गुरुवार, 28 जुलाई 2022

शासन का क्वांटम सिद्धांत (Quantum Theory of Governance)

आज हमलोग शासन तंत्र (Governance System) या शासन प्रणाली की सूक्ष्म क्रियाविधि को समझेंगे| चूँकि यह सूक्ष्म क्रियाओं का उसी तरह अध्ययन है, जैसे भौतिकी में सूक्ष्म कणों का क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) या क्वांटम सिद्धांत में अध्ययन होता है| हमलोग जानते हैं कि बड़े पदार्थों के सन्दर्भ में, जिसे कोई भी अपनी नंगी आंखों से देख सकता है, को न्यूटन के सिद्धांत यानि न्यूटन के भौतिकी से बेहतर ढंग से समझ जाता है, परन्तु ये नियम यानि सिद्धांत सूक्ष्म कणों, जो सामान्य व्यक्ति के समझ में नहीं आता, के व्यवहार की समुचित या सामान्य व्याख्या भी नहीं कर पाता है|इसे समझने के लिए क्वांटम भौतिकी के सिद्धांत को समझना चाहिए। 

तो पहले हम क्वांटम यांत्रिकी के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं को जानते एवं समझते हैं, और फिर उसके सन्दर्भ में शासन या शासक की यांत्रिकी (Mechanics), क्रियाविधि (Process), प्रतिरूप (Pattern), प्रतिक्रिया (Reaction) एवं रणनीति (Strategy) समझते हैं|

यांत्रिकी (Mechanics) में किसी भी तंत्र या पदार्थ या बल पर किसी अन्य तंत्र या पदार्थ या बल के या इन सभी का संयुक्त प्रभाव का अध्ययन करते हैं, और इसकी क्रियाविधि, परिणाम एवं प्रभाव को समझते हैं| क्रियाविधि (Process) में किसी भी घटना यानि क्रिया के होने को उत्त्पन्न करने, कार्य करने की आवश्यकता एवं बाध्यता और उसके परिणाम का अध्ययन करते हैं| प्रतिरूप (Pattern) किसी भी तंत्र या व्यवस्था या बनावट के आन्तरिक संरचना का आव्यूह (Matrix) होता है, अर्थात अन्दर की सजावट या बनावट या ढांचा होता है| इस विन्यास या संरचना या वितरण से ही उस वस्तु का गुण,  स्वभाव, क्रियाविधि, प्रभाव बदल जाता है| प्रतिक्रिया (Reaction) में किसी के द्वारा प्राथमिक क्रिया के होने से  दुसरे के द्वारा उत्पन्न प्राथमिक क्रिया के सन्दर्भ में कोई आलोचनात्मक क्रिया होता हैं| प्रतिक्रिया नादानों को किसी ख़ास दिशा में नियंत्रित एवं नियमित करने के लिए प्रयुक्त होता है| 

‘प्रतिक्रया की तकनीक’ (Technique of Reaction) में अपने आलोचकों को कोई विशेष मुद्दा बिना किसी को कुछ बताए या कहे ही जनमानस में छोड़ दिया जाता है यानि मुक्त (Release) कर दिया जाता है, जिस पर उसके आलोचक अपनी पूरी ऊर्जा, धन, संसाधन, समय, उत्साह एवं जवानी के साथ अपने सारे कार्य एवं योजना को छोड़ कर उसी के प्रतिक्रया में अपने को झोंक देते हैं| ऐसे आलोचकों का कोई अपना नीति, कोई एजेंडा या कोई सोच ही नहीं होता है जिस पर वे कार्य कर सके, और प्रतिक्रिया देने के लिए ऐसे ही किसी मुद्दे के इन्तजार में तैयार रहते हैं| ऐसे मुद्दे के अभाव में वे वस्तुत: बेरोजगार रहते हैं। इस तरह प्रतिक्रिया के लिए मुद्दे छोड़ने वाले अपने आलोचकों के ऊर्जा, धन, संसाधन, समय एवं जवानी को नियंत्रित एवं नियमित करते है| उपरोक्त सभी का समेकन किसी भी लक्ष्य या आदर्श को पाने के लिए रची गई व्यूह (Tactics) को ही रणनीति (Strategy) कहते हैं|

