैं। इसके लिए मन को संकेंद्रित करना चाहिए, जो विपश्यना विधि से प्राप्त होता है। अंत में सकारात्मक मनोविज्ञान (Positive Psychology)  के जनक अब्राहम मैसलो (1908-1970), एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, का एक प्रसिद्ध पक्ति को दुहराना चाहूंगा, जो 1966 में प्रकाशित उनकी प्रसिद्ध पुस्तक  "The Psychology of Science" में है -

"If you have a Hammer in hand, everything looks like a Nail."

यदि आप कोई कांटी को ठोकने के लिए हथौड़ा लेकर तैयार होते हैं, तो आपके लिए सब कुछ लक्ष्य (कांटी) जैसा ही दिखता है|

अतः युवाओं से अनुरोध है कि आप तैयार रहें, निशाने पर कांटी ही होगा। आपके द्वारा समृद्ध, सुखमय और शांतिमय अग्रणी और विकसित भारत का उदय होगा।

आचार्य निरंजन सिन्हा

An Appeal

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Acharya Niranjan Sinha is an ‘Educationist’, an ‘Innovative Thinker’ and ‘Writer’ to transform the Society in general. He needs your kind support for improving the quality of content and for broadcasting & publishing these innovative Ideas.

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NIRANJAN KUMAR SINHA,

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at Bihta in Patna, Bihar, India.

--- Prof (Dr) Vinay Paswan,

Keshopur, Vaishali, Dist - Vaishali, Bihar, India.

Contact:  94302 88077.

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