सोमवार, 29 जून 2020

बुद्ध और संज्ञानात्मक क्रांति (Buddha and Cognitive Revolution)

बुद्ध और संज्ञानात्मक क्रांति

(Buddha and Cognitive Revolution)

 

मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानव का अपने जीवन के प्रति और समाज के प्रति दृष्टिकोण होता है अर्थात मानव का नजरिया (ATTITUDE) होता है जो उस मानव का भविष्य निर्धारित करता है| इस नजरिये या दृष्टिकोण को जीवन का दर्शन कहा जाता है| जीवन में नजरिया ही तय करता है कि आप किसी परिस्थिति में या विपरीत परिस्थिति में क्या निर्णय लेंगे और उस परिस्थिति में क्या करेंगे? इसलिए ही कहा जाता है कि नजरिया यानि सकारात्मक नजरिया ही सब कुछ है| अब आप समझ रहे हैं कि जीवन में दर्शन का क्या महत्त्व है? इसी की खोज तथागत बुद्ध ने की थी और इसी का सैद्धान्तीकरण सबसे पहले तथागत बुद्ध ने किया थी| इसे संज्ञानामक क्रान्ति का सैद्धान्तिकरण (Theorisation of Cognitive Revolution) भी कहा गया|

 

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गोतम (पालि में गोतम, हिन्दी में गौतम) का जन्म हुआ| बुद्ध एक परम्परा थी। जिनके पास स्थापित बुद्धि होता था, जो सर्वमान्य ज्ञानी होता था, वही बुद्ध कहलाता था। इसी कारण सिद्धार्थ गौतम के पहले भी कोई 27 बुद्ध (कुल 28 बुद्ध) हुए। साक्ष्यात्मक रूप में इनसे से पहले कोई 6 बुद्ध (कुल 7 बुद्ध) हुए। जीव विज्ञान और मानव विज्ञान के शब्दावली में हम लोग होमो सेपिएंस कहलाते है जिसका अर्थ होता है- आधुनिक मानव। जैविक रुप में आधुनिक मानव की उत्पत्ति कोई डेढ़ लाख वर्ष पुर्व अफ्रिका के वोत्स्वाना के क्षेत्र में हु़ई| समय के साथ इस आधुनिक मानव का प्रसार विश्व के अन्य भागों में हुआ| उनमें संज्ञानात्मक क्रांति कोई सत्तर हजार वर्ष पुर्व में मानी गयी| इस संज्ञानात्मक महापरिवर्त्तन को कोई इस तरह समझ नहीं पाया और इसी कारण इसे कोई भी स्थापित सत्य या तथ्य के रूप में स्थापित नहीं कर पाया था| तथागत बुद्ध मानव जाति के इतिहास में पहला आदमी थे जिन्होंने इसे सम्यक ढंग से समझा और इसका सैद्धान्तिकरण भी किया| 

 

संज्ञानात्मक क्रांति का अर्थ होता है  किसी मानवीय और प्राकृतिक घटनाओं या प्रक्रियाओं का अवलोकन करना (अध्ययन करना – Observation), उन घटनाओं या प्रक्रियाओं के सार को धारण करना (स्मॄति में रखना – Memorisation), और उनको दूसरों को संप्रेषित करना (दूसरों को भी बताना और विमर्श करना - Communication )। इसे एक उदाहरण से समझा जाय| लोगों ने देखा कि आसमान में बादल के छा जाने के बाद जंगल में हरियाली आ गयी| इसे उसने अपने स्मृति में रखा| उसने इन घटनाओं के बारे में दूसरों को भी बताया| इस अवस्था में इस वर्णन के बाद  में उन्हें पता चला कि मात्र बादल के आने से जंगल में हरियाली नहीं आती ; अपितु बादल से वर्षा होने और पानी के मिट्टी में अवशोषित होने के बाद ही हरियाली आती है| इस तरह इसमे तीन अवस्थाये हुई| पहला, प्राकृतिक घटना का अवलोकन करना|  दूसरा, इन अवलोकन से प्राप्त निष्कर्ष को अवधारित करना यानि इसे अपने स्मृति में रखना| तीसरा, अवलोकन और स्मृति के बाद उस पर विमर्श करना या मनन करना जो एक उद्देश्य के लिए जमा हैं या संगठित हैं|

 

