सोमवार, 29 जून 2020

बुद्ध और संज्ञानात्मक क्रांति (Buddha and Cognitive Revolution)

बुद्ध और संज्ञानात्मक क्रांति

(Buddha and Cognitive Revolution)

 

मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानव का अपने जीवन के प्रति और समाज के प्रति दृष्टिकोण होता है अर्थात मानव का नजरिया (ATTITUDE) होता है जो उस मानव का भविष्य निर्धारित करता है| इस नजरिये या दृष्टिकोण को जीवन का दर्शन कहा जाता है| जीवन में नजरिया ही तय करता है कि आप किसी परिस्थिति में या विपरीत परिस्थिति में क्या निर्णय लेंगे और उस परिस्थिति में क्या करेंगे? इसलिए ही कहा जाता है कि नजरिया यानि सकारात्मक नजरिया ही सब कुछ है| अब आप समझ रहे हैं कि जीवन में दर्शन का क्या महत्त्व है? इसी की खोज तथागत बुद्ध ने की थी और इसी का सैद्धान्तीकरण सबसे पहले तथागत बुद्ध ने किया थी| इसे संज्ञानामक क्रान्ति का सैद्धान्तिकरण (Theorisation of Cognitive Revolution) भी कहा गया|

 

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गोतम (पालि में गोतम, हिन्दी में गौतम) का जन्म हुआ| बुद्ध एक परम्परा थी। जिनके पास स्थापित बुद्धि होता था, जो सर्वमान्य ज्ञानी होता था, वही बुद्ध कहलाता था। इसी कारण सिद्धार्थ गौतम के पहले भी कोई 27 बुद्ध (कुल 28 बुद्ध) हुए। साक्ष्यात्मक रूप में इनसे से पहले कोई 6 बुद्ध (कुल 7 बुद्ध) हुए। जीव विज्ञान और मानव विज्ञान के शब्दावली में हम लोग होमो सेपिएंस कहलाते है जिसका अर्थ होता है- आधुनिक मानव। जैविक रुप में आधुनिक मानव की उत्पत्ति कोई डेढ़ लाख वर्ष पुर्व अफ्रिका के वोत्स्वाना के क्षेत्र में हु़ई| समय के साथ इस आधुनिक मानव का प्रसार विश्व के अन्य भागों में हुआ| उनमें संज्ञानात्मक क्रांति कोई सत्तर हजार वर्ष पुर्व में मानी गयी| इस संज्ञानात्मक महापरिवर्त्तन को कोई इस तरह समझ नहीं पाया और इसी कारण इसे कोई भी स्थापित सत्य या तथ्य के रूप में स्थापित नहीं कर पाया था| तथागत बुद्ध मानव जाति के इतिहास में पहला आदमी थे जिन्होंने इसे सम्यक ढंग से समझा और इसका सैद्धान्तिकरण भी किया| 

 

संज्ञानात्मक क्रांति का अर्थ होता है  किसी मानवीय और प्राकृतिक घटनाओं या प्रक्रियाओं का अवलोकन करना (अध्ययन करना – Observation), उन घटनाओं या प्रक्रियाओं के सार को धारण करना (स्मॄति में रखना – Memorisation), और उनको दूसरों को संप्रेषित करना (दूसरों को भी बताना और विमर्श करना - Communication )। इसे एक उदाहरण से समझा जाय| लोगों ने देखा कि आसमान में बादल के छा जाने के बाद जंगल में हरियाली आ गयी| इसे उसने अपने स्मृति में रखा| उसने इन घटनाओं के बारे में दूसरों को भी बताया| इस अवस्था में इस वर्णन के बाद  में उन्हें पता चला कि मात्र बादल के आने से जंगल में हरियाली नहीं आती ; अपितु बादल से वर्षा होने और पानी के मिट्टी में अवशोषित होने के बाद ही हरियाली आती है| इस तरह इसमे तीन अवस्थाये हुई| पहला, प्राकृतिक घटना का अवलोकन करना|  दूसरा, इन अवलोकन से प्राप्त निष्कर्ष को अवधारित करना यानि इसे अपने स्मृति में रखना| तीसरा, अवलोकन और स्मृति के बाद उस पर विमर्श करना या मनन करना जो एक उद्देश्य के लिए जमा हैं या संगठित हैं|