क्वांटम यांत्रिकी को मूलत: निम्न तीन नियमों या सिद्धांतों में समेटा जा सकता है| पहले इन नियमों को समझते हैं और इसी के साथ एक सफल एवं कुशल शासन को यांत्रिकी, क्रियाविधि, प्रतिरूप, प्रतिक्रिया एवं रणनीति के सम्बन्ध को समझते हैं| इससे आपको किसी भी कुशल और इसीलिए एक सफल शासन तंत्र या पद्धति या शासक को जान एवं समझ पाते हैं| मैं किसी शासक या शासन की सकारात्मकता या नकारात्मकता की विवेचना यानि समीक्षा नहीं कर रहा हूँ, मैं तो किसी भी शासक या शासन की “सफलता मंत्र” का एक गहन (Intensive), सूक्ष्म (Micro), गहरा (Deep), एवं तीक्ष्ण (Sharp) विश्लेषण मात्र कर रहा हूँ| यह एक वैश्विक एवं सर्वकालिक घटना है, इसीलिए इसे इतिहास एवं समकालिक विश्व को सन्दर्भ में देखा एवं समझा जाना चाहिए|महाभारत में कृष्ण की सारी सेना दुर्योधन के साथ और युधिष्ठिर के साथ बिना किसी हथियार का सारथी कृष्ण। विजय उसकी हुईं जिसने शासकों का क्वांटम सिद्धांत समझा। पहले ब्रिटिश साम्राज्य डूबा, अब अमेरिकी साम्राज्य डूब रहा है, यह भी शासन का क्वांटम सिद्धांत का उदाहरण है। कोई सत्ता सदैव निरंतरता का दावा नहीं कर सकता।

क्वांटम भौतिकी सिद्धांत का मूल:

1. डिराक रेजर का संभाव्य प्रतिफल (The Possible Outcome of Dirac’s Razor)क्वांटम यांत्रिकी केवल उन्ही प्रश्नों का उत्तर देता है यानि उन्हीं कार्यों को करता है, जिनके वास्तविकता में होने की संभावना होती है| इससे बाहर की संभावना क्वांटम यांत्रिकी के परिदृश्य से बाहर होता है| यह किसी भी विशेष अवस्था से किसी भी दूसरी अप्रत्याशित अवस्था में फांद/ कूद (Jump) सकता है| इसी तरह एक सफल शासक या शासन के सभी पूर्वानुमानित कार्य, चयन, या परिणाम से अलग एक अप्रत्याशित कार्य, चयन, या परिणाम मिलते हैं, और उसके आलोचक अपने को ठगे हुए महसूस करते हैं| ऐसे राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व को बहुत ही कम असफलता मिलती है| वे अचानक कहीं से कहीं कूद जा सकतें हैं। एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व वह सभी संभावित कार्य कर देते हैं, जिनकी संभावना उस परिदृश्य या सन्दर्भ में उनको समुचित एवं उपयुक्त लगता है|  यह पूर्णतया डिराक रेजर के संभाव्य प्रतिफल के अनुरूप ही होता है|

2. अवस्थाओं का अध्यारोपण सिद्धांत (Principle of the Superposition of States) – कोई भी सूक्ष्म कण एक ही समय में दो या दो से अधिक सभी संभावित अवस्था में रहते हैं, जब तक उसे मापा (Measure) नहीं जाता है। इसे ही दो या दो से अधिक अन्य अवस्था में रहने को अध्यारोपण का सिद्धांत (State of Super Imposition) कहते हैं| ऐसा अध्यारोपण अनगिनत संख्या में विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है| क्वांटम क्रियाविधि का प्रेक्षक प्रभाव (Observer Effect) एक सिद्धांत है, जिसमे कोई अवलोकनकर्ता जब किसी अतिसूक्ष्म कणों को किसी स्वरुप में अवलोकित करना चाहता है, तो वह उसी स्वरुप में अवलोकित हो जाता है, जैसा वह देखना चाहता है|मतलब एक सफल और कुशल शासक अपने सभी संभावित अवस्थाओं में प्रकट हो सकता है या हो जाता है। प्रसिद्धदो छिद्र का प्रयोग” (Double Silt Experiment) में पाया गया कि परिक्षण किए जाने वाला कण ऐसे प्रतिक्रया करता है, मानों वह कण अवलोकनकर्ता को भी अवलोकित कर रहा हो| एक कण एक ही समय दो कणों में उपस्थित हो जाता है| इसी तरह एक कुशल एवं सफल राजनीतिक एवं कुटनीतिक नेतृत्व के सभी विरोधियों या आलोचकों से संभाव्य सम्बन्ध होते हैं, जिनका पूर्वानुमान उनके निकटस्थ सहयोगी भी नहीं जान पाते हैं| ऐसे नेतृत्व का एक ही समय में एक साथ कई संबंधों से संबंध मौजूद रहते हैं, और इन्हें कोई भी समझ नहीं पाता|ऐसे नेतृत्व में काफी स्थिरता और गंभीरता होता है।