मानवीय उत्परिवर्तन (mutation) के साथ ही प्राकृतिक गतिविधियों को समझने और अनुकूलित करने की क्षमता विकसित होने लगा था। इसके बाद अनेक तकनीकी प्रगति हुई, अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए| लोहे की खोज के साथ लौह युग आया और कृषि क्रान्ति आयी| अनाज का उत्पादन से खाद्य पदार्थ संग्रहनीय हुआ, इसका लम्बे समय के लिए भंडारण  संभव हुआ और इसका  परिवहन भी किया जाने लगा| अनाजों के अतिरिक्त उत्पादन से नागरीय समाज और राज्यों का उदय भी हुआ| इतने प्रगति के बाद भी इस महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को व्यवस्थित रूप में किसी ने प्रस्तुत नहीं किया था| मानव इतिहास में इन प्रक्रियायो को समझ कर एक सिद्धांत में पिरोने वाले बुद्ध पहले व्यक्ति थे। इसके पहले किसी ने इसे इस दृष्टिकोण से ना तो देखा और ना ही इसका सैद्धांतिककरण किया। तथागत बुद्ध ने सबसे पहले इन बातों को समझा और उसका सैद्धांतिकरण किया।  इसे दूसरे रुप में कहा-

 

बुद्धम शरणम्‌ गच्छामि ।

धम्म शरणम्‌ गच्छामि ॥

संघम शरणम्‌ गच्छामि ।॥

 

उपरोक्त सिद्धांत या सूत्र या मंत्र का विस्तारित अर्थ समझा जाना चाहिए|  बुद्धम शरणम्‌ गच्छामि का अर्थ हुआ- बुद्ध के शरण में यानि बुद्धि के शरण में जाता हूँ। इसका अर्थ हुआ कि बुद्धि किसी वस्तु या घटना के अवलोकन और अध्ययन से आता है। आधुनिक मानव में ऊपर वर्णित उत्त्परिवर्तन से मानवों में इतनी क्षमता तो आ ही गयी थी कि एक मानव किसी घटनाओं का सम्यक अवलोकन करने योग्य हो गया था| बुद्धि के शरण में जाने का आह्ववान ही उस समय में और आज भी बहुत बड़ा क्रांतिकारी आह्ववान है| बुद्धि अर्थात ज्ञान की महत्ता बताना बहुत ही महत्वपूर्ण रेखांकन है| नौवीं शताब्दी के बाद स्थापित सामंतवाद के काल में ज्ञान के स्थान पर भक्ति को महत्वपूर्ण बताया गया| बुद्धि विश्लेषण की क्षमता देता है और भक्ति विश्लेषण को मना करता है| भक्ति अंधभक्त पैदा करता है जबकि बुद्धि विज्ञान को बढ़ा कर समाज का कल्याण करता है|  

 

धम्म शरणम्‌ गच्छामि का अर्थ हुआ- धम्म के शरण में जाता हूँ। पालि के धम्म और हिन्दी के धर्म में अन्तर है, हालांकि अंतर होते हुए भी इसे सामान अर्थ के रूप में ही सामान्यत  लिया जाता है। धम्म क्या है?  पालि मेंधारेती ति धम्मोका अर्थ है जो धारण करें सो धम्म। इसी धम्म को संस्कृत और हिंदी में धर्म तो कह दिया जाता है, परंतु दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। धम्म का अर्थ होता है जो धारण करने योग्य हो| जैसे लोहे का धम्म है- उष्मा और विद्युत का संचरण होने देना, सामान्य तापमान पर अपना स्वरुप बनाए रखना, इत्यादि| पानी का धम्म है- शीतलता प्रदान करना, आग को बुझाना, धारित वर्तन का स्वरूप को धारण कर लेना, तरलता का होना, बहना आदि|  इसी तरह मानव का धम्म है- मानव का उन  नैसर्गिक गुणों का समावेशन जो सामाजिक वातावरण में सुख, शान्ति और समृद्धि स्थापित करने में कारक बनें| इसकी उत्पत्ति सभ्यता के उदय के साथ हुई है अर्थात इन्ही गुणों के कारण ही सभ्यता का विकास हुआ; जबकि धर्म की उत्पत्ति ही सामंतकाल में सामंतवाद की सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरुप हुआ है। आपने अवलोकन और अध्ययन में जो पाया है, उसके सार या निष्कर्ष को धारण करें। यही धम्म है और धम्म शरणम्‌ गच्छामि का यही अर्थ है।

 

संघ शरणम्‌ गच्छामि का अर्थ हुआ- आपने अवलोकन और अध्ययन के बाद जो भी धारित (स्मॄति में) किया; उसका सम्प्रेषण करें, उस पर मंथन, मनन करें, उस पर विमर्श करें। सम्प्रेषण, मनन, मंथन, या विमर्श कहां करेंगे?  समाज में समान मानसिकता वाले लोगों के बीच। इसी समान मानसिकता वाले लोगों के एकत्रीकरण को ही संघ कह्ते है। संघ किसी ख़ास उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों के समूह को कहते हैं| संघ मे धारित निष्कर्ष पर विचार होता है, विमर्श होता है, मनन होता है, मंथन होता है ताकि धारित निष्कर्ष को लोग भी समझे, परिष्कृत करें और सर्व जन को उसका लाभ मिल सके। संज्ञानात्मक क्रांति के यह सिद्धांतिकरण आज भी सही और उपयोगी है।