 

मानवीय उत्परिवर्तन (mutation) के साथ ही प्राकृतिक गतिविधियों को समझने और अनुकूलित करने की क्षमता विकसित होने लगा था। इसके बाद अनेक तकनीकी प्रगति हुई, अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए| लोहे की खोज के साथ लौह युग आया और कृषि क्रान्ति आयी| अनाज का उत्पादन से खाद्य पदार्थ संग्रहनीय हुआ, इसका लम्बे समय के लिए भंडारण  संभव हुआ और इसका  परिवहन भी किया जाने लगा| अनाजों के अतिरिक्त उत्पादन से नागरीय समाज और राज्यों का उदय भी हुआ| इतने प्रगति के बाद भी इस महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को व्यवस्थित रूप में किसी ने प्रस्तुत नहीं किया था| मानव इतिहास में इन प्रक्रियायो को समझ कर एक सिद्धांत में पिरोने वाले बुद्ध पहले व्यक्ति थे। इसके पहले किसी ने इसे इस दृष्टिकोण से ना तो देखा और ना ही इसका सैद्धांतिककरण किया। तथागत बुद्ध ने सबसे पहले इन बातों को समझा और उसका सैद्धांतिकरण किया।  इसे दूसरे रुप में कहा-

 

बुद्धम शरणम्‌ गच्छामि ।

धम्म शरणम्‌ गच्छामि ॥

संघम शरणम्‌ गच्छामि ।॥

 

उपरोक्त सिद्धांत या सूत्र या मंत्र का विस्तारित अर्थ समझा जाना चाहिए|  बुद्धम शरणम्‌ गच्छामि का अर्थ हुआ- बुद्ध के शरण में यानि बुद्धि के शरण में जाता हूँ। इसका अर्थ हुआ कि बुद्धि किसी वस्तु या घटना के अवलोकन और अध्ययन से आता है। आधुनिक मानव में ऊपर वर्णित उत्त्परिवर्तन से मानवों में इतनी क्षमता तो आ ही गयी थी कि एक मानव किसी घटनाओं का सम्यक अवलोकन करने योग्य हो गया था| बुद्धि के शरण में जाने का आह्ववान ही उस समय में और आज भी बहुत बड़ा क्रांतिकारी आह्ववान है| बुद्धि अर्थात ज्ञान की महत्ता बताना बहुत ही महत्वपूर्ण रेखांकन है| नौवीं शताब्दी के बाद स्थापित सामंतवाद के काल में ज्ञान के स्थान पर भक्ति को महत्वपूर्ण बताया गया| बुद्धि विश्लेषण की क्षमता देता है और भक्ति विश्लेषण को मना करता है| भक्ति अंधभक्त पैदा करता है जबकि बुद्धि विज्ञान को बढ़ा कर समाज का कल्याण करता है|  

 

धम्म शरणम्‌ गच्छामि का अर्थ हुआ- धम्म के शरण में जाता हूँ। पालि के धम्म और हिन्दी के धर्म में अन्तर है, हालांकि अंतर होते हुए भी इसे सामान अर्थ के रूप में ही सामान्यत  लिया जाता है। धम्म क्या है?  पालि मेंधारेती ति धम्मोका अर्थ है जो धारण करें सो धम्म। इसी धम्म को संस्कृत और हिंदी में धर्म तो कह दिया जाता है, परंतु दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। धम्म का अर्थ होता है जो धारण करने योग्य हो| जैसे लोहे का धम्म है- उष्मा और विद्युत का संचरण होने देना, सामान्य तापमान पर अपना स्वरुप बनाए रखना, इत्यादि| पानी का धम्म है- शीतलता प्रदान करना, आग को बुझाना, धारित वर्तन का स्वरूप को धारण कर लेना, तरलता का होना, बहना आदि|  इसी तरह मानव का धम्म है- मानव का उन  नैसर्गिक गुणों का समावेशन जो सामाजिक वातावरण में सुख, शान्ति और समृद्धि स्थापित करने में कारक बनें| इसकी उत्पत्ति सभ्यता के उदय के साथ हुई है अर्थात इन्ही गुणों के कारण ही सभ्यता का विकास हुआ; जबकि धर्म की उत्पत्ति ही सामंतकाल में सामंतवाद की सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरुप हुआ है। आपने अवलोकन और अध्ययन में जो पाया है, उसके सार या निष्कर्ष को धारण करें। यही धम्म है और धम्म शरणम्‌ गच्छामि का यही अर्थ है।

