सोमवार, 20 सितंबर 2021

लड़ाईयां कैसे जीतें?

लड़ाईयां सिर्फ वर्चस्व के लिए ही नहीं होती, लड़ाईयां बदलाव के लिए भी होती है| इस बदलाव को रूपांतरण (Transformation) या विकास (Development) भी कहते हैं| तीव्र रूपांतरण या विकास को ही क्रान्ति (Revolution) कहा जाता है| बदलाव, रूपांतरण एवं विकास का क्रान्ति सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनैतिक किसी भी क्षेत्र में हो सकता है| किसी भी क्षेत्र में जीतने के लिए रणनीति की जरुरत होती है| सभी क्षेत्रों में जीत के लिए रणनीति में मौलिक समानता है|

सवाल यह है कि इसे सफलतापूर्वक कैसे जीता जाएँ? यदि रणनीति में मौलिक समानता है, तो हमें कुछ रणनीति (Strategic) के उदहारण सामाजिक, सांस्कृतिक, वैधानिक, सैन्य, वैज्ञानिक क्षेत्र  इत्यादि में देखने चाहिए| थामस कुहन (Thomas Kuhn) ने एक पुस्तक– “The Structure of Scientific Revolution” सन 1962 में लिखी| इन्होने यह पुस्तक तो वैज्ञानिक क्रान्ति के सन्दर्भ में लिखी, परन्तु यह किसी भी क्रान्ति के सन्दर्भ में भी पूरी तरह सही है| उन्होंने किसी भी क्रान्ति के लिए नजरिया (Attitude) एवं दृष्टिकोण (Perspective) में पैराडाईम शिफ्ट (Paradigm Shift) करने के लिए कहा| यह एक ऐसा महत्वपूर्ण अवधारणा है, तकनीक है , जिससे कोई कम समय में, कम संसाधन से एवं कम उर्जा के साथ लड़ाई को जीत जाता है|

इस पैराडाईम शिफ्ट में लड़ाई के आधारभूत हथियारों (Weapons), तकनीको (Techniques), अभियंत्रण (Engineering) एवं रणनीतियों (Strategies) के आधार (Base), सन्दर्भ (Reference), पृष्ठभूमि (Background) के साथ साथ नजरिया (Attitude) एवं उपागम (Approach) बदल दिए जाते हैं| यह सब कुछ आसान कर देता है| असम्भव सम्भव हो जाता है| यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिसे हर रणनीतिकार समझता है; हम समझें या नहीं समझें|

द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु बम का गिरना इस महत्वपूर्ण रणनीति का हिस्सा रहा| आपने सुना या जाना होगा कि किसी न्यायलय के लम्बे वाद या विवाद में किसी पक्ष ने कोई पैराडाईम शिफ्ट कर लिया और वह मुकदमा आसानी से जीत लिया| किसी लम्बे विद्वतापूर्ण तथ्यों एवं क़ानूनी बारीकियों के उपस्थापन के बातों को छोड़ कर अन्य पक्ष ने किसी मूल (Basic) एवं मौलिक (Original) प्रश्न खड़ा कर दिया| तब सारी विद्वतापूर्ण उपस्थापन बेकार चला जाता है|

भारत में सामाजिक रणनीति के अन्तर्गत भारत की बड़ी आबादी का मनोबल (Moral / Psychic Force) तोड़ने और गिराने के लिए उन्हें “नीच” (Inferior) बनाने का अभियान चलाया जा रहा है| भारत की बहुत बड़ी “अवर्ण” आबादी का “शुद्रिकरण” किया जा रहा है| सवर्ण अर्थात ‘वर्ण’ के साथ’ के चार श्रेणियां हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र| ये सभी “स - वर्ण” है| शुद्र सामंतों के व्यक्तिगत सेवक होते थे, जो शायद अब कहीं नहीं हैं| इन्ही कारणों से इस शुद्र पर बहुत से प्रतिबन्ध एवं निर्योग्यताएं निर्धारित थे| समाज में “वस्तुओं एवं सेवाओं” के उत्पादक जातियां “अवर्ण” श्रेणी में थे, जो वर्ण व्यवस्था से बाहर थे| विदेशी संस्कृति को मानने वाले भारतीय भी “अवर्ण” श्रेणी के ही दुसरे हिस्से रहे| अब इन अवर्णों को शुद्र बनाने का सघन अभियान जारी है|

