गुरुवार, 21 जुलाई 2022

विचारों का जड़त्व एवं रुपान्तरण

(Inertia of Thought and Transformation)

विचारों (Thought) में भी जडत्व (Inertia) होता है और इसी कारण उसमे परिवर्तन भी कठिन होता है| विचारों के जडत्व को ही संस्कृति (Culture), संस्कार एवं परम्परा भी कहते हैं|’ - राकेशजी  ने समझाया| प्रसंग यह था, कि राकेशजी  की माताजी का निधन हो गया था और उनका अंतिम संस्कार उस क्षेत्र में प्रचलित परम्परागत पद्धति से भिन्न पद्धति को अपना कर किया गया था| तेरह दिन की श्राद्ध पद्धति के स्थान पर तीन दिवसीय ‘आर्य समाज की श्राद्ध पद्धति’ अपनाया गया था| हालाँकि यह पद्धति भी राकेशजी के विचारों एवं सिद्धांतों के अनुरूप भी नहीं था|

उमेशजी ने टोक दिया – ‘एक बेकार की परम्परागत कर्मकांड के स्थान पर दूसरा बेकार की कर्मकांड करने की क्या जरुरत थी? इससे तो अच्छा होता कि आप यह भी नाटक नहीं करते? करते तो परम्परागत ही रहने देते, या बौद्धिक रीति से ही करते|’ उमेशजी को लोग क्रान्तिकारी विचारों के मानते हैं, और इसीलिए वे भी अपने को विचारों के इस स्तर पर सही ही समझते हैं| खैर, क्रान्तिकारी होना अच्छी बात है| एक क्रान्तिकारी बहुत कम समय में बहुत बड़ा बदलाव करता है, चाहे वह विचारों का हो, या आर्थिक क्षेत्र का हो, या सामाजिक हो, या सांस्कृतिक क्षेत्र का हो| वैसे विचारों में क्रन्तिकारी बदलाव को ही पैरेड़ाईम शिफ्ट (Paradigm Shift) कहा गया है|

राकेशजी ने समझाया – ‘देखिए उमेशजी, किसी भी बात को ढंग से समझने के लिए आपको उस बात को उस समय काल में जाकर समझना होगा एवं उस सन्दर्भ में जाकर उसे देखना समझना होगा| इसके लिए आपको किसी से सिर्फ विचारों की सहानुभूति (Sympathy) ही नहीं रखना होगा, बल्कि आपको उससे समानुभूति (Empathy) भी रखना होगा| मेरी माताजी के पांच पुत्र हुए, यानि हम पांच भाई हुए और इस पद्धति में सभी की सहमति एवं अनुमति की आवश्यकता होती है| विचारों और संस्कृतियों का भी जडत्व होता है, और आपको इसे समझना होगा|’

‘‘विचार क्या होता है? जड़त्व क्या होता है? इसे आप ही ठीक से समझा दीजिए, मैं इसे ठीक से नहीं समझता हूँ|’ उमेशजी एक सुर में सब कुछ बोल गए, लगता है कि वे राकेश जी के परम्परागत विचारों के प्रति अपनी आक्रोश की भावना को पूर्णतया नियंत्रित नहीं कर पाए| फिर वे शांतिपूर्वक राकेशजी को सुनने स्थिर हो गये|

राकेशजी ने विस्तार से बताना शुरू किया – ‘विचार (Thought) क्या है? किसी भी 'सोच' (Thinking) पर स्थिरता लाना ही "विचार" है| इसे आप कह सकते हैं कि किसी सोच पर फिर सोचना ही विचार है| एक पशु भी सोचता है, परन्तु वह अपने सोच पर फिर से सोच नहीं सकता, यानि एक पशु विचार नहीं कर सकता| और जडत्व (Inertia) क्या है? किसी भी वस्तु या विचार का वह गुण जड़त्व है, जो उसकी वर्तमान अवस्था को बदलने का विरोध करता है| अर्थात जडत्व यथास्थितिवादी होता है। जडत्व भौतिक विज्ञान की एक अवधारणा है।  उसकी वर्तमान अवस्था यदि गति की है, तो वह उस गति की वर्तमान अवस्था को ही बनाये रखना चाहता है, और यदि उसकी वर्तमान अवस्था स्थिरता की है, तो वह उस स्थिरता की वर्तमान अवस्था को ही बनाये रखना चाहता है| कोई भी जड़त्व उस वस्तु की वर्तमान अवस्था की मात्रा (Mass) यानि उसके द्रव्यमान (Mass) का समानुपाती (Proportional) होता है| यानि ज्यादा मात्रा तो ज्यादा जडत्व और कम मात्रा तो कम जड़त्व|’

उमेशजी ने टोका – ‘आप विज्ञान समझा रहे हैं या “विचारों का जड़त्व” (Inertia of Thought) समझा रहे हैं?’