 

संघ शरणम्‌ गच्छामि का अर्थ हुआ- आपने अवलोकन और अध्ययन के बाद जो भी धारित (स्मॄति में) किया; उसका सम्प्रेषण करें, उस पर मंथन, मनन करें, उस पर विमर्श करें। सम्प्रेषण, मनन, मंथन, या विमर्श कहां करेंगे?  समाज में समान मानसिकता वाले लोगों के बीच। इसी समान मानसिकता वाले लोगों के एकत्रीकरण को ही संघ कह्ते है। संघ किसी ख़ास उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों के समूह को कहते हैं| संघ मे धारित निष्कर्ष पर विचार होता है, विमर्श होता है, मनन होता है, मंथन होता है ताकि धारित निष्कर्ष को लोग भी समझे, परिष्कृत करें और सर्व जन को उसका लाभ मिल सके। संज्ञानात्मक क्रांति के यह सिद्धांतिकरण आज भी सही और उपयोगी है।

 

यही संज्ञानात्मक क्रांति का यह सिद्धांतिकरण  विज्ञान का आधार बना। व्यवस्थित ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है। यह व्यवस्थित ज्ञान किसी विषय वस्तु पर सम्यक अवलोकन, सम्यक अध्ययन, सम्यक विचारण, एवं सम्यक प्रयोग के आधार पर मिलता है। इनका हेतुवाद कहता है कि प्रत्येक घटना का कोई हेतु अवश्य है अर्थात कोई कारण अवश्य होता है। इसी कार्य- कारण के सम्बन्ध पर विज्ञान टिका हुआ है। किसी घटना में कभी कभी कारण और इसके परिणाम एक दूसरे के इतने समीप होते हैं कि कार्य के कारण का पता लगाना या उसे समझना कठिन हो जाता है तो लोग इसे जादू या करिश्मा कहते हैं। किसी घटना में कभी कभी कारण और इसके परिणाम एक दूसरे के इतने दूर या विलम्बित हो होते हैं कि कार्य के कारण का पता लगाना या उसे समझना कठिन हो जाता है तो लोग इसे भाग्य का फल कहते हैं। हर कार्य का कारण अवश्य होगा अर्थात कारण बिना कोई कार्य नहीं हो सकता। इसे बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद कहा गया। इसी के आधार पर आज अवलोकन, विचारण, अध्ययन, अन्वेषण, परीक्षण, प्रक्षेपण किया जाता है जो आधुनिक विज्ञान का आधार है। यह इस महामानव का अमूल्य योगदान है।

 

इस महामानव के इस अमूल्य योगदान का इस दृष्टिकोण से उपस्थापन नहीं किया गया था| तथागत बुद्ध के मानवता और समाज को कुछ महत्त्वपूर्ण योगदान में यह सबसे महत्वपूर्ण है| इनके महत्वपूर्ण योगदान में ब्राह्मणवाद के विरुद्ध आन्दोलन को बताया जाता है और इनकी उपलब्धि को भारत के लिए ही सीमित बताने का ऐतिहासिक षड़यंत्र किया गया है| वास्तव में उस समय ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद की उत्त्पत्ति ही नहीं हुई थी| इसकी उत्पत्ति ही नौवीं शताब्दी के बाद सामंतवाद के काल में तत्कालीन परिस्थितियों के कारण हुई|    