आर्थिक क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव के लिए दो महत्त्वपूर्ण संस्थान (Institution)  का बहुत बड़ा योगदान है| प्राचीन काल में मुद्रा (Currency) एवं आधुनिक काल में कम्पनी (Company) ऐसे ही पैराडाईम शिफ्ट के उपज के स्पष्ट उदहारण हैं|

लड़ाईयां लड़ने वालों की चूक कहाँ हो जाती है? वे अक्सरहाँ विरोधियों के बिछाएं गये में जाल में ही उलझे रहते हैं और ख्वाव जीतने का देखते रहते हैं| ऐसे लोग विरोधियों के ही आक्रमण के इन्तजार में रहते हैं| समाज के विकास का विरोधी व्यवस्था ही होता है, जिस पर कुछ स्वार्थी लोग येन केन प्रकारेण कब्ज़ा जमायें रहतें है और यथास्थितिवाद को ही मजबूत करते रहते है| विकास के पक्ष में बदलाव की चाहत रखने वालों का यदि कोई अपना स्पष्ट मुद्दा (Issue / Agenda) नहीं होता, कोई स्पष्ट दृष्टि (Vision) नहीं होती, तो ऐसी स्थिति में वह यथास्थितिवादी व्यवस्था के द्वारा जानबूझकर या चूक से दे दिए मुद्दों पर ही निर्भर करता हुआ होता है| इन मुद्दों के अभाव में वह बेरोजगार होकर फिर किसी मुद्दों के इन्तजार में होता है| ऐसे तथाकथित बदलाव के क्रान्तिकारी लोग वस्तुत: हवा हवाई ही होते हैं| ऐसे लोग छोटे समय के लिए लाभार्थी भी हो सकते हैं, परन्तु बदलाव की बातें बेमानी हो जाती है| लोग ठगे महसूस करते हैं और पीढियाँ गुजरती रहती है|

इन लड़ाइयों को जीतने लिए यानि सामाजिक, आर्थिक एवं सांकृतिक क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव के लिए हमें  अपने मौलिक हथियार, उपकरण, तकनीक, अभियंत्रण, रणनीति चाहिए| इसके लिए हमें अपने शब्द. अपनी अवधारणा, अपने विचार और अपना नजरिया निर्धारित करना होगा| अन्यथा हम व्यवस्था के शब्द, अवधारणा (Concept), रणनीति एवं अभियंत्रण (Engineering) में उलझें रहेंगे| और विकास के नाम पर जनता की ठगी जारी रहेगा|

विक्टर ह्यूगो ने कहा था कि एक विचार एक उपयुक्त समय पर बहुत शक्तिशाली होता है| 

                लेकिन कोई उपयुक्त समय नहीं आता, उपयुक्त विचार बनाने होते हैं| 

              साफ्टपावर हमेशा हार्डपावर से ज्यादा प्रभावी एवं शक्तिशाली होता है

आपसे एक बार फिर अनुरोध रहेगा कि आप भी समाज, राष्ट्र एवं मानवता के हित में अपने विचार में पैराडाईम शिफ्ट करके देखियें| भारत फिर से विश्व गुरु होगा|

निरंजन सिन्हा

मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक

 

 

 

 

 

 


शनिवार, 11 सितंबर 2021

चाणक्य महान! क्यों?

 

चाणक्य भारतीय मिथक का एक ऐसा पात्र है, जिसमे योग्यता ही योग्यता है| कुछ लोगो को इसे मिथक कहने में आपत्ति होगी| अधिकतर लोग इसे इतिहास का ऐतिहासिक पात्र मानते हैं| इसे कुछ लोग 'विष्णुगुप्त' मानते हैं| कुछ लोग के अनुसार यही 'कौटिल्य' है| यह एक ऐसा पात्र है, जिसने मगध साम्राज्य के उदय में चन्द्रगुप्त मौर्य के सहयोग में निर्णायक भूमिका निभाई| यह सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रमुख मंत्री एवं सलाहकार भी रहा| इनकी महानता की कई चर्चाये हैं| इनके बारे में हमलोग बाद में आयेंगे|