 

यही संज्ञानात्मक क्रांति का यह सिद्धांतिकरण  विज्ञान का आधार बना। व्यवस्थित ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है। यह व्यवस्थित ज्ञान किसी विषय वस्तु पर सम्यक अवलोकन, सम्यक अध्ययन, सम्यक विचारण, एवं सम्यक प्रयोग के आधार पर मिलता है। इनका हेतुवाद कहता है कि प्रत्येक घटना का कोई हेतु अवश्य है अर्थात कोई कारण अवश्य होता है। इसी कार्य- कारण के सम्बन्ध पर विज्ञान टिका हुआ है। किसी घटना में कभी कभी कारण और इसके परिणाम एक दूसरे के इतने समीप होते हैं कि कार्य के कारण का पता लगाना या उसे समझना कठिन हो जाता है तो लोग इसे जादू या करिश्मा कहते हैं। किसी घटना में कभी कभी कारण और इसके परिणाम एक दूसरे के इतने दूर या विलम्बित हो होते हैं कि कार्य के कारण का पता लगाना या उसे समझना कठिन हो जाता है तो लोग इसे भाग्य का फल कहते हैं। हर कार्य का कारण अवश्य होगा अर्थात कारण बिना कोई कार्य नहीं हो सकता। इसे बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद कहा गया। इसी के आधार पर आज अवलोकन, विचारण, अध्ययन, अन्वेषण, परीक्षण, प्रक्षेपण किया जाता है जो आधुनिक विज्ञान का आधार है। यह इस महामानव का अमूल्य योगदान है।

 

इस महामानव के इस अमूल्य योगदान का इस दृष्टिकोण से उपस्थापन नहीं किया गया था| तथागत बुद्ध के मानवता और समाज को कुछ महत्त्वपूर्ण योगदान में यह सबसे महत्वपूर्ण है| इनके महत्वपूर्ण योगदान में ब्राह्मणवाद के विरुद्ध आन्दोलन को बताया जाता है और इनकी उपलब्धि को भारत के लिए ही सीमित बताने का ऐतिहासिक षड़यंत्र किया गया है| वास्तव में उस समय ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद की उत्त्पत्ति ही नहीं हुई थी| इसकी उत्पत्ति ही नौवीं शताब्दी के बाद सामंतवाद के काल में तत्कालीन परिस्थितियों के कारण हुई|    

मेरा आपसे अनुरोध है कि तथागत बुद्ध के द्वारा इस संज्ञानात्मक का सैद्धान्तिकरण करने और उसे सूत्रों में पिरोने को देखा जाय; उनके जीवन का इस महत्वपूर्ण योगदान पर बहुत कुछ अनुसंधान किया जा सकता है| इस संज्ञानात्मक क्रान्ति के सैद्धान्तिकरण से ही जीवन के सम्यक दर्शन का प्रतिपादन हो सका और जीवन के प्रति एक सकारात्मक और वैज्ञानिक नजरिया का विकास हो सका| इस सैद्धान्तिकरण के बिना मानव सभ्यता का इस तरह से विकास होना संभव नहीं था|

इसी सिद्धांतो के आधार पर आप अपने जीवन के लिए उपयुक्त, वैज्ञानिक, सकारात्मक, रचनात्मक,और कल्याणकारी नजरिया विकसित कर सकते और जीवन में सफलता पा सकते हैं|
इन्ही सिद्धांतों के अध्ययन के लिए भी लोग पूर्व के काल में भारत आते रहे और भारत की प्रसिद्धि हुई|     

निरंजन सिन्हा|

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सराहनीय महोदय
    तथागत बुद्ध जी ने जो धम्म की बात कहीं वही आज धर्म बनकर गले में पड़ी है, धम्म हमें तार्किकता देता है बैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जीवन स्तर उठाने में सहयोग करता है वहीं धर्म धमे रुढ़िवादिता के साथ अंधविश्वास व पाखण्ड देता है।समय समाज के चुनाव का है कि धर्म चुने या धम्म धर्म चुनना आसान है पर धम्म के लिए अनुभव,शिक्षा के साथ विचारों में परिवर्तन को निरंतरता बनी रहती है।धर्म में फंसा व्यक्ति कोई तर्क नहीं कर सकता वहीं धम्म बाला व्यक्ति तार्किक होता है।बहुत आभार सर जी।सादर

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