मेरा आपसे अनुरोध है कि तथागत बुद्ध के द्वारा इस संज्ञानात्मक का सैद्धान्तिकरण करने और उसे सूत्रों में पिरोने को देखा जाय; उनके जीवन का इस महत्वपूर्ण योगदान पर बहुत कुछ अनुसंधान किया जा सकता है| इस संज्ञानात्मक क्रान्ति के सैद्धान्तिकरण से ही जीवन के सम्यक दर्शन का प्रतिपादन हो सका और जीवन के प्रति एक सकारात्मक और वैज्ञानिक नजरिया का विकास हो सका| इस सैद्धान्तिकरण के बिना मानव सभ्यता का इस तरह से विकास होना संभव नहीं था|

इसी सिद्धांतो के आधार पर आप अपने जीवन के लिए उपयुक्त, वैज्ञानिक, सकारात्मक, रचनात्मक,और कल्याणकारी नजरिया विकसित कर सकते और जीवन में सफलता पा सकते हैं|
इन्ही सिद्धांतों के अध्ययन के लिए भी लोग पूर्व के काल में भारत आते रहे और भारत की प्रसिद्धि हुई|     

निरंजन सिन्हा|

मंगलवार, 23 जून 2020

जनमत निर्धारण में प्रचार (PROPAGANDA IN PUBLIC OPINION)

जनमत निर्धारण में प्रचार

(PROPAGANDA IN  PUBLIC  OPINION)

 प्रचार एक मनोवैज्ञानिक साधन है जिसके द्वारा समाज के व्यक्तियों की सोच या मत (जनमतपर प्रभाव डाल कर जनमत को निर्धारित किया जाता है। इस तरह प्रचार के द्वारा समाज को  यथाआवश्यक दिशा में नियंत्रित किया जाता है। यह प्रचार का एक प्रयास है ताकि जनमत की दिशा निर्धारण इच्छित एवं पूर्वनिर्धारित लक्ष्य पाने के लिए हो सके।

सभी सामाजिक वैज्ञानिक मानते है कि प्रचार एक मनोवैज्ञानिक साधन है। मनोवैज्ञानिक का अर्थ मन का विज्ञान हुआ अर्थात भावनाओं का विज्ञान। यदि हम जनमत को इच्छित लक्ष्य के अनुरूप निधार्रित करना चाहते है तो प्रचार का मनोवैज्ञानिक पहलू समझना होगा। इसके लिए व्यक्ति एवं समाज का चेतनअवचेतनअचेतनएवं अधिचेतन -चेतन की चारों अवस्थाओं का अध्ययन कर चारों अवस्थाओं पर प्रभावित करना होगा।

सत्ता के व्यवस्था पर यह आरोप लगाया जाता है कि व्यवस्था चाहती है कि लोगों का पेट खाली रहे क्योंकि खाली पेट वाले के दिमाग में विचार प्रक्रिया निरस्त रहती है। खाली पेट वाला पहले पेट भरने के जतन में व्यस्त रहता हैऔर इसी कारण  विचार प्रक्रिया ठप रहती है;  तब शिक्षा का कोर्इ अर्थ नहीं होता और तब प्रचार के कुछ आसान एवं सस्ते तरीके भी काफी कारगर हो जाते हैं। जनता के सामने धुंध पैदा करना ताकि अस्पष्ट स्थिति में सत्ता पक्ष का प्रचार तंत्र जनता को बहला सके - ऐसा भी आरोप लगाया जाता है। जनता तमाशबीन होती है। और तमाशा / नौटंकी में खूब तालियां बजती है। इन तमाशा / नौटंकियों में जनता के अवचेतन का डर और कमजोरियों का ही दोहन किया जाता है।