इन्हें समझने के लिए पहले मैं दो प्रसंग संक्षेप में बताऊंगा| पहला प्रसंग संयुक्त राज्य अमेरिका का है| लगभग कोई एक सौ पचास वर्ष पहले की बात है| अमेरिका में उस समय एक ऐसा क्षेत्र था, जहां जाने आने के लिए पानी के जहाज ही फेरे लगाते थे| शिपिंग कंपनी को फेरे लगाने का अनुबंध (Contract) वहां की सरकार ने किया हुआ था| उस क्षेत्र को रेल एवं रोड से जोड़ने के लिए रेल एवं रोड का पुल बनाया जाना था| शिपिंग कंपनी ने न्यायालय  में पुल बनाने वाली 'रेल रोड कंपनी' के विरुद्ध मुक़दमा दायर कर दिया| शिपिंग कंपनी के वकील ने शिपिंग कंपनी के पक्ष में बहुत ही विद्वतापूर्ण एवं सूक्ष्म विश्लेषण के साथ विशद (Detailed) क़ानूनी पक्ष रखा| अंत में पुल निर्माण वाली 'रेल रोड कंपनी के वकील ने माननीय न्यायलय के समक्ष यह प्रश्न रखा कि अमेरिकी नागरिको अपने देश में कहीं आने जाने और अपने परिवहन के साधन अपनी इच्छा से चुनने का मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता है या नहीं? यह मुख्य मुद्दे की बात थी| न्यायलय का निर्णय नागरिको एवं पुल निर्माण कंपनी के पक्ष में हुआ| इनके वकील का नाम अब्राहम लिंकन था, जो बाद में वहां के राष्ट्रपति भी हुए| कहने का तात्पर्य विशद वर्णन में जाने पहले मुख्य मुद्दे की बात हो और इस पर निर्णय के बाद अन्य मुद्दे पर बात हो|

इसी तरह दूसरा प्रसंग है| माना कि एक व्यक्ति का नाम मोहन लाल है| उसने एक ऐसी जमीन के टुकड़े को गिरिधारी जी को बेच दिया, जिस जमीन पर उसका किसी भी तरह से स्वामित्व नहीं था| गिरिधारी ने इस टुकड़े को राधे किशन को बेच दिया| अब कोई विवाद गिरिधारी और राधे किशन में उसके स्वामित्व को लेकर हो गया| मामला न्यायलय में गया| माननीय न्यायलय का निर्णय यह होगा कि यह जमीन इन दोनों की नहीं है, क्योकि भूमि पर स्वामित्व की तथाकथित शुरुआत ही फर्जी थी| इस स्थिति में कानून की बारीकियां, प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ, और किसी की विद्वता एवं मंशा का कोई वर्णन सब निरर्थक है|

यदि चाणक्य का पात्र ही कल्पना हो, जिसका कोई पुरातात्विक, ऐतिहासिक या अन्य तार्किक आधार ही नहीं हो, तो इन पर आधारित सब विद्वतापूर्ण वर्णन बेकार हैं| यह सब उसी तरह बेकार होंगे, जैसे ऊपर के प्रसंग में हुए|

कहा जाता है कि चाणक्य की उत्पत्ति मैसूर संग्रहालय के एक क्यूरेटर (संग्रहालय यानि म्यूजियम के रख रखाव के लिए कर्मचारी ) श्री सामदेव शास्त्री के द्वारा लगभग एक सौ वर्ष पहले अर्थात उन्नीसवीं सदी के प्रथम दशक में हुई| यह समय था अंग्रेजो के उपनिवेशवाद का| उस समय अंग्रेजो का मानना था कि भारतीय स्व शासन योग्य नहीं थे| भारतीय राष्ट्रवाद का उभार हो रहा था और भारतीय स्व शासन के पक्ष में बाते रखी जा रही थी| सन 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने पहली बार धम्म लिपि को पढ़ा| उसी धम्म लिपि को बाह्मी या ब्राह्मी लिपि कहा जाता है| भारत में इतने बौद्धिक षडयंत्र इस क्षेत्र में हुए हैं कि अब उन सबों से पर्दा हट रहा है| इस तरह आधुनिक भारत मौर्य साम्राज्य को  जान सका था| उस क्यूरेटर के टीम ने उनके “अर्थशास्त्र” को भी तैयार कर दिया| कहाँ से तैयार किया, कोई पता नहीं| प्रसिद्ध जर्मन भारतीयविद मैक्स मुलर ने भी इसका समर्थन कर दिया| ब्रिटेन और जर्मनी साम्राज्यवाद के दो विपरीत धुरी (Pole) थे| अत: एक जर्मन का, अंग्रेजी हितों का विरोधी होना स्वाभाविक था|

