गुरुवार, 28 जुलाई 2022

शासन का क्वांटम सिद्धांत (Quantum Theory of Governance)

आज हमलोग शासन तंत्र (Governance System) या शासन प्रणाली की सूक्ष्म क्रियाविधि को समझेंगे| चूँकि यह सूक्ष्म क्रियाओं का उसी तरह अध्ययन है, जैसे भौतिकी में सूक्ष्म कणों का क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) या क्वांटम सिद्धांत में अध्ययन होता है| हमलोग जानते हैं कि बड़े पदार्थों के सन्दर्भ में, जिसे कोई भी अपनी नंगी आंखों से देख सकता है, को न्यूटन के सिद्धांत यानि न्यूटन के भौतिकी से बेहतर ढंग से समझ जाता है, परन्तु ये नियम यानि सिद्धांत सूक्ष्म कणों, जो सामान्य व्यक्ति के समझ में नहीं आता, के व्यवहार की समुचित या सामान्य व्याख्या भी नहीं कर पाता है|इसे समझने के लिए क्वांटम भौतिकी के सिद्धांत को समझना चाहिए। 

तो पहले हम क्वांटम यांत्रिकी के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं को जानते एवं समझते हैं, और फिर उसके सन्दर्भ में शासन या शासक की यांत्रिकी (Mechanics), क्रियाविधि (Process), प्रतिरूप (Pattern), प्रतिक्रिया (Reaction) एवं रणनीति (Strategy) समझते हैं|

यांत्रिकी (Mechanics) में किसी भी तंत्र या पदार्थ या बल पर किसी अन्य तंत्र या पदार्थ या बल के या इन सभी का संयुक्त प्रभाव का अध्ययन करते हैं, और इसकी क्रियाविधि, परिणाम एवं प्रभाव को समझते हैं| क्रियाविधि (Process) में किसी भी घटना यानि क्रिया के होने को उत्त्पन्न करने, कार्य करने की आवश्यकता एवं बाध्यता और उसके परिणाम का अध्ययन करते हैं| प्रतिरूप (Pattern) किसी भी तंत्र या व्यवस्था या बनावट के आन्तरिक संरचना का आव्यूह (Matrix) होता है, अर्थात अन्दर की सजावट या बनावट या ढांचा होता है| इस विन्यास या संरचना या वितरण से ही उस वस्तु का गुण,  स्वभाव, क्रियाविधि, प्रभाव बदल जाता है| प्रतिक्रिया (Reaction) में किसी के द्वारा प्राथमिक क्रिया के होने से  दुसरे के द्वारा उत्पन्न प्राथमिक क्रिया के सन्दर्भ में कोई आलोचनात्मक क्रिया होता हैं| प्रतिक्रिया नादानों को किसी ख़ास दिशा में नियंत्रित एवं नियमित करने के लिए प्रयुक्त होता है| 

‘प्रतिक्रया की तकनीक’ (Technique of Reaction) में अपने आलोचकों को कोई विशेष मुद्दा बिना किसी को कुछ बताए या कहे ही जनमानस में छोड़ दिया जाता है यानि मुक्त (Release) कर दिया जाता है, जिस पर उसके आलोचक अपनी पूरी ऊर्जा, धन, संसाधन, समय, उत्साह एवं जवानी के साथ अपने सारे कार्य एवं योजना को छोड़ कर उसी के प्रतिक्रया में अपने को झोंक देते हैं| ऐसे आलोचकों का कोई अपना नीति, कोई एजेंडा या कोई सोच ही नहीं होता है जिस पर वे कार्य कर सके, और प्रतिक्रिया देने के लिए ऐसे ही किसी मुद्दे के इन्तजार में तैयार रहते हैं| ऐसे मुद्दे के अभाव में वे वस्तुत: बेरोजगार रहते हैं। इस तरह प्रतिक्रिया के लिए मुद्दे छोड़ने वाले अपने आलोचकों के ऊर्जा, धन, संसाधन, समय एवं जवानी को नियंत्रित एवं नियमित करते है| उपरोक्त सभी का समेकन किसी भी लक्ष्य या आदर्श को पाने के लिए रची गई व्यूह (Tactics) को ही रणनीति (Strategy) कहते हैं|

