मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

बिहार में जातीय जनगणना

बिहार में जाति गणना की प्राथमिक रिपोर्ट जारी हो गयी है, अर्थात सम्बन्धित अन्य रिपोर्ट अभी आने बाक़ी है, जिसमे सम्बन्धित आकड़ों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक पक्ष शामिल रहेगा| इस विषय पर बहुत सी बातें समाज में अभी तैर रही है, इसलिए इस पर एक अकादमिक आलेख की आवश्यकता है, और इसी कारण मैं इसे लिख रहा हूँ|

समाज में तैर रही इससे सम्बन्धित पहली प्रमुख बात यह है कि यह जातीय जनगणनाहै ही नहींयह जातीय गणना यानि सर्वेक्षण है| भारत में जनगणना (Census) कराने की समस्त शक्तियाँ एकमात्र केद्र (Centre) की सरकार को है, क्योंकि यह जनगणना भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची’ (Schedule) के केंद्र सूचि” (Centre List) में दर्ज है, जिसका क्रमांक 69है| स्पष्ट है कि यह जनगणना राज्य सूचि या समवर्ती सूचि में नहीं है, और इसीलिए इसे केंद्र सरकार के अलावे कोई अन्य प्राधिकार या कोई अन्य संस्था या प्रतिष्ठान नहीं करा सकता है| जनगणना एक निश्चित अवधि पर नियमित रूप से कराया जाता है, जिसमे उस देश या राज्य की सम्पूर्ण आबादी का सम्यक एवं सम्पूर्ण अपेक्षित जानकारी संग्रहीत किया जाता है| इसका उपयोग विविध प्रकार से नीति एवं योजना निर्माण में एवं उसके कार्यान्वयन में किया जाता है, ताकि उपलब्ध संसधानों का उपयोग अपेक्षित लाभान्वित वर्ग या वर्गों के महत्तम, संतुलित एवं सार्थक हित में हो सकेकिसी भी समाज या राष्ट्र को सशक्त, समृद्ध एवं सुखमय बनाने का यही मूल आधार है|

जनगणना’ (Census) के विपरीत गणना’ (Counting) या सर्वेक्षण’  (Survey) कोई भी एजेंसी कभी भी यानि किसी भी समय में, किसी भी क्षेत्र में, किसी भी विशिष्ट या लक्षित आबादी में किसी भी विशिष्ट या सामान्य उदेश्य के लिए करा सकती है| यह एजेंसी कोई भी हो सकता है, चाहे वह निजी हो, कोई व्यवसायिक या कंपनी हो, कोई भी संस्था हो, या कोई सरकारी संस्था यानि विभाग या मंत्रालय हो| आपने ध्यान दिया होगा कि बहुत सी व्यवसायिक कम्पनियाँ अपने उत्पाद की बिक्री या सेवा सम्बन्धी की जानकारी एवं मूल्याङ्कन के लिए अपने वर्तमान एवं संभावित ग्राहकों से आंकड़े प्राप्त कर, उसका वर्गीकरण, विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन कर आगे की रणनीति तय करने के लिए करती है, ताकि वह वर्तमान एवं भविष्य की प्रतियोगिता को समझ सके एवं अपेक्षित सफलता प्राप्त कर सके, या उसे बनाए रख सके| इसी तरह बहुत से सामाजिक एवं आर्थिक सांस्कृतिक शैक्षणिक संस्थाएँ भी अपनी आवश्यकता या नीतियों के क्रियान्वयन की सफलता के लिए अपने मनोनुकूल गणना या सर्वेक्षण करती या कराती है|

सामान्यत: जनगणना एक निश्चित अवधि में और एक निश्चित तिथि के सन्दर्भ में किया जाता हैजिसमे जनजीवन के व्यापक पक्षों से सम्बन्धित आकड़ों एवं संदर्भो को समाहित किया जाता हैभारत में यह सामयिक अवधि एक दशक यानि प्रत्येक दस वर्षों पर किया जाना अपेक्षित हैभारत में इसका सन्दर्भ तिथि सामान्यत: मार्च महीने की पहली सुबह यानि एक मार्च की सुबह रखी जाती है| इसी कारण भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध नगर बद्रीनाथकी आबादी शून्यहै, क्योंकि बदरीनाथ एक बर्फीले क्षेत्र में पड़ता है, और उस नगर का कपट ही सामान्यत: मई महीने में ही खुलता है, और उस बर्फीले क्षेत्र में उस समय (पहली मार्च को) कोई आबादी नहीं रहती है। जबकि किसी भी गणनाया सर्वेक्षणमें ऐसी कोई भी निश्चित तिथि पूर्व अपेक्षित शर्त नहीं होती है| इसलिए कोई भी राज्य सरकार या कोई भी एजेंसी कभी भी, कही भी अपने किसी ख़ास उद्देश्य के लिए सम्बन्धित एवं प्रमाणिक आकडे प्राप्त करने या उपलब्ध कराने के लिए कर सकती है| इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय का हाल का न्याय निर्णय इसी सन्दर्भ में आया है|