‘आप थोडा धैर्य तो रखिए|’ राकेशजी ने स्थिरता से कहा – ‘विचारों में जड़त्व को बहुत ढंग से और वैज्ञानिक तरीके से समझा रहा हूँ, ताकि यदि आपको किसी और को समझाना ही पड़ जाय, तो आप उस समय फिसलें नहीं| किसी भी वस्तु का द्रव्यमान यानि मात्रा क्या होता है? “भौतिकी के कणों के आदर्श माडल” (Standard Model of Particle Physics) के अनुसार किसी भी वस्तु या पदार्थ का द्रव्यमान यानि मात्रा उस वस्तु या पदार्थ की उस “क्वांटम क्षेत्र” (Quantum Field) यानि “हिग्स क्षेत्र” (Higgs Field) में उसकी पारगम्यता की क्षमता (Permeability Capacity) होती है| जिसकी पारगम्यता क्षमता कम यानि धीमी होगी, उसकी मात्रा यानि द्रव्यमान अधिक होगा| जिसकी पारगम्यता क्षमता ज्यादा यानि तेज गति होगी, उसकी मात्रा यानि द्रव्यमान कम होगा| किसी भी वस्तु की पारगम्यता क्या है? यह पारगम्यता किसी भी वस्तु का उस क्षेत्र या शक्ति के क्षेत्र में उसकी प्रतिक्रया है और ऐसा करते हुए वह वस्तु आगे बढ़ता है। इस तरह विचारों की पारगम्यता उस समाज की सामाजिक सांस्कृतिक संस्कारों एवं परम्पराओं पर प्रतिक्रिया करते हुए उसे बेधना (Pierce) होता है| यानि कोई अपने समाज की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों, संस्कारों, परम्पराओं को जितना आसानी से उपेक्षित (Neglect) कर आगे बढ़ सकता है, तो उस समाज के विचारों में उतना ही द्रव्यमान कम होगा और इसीलिए उन विचारों का जड़त्व कम होगा| यानि कोई अपने समाज की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों, संस्कारों, परम्पराओं को जितना आसानी से उपेक्षित (Neglect) नहीं कर सकता और आगे नहीं बढ़ सकता है, तो उस समाज के विचारों में उतना ही द्रव्यमान ज्यादा होगा और इसीलिए उन विचारों का जड़त्व ज्यादा होगा|

‘लेकिन आप विचारों के जड़त्व को समझा रहे हैं|’ उमेशजी ने फिर टोका|

राकेशजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा – ‘जो स्थिति किसी द्रव्यमान के सम्बन्ध में किसी वस्तु के जडत्व के सन्दर्भ में है, वही स्थिति किसी सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण का किसी के विचारों के जडत्व के सन्दर्भ में है| वस्तु के सन्दर्भ में हिग्स क्षेत्र और उससे प्रतिक्रिया है, तो विचारों के सन्दर्भ में सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र या पर्यावरण है और उससे प्रतिक्रिया है| इस सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में उसका शैक्षणिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि सहित उसके मूल्य, प्रतिमान, अभिवृति, संस्कार, संस्कृति, परम्परा, नैतिकता एवं लोक व्यवहार आदि भी शामिल हो जाता है, जिसका प्रतिकार कर यानि उपेक्षित कर आगे बढ़ना होता है| यानि कोई कण हिग्स फील्ड मे हिग्स फील्ड से जितनी ज्यादा प्रतिक्रिया कर आगे बढ़ता है, उसका द्रव्यमान उतना ही ज्यादा होगा और इसी तरह कोई विचार सामाजिक सांस्कृतिक फील्ड में जितना ज्यादा प्रतिक्रिया करेगा, विचारों का द्रव्यमान उतना ही ज्यादा होगा और उसे पार पाना उतना ही मुश्किल होगा। विचारों का जडत्व ही है, जिसे कुछ लोग संस्कार और परम्परा भी कहते हैं| किसी भी जड़त्व को हटाने के लिए अतिरिक्त शक्ति (उर्जा) यानि अतिरिक्त बल की जरुरत होती है, लेकिन विचारों के सन्दर्भ में इसके अतिरिक्त मानवीय मनोविज्ञान को भी समझना होता है|’