क्वांटम यांत्रिकी को मूलत: निम्न तीन नियमों या सिद्धांतों में समेटा जा सकता है| पहले इन नियमों को समझते हैं और इसी के साथ एक सफल एवं कुशल शासन को यांत्रिकी, क्रियाविधि, प्रतिरूप, प्रतिक्रिया एवं रणनीति के सम्बन्ध को समझते हैं| इससे आपको किसी भी कुशल और इसीलिए एक सफल शासन तंत्र या पद्धति या शासक को जान एवं समझ पाते हैं| मैं किसी शासक या शासन की सकारात्मकता या नकारात्मकता की विवेचना यानि समीक्षा नहीं कर रहा हूँ, मैं तो किसी भी शासक या शासन की “सफलता मंत्र” का एक गहन (Intensive), सूक्ष्म (Micro), गहरा (Deep), एवं तीक्ष्ण (Sharp) विश्लेषण मात्र कर रहा हूँ| यह एक वैश्विक एवं सर्वकालिक घटना है, इसीलिए इसे इतिहास एवं समकालिक विश्व को सन्दर्भ में देखा एवं समझा जाना चाहिए|महाभारत में कृष्ण की सारी सेना दुर्योधन के साथ और युधिष्ठिर के साथ बिना किसी हथियार का सारथी कृष्ण। विजय उसकी हुईं जिसने शासकों का क्वांटम सिद्धांत समझा। पहले ब्रिटिश साम्राज्य डूबा, अब अमेरिकी साम्राज्य डूब रहा है, यह भी शासन का क्वांटम सिद्धांत का उदाहरण है। कोई सत्ता सदैव निरंतरता का दावा नहीं कर सकता।

क्वांटम भौतिकी सिद्धांत का मूल:

1. डिराक रेजर का संभाव्य प्रतिफल (The Possible Outcome of Dirac’s Razor)क्वांटम यांत्रिकी केवल उन्ही प्रश्नों का उत्तर देता है यानि उन्हीं कार्यों को करता है, जिनके वास्तविकता में होने की संभावना होती है| इससे बाहर की संभावना क्वांटम यांत्रिकी के परिदृश्य से बाहर होता है| यह किसी भी विशेष अवस्था से किसी भी दूसरी अप्रत्याशित अवस्था में फांद/ कूद (Jump) सकता है| इसी तरह एक सफल शासक या शासन के सभी पूर्वानुमानित कार्य, चयन, या परिणाम से अलग एक अप्रत्याशित कार्य, चयन, या परिणाम मिलते हैं, और उसके आलोचक अपने को ठगे हुए महसूस करते हैं| ऐसे राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व को बहुत ही कम असफलता मिलती है| वे अचानक कहीं से कहीं कूद जा सकतें हैं। एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व वह सभी संभावित कार्य कर देते हैं, जिनकी संभावना उस परिदृश्य या सन्दर्भ में उनको समुचित एवं उपयुक्त लगता है|  यह पूर्णतया डिराक रेजर के संभाव्य प्रतिफल के अनुरूप ही होता है|