भारत के संविधान में कई सामाजिक वर्गों को भिन्न भिन्न आधार पर वर्गीकृत किया गया है, जिसे भी जान लेना एवं समझ लेना आवश्यक है| संविधान में भारतीय आबादी को मुख्यता अनुसूचित जाति’, ‘अनुसूचित जनजाति’; ‘पिछड़ा वर्ग’, एवं सामान्य वर्गमें विभजित किया गया था| परन्तु हाल ही में एक नया वर्ग का सृजन किया गया, जिसे सामान्य वर्गसे अलग कर सृजित किया गया है| इसके लिए सांवैधानिक व्यवस्था में आर्थिक रूप से कमजोरवर्ग (संविधान का 103 वाँ संशोधन) कहा गया है| इस तरह ऐंग्लो इन्डियनसामाजिक वर्ग के अतिरिक्त भारतीय संविधान में कुल पाँच बड़ा वर्ग  अनुसूचित जाति’ (SC), ‘अनुसूचित जनजाति’ (ST), ‘पिछड़ा वर्ग’ (अन्य पिछड़ा वर्ग – OBC), ‘आर्थिक रूप से कमजोर’ (EWS) एवं सामान्य वर्ग’ (General Class) हो गया है| इस ऊपर वर्णित सन्दर्भ के अनुसार बिहार की वर्तमान गणना रिपोर्ट का विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन किया जा सकता है|

संविधान के अनुच्छेद 341 एवं अनुच्छेद 342 के अनुसार राष्ट्रपति जिन जातियों को लोक अधिसूचना के द्वारा अनुसूचित जाति की सूचिमें रखती हैअनुसूचित जाति” (SC – Schedule Caste) कहलाती है| और इसी तरह राष्ट्रपति जिन जनजातियों को लोक अधिसूचना के द्वारा अनुसूचित जनजाति की सूचिमें रखती हैअनुसूचित जनजाति” (ST – Schedule Tribe) कहलाती है| इसी तरह संविधान के अनुच्छेद 15 (4) में पिछड़े वर्ग के लिए सामाजिक एवं शैक्षणिकपिछड़ापन का आधार रखा गया है| संविधान के किसी अनुच्छेद में भी स्पष्टतया क्रीमी लेयरका प्रावधान नहीं किया गया है, परन्तु इसे राजकीय व्यवस्था के अंतर्गत लाया गया है| इसी तरह संविधान के अनुच्छेद 15 (6) में सामान्य वर्गमें से आर्थिक आधारपर एक अलग संवैधानिक वर्ग  - 'आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग' बनाया गया है|

सामान्यत: अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए उनके आबादी के अनुपात में सेवाओंएवं प्रतिनिधि मंडलमें आरक्षण दिया गया है| पिछड़े वर्गों के लिए सेवाओं में 27% का आरक्षण दिया गया है| पिछड़े वर्गों की आबादी 1931 की जनगणना के आधार पर लगभग 52% मानी जाती है, और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण सीमा को 50% निर्धारित कर दिए के जाने के कारण ही शेष बचे 27% ही उपलब्ध आरक्षण पिछड़े वर्ग को दिया गयाबिहार की वर्तमान गणना में इस पिछड़े वर्ग की समेकित आबादी 63%  आ गयी है, जो पूर्व धारणा के अनुसार 52% थी| दरअसल 1931 की जनगणना की रिपोर्ट के बाद 2011 में ही जातिको जनगणना में शामिल किया गया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गयी हैबिहार में पिछड़ों की आबादी पिछड़ा वर्गएवं अत्यंत पिछड़ा वर्गमें विभाजित है और इन्ही वर्गों के आबादी के अनुरूप बिहार में सेवाओं में आरक्षण दिया गया है|

पिछड़ों की आबादीएवं प्रतिशत आबादीको बढ़ने का प्रमुख कारण 1931 की जनगणना के बाद इस सूचि में और अन्य जातियों का शामिल होना है और इनकी प्रजनन की दर (Birth Rate) का सामान्य वर्ग से अधिक का होना है| यह एक स्थापित तथ्य है कि जो वर्ग या समाज सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक रूप से जितना पिछड़ा हुआ होता है, उसका प्रजनन दरउतना ही अधिक होता हैजनान्कीय संक्रमण का सिद्धांत” (Demographic Transition Theory) भी यही कहता है| इस बढती प्रजनन दर को स्थायी रूप में कम करने के उपाय में सम्बन्धित वर्गों या समाजों की शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संवर्धन के उपाय ही निहित है, जो अंतत: किसी भी वर्ग या समाज या राष्ट्र को सशक्त, समृद्ध एवं सुखमय बनाता है|