चाणक्य के पक्ष में कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है| इनके समर्थन में इनका कोई प्रसंग तत्कालीन किसी भी विदेशी या भारतीय ग्रन्थ में नहीं है| इन्हें संस्कृत ही आता था और उस समय संस्कृत के प्रचलन या अस्तित्व का कोई साक्ष्य नहीं है| अशोक ने कई भाषाओँ में तथा द्वि भाषाओं में शिलालेख लिखवाये, परन्तु संस्कृत में कोई शिलालेख नहीं है| वास्तव में संस्कृत भाषा और ब्राह्मण, ब्राह्मणवाद, वर्ण एवं जाति का उदय ही सामंतकाल में सामंतवाद की आवश्यकतायों के कारण ही हुई है, यह अब स्थापित हो गया है| सामंतवाद के पहले “बमण” एवं “बम्हण” शब्द भारत में विद्वानों के संबोधन के लिए था| यही समानार्थी शब्द सामंत काल में ब्राह्मण नाम का जाति सूचक शब्द बना| इन बातों के समर्थन में ये पुस्तके और वे पुस्तके हो सकती है, जो खुद काल्पनिकता को पुष्ट करने के लिए सामंतकाल में प्राचीनता के नाम पर बहुत बाद में रची गयी हैं| चाणक्य के समर्थन में कोई भी प्राथमिक प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है।

अत: पहले चाणक्य की ऐतिहासिकता स्थापित हो, तब ही उनकी विद्वता का बखान (Description) समुचित होगा| आप किसी भी बात के समर्थन में साक्ष्य, तर्क, विवेकशीलता एवं वैज्ञानिकता को अवश्य देंखे| उनके समर्थकों से भी यही मांगे| यही बौद्धिकता का परीक्षा है| अत: इसकी महानता एवं उपलब्धियों की चर्चा करना व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के समय, उर्जा, धन एवं संसाधन की बर्बादी है|

निरंजन सिन्हा

मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक, एवं बौद्धिक उत्प्रेरक|

मेरे अन्य आलेख www niranjansinha.com पर भी देखे जा सकते हैं।

 

 

 

 

 


गुरुवार, 9 सितंबर 2021

साफ्टपावर की शक्ति (The Power of Softpower)

 साफ्टपावर (Soft Power) क्या होता है? हार्डपावर (Hard Power) क्या होता है? इन दोनों में कौन ज्यादा शक्तिशाली है? और क्यों? आजकल वैश्विक शक्तियां साफ्टपावर की शक्तियों को पहचान कर उसका खूब उपयोग कर रही है| ऐसा नहीं है कि विकासशील देश इन शक्तियों से बेखबर हैं| परन्तु यह सही है कि विकसित एवं विकासशील देशों के साफ्टपावर में वैसा ही अंतर है, जैसा दोनों के हार्डपावर में अंतर है| एक बात और, अविकसित एवं विकासशील देशों में साफ्टपावर का जो भी स्तर है, उसका उपयोग अपने ही देश के विभिन्न समाजों को पछाड़ने में और किसी दुसरे समुदाय के हित साधन में लगाता रहता है|

साफ्टपावर मानसिक (Mental) स्तर पर कार्यरत होता है| इसी के उपयोग से ही होमो सेपियन्स ने विश्व में फैले ताकतवर नियंडरथल और होमो इरेक्टस को समाप्त कर दिया| आज विश्व के अन्य जीव जन्तु भी इन्ही होमो सेपियन्स की कृपा पर जीवित हैं| यह भी कहा जाता है कि ये होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) भी जल्द ही होमो ड्यूस (Homo Deus) की कृपा पर बचे रहेंगे या होमो सेपियन्स उस (होमो ड्यूस) के चाल में उलझ कर समाप्त हो जायेंगे| होमो ड्यूस की कहानी सन 2040 के दशक (Decade of 2040’s) दिखने लगेंगे|