3. अनिश्चितता का सिद्धांत (Principle of Indeterminacy) – यह सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि किसी भी भावी अवस्था की संभावना को कभी भी और कहीं भी व्यक्त किया जा सकता है, जिस अवस्था को वह पाना चाहता है| इस तरह यह किसी एक निश्चित अवस्था से एक या अनेक अन्य अवस्था में छलांग (Jump) ले सकता है, परन्तु इसके किसी भी आगामी अंतिम अवस्था की निश्चित पूर्वानुमान करना किसी के लिए संभव नहीं है| ऐसा ही एक कुशल राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व के निर्णयों, कार्यों और नीतियों के संबंधों के साथ होता है| ऐसे राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व के उत्साहित प्रशंसक एवं समर्थक भी समय के साथ इनके निर्णयों, कार्यों एवं नीतियों से विक्षिप्त यानि बहुत परेशान भी होने लगते हैं| इन राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व को पता होता है कि इनकी मौलिक एवं वास्तविक शक्ति एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में जनता से उत्सर्जित (Emit) होती है| ऐसे में वे अपने लक्ष्य एवं आदर्श के लिए अन्य वैसे साधनों की उपेक्षा कर सकते हैं, जो इन्हें यहाँ तक यानि इस ऊंचाईयों तक भी लाया है| ऐसे राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व गंभीर, स्थिर, मृदुभाषी, एवं प्रतिक्रियाहीन होते हैं और सदैव अपने लक्ष्य पर केन्द्रित होते हैं|

समेकित रूप में इन राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व का विश्लेषण किया जाय| जनता के अपार समर्थन के साथ इनके नीतियाँ भी बदलती रहती है, जिनके बारे में कोई पूर्वानुमान सफल नहीं होता| कल का साम्यवादी चीन एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व में कब पूंजीवाद, समाजवाद एवं साम्यवाद का मिश्रण हो गया, किसी को पुर्नानुमान भी नहीं हुआ| आज चीन एक आर्थिक, राजनीतिक एवं सामरिक शक्ति बन कर उभर गया| सामान्य लोग उसके साम्यवादी लक्ष्य के अनुमान में थे, लेकिन शासकों का लक्ष्य चीन को हर मामले में सुपर बनाना था। उक्रेन - रूस विवाद का सारा पूर्वानुमान ध्वस्त हो गया और रूस एक मतवाले हाथी की तरह अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा है| यह भी रूस की एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व की सफलता का स्पष्ट उदाहरण है| इसी रणनीति के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण भूमिका वाला पद जैसे ‘गृह या वित्त मंत्री’ को कल महत्वहीन भूमिका के ‘बाल कल्याण मंत्री’ या ‘जुट उद्योग मंत्री’ के पद पर संतोष करना पड़ जाता है| कल तक का वास्तव का प्रभावशाली छोटा समूह अगले कल को अपने को ठगा हुआ महसूस कर सकता है, या कल तक का प्रभावशाली बहुसंख्यक समूह अगले कल को अपने को बेचारा महसूस कर सकता है| ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शासन की आवश्यकताएं और प्राथमिकताएं हमेशा बदलती रहती हैं। शासन में पुरोहित वर्ग बड़े प्रभावशाली दीखते हैं, परन्तु समय के साथ शासक वर्ग ही उनसे ज्यादा प्रभावशाली एवं नियंत्रणकारी हो जाता है और पुरोहित वर्ग उपेक्षित हो जाता है| इतिहास गवाह है कि प्रभावशाली पुरोहित समूह, जो राजसत्ता को तथाकथित आध्यात्मिक एवं धार्मिक समर्थन देकर जिसे संप्रभु बनाया, उसी ने आगे उन्हें नकार दिया| मध्य कालीन अरब एवं मध्यकालीन यूरोप का परिवर्तन इसके बेहतर उदाहरण हैं|