इस रिपोर्ट के आधार पर विभिन्न नेताओं द्वारा कई तरह की बातें मीडिया में तैर रही है| कुछ लोगों का मानना है कि पिछड़ों को भी आबादी के अनुसार सेवाओं एवं अन्य सुविधाओं में प्रतिनिधित्व दिया जाय| कुछ का मानना है कि इससे सामाजिक वैमनस्य बढेगा| प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस का मानना है कि उनके सत्ता में आने पर 2011 की जनगणना का जातिवार आंकड़ों को प्रकाशित करेगी| कुछ नेताओं के द्वारा एक नयी बात सामने आ रही है कि एक सांवैधानिक वर्ग – “आर्थिक रूप से कमजोर वर्गकी आबादी तीन प्रतिशत ही अधिकतम हो सकती है, और उनको दस प्रतिशत का आरक्षण दिया गया है| उनका कहना है कि सामान्य वर्ग, जिनकी आबादी इस गणना के अनुसार 15 % ही है, और इनमे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’  उनके समेकित आबादी का बीस प्रतिशत से ज्यादा हो ही नहीं सकता है, अर्थात कुल 15% का बीस प्रतिशत यानि तीन प्रतिशत ही होगा| इस आर्थिक रूप से कमजोर वर्गको सामान्य वर्ग से अलग वर्ग के रूप में संवैधानिक प्रावधानों में स्थापित किया गया है| यानि इस आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’  की अधिकतम आबादी तीन प्रतिशत हो सकती है, और इन्हें दस प्रतिशत का आरक्षण दिया गया गया हैएक सांवैधानिक वर्ग "सामान्य वर्ग" को कोई आरक्षण नहीं दिया गया है, क्योंकि उन्हें सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा या वंचित नहीं माना गया है।

जब तक इस गणना से सम्बन्धित सम्पूर्ण अर्थात सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, तब तक किसी भी निर्णय पर पहुँचना तर्कसंगत एवं विवेकपूर्ण नहीं होगा| सम्पूर्ण रिपोर्ट के बाद ही सम्बन्धी विद्वान जनों की राय एवं सुझाव सामने आयेंगे| इस रिपोर्ट में, जैसा मीडिया ने दिखाया है, लगता है कि यौन (Sex) आधारित विभाजन को सही ढंग से समझा नहीं गया है, और इसीलिए थर्ड सेक्स’ (Third Sex) और ट्रांसजेंडर’ (Transgender) में अंतर नहीं समझा गया है| ‘थर्ड सेक्ससामान्य रूप से हिजड़ाको कहा जाता है, जबकि ट्रांसजेंडरचिकित्सीय रूप से सेक्स रूपांतरण’ (Sex Transformation) कराने वाले को कहते हैंइसीलिए समाज शास्त्र शास्त्रियों ने आदमियों को यौन आधारित वर्गीकरण में चार’ (Four)  वर्ग में रखा हैं|

किसी भी गणना में यानि किसी भी सर्वेक्षण में समाज से सम्बन्धित आवश्यक आंकड़े  उपलब्ध कराये जाते हैं, ताकि उस सम्बन्धित प्राधिकार को कोई भी नीतिगत निर्णय लेने में, या कोई भी योजना बनाने में, या भविष्य के साथ साथ वर्तमान को भी जमीनी स्तर पर समझने के लिए उपयुक्त एवं सार्थक होता है| इसीलिए अर्थशास्त्र के प्रसिद्ध भारतीय नोबल पुरस्कार विजेता श्री अभीजित बनर्जी कहते हैं कि भारत के विकास की मूल एवं प्रधान समस्या यह है कि समस्या से सम्बन्धित आंकड़ों की उपलब्धता का और उसके प्रमाणिकता का नहीं होना है| इस आलोक में बिहार का यह प्रयास एवं परिणाम ने विकास के लिए भारत को एक दिशा दिखाया है|

वैसे जातीय गणना या सर्वेक्षण या जनगणना के मुद्दे को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता, क्योंकि यह एक काल्पनिक वास्तविकता (Imaginary Reality) है। चूंकि जाति एक अमानवीय, अवैज्ञानिक, अतार्किक और अविवेकी अवधारणा है और इसकी कोई उपयोगिता इस आधुनिक और वैज्ञानिक युग में नहीं है, इसीलिए शासन और व्यवस्था को चाहिए कि इसे सतर्क, सशक्त और प्रभावशाली तरीके से समाप्त किया जा सकता है।

आचार्य निरंजन सिन्हा 

 

 


2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत बधाई हो सर। बहुत ही सारगर्भित लेख। खासकर जनगणना और गणना में अंतर को विस्तार से आपने समझाया है। इस लेख से काई नई जानकारियां प्राप्त हुई। ज्ञानवर्धक लेख।🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत शानदार विश्लेषण और जानकारी सर। कई घण्टे तक और ताउम्र हजारों मैगजिन और पेपर पढने के बावयुद ये concept नहीं मिलता जो कुछ शब्दों में आप की बौद्धिक क्लैरिटी से crystal clear रूप में बता दिए सर।
      ऐसे एक साइंस का विद्यार्थी का सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विश्लेषण को सलाम सर। Keep it up Sir.

      हटाएं

सत्ता ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ से क्यों डरता है?

‘ सत्ता ’ में शामिल लोग ही असली ‘ शासक ’ ‘ वर्ग ’ कहलाते हैं , होते हैं।   तो सबसे प्रमुख प्रश्न यह है कि   ‘ सत्ता ’   क्या है और   ‘ शासक ...