प्रत्यक्ष प्रचार को चेतन प्रचार तथा अप्रत्यक्ष प्रचार को अचेतन स्तर का प्रचार भी कहा जा सकता है। प्रत्यक्ष प्रचार में लोगों को प्रचार करने वालों के उद्देश्य का पता होता है। जैसे अमुक समान या सेवा उत्तम है या अमुक राजनीतिक दल अच्छा है। लेकिन अप्रत्यक्ष प्रचार में प्रचार करने वाले के बारे में पता ही नहीं रहता तथा यह भी पता नहीं होता कि यह प्रचार भी हो रहा है। भारत में वर्ष 2016 में किया गया नोटबंदी को कुछ लोग प्रत्यक्ष प्रचार की श्रेणी मेंतो कुछ लोग इसे अप्रत्यक्ष प्रचार की श्रेणी में रखते हैं। कुछ लोग इसे प्रचार की श्रेणी में ही रखे जाने पर ही आप​त्ति करते थे कि यह एक आर्थिक निर्णय है और ऐसा मानने वालों के अपने तर्क हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि सत्ता व्यवस्था इसके द्वारा आर्थिक निम्न एवं मध्यम वर्ग को जो बहुसंख्यक मतदाता हैप्रभावित करने के लिए इनके अचेतन मनोविज्ञान का दोहन किया है। इसके द्वारा यह बताने को प्रयास माना जाता है कि यह वर्ग अपनी आर्थिक संकट के लिए घोशित शत्रुओं - उच्च वर्ग को पस्त कर दिया गया है। हालाँकि नोटबंदी से अमीरों को कोई अंतर नहीं पड़ा पर ऐसे धुंध उत्पन्न कर जनमत को अपने पक्ष में और अमीरों के विरुद्ध प्रभावित करने का प्रयास किया गया है।

सकारात्मक एवं रचनात्मक प्रचार को शिक्षा का स्वरूप भी कहा सकते है। वैसे शिक्षा एवं प्रचार दोनों को पूरक माना जाता है क्योकि शिक्षा के माध्यम से तर्कपूर्ण एवं उचित संदेशों के द्वारा अपने विचारों को जनता में आसानी से पहुँचाया  जा सकता है। शिक्षा के माध्यम से छात्रों के अन्दर मनोवैज्ञानिक प्रभाव के द्वारा उनके विचारों तथा व्यवहार को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रित करने का सचेतन प्रयास किया जाता है। इसी कारण विद्यालयों तथा विष्वविद्यालयों में हस्तक्षेप कर जनमत को प्रभावित करनेखासकर नकारात्मक एवं विध्वंसात्मक प्रभाव पैदा करने का आरोप लगाए जाते है। जनमत निर्धारण में शिक्षा का प्रभाव दीर्घकालीन होता है। इसी कारण हमारे ऐतिहासिक समाज में बहुसंख्यक समाज को शिक्षा से वंचित कर दिया गया तथा शिक्षित प्रचारक अपने स्वार्थी उद्देश्य को सामाजिक व्यवस्था पर थोपने एवं उसे संचालित किए रहने में कामयाब रहे जिसे अब दिमागी गुलामी भी कहा जाता है। जनमत ऐसा प्रभावित है कि वह अपनी गुलामी समझना ही नहीं चाहताफेंकना तो दूर की बात है। यहाँ भी प्रचार का अघ्ययन आवश्यक है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति एवं समाज का समुचित सर्वागीण विकास संभव है। इसी कारण बुद्ध बुद्धिवादी बनने पर और डाआम्बेडकर शिक्षा पर जोर देते रहे। शिक्षा के व्यापक प्रचार -प्रसार के लिए प्रचार के पहलुओं को समझ कर अमल में लाने के लिए विचार करना है।