क्वांटम सिद्धांत में कोई कण कब ऊर्जा में या कोई ऊर्जा कब कण में बदल जाता है, कोई पूर्वानुमान नही कर सकता| उसी तरह एक शासन में कब परिस्थितियाँ या आवश्यकताएं बदल कर सारे समीकरण बदल देते हैं, कोई पूर्वानुमान नही कर पाता है|अर्थात इनके मित्र एवं दुश्मन स्थायी नहीं रहते। 

शासन के वंशवाद पर दृष्टि डाले बिना यह विश्लेषण अधुरा रहेगा| वंशवादियों का प्राथमिक लक्ष्य या प्राथमिक आदर्श वंशवाद को ही बनाये रखना होता है| किसी भी वंशवादियों का कोई सिद्धांत या कोई स्थापित निश्चित आदर्श नही होता और इसीलिए इनके लिए बेहतर शासन हो जाना द्वितीयक या व्युत्पन्न गतिविधियाँ होता है| इनका शासन का कोई सर्वव्यापक दर्शन नही होता और इसीलिए इनका साधारण दर्शन अपने परिवार तक घूमता रहता है| ये संस्कृति के प्रभाव को नहीं समझते होते हैं। ध्यान रहे कि एक कुशल एवं सफल राजनीतिक नेतृत्व समय रहते संस्कृति के रूपांतरण पर कार्य करता है, क्योंकि यही संस्कृति जनमानस को सदियों तक संचालित एवं नियंत्रित करने वाला साफ्टवेयर है| एक असावधान शासक या शासन इसकी महत्ता एवं आवश्यकता को नही समझता है और कुछ दशकों में विलुप्त हो जाता है|

आप ध्यान देंगे, तो पाएंगे कि जिस सीढियों का उपयोग कर कोई सफल एवं कुशल राजनीतिक नेतृत्व कोई उचाईयों को पा लेता है, तब वह उस उचाईयों पर बने रहने के लिए कोई अन्य लिफ्ट, या ढलवां तल या हेलीपैड, या कोई नई सीढियों को बना लेता है, और पुराने सीढियों को फेंक भी देता है| एक राजनीतिक नेतृत्व अपना लक्ष्य या आदर्श भी कब बदल देता  है, कि उसके निकटस्थ समझने वाले भी अपने को ठगे महसूस कर जाते हैं| इसके लिए सूक्ष्म, स्थिर, तीक्ष्ण, गहरा एवं विषद विश्लेषण करना पड़ता है| यह एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व का कमाल है, क्योंकि यह भी भौतिकी के क्वांटम सिद्धांत या यांत्रिकी का उसी  तरह अनुपालन करता है|

निरंजन सिन्हा

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गुरुवार, 21 जुलाई 2022

विचारों का जड़त्व एवं रुपान्तरण

(Inertia of Thought and Transformation)

विचारों (Thought) में भी जडत्व (Inertia) होता है और इसी कारण उसमे परिवर्तन भी कठिन होता है| विचारों के जडत्व को ही संस्कृति (Culture), संस्कार एवं परम्परा भी कहते हैं|’ - राकेशजी  ने समझाया| प्रसंग यह था, कि राकेशजी  की माताजी का निधन हो गया था और उनका अंतिम संस्कार उस क्षेत्र में प्रचलित परम्परागत पद्धति से भिन्न पद्धति को अपना कर किया गया था| तेरह दिन की श्राद्ध पद्धति के स्थान पर तीन दिवसीय ‘आर्य समाज की श्राद्ध पद्धति’ अपनाया गया था| हालाँकि यह पद्धति भी राकेशजी के विचारों एवं सिद्धांतों के अनुरूप भी नहीं था|