2. अवस्थाओं का अध्यारोपण सिद्धांत (Principle of the Superposition of States) – कोई भी सूक्ष्म कण एक ही समय में दो या दो से अधिक सभी संभावित अवस्था में रहते हैं, जब तक उसे मापा (Measure) नहीं जाता है। इसे ही दो या दो से अधिक अन्य अवस्था में रहने को अध्यारोपण का सिद्धांत (State of Super Imposition) कहते हैं| ऐसा अध्यारोपण अनगिनत संख्या में विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है| क्वांटम क्रियाविधि का प्रेक्षक प्रभाव (Observer Effect) एक सिद्धांत है, जिसमे कोई अवलोकनकर्ता जब किसी अतिसूक्ष्म कणों को किसी स्वरुप में अवलोकित करना चाहता है, तो वह उसी स्वरुप में अवलोकित हो जाता है, जैसा वह देखना चाहता है|मतलब एक सफल और कुशल शासक अपने सभी संभावित अवस्थाओं में प्रकट हो सकता है या हो जाता है। प्रसिद्धदो छिद्र का प्रयोग” (Double Silt Experiment) में पाया गया कि परिक्षण किए जाने वाला कण ऐसे प्रतिक्रया करता है, मानों वह कण अवलोकनकर्ता को भी अवलोकित कर रहा हो| एक कण एक ही समय दो कणों में उपस्थित हो जाता है| इसी तरह एक कुशल एवं सफल राजनीतिक एवं कुटनीतिक नेतृत्व के सभी विरोधियों या आलोचकों से संभाव्य सम्बन्ध होते हैं, जिनका पूर्वानुमान उनके निकटस्थ सहयोगी भी नहीं जान पाते हैं| ऐसे नेतृत्व का एक ही समय में एक साथ कई संबंधों से संबंध मौजूद रहते हैं, और इन्हें कोई भी समझ नहीं पाता|ऐसे नेतृत्व में काफी स्थिरता और गंभीरता होता है।

3. अनिश्चितता का सिद्धांत (Principle of Indeterminacy) – यह सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि किसी भी भावी अवस्था की संभावना को कभी भी और कहीं भी व्यक्त किया जा सकता है, जिस अवस्था को वह पाना चाहता है| इस तरह यह किसी एक निश्चित अवस्था से एक या अनेक अन्य अवस्था में छलांग (Jump) ले सकता है, परन्तु इसके किसी भी आगामी अंतिम अवस्था की निश्चित पूर्वानुमान करना किसी के लिए संभव नहीं है| ऐसा ही एक कुशल राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व के निर्णयों, कार्यों और नीतियों के संबंधों के साथ होता है| ऐसे राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व के उत्साहित प्रशंसक एवं समर्थक भी समय के साथ इनके निर्णयों, कार्यों एवं नीतियों से विक्षिप्त यानि बहुत परेशान भी होने लगते हैं| इन राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व को पता होता है कि इनकी मौलिक एवं वास्तविक शक्ति एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में जनता से उत्सर्जित (Emit) होती है| ऐसे में वे अपने लक्ष्य एवं आदर्श के लिए अन्य वैसे साधनों की उपेक्षा कर सकते हैं, जो इन्हें यहाँ तक यानि इस ऊंचाईयों तक भी लाया है| ऐसे राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व गंभीर, स्थिर, मृदुभाषी, एवं प्रतिक्रियाहीन होते हैं और सदैव अपने लक्ष्य पर केन्द्रित होते हैं|

समेकित रूप में इन राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व का विश्लेषण किया जाय| जनता के अपार समर्थन के साथ इनके नीतियाँ भी बदलती रहती है, जिनके बारे में कोई पूर्वानुमान सफल नहीं होता| कल का साम्यवादी चीन एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व में कब पूंजीवाद, समाजवाद एवं साम्यवाद का मिश्रण हो गया, किसी को पुर्नानुमान भी नहीं हुआ| आज चीन एक आर्थिक, राजनीतिक एवं सामरिक शक्ति बन कर उभर गया| सामान्य लोग उसके साम्यवादी लक्ष्य के अनुमान में थे, लेकिन शासकों का लक्ष्य चीन को हर मामले में सुपर बनाना था। उक्रेन - रूस विवाद का सारा पूर्वानुमान ध्वस्त हो गया और रूस एक मतवाले हाथी की तरह अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा है| यह भी रूस की एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व की सफलता का स्पष्ट उदाहरण है| इसी रणनीति के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण भूमिका वाला पद जैसे ‘गृह या वित्त मंत्री’ को कल महत्वहीन भूमिका के ‘बाल कल्याण मंत्री’ या ‘जुट उद्योग मंत्री’ के पद पर संतोष करना पड़ जाता है| कल तक का वास्तव का प्रभावशाली छोटा समूह अगले कल को अपने को ठगा हुआ महसूस कर सकता है, या कल तक का प्रभावशाली बहुसंख्यक समूह अगले कल को अपने को बेचारा महसूस कर सकता है| ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शासन की आवश्यकताएं और प्राथमिकताएं हमेशा बदलती रहती हैं। शासन में पुरोहित वर्ग बड़े प्रभावशाली दीखते हैं, परन्तु समय के साथ शासक वर्ग ही उनसे ज्यादा प्रभावशाली एवं नियंत्रणकारी हो जाता है और पुरोहित वर्ग उपेक्षित हो जाता है| इतिहास गवाह है कि प्रभावशाली पुरोहित समूह, जो राजसत्ता को तथाकथित आध्यात्मिक एवं धार्मिक समर्थन देकर जिसे संप्रभु बनाया, उसी ने आगे उन्हें नकार दिया| मध्य कालीन अरब एवं मध्यकालीन यूरोप का परिवर्तन इसके बेहतर उदाहरण हैं|