हार्डपावर में सभी प्रकार के अस्त्र एवं शस्त्र शामिल हैं| आप अस्त्र शस्त्र को सामान्य भाषा में हथियार (Weapons) कह सकते हैं| साफ्टपावर में बौद्धिक क्षमता (Intellectual Ability) का उपयोग कर उन्हें मानसिक स्तर (Metacognition) पर नियंत्रित किया जाता है| हार्डपावर में भी बौद्धिक क्षमता का उपयोग होता है, परन्तु इसमें शारीरिक नुकसान पहुंचा कर व्यक्ति एवं समाज को नियंत्रित करने का प्रयास करता है| साफ्टपावर के सफल परिणाम में कुछ समय लगता है, परन्तु हार्डपावर के परिणाम में अपेक्षाकृत कम समय लगता है| साफ्टपावर का परिणाम स्थायी होता है और ज्यादा प्रभावी होता है| हार्डपावर का परिणाम अक्सर अस्थायी होता है और असरदार भी नहीं होता है| वर्तमान अफगानिस्तान में पश्चिमी समर्थित हार्डपावर असफल रहा और तालिबान का साफ्टपावर सफल रहा है| यह बात अलग है कि किसी का साफ्टपावर नकारात्मक एवं विध्वंसात्मक है या सकारात्मक एवं रचनात्मक है|

विश्व की बड़ी शक्तियां विश्व के अपने टारगेट क्षेत्रों में कई स्तर पर साफ्टपावर का उपयोग करता रहता है| इन वैश्विक शक्तियों में प्रमुख देश चीन का जनवादी गणराज्य (People’s Republic of China), संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस (Russian Federation) शामिल हैं| चीन का साफ्टपावर का तो यह प्रभाव है कि इसके विरुद्ध अमेरिका भी बोलने से बचता रहता है, अन्य पीड़ित देशों की तो औकात ही नहीं है|

साफ्टपावर में मानसिक नियंत्रण के लिए उसकी संस्कृति को प्रभावित करना होता है|सामाजिक और सांस्कृतिक सोच, व्यवहार और आचरण करना ही किसी की संस्कृति होती है और यही असली साफ्ट पावर होता है। किसी व्यक्ति या समाज की मानसिक अवस्था या क्रियाशीलता को ही संस्कृति कहते हैं| इस सांस्कृतिक क्रियाशीलता यानि अवस्था का निर्धारण उस समाज के इतिहास बोध (Perception of History) से होता है| इसीलिए लेखक जार्ज ऑरवेल कहते थे कि “जो इतिहास पर नियंत्रण करता है, वह भविष्य पर भी नियंत्रण करता है|”

अभी विश्व में दो तरह की व्यवस्थाएं काम कर रही है – एक सामंतवादी व्यवस्था और दूसरी मानवतावादी व्यवस्था| सामंतवादी व्यवस्था यथास्थितिवादी होती है और यथास्थिति बनाये रखना चाहती है| आज के आधुनिक युग में सामंतवादी व्यवस्था अपने मूल एवं मौलिक स्वरुप में नहीं रह सकती है| आज के युग में सामंतवादी व्यवस्था अपने धार्मिक, संस्कृति एवं संस्कारों के आवरण में रहती है| इससे नादानों एवं मूर्खों को इसका मूल एवं मौलिक स्वरुप नहीं दिखता है| वे इसे अपना धर्म, संस्कृति एवं संस्कार मान कर अपनाए रहते हैं| इस तरह वे किसी भी बदलाव का धर्म, संस्कृति एवं संस्कार के नाम पर विरोध करते हैं| हाँ, इसके लिए यदि इस तथाकथित धर्म, संस्कृति एवं संस्कार को पुरातन, सनातन, ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थापित किया जा सके, तो यह सभी के लिए गौरवशाली बन जाता है और इसका अनुपालन करना जान से भी प्यारी हो जाता है|

