यदि आपकी
उम्र पचास साल की हो गई है, या होने वाली है, या इससे अधिक ही हो गई है, तो इस
आलेख का अवलोकन अवश्य ही करें| यह तो सही है
कि अब आपकी ढलती उम्र में आपका शरीर ही नहीं, आपका परिवार (संतानें) भी आपका साथ नहीं दे रहा
है, जिस मात्रा और जिस गुणवता में आपकी उनसे अपेक्षाएं थी| आपके विचार भी इस बदलती
दुनिया में ‘बकवास’ साबित हो रहे हैं| आपका समाज भी आपकी नजरों में बहुत कुछ
बदल गया है| लेकिन इन बदलावों से जूझने के लिए आप “आंतरिक
शक्ति” कहाँ से एवं कैसे लायेंगे? यही सबसे महत्वपूर्ण सवाल है, जिसे
समझना जानना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है| और इसके बिना यह भी स्पष्ट है कि बाकी सभी बातें
घिसी पिटी हुई है|
जीवन के इसी
अवस्था में आपका ‘जीवन उद्देश्य” (Purpose of Life) काम आता है| एक आदमी वस्तुत: एक
पशु ही होता है, लेकिन उसके ‘जीवन का उद्देश्य’ ही उसको एक पशु से अलग कर देता है|
एक जीव यानि एक पशु अपना बच्चा पैदा करता है, उसे
पालता पोसता है, और फिर उसे देखते निहारते हुए मर जाता है| यदि कोई भी आदमी भी ऐसा ही करता है,
तो वह वस्तुत: एक पशु ही है, और उससे ऊपर या उससे अलग नहीं है| यहीं
उसका ‘जीवन उद्देश्य’ काम करता है| यदि कोई आदमी अपने जीवन उद्देश्य में अपने
परिवार के अलावे समाज को, मानवता को समा लेता है, तो वह महान हो जाता है| लेकिन
यदि कोई अपने ‘जीवन उद्देश्य’ में इसके अतिरिक्त यानि समाज एवं मानवता के अतिरिक्त
‘प्रकृति’ एवं ‘भविष्य’ को भी समाहित कर लेता है, तो वह ‘बुद्ध’ हो जाता है| अब आपको अपने लम्बे जीवन जीने के लिए अपने जीवन उद्देश्य को अपने परिवार से भी बाहर ढूंढना होगा, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। लेकिन
इन सबका उसके बढती या ढलती उम्र में क्या जरुरत है? यह सब उसकी बढती उम्र में कैसे
काम करता है?
कुछ समय पहले तक ‘बाजार’ की शक्तियाँ इतनी सशक्त, प्रभावशाली, और सर्व व्यापी नहीं थी|पहले बढती उम्र में सिर्फ शरीर साथ नहीं देता था, लेकिन परिवार, समाज और उसके विचार उसका पूरी तन्मयता से सहारा देता हुआ होता था| यानि कुछ समय पहले तक वह व्यक्ति अपने अस्तित्व में अपने परिवार, समाज एवं विचार के लिए सान्दर्भिक होता था| लेकिन आज बाजार की शक्तियों और साधनों ने सब कुछ पलट दिया है| इसने युवाओं को प्राधिकार में, भूमिका में, विचार में, आधुनिकता की संस्कृति में, अन्य बदलाव में बहुत बदल दिया है| महिलाओं को घर- आँगन से बाहर निकाल कर उनकी भूमिकाओं को ‘उलट” ही दिया है| इनके बदलने की गति भी बहुत तेज़ है। इन युवाओं और महिलाओं की नई ‘सांस्कृतिक गति’ से उत्पन्न ‘आवेग’ (Momentum) के चोट और झटके को पुराने लोगों की ‘गतिहीन’, या ‘सांस्कृतिक जड़ता’ (Inertia of Culture) में जड़ (Fix) मानसिकता इन बदले हुए पीढ़ी को बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं| ये बुजुर्ग अपने परिवार के बाहर के बदलाव से विचलित नहीं हैं, लेकिन यह सब तो उनके घर –आँगन का हिस्सा बन चुका है| अभी भी ये बुजुर्ग इन बदलावों के लिए इन्हें बाजार की शक्तियों के रूप में नहीं समझ कर अपने बेटे एवं बहुओं में दुष्टता के रूप में देख रहे हैं, और इसीलिए इसका समाधान भी नहीं मिल रहा है।
अब बाजार की शक्तियों और साधनों ने ‘विस्तारित (Extended)
परिवार’ (पहले संयुक्त – Joint परिवार कहा जाता था) को खंडित कर दूर दूर के
स्थानों में कार्य करने और रहने को बाध्य कर दिया है| बाजार के साधनों ने उनकी
हैसियत और औकात की दशा और स्थान (Position) को भी बदल दिया| आज का एक ‘नादान.