उमेशजी ने टोक दिया – ‘एक बेकार की परम्परागत कर्मकांड के स्थान पर दूसरा बेकार की कर्मकांड करने की क्या जरुरत थी? इससे तो अच्छा होता कि आप यह भी नाटक नहीं करते? करते तो परम्परागत ही रहने देते, या बौद्धिक रीति से ही करते|’ उमेशजी को लोग क्रान्तिकारी विचारों के मानते हैं, और इसीलिए वे भी अपने को विचारों के इस स्तर पर सही ही समझते हैं| खैर, क्रान्तिकारी होना अच्छी बात है| एक क्रान्तिकारी बहुत कम समय में बहुत बड़ा बदलाव करता है, चाहे वह विचारों का हो, या आर्थिक क्षेत्र का हो, या सामाजिक हो, या सांस्कृतिक क्षेत्र का हो| वैसे विचारों में क्रन्तिकारी बदलाव को ही पैरेड़ाईम शिफ्ट (Paradigm Shift) कहा गया है|

राकेशजी ने समझाया – ‘देखिए उमेशजी, किसी भी बात को ढंग से समझने के लिए आपको उस बात को उस समय काल में जाकर समझना होगा एवं उस सन्दर्भ में जाकर उसे देखना समझना होगा| इसके लिए आपको किसी से सिर्फ विचारों की सहानुभूति (Sympathy) ही नहीं रखना होगा, बल्कि आपको उससे समानुभूति (Empathy) भी रखना होगा| मेरी माताजी के पांच पुत्र हुए, यानि हम पांच भाई हुए और इस पद्धति में सभी की सहमति एवं अनुमति की आवश्यकता होती है| विचारों और संस्कृतियों का भी जडत्व होता है, और आपको इसे समझना होगा|’

‘‘विचार क्या होता है? जड़त्व क्या होता है? इसे आप ही ठीक से समझा दीजिए, मैं इसे ठीक से नहीं समझता हूँ|’ उमेशजी एक सुर में सब कुछ बोल गए, लगता है कि वे राकेश जी के परम्परागत विचारों के प्रति अपनी आक्रोश की भावना को पूर्णतया नियंत्रित नहीं कर पाए| फिर वे शांतिपूर्वक राकेशजी को सुनने स्थिर हो गये|

राकेशजी ने विस्तार से बताना शुरू किया – ‘विचार (Thought) क्या है? किसी भी 'सोच' (Thinking) पर स्थिरता लाना ही "विचार" है| इसे आप कह सकते हैं कि किसी सोच पर फिर सोचना ही विचार है| एक पशु भी सोचता है, परन्तु वह अपने सोच पर फिर से सोच नहीं सकता, यानि एक पशु विचार नहीं कर सकता| और जडत्व (Inertia) क्या है? किसी भी वस्तु या विचार का वह गुण जड़त्व है, जो उसकी वर्तमान अवस्था को बदलने का विरोध करता है| अर्थात जडत्व यथास्थितिवादी होता है। जडत्व भौतिक विज्ञान की एक अवधारणा है।  उसकी वर्तमान अवस्था यदि गति की है, तो वह उस गति की वर्तमान अवस्था को ही बनाये रखना चाहता है, और यदि उसकी वर्तमान अवस्था स्थिरता की है, तो वह उस स्थिरता की वर्तमान अवस्था को ही बनाये रखना चाहता है| कोई भी जड़त्व उस वस्तु की वर्तमान अवस्था की मात्रा (Mass) यानि उसके द्रव्यमान (Mass) का समानुपाती (Proportional) होता है| यानि ज्यादा मात्रा तो ज्यादा जडत्व और कम मात्रा तो कम जड़त्व|’

उमेशजी ने टोका – ‘आप विज्ञान समझा रहे हैं या “विचारों का जड़त्व” (Inertia of Thought) समझा रहे हैं?’