मानवतावादी व्यवस्था विज्ञान, तर्क, विश्लेषण एवं विवेकशीलता  पर आधारित होता है| इसीलिए ऐसा समाज एवं संस्कृति आज विकसित हैं| ये ही अब साफ्ट पावर का उपयोग कर रहे हैं| “पेगाशस” साफ्टवेयर भी साफ्ट पावर का उदहारण है| आज “डाटावाद” का उपयोग इसी साफ्ट पावर में हो रहा है, जिसके बारे में अधिकाँश देश बेखबर हैं| इन विकसित देशों से आयातित उपकरणों एवं हथियारों में साफ्टवेयर एवं सेंसरों का उपयोग होता है| ये साफ्टवेयर कब और कितना किनके नियंत्रण में रहेंगे, यह तो समय ही बताएगा|

अब आप भी साफ्ट पावर की शक्तियों एवं प्रभावशीलता को समझ गए होंगे|

निरंजन सिन्हा

मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक

 

कानून का मजाक (The Joke of Law)

कानून का मजाक कौन करता है? कानून समाज में व्यवस्था बनाने के लिए होता हैकानून समाज के लिए, समाज का, और समाज के द्वारा होता है| हमारे समाज का अर्थ हुआ मानवता के लिए हमारा सामाजिक संगठन| इस मानवता के तत्व के अभाव में कोई सामाजिक संगठन गिरोह कहलाता हैं| गिरोह कुछ खास छोटे समूह के हितों को ध्यान में रख कर कार्य करता होता है|

व्यवस्था बनाने के लिए शासन के चार अंग होते हैं – विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, एवं संवादपालिका| ये समाज में व्यवस्था और सम्यक विकास के लिए कार्यरत है| इन सभी का उद्देश्य में समाज में मानवता के साथ सुख, शांति, संतुष्टि, समृद्धि औए विकास करना होता है| यह सब न्याय (Justice) से आता है, जो समानता, स्वतंत्रता, एवं बंधुत्व आधारित होना चाहिए| इस सभी को बनाये रखने की जबावदेही मूलत: जनता की ही यानि समाज की ही होती है|

समाज में सम्यक न्याय के लिए कानून विधायिका बनाती है| इस ज़माने में सामान्यत: यह समाज के निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता है| इन कानूनों के सम्यक कार्यान्वयन (Execution) का जिम्मा कार्यपालिका का होता है| इन कानूनों के सम्यक अनुपालन में कुछ आवश्यक व्याख्या एवं नियंत्रण की आवश्यकता हो जाती है| इन कानूनों के सम्यक व्याख्या एवं नियंत्रण की जबावदेही न्यायपालिका को दी गयी है| संवादपालिका कानून के सफल कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण (Supervision) करता है| संवादपालिका को ही सामान्य जन मीडिया कहता है| इसमें प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक एवं सोशल मीडिया भी शामिल होते हैं|

विधायिका सामाजिक व्यवस्था एवं विकास के लिए कानून बनाती है| कुछ कानून को संदर्भिक बनाने लिए समय समय पर आवश्यक संशोधन, विलोपन (Deletion), एवं बदलाव किया जाता है| सम्यक कानून के लिए समुचित बदलाव के अभाव में ही कानून का मजाक हो सकता है| भारतीय संविधान न्यायपालिका की आलोचना करने की मनाही करता है| कुछ न्यायमूर्ति अपने कार्यकाल में और अवकाशप्राप्ति  के बाद बहुत कुछ अवैज्ञानिक एवं अतार्किक बात कह देते हैं, जिसे वैश्विक समाज अच्छा नहीं मानता| संवादपालिका सामाजिक व्यवस्था एवं विकास के समुचित पर्यवेक्षण का अपेक्षित कर्तव्य नहीं कर पाता है| लगभग सभी मीडिया अपने लाभ हानि के मूल एवं मुख्य उद्देश्य से संचालित होते है, क्योंकि ये निजी क्षेत्रों में हैं| इन पर आरोप लगता है कि ये के वंचित एवं पिछड़े हिस्सों तथा क्षेत्रों की उपेक्षा करते हैं| इनकी कोई वैधानिक जबावदेही भी तय नहीं है| इस तरह उपरोक्त तीनों कानून के मजाक बनाने के दायरे से बाहर हो जाते हैं|