समय एवं उद्देश्य के अनुसार प्रचारक मंच से भाषण देते हैपचें बांटते हैगाना सुनाते हैवीडियों दिखाते हैसोशल नेटवर्किग तथा इेमेल भी करते हैं। वर्ष 1937 में अमेरिकी जनता को शिक्षित करने के लिए प्रचार विश्लेषण संस्थान -The Institute of Propaganda Analysis की स्थापना की गयी। इस व्यवस्थित अघ्ययन से कर्इ बातें सामने आयी। प्रचार में मनोवैज्ञानिक अवलोकन एवं विधियों को उपयोग करके मनुष्यों की मनोवृतियों तथा मानव व्यवहार को भावनात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है। प्रचार जानबूझकर किया जाता है। प्रचार सुझावों के रूप में होता है। इसमें असत्यता और अस्पष्टता भी होती है यंग किम्बाल (A Handbook of  Social Psychology, 1957)  मानते है कि प्रचार के कार्य में सुझावों की मुख्य भूमिका होती है। सुझावों के विकल्पों के द्वारा व्यक्ति को इच्छित दिशा में ही ढकेला जाता है और उपलब्ध विकल्प में ही एक को अपना मानता हैफिर उसे अपना निर्णय मानते हुए उसके समर्थन में जी -जान  से लगा रहता है। सवाल है कि आप भारत के किस व्यवस्था को पंसद करते हैंसत्तर साल की पुरानी व्यवस्था को या वर्त्तमान व्यवस्था को ? यहाँ आपको दो विकल्प मिला। आप इन दोनों विकल्पों में व्यवस्था की बात में असत्यता को तलाश सकते हैं। इस तरह यह सवाल आपको इतिहास की गहराइयों में जाकर सामंती व्यवस्था यानि असमानता की व्यवस्था की जड़ों तक जाने से रोक देती है और जनमत निर्धारण में अपनी भूमिका निर्धारित कर देती है।

प्रचार अघ्ययन में The Institute of Propaganda Analysis के द्वारा सात सामान्य  प्रचार  विधियों के बारे में बताया तो निम्न हैं –

1.Name Calling – इस विधि में प्रचारक अपने समर्थकोंनेताओं तथा अनुयायियों को अच्छे - अच्छे नामों के द्वारा अलकृंत करता है तथा विरोधियों को बुरे नामों तथा अलंकरणों से पुकारा जाता है। प्रचारक स्वयं को सच्चा राष्ट्रभक्तदेशप्रेमीसमाजवादीहिन्दूवादी तथा विरोधियों को देशद्रोहीअवसरवादीशोषककालाधन वाला इत्यादि कहता है। इस प्रकार के नामों से कम पढ़े -लिखे लोग तथा भावुक लोग तुरन्त प्रभावित होकर प्रचारक की बातों में  जाते हैं।

2.Glittering Generalities – इस प्रकार की प्रचार विधियों में प्रचारक लोक लुभावन बातों / नारों के द्वारा जनता को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है। भारत की अधिकांश जनता मानसिक गुलाम एवं भावुक भी होती है। इस कारण जनता लोक - लुभावन नारों में जल्दी प्रभावित हो जाते हैजैसे - ‘गरीबों की सरकार, ‘मुफ्त राशन, ‘दलित का उत्थान‘ आदि - आदि।

3. Transfer – प्रचारक अपनी बात को जनता तक पहुँचाने के लिए अलौकिक शक्तियों के नाम का सहारा लेता है तथा अपने प्रचार में देवी - देवतापीर - फकीर तथा जन समुदाय से संबंधित महापुरूषों आदि का प्रयोग करता है। प्रचारक को पता होता है कि जनसमुदाय की भावना इन प्रतीकों से जुड़ी रहती है। अलौकिक शक्तियों में गंगा की आरती तथा महापुरूषों में डाआम्बेडकर एवं सरदार पटेल से जुड़े भावनात्मक स्थलों / संदेशो  का उपयोग इसके उदाहरण हैं।

  4. Testimonial – इस विधि में प्रचारक तथा उनका समूह जाने - मानेसम्मानित तथा स्थापित व्यक्तियों या संस्तुतियों को अपने पक्ष में एकत्र करके जनता को दिखाते हैं। इससे यह साबित हो जाता है कि अमुक व्यक्ति भी हमारा समर्थक है। उदाहरण के लिए चुनाव के समय राजनैतिक दल अपने पक्ष में जनप्रिय एवं प्रसिद्व छवि वाले को अपने पक्ष में दिखाते है जैसे जामा मस्जिद के प्रमुखशंकराचार्यबाबा रामदेव या अन्ना हजारे को लाते हैं। फिल्मी सितारों का उपयोग भी राजनीतिक एवं गैर - राजनीतिक होता है।