‘आप थोडा धैर्य तो रखिए|’ राकेशजी ने स्थिरता से कहा – ‘विचारों में जड़त्व को बहुत ढंग से और वैज्ञानिक तरीके से समझा रहा हूँ, ताकि यदि आपको किसी और को समझाना ही पड़ जाय, तो आप उस समय फिसलें नहीं| किसी भी वस्तु का द्रव्यमान यानि मात्रा क्या होता है? “भौतिकी के कणों के आदर्श माडल” (Standard Model of Particle Physics) के अनुसार किसी भी वस्तु या पदार्थ का द्रव्यमान यानि मात्रा उस वस्तु या पदार्थ की उस “क्वांटम क्षेत्र” (Quantum Field) यानि “हिग्स क्षेत्र” (Higgs Field) में उसकी पारगम्यता की क्षमता (Permeability Capacity) होती है| जिसकी पारगम्यता क्षमता कम यानि धीमी होगी, उसकी मात्रा यानि द्रव्यमान अधिक होगा| जिसकी पारगम्यता क्षमता ज्यादा यानि तेज गति होगी, उसकी मात्रा यानि द्रव्यमान कम होगा| किसी भी वस्तु की पारगम्यता क्या है? यह पारगम्यता किसी भी वस्तु का उस क्षेत्र या शक्ति के क्षेत्र में उसकी प्रतिक्रया है और ऐसा करते हुए वह वस्तु आगे बढ़ता है। इस तरह विचारों की पारगम्यता उस समाज की सामाजिक सांस्कृतिक संस्कारों एवं परम्पराओं पर प्रतिक्रिया करते हुए उसे बेधना (Pierce) होता है| यानि कोई अपने समाज की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों, संस्कारों, परम्पराओं को जितना आसानी से उपेक्षित (Neglect) कर आगे बढ़ सकता है, तो उस समाज के विचारों में उतना ही द्रव्यमान कम होगा और इसीलिए उन विचारों का जड़त्व कम होगा| यानि कोई अपने समाज की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों, संस्कारों, परम्पराओं को जितना आसानी से उपेक्षित (Neglect) नहीं कर सकता और आगे नहीं बढ़ सकता है, तो उस समाज के विचारों में उतना ही द्रव्यमान ज्यादा होगा और इसीलिए उन विचारों का जड़त्व ज्यादा होगा|

‘लेकिन आप विचारों के जड़त्व को समझा रहे हैं|’ उमेशजी ने फिर टोका|

राकेशजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा – ‘जो स्थिति किसी द्रव्यमान के सम्बन्ध में किसी वस्तु के जडत्व के सन्दर्भ में है, वही स्थिति किसी सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण का किसी के विचारों के जडत्व के सन्दर्भ में है| वस्तु के सन्दर्भ में हिग्स क्षेत्र और उससे प्रतिक्रिया है, तो विचारों के सन्दर्भ में सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र या पर्यावरण है और उससे प्रतिक्रिया है| इस सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में उसका शैक्षणिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि सहित उसके मूल्य, प्रतिमान, अभिवृति, संस्कार, संस्कृति, परम्परा, नैतिकता एवं लोक व्यवहार आदि भी शामिल हो जाता है, जिसका प्रतिकार कर यानि उपेक्षित कर आगे बढ़ना होता है| यानि कोई कण हिग्स फील्ड मे हिग्स फील्ड से जितनी ज्यादा प्रतिक्रिया कर आगे बढ़ता है, उसका द्रव्यमान उतना ही ज्यादा होगा और इसी तरह कोई विचार सामाजिक सांस्कृतिक फील्ड में जितना ज्यादा प्रतिक्रिया करेगा, विचारों का द्रव्यमान उतना ही ज्यादा होगा और उसे पार पाना उतना ही मुश्किल होगा। विचारों का जडत्व ही है, जिसे कुछ लोग संस्कार और परम्परा भी कहते हैं| किसी भी जड़त्व को हटाने के लिए अतिरिक्त शक्ति (उर्जा) यानि अतिरिक्त बल की जरुरत होती है, लेकिन विचारों के सन्दर्भ में इसके अतिरिक्त मानवीय मनोविज्ञान को भी समझना होता है|’