बुजुर्ग ‘बाजार’ की इन शक्तियों और उनकी क्रियाविधियों को नहीं समझ पा रहा है, और
सारी गड़बड़ियों का आधार अपने परिवार और समाज में खोज समझ कर परेशान हो रहा है| ऐसे
में निकट का यह सम्बन्ध ‘खिन्नता’ का शिकार हो रहा है, और उनके अपने परिवार में
सभी के स्वावलंबी हो जाने से उन बुजुर्ग के ही लम्बे जीवन के ध्येय को ही ध्वस्त कर दे रहा
है| ऐसी ही स्थिति में ये बुजुर्ग अपने को सार्थक नहीं बना पा रहे हैं| ऐसी स्थिति
में उनका समाज, मानवता, प्रकृति एवं इन सभी का भविष्य ही उनके जीवन उद्देश्य को नया आधार देता हुआ होता है| यही जीवन उद्देश्य उनको एक लम्बे एवं सार्थक जीवन व्यतीत
करने का प्रेरणा का स्रोत हो जाता है| तब ही आपका डाक्टर, भोजन, व्यायाम, साधना और
जीवन शैली, सब कुछ काम करने लगता है| इस जीवन उद्देश्य के बिना सब कुछ बेकार है,
बकवास है, सिर्फ कहने – लिखने की बात है| इसे बड़े ध्यान से अवलोकन करें|
युवा शरीर के तेज एवं शक्तिशाली मेटाबोलिक
प्रक्रिया किसी भी अस्वास्थ्यकर बाजारू एवं लापरवाह भोजन को पचा लेता है, और अस्वस्थकर
आदतों को झेल भी लेता है| युवा शरीर इन सबों के दुष्परिणामों को ‘छुपा’ भी लेता
है| लेकिन यह ‘छुपा’ ली गयी लापरवाही और अस्वस्थकर आदतों के दुष्परिणाम "ढलती उम्र" में अपना ‘रंग’ दिखाने लगती है| कहने का तात्पर्य यह है कि इस अवस्था में इन अस्वास्थ्यकर
बाजारू एवं लापरवाह भोजन और अस्वस्थकर आदतों से आपको एकदम बचना है| लेकिन यह सब आपकी
आदत में ढल चुकी होती है, और इसीलिए इस ‘पुरानी आदत’ को बदल देना बहुत सरल एवं
सहज नहीं होता है| इसे बदलने के लिए बहुत सक्रिय, सजग एवं समर्पित प्रयास खोजता
है| इसे आप पचास के उम्र से बदलना शुरू कर दीजिए| लेकिन इसके लिए आवश्यक इच्छा
शक्ति कहाँ से आए? आपका ‘जीवन उद्देश्य’ ही आपको सब कुछ देगा, आपकी आदतों को
बदल देने की प्रेरणा भी देगा, शक्ति भी देगा, और आधार भी देगा| तब ही आप अपने
अच्छे स्वास्थ्य के लिए वह सब कुछ कर सकते हैं, जो आपके लिए जरुरी होगा|
एक बात और, पहले हमें यह देखना समझना है कि इस उम्र में, या इस उम्र से एक मानव में क्या क्या शारीरिक एवं मानसिक स्वाभाविक यानि प्राकृतिक परिवर्तन होने लगते हैं| इसे ही समझ कर हम सारी सम्बन्धित सावधानी रख सकते हैं| इस शारीरिक अवस्था के बाद एक व्यक्ति के शरीर में कई मेटाबोलिक प्रक्रियात्मक बदलाव होने लगता है| इसमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव ‘भोजन सम्बन्धित अंगों के प्रणाली’ में ‘सूखापन’ (Dryness) और शिथिलता का बढना है| अर्थात जितना पानी पहले इस तंत्र को गीला करने के लिए रिसता (Exude) था, अब यह कमतर होता जाता है|इस ढलती उम्र के साथ शरीर के कई अंगों की तत्परता से काम करने की पूर्व स्थिति बदलने लगती हैं। श्वास नली और भोजन नली के जंक्शन पर ट्रैफिक नियंत्रित करने वाला अंग भी भोजन और श्वास के ट्रैफिक को उसी तत्परता से नियंत्रित नहीं कर पाता है, जितनी तत्परता से वह अपनी जवानी के दिनों में करता रहा, और परिणामस्वरूप आदमी सरक जाता है। ऐसी अवस्था में सरकना मौत भी ला देती हैं, इसका ध्यान रखना है।