क्वांटम सिद्धांत में कोई कण कब ऊर्जा में या कोई ऊर्जा कब कण में बदल जाता है, कोई पूर्वानुमान नही कर सकता| उसी तरह एक शासन में कब परिस्थितियाँ या आवश्यकताएं बदल कर सारे समीकरण बदल देते हैं, कोई पूर्वानुमान नही कर पाता है|अर्थात इनके मित्र एवं दुश्मन स्थायी नहीं रहते। 

शासन के वंशवाद पर दृष्टि डाले बिना यह विश्लेषण अधुरा रहेगा| वंशवादियों का प्राथमिक लक्ष्य या प्राथमिक आदर्श वंशवाद को ही बनाये रखना होता है| किसी भी वंशवादियों का कोई सिद्धांत या कोई स्थापित निश्चित आदर्श नही होता और इसीलिए इनके लिए बेहतर शासन हो जाना द्वितीयक या व्युत्पन्न गतिविधियाँ होता है| इनका शासन का कोई सर्वव्यापक दर्शन नही होता और इसीलिए इनका साधारण दर्शन अपने परिवार तक घूमता रहता है| ये संस्कृति के प्रभाव को नहीं समझते होते हैं। ध्यान रहे कि एक कुशल एवं सफल राजनीतिक नेतृत्व समय रहते संस्कृति के रूपांतरण पर कार्य करता है, क्योंकि यही संस्कृति जनमानस को सदियों तक संचालित एवं नियंत्रित करने वाला साफ्टवेयर है| एक असावधान शासक या शासन इसकी महत्ता एवं आवश्यकता को नही समझता है और कुछ दशकों में विलुप्त हो जाता है|

आप ध्यान देंगे, तो पाएंगे कि जिस सीढियों का उपयोग कर कोई सफल एवं कुशल राजनीतिक नेतृत्व कोई उचाईयों को पा लेता है, तब वह उस उचाईयों पर बने रहने के लिए कोई अन्य लिफ्ट, या ढलवां तल या हेलीपैड, या कोई नई सीढियों को बना लेता है, और पुराने सीढियों को फेंक भी देता है| एक राजनीतिक नेतृत्व अपना लक्ष्य या आदर्श भी कब बदल देता  है, कि उसके निकटस्थ समझने वाले भी अपने को ठगे महसूस कर जाते हैं| इसके लिए सूक्ष्म, स्थिर, तीक्ष्ण, गहरा एवं विषद विश्लेषण करना पड़ता है| यह एक राजनीतिक या कुटनीतिक नेतृत्व का कमाल है, क्योंकि यह भी भौतिकी के क्वांटम सिद्धांत या यांत्रिकी का उसी  तरह अनुपालन करता है|

निरंजन सिन्हा

www.niranjansinha.com

1 टिप्पणी:

  1. सामाजिक परिवेश में सत्ता शक्ति का होना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सफलतापूर्वक समझाया गया है। खासकर अणु को ऊर्जा में तथा ऊर्जा को अणु में बदलाव को बखूबी समझाया गया है। सर को बहुत बहुत आभार।

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