कानून के मजाक के लिए सामान्यत: सबसे ज्यादा दोषी कार्यपालिका को ही माना जाता है| समाज में किस तरह के कानून की आवश्यकता है, इसकी शुरुआत भी कार्यपालिका के द्वारा ही होती है| कानून का मसौदा तैयार करने वक्त इसमें इतने परन्तुक एवं अपवाद दिए जाते हैं, कि कानून को कभी कभी वकीलों का स्वर्ग भी कह दिया जाता हैकभी कभी कानून में इतने अव्यवहारिक बातें दे दिया जाता है, जिसका ध्यान कार्यान्वयन करने वाले कार्यपालिका को ही नहीं रहता|

कार्यपालिका द्वारा कानून का सबसे ज्यादा मजाक प्रशासनिक कानून की प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के अवधारणा (Concept of Natural Justice) से सम्बंधित है| कार्यपालिका के अधिकांश अधिकारी प्रशासनिक कानून की प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय की आवश्यकता से बेखबर हैंप्राकृतिक न्याय के लिए दोनों पक्षों को समुचित ढंग से सुना जाना (समुचित अवसर) एवं दोनों पक्षों को अपनी बात को रखने के लिए समुचित समय दिया जाना ये दोनों शर्त अन्य तत्वों की अपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण है| कार्यपालिका द्वारा कानून का सबसे ज्यादा मजाक इन्ही कारणों से हो जाता हैअक्सर कार्यपालिका शिकायतों के सुनवाई के क्रम में यह गलती किया करते हैं| मैं कुछ उदहारण देना चाहूँगा| मैंने यूको बैंक के पटना स्थित आंचलिक कार्यालय के कार्य प्रणाली के विरुद्ध इनके कोलकाता मुख्यालय में शिकायत की| बिना मेरे पक्षों को पूछे एवं जाने उस करवाई के समापन की सुचना दे दी गई| इसी तरह इसके विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक में पटना स्थित बैंक लोकपाल ने बिना मेरा पक्ष जाने अपनी करवाई समाप्ति की सुचना दे दी| स्पष्ट है कि इन्हें प्राकृतिक न्याय की अवधारणा सम्बन्धित प्रशिक्षण नहीं दिया गया है या ये अपने पद का मनमाना प्रयोग करते है| इनके ऊपर सुनवाई की कोई व्यवस्था नहीं दिखती| यह स्पष्टतया कार्यपालिका के द्वारा कानून के मजाक का उदहारण है|

ये कार्यपालिका के अकर्मण्यता को छुपाने के लिए तथ्यात्मक आरोपों को भावनात्मक भी बना देते हैं| ये कानूनों के उद्देश्यों को समझते हुए भी बाल का खाल निकालते हैं| इन सबो की उचित व्याख्या करने एवं सुनने की कोई व्यवस्था नहीं होती|

कभी कभी कार्यपालिका प्रशासनिक न्याय की प्रक्रिया के लिए समुचित व्यवस्था नहीं करता| इसके कारण भी कानून का मजाक बनता है| अक्सर आप देखेंगे कि अधिकतर कार्यालयों में किसी शिकायती कागजातों की प्राप्ति देने का पर्याप्त व्यवस्था नहीं होता| इस कुव्यवस्था के विरुद्ध भी कोई सुनने वाला नहीं होताशिकायतों के साथ विहित शुल्क की नगद जमा करने की वैधानिक प्रावधान के बावजूद भी कही भी नगदी राशि हाथों हाथ नहीं लिया जाता| सुचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत ली गई नगदी शुल्क के राजकीय कोष में जमा की जाने वाली राशि से इस आरोप का सत्यापन किया जा सकता है|

यह कार्यपालिका के कार्यान्वयन प्रणाली का स्पष्ट दोष है| इस पर अपेक्षित ध्यान दिए बिना कानून का मजाक होता रहेगा| आप मीडिया के समर्थन से चाहे जो दावा करते रहें|

निरंजन सिन्हा 

मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक 

सामाजिक नेतागिरी और हथौड़ा सिद्धांत

  Social Leadership and the Hammer Theory भारतीय समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक नेतागिरी की धूम मची हुई है , लेकिन भारतीय समाज में जो सामा...