इसीलिए यह सलाह दी जाती है कि सूखा भोजन (भुना हुआ अनाज या पावडर आदि) करने
में बहुत सावधानी रखी जानी चाहिए, और गीला भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए| कहने का
स्पष्ट तात्पर्य यह है कि ‘सरक जाने’ यानि ‘श्वास नली में किसी अनाज के अटकने’ की
स्थिति भयावह होती है, या घातक (मृत्यु देने वाला) कही जा सकती है| इसीलिए ढलती
उम्र में सूखे हुए भोजन के ग्रास लेने में भी कठिनाई महसूस होती है| इसके लिए हमें
यह स्थायी नियम बना लेना चाहिए कि भोजन पूरे ध्यान एवं मनोयोग से करना चाहिए| भोजन
करते वक्त किसी दुसरे विषय पर ध्यान नहीं करना चाहिए, नहीं बोलना चाहिए, और बीच बीच
में थोडा थोडा पानी पीते रहना चाहिए| भोजन शुरू करने से पहले भी थोड़े पानी से गला
को तर (पानी पी कर) कर लेना चाहिए| इस सावधानी से भोजन को श्वास नली के मिलन स्थल
(जंक्शन) पर भोजन अटक नहीं पाता है, और भोजन का किसी भी अंश को श्वास नली में नहीं
जाने देता है| यह बहुत ही महत्वपूर्ण सावधानी है, जिसे अन्य अवस्था वाले समझ ही
नहीं पाते हैं| यह ढलती उम्र का परिवर्तन है|
यह तो सही है कि आपको नियमित स्वास्थ्य जाँच
करवाना चाहिए, स्वास्थ्यवर्धक भोजन करना चाहिए, व्यायाम एवं साधना करना चाहिए, धुम्रपान, शराब, तेल से
छनी हुई चीजों से परहेज करना चाहिए, पर्याप्त नींद लेनी चाहिए, सक्रिय रहना चाहिए, आदि आदि ‘आदते’ बदल लेनी चाहिए;
लेकिन इस बदलाव के लिए “आंतरिक शक्ति” जीवन
उद्देश्य से ही आता है|इस 'आन्तरिक शक्ति' का उपयोग कर आप अपने शरीर और मन को सक्रिय बनाए रखिए। और इसके बिना यह भी स्पष्ट है कि यह सब बातें
घिसी पिटी हुई है, और इसीलिए ये सब बहुत ही साधारण सी बातें हैं|
एक और बात| क्या
आपने अपने जीवन में कभी “जैवकीय घडी” (Biological
Clock) का उपयोग कर सुबह में किसी ख़ास समय में
उठने के लिए किया है? इसे समझिये| इस
‘जैवकीय घडी’ का उपयोग अपने जीवन को ‘शतकीय’ बनाने में कीजिए| अपनी ‘जैवकीय घडी’
को इसी लक्ष्य के लिए निर्धारित कीजिए| तो आइए, हमलोग अपने जीवन उद्देश्य को सार्थक बनाए, और लम्बा बनाए|
आचार्य
प्रवर निरंजन
अत्यंत उत्साह वर्धक एवं प्रेरणादायक आलेख।
जवाब देंहटाएंबढ़ती उम्र में भी ऊर्जावान बने रहने के लिए प्रेरित करने वाला लेख हैं, महोदय।
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