‘लेकिन इन सबों का श्राद्ध संस्कार से क्या सम्बन्ध है?’ उमेशजी का हल्का विराम था|

‘वस्तुओं में भाव (Emotion) नहीं होता और एक मानव भावयुक्त (Emotional) होता है| इसीलिए विचारों के परिवर्तन में मानवीय मनोविज्ञान (Human Psychology) समझना आवश्यक है| हर व्यक्ति तार्किक रूप में समझता है कि कुछ परम्परा में कुछ बातें आज के सन्दर्भ में अवैज्ञानिक, अतार्किक, अविवेकी एवं बेकार की है, और इसे बदल देना चाहिए| परन्तु “भावनात्मक जड़त्व” के कारण इसे दिल की गहराइयों में जकड़े हुए होता है, और इसी जडत्व को बदलने की प्रक्रिया को समझना है| कोई भी “युग बोध” (Perception of Age) की अवधारणा से आगे नहीं बढ़ना चाहता, यानि कोई भी उस युग के मान्य एवं प्रचलित संस्कारों और परम्पराओं के बोध की अवधारणा को तोड़ता हुआ दिखना नहीं चाहता है| मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि परिवर्तन के लिए पुराने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओं की जगह नए जीवन मूल्य एवं परम्परा का प्रतिस्थापन (Substitution) अनिवार्य है| यह प्रतिस्थापन परिवर्तन सम्बन्धी डरों एवं चिंताओं को शांत कर देता है| अचानक हुए मौलिक बदलाव जीवन में खालीपन पैदा कर देता है, इसीलिए परिवर्तन को धीरे धीरे करना होता है| दीवार में माथा (सिर) टकराने से कोई परिवर्तन नहीं होता है, पहले विचारों के जड़त्व को समाप्त करना होता है, या उसे कम करना होता है|’ - राकेशजी ने समझाया| उमेशजी के चेहरे पर समझने का संतोष का भाव दिखने लगा|

‘एक विचार को दुसरे दिखावटी समतुल्य विचार से बदल देना ही समझदारी है| जब कोई परम्परागत विचार हिल जाता है यानि अस्थिर हो जाता है, तब उसके बाद उसमे परिवर्तन करना और आसान हो जाता है| दक्षिण में मुख्यमंत्री माननीय स्टालिन सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए इसी मनोविज्ञान एवं प्रक्रिया को अपना रहे हैं| आपकी बात सही है और आप सही हैं, परन्तु प्रक्रियात्मक बदलाव की गति को युग बोध की सीमा के अन्दर ही दिखना चाहिए|’ - राकेशजी ने बात आगे बढ़ाया|

उमेशजी अब बात समझ गए थे| कहा – ‘इसीलिए कोई विचारों एवं विचारों से सम्बन्धित संस्थाओं, मूल्यों, प्रतिमानों में आवश्यक परिवर्तन नहीं कर पाता है, क्योंकि वे मानवीय मनोविज्ञान की शर्तों एवं आवश्यकताओं को समझ नहीं पाते, यानि इसे समझने का ही समझ उन्हें नहीं है| ऐसे तथाकथित क्रान्तिकारी नेता समझते हैं, कि जनता ही नासमझ है और जनता कुछ भी समझना ही नहीं चाहता| वे यह सोच ही नहीं पाते हैं कि जनता यदि समझदार ही होता और बदालव की जरुरत ही नहीं होता, तो ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता ही नहीं होती| यानि तब इन नेताओं की आवश्यकता ही नहीं होती।’

राकेशजी ने प्रसंग समाप्त करते हुए कहा – ‘पहले विचारों के जड़त्व को समझिये, विचारों में परिवर्तन के मानवीय मनोविज्ञान को समझिए  और तब उस जड़त्व को बदलिए, धीरे धीरे सब कुछ बदल सकते हैं|’

अब आप भी ‘विचारो, संस्कारों एवं संस्कृतियों के जड़त्व’ एवं उसके परिवर्तन प्रक्रिया को समझ गए होंगे|

आचार्य निरंजन सिन्हा|

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भारत की परम्परागत समस्याओं का समाधान क्यों नहीं हो पा रहा हैं?

भारत की परम्परागत, यानि ऐतिहासिक समस्याओं , यानि सामाजिक सांस्कृतिक समस्याओं  का समाधान क्यों नहीं हो पा रहा है? यही ‘सामाजिक सांस्कृतिक सम...