5.Simple Folkways – जनता की भावनाओं को अपने पक्ष में नियन्त्रित करने के लिए नेता या प्रचारक वे कार्य करते है जो जनता तथा जनसामान्य व्यक्ति लोकाचार में करते हैं। इससे जनता में यह संदेश भेजा जाता है कि हम भी आम जनता जैसे हैं। दलितों के घर जाकर भोजन या महात्मा गाँधी का अधनंगे बदन रहना इसका ही उदाहरण है। गॉवों में जाना या गरीबों की दशा पर रोना या विपदा की घड़ी में शरीक होना भी इसी का उदाहरण है।

6.Card Stacking – छल - कपट तथा जोड़ -तोड़ का प्रयोग जनता के व्यवहार को अपने उद्देश्य के  अनुसार मोड़ने के लिए किया जा रहा है। इस विधि द्वारा तथ्यों एवं परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ा जाता है। बर्ष 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के श्री मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी वक्तव्य को आरक्षण समाप्त करने वाला उद्देश्य में व्याख्यापित किया जाना भी इसका ही उदाहरण है।

   7. Bandwagon  – इस विधि में यह प्रचारित किया जाता है कि जनता का सहयोग  समर्थन प्रचारक को प्राप्त हो रहा है अर्थात् इस प्रविधि में भ्रामक विजय का ढ़िढोरा पीटा जाता है। इस प्रकार के प्रचार से प्रचारक यह सिद्व करता है कि वह जो प्रचार कर रहा हैउसे जनसमुदाय की बहुसंख्यक आबादी सही मानती है। इसमें भ्रामक सार्वभैमिकता का प्रभाव दिखाकर जनता का घ्यान अपनी ओर केन्द्रित किया जाता है। इसको सार्वभौमिकता का भ्रम भी कहा जाता है। भारत में चुनाव के समय या चुनाव के पूर्व तथाकथित चुनावी सर्वेक्षण का खेल इसी का उदाहरण है और इसी कारण चुनाव के दौरान ऐसे सर्वेक्षणों पर रोक लगा दिया गया है। हम जीतने ही वाले हैका संदेश देकर मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना लिया जाता है।

 प्रचार को सफल बनाने में मीडिया अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। भारत में सभी स्थापित प्रिन्ट एवं डिजीटल मीडिया पर यथास्थिति बनाए रखने तथा सामाजिक हाशिए के लोगो का प्रतिनिधित्व नहीं करने का गंभीर आरोप है। इनकी विश्वनीयता भारत के बहुसंख्यक में अब नहीं रही है लेकिन समुचित विकल्पहीनता का लाभ ये स्थापित मीडिया अब भी ले रहे है। आधुनिक समाज में युवाओं की हिस्सेदारी बढ़ने तथा सूचना तकनीक में क्रान्तिकारी परिवर्त्तन के कारण प्रचार के माध्यमों में इन्टरनेट तथा सोशल नेटवर्किग महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। ये संचार साधन हैण्डी टूल तथा तत्काल उपलब्ध रहते हैं। आजकल परिवर्त्तन के कारण के रूप में इन्टरनेट एवं सोशल नेटवर्किग पूरी तरह स्थापित है।

उपरोक्त का अध्ययन समाज में व्याप्त गरीबीबेरोजगारीअशिक्षामानसिक गुलामीबीमारीसंकीर्णतावाद एवं अन्ध विश्वास के विरूद्व सफल एवं रचनात्मक विजय प्राप्त करने के लिए करना है

निरंजन सिन्हा

स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त आयुक्तबिहारपटना।                                                                                                                      

 

 

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