‘लेकिन इन सबों का श्राद्ध संस्कार से क्या सम्बन्ध है?’ उमेशजी का हल्का विराम था|

‘वस्तुओं में भाव (Emotion) नहीं होता और एक मानव भावयुक्त (Emotional) होता है| इसीलिए विचारों के परिवर्तन में मानवीय मनोविज्ञान (Human Psychology) समझना आवश्यक है| हर व्यक्ति तार्किक रूप में समझता है कि कुछ परम्परा में कुछ बातें आज के सन्दर्भ में अवैज्ञानिक, अतार्किक, अविवेकी एवं बेकार की है, और इसे बदल देना चाहिए| परन्तु “भावनात्मक जड़त्व” के कारण इसे दिल की गहराइयों में जकड़े हुए होता है, और इसी जडत्व को बदलने की प्रक्रिया को समझना है| कोई भी “युग बोध” (Perception of Age) की अवधारणा से आगे नहीं बढ़ना चाहता, यानि कोई भी उस युग के मान्य एवं प्रचलित संस्कारों और परम्पराओं के बोध की अवधारणा को तोड़ता हुआ दिखना नहीं चाहता है| मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि परिवर्तन के लिए पुराने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओं की जगह नए जीवन मूल्य एवं परम्परा का प्रतिस्थापन (Substitution) अनिवार्य है| यह प्रतिस्थापन परिवर्तन सम्बन्धी डरों एवं चिंताओं को शांत कर देता है| अचानक हुए मौलिक बदलाव जीवन में खालीपन पैदा कर देता है, इसीलिए परिवर्तन को धीरे धीरे करना होता है| दीवार में माथा (सिर) टकराने से कोई परिवर्तन नहीं होता है, पहले विचारों के जड़त्व को समाप्त करना होता है, या उसे कम करना होता है|’ - राकेशजी ने समझाया| उमेशजी के चेहरे पर समझने का संतोष का भाव दिखने लगा|

‘एक विचार को दुसरे दिखावटी समतुल्य विचार से बदल देना ही समझदारी है| जब कोई परम्परागत विचार हिल जाता है यानि अस्थिर हो जाता है, तब उसके बाद उसमे परिवर्तन करना और आसान हो जाता है| दक्षिण में मुख्यमंत्री माननीय स्टालिन सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए इसी मनोविज्ञान एवं प्रक्रिया को अपना रहे हैं| आपकी बात सही है और आप सही हैं, परन्तु प्रक्रियात्मक बदलाव की गति को युग बोध की सीमा के अन्दर ही दिखना चाहिए|’ - राकेशजी ने बात आगे बढ़ाया|

उमेशजी अब बात समझ गए थे| कहा – ‘इसीलिए कोई विचारों एवं विचारों से सम्बन्धित संस्थाओं, मूल्यों, प्रतिमानों में आवश्यक परिवर्तन नहीं कर पाता है, क्योंकि वे मानवीय मनोविज्ञान की शर्तों एवं आवश्यकताओं को समझ नहीं पाते, यानि इसे समझने का ही समझ उन्हें नहीं है| ऐसे तथाकथित क्रान्तिकारी नेता समझते हैं, कि जनता ही नासमझ है और जनता कुछ भी समझना ही नहीं चाहता| वे यह सोच ही नहीं पाते हैं कि जनता यदि समझदार ही होता और बदालव की जरुरत ही नहीं होता, तो ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता ही नहीं होती| यानि तब इन नेताओं की आवश्यकता ही नहीं होती।’

राकेशजी ने प्रसंग समाप्त करते हुए कहा – ‘पहले विचारों के जड़त्व को समझिये, विचारों में परिवर्तन के मानवीय मनोविज्ञान को समझिए  और तब उस जड़त्व को बदलिए, धीरे धीरे सब कुछ बदल सकते हैं|’

अब आप भी ‘विचारो, संस्कारों एवं संस्कृतियों के जड़त्व’ एवं उसके परिवर्तन प्रक्रिया को समझ गए होंगे|

आचार्य निरंजन सिन्हा|

www.niranjansinha,com

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