शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

आज की राजनीति इतिहास के झरोखे में (Today’s Politics in Historical Perspective)

 वैसे मैं राजनीति पर नहीं लिखता हूँ, लेकिन पिछली बार “शासन का क्वांटम सिद्धांत” (Quantum Theory of Governance) लिखा था| आज मै राजनीति को इतिहास के झरोखों से समझना और समझाना चाहूंगा| इसे किसी भी काल एवं किसी भी क्षेत्र की राजनीति को समझने और समझाने में उपयोग किया जा सकता है, चाहे वह कोई प्रांतीय मामला हो, या कोई राष्ट्रीय मामला हो या कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सम्बन्ध या घटना हो| ऐसी घटना या सम्बन्ध किसी भी ऐतिहासिक काल की घटना हो सकती है या किसी भी वर्तमान काल की हाल की ही घटना हो सकती है| अत: राजनीति की क्रियाविधि (Methodology) को इतिहास के झरोखों से समझने की कोशिश करते हैं|

जब बात इतिहास की आती है, तो इतिहास को नियमित (Regulate), निर्धारित (Determine), नियंत्रित (Control) एवं प्रभावित (Affect) करने वाली शक्तियों को समझते हैं| ये शक्तियां अर्थव्यवस्था की होती है, और इसे उत्पादन (Production), वितरण (Distribution), विनिमय (Exchange) एवं संचार (Communication) की शक्तियों एवं उनके अंतर्संबंधों के आधार पर समझा जा सकता है| वैसे मैं किसी नियतिवाद (Determinism) की बात नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि राजनीति क्वांटम सिद्धांत की तरह अनिश्चितता (Uncertainty) एवं संभावना प्रदर्शित करती है, परन्तु यह सब इन आर्थिक शक्तियों से ही संचालित एवं प्रभावित होती रहती है| इतिहास के बौद्धिक काल के उदय में उत्पादन, सामन्ती काल के उदय में विनिमय, वैज्ञानिक काल के उदय में वितरण एवं वर्तमान काल के उदय में संचार की शक्तियां ही अपनी प्रमुख भूमिका में रही है| इन्हें क्रमश: प्राचीन काल, मध्य काल, आधुनिक काल एवं वर्तमान काल भी कहते हैं|

आज विश्व के अनेक क्षेत्रों में और अनेक संस्कृतियों में इतिहास का कोई एक ही काल स्थापित एवं संचालित नहीं है अर्थात अलग अलग क्षेत्रों में और अलग अलग संस्कृतियों में इतिहास की भिन्न भिन्न काल वर्तमान समय में ही एक साथ संचालित है| मतलब एक ही समय कहीं प्राचीन काल, कहीं मध्य काल, कहीं आधुनिक काल और कहीं वर्तमान काल मौजूद है, या इनके विभिन्न स्वरुप के विभिन्न मिश्रित स्वरुप भी मौजूद है|

हिटलर ने जाति/ प्रजाति की शुद्धता या श्रेष्टता को सही माना| और इसे स्थापित करने के लिए युद्ध का विगुल फूंका, पहले अपने देश के अन्दर और फिर देश के बाहर| दरअसल जीनीय शुद्धता की अवधारणा पर आधारित दृष्टिकोण ही अमानवीय एवं अवैज्ञानिक है| इसी हिटलर के साथ जीनीय शुद्धता की जाति/ प्रजाति की उसकी अवधारणा ही समाप्त ही गई, इस शुद्धता के सम्बन्ध में यूनेस्को (UNESCO) की घोषनाओं को देखा जा सकता है| लेकिन वर्त्तमान समय में यदि कोई शासक या व्यवस्था इस पर आधारित किसी व्यवस्था को अनन्त काल तक विस्तारित करना चाहता है, तो यह निश्चितया हिटलर की गति को पायेगा| तकनिकी की वर्त्तमान अवस्था रुपांतरण की गति को तीव्रतर करती जा रही है| इस रूपांतरण की क्रियाविधि (Methodology) समान तो होगी, पर गति तेज होगी यानि यह पहले की अपेक्षा कम समय में ही घटित हो जायगी| इसे ही इतिहास का दुहराना कहते हैं| अब आप वर्तमान की किसी अवस्था, प्रक्रिया और परिणाम का पूर्वानुमान भी कर सकते हैं|

चीन का उदाहरण भी समझने लायक है| माओ त्से तुंग ने ‘जनवादी चीन’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भविष्य में साम्यवाद स्थापित करना था| लोग साम्यवाद के लक्ष्य के आधार पर भविष्य में चीन की दुर्दशा का अनुमान कर रहे थे, परन्तु एक समझदार शासक का लक्ष्य, प्राथमिकता एवं क्रियाविधि भी क्वांटम सिद्धांत की तरह कब बदल जाएगा, उसके निकट के सहयोगी भी जान नहीं पाते हैं| आज चीन की कोई आलोचना कर भी रहा है, तो अपनी अज्ञानता में या अपनी खींसे मिटा रहा है| चीन आज विश्व का एक आर्थिक एवं सामरिक शक्ति बन गया है, लेकिन किसी बाजारू हथियार या मशीन खरीद कर नहीं, बल्कि स्वयं विकसित कर| यदि चीनी शासन किसी व्यक्ति या किसी छोटे समूह के पक्ष में ही रहता, या उसके नेतृत्व अपने जीवन के आनन्द तक ही सीमित रहता और सामान्य जन समूह के पक्ष में नहीं रहता, तो चीन को यह गौरवमयी अवस्था नहीं मिलता| अब आप वर्तमान में समझ सकते हैं कि कौन सी संस्कृति अभी किस अवस्था में है? इतिहास किसको गर्व से एवं किसको अपमान से याद करेगा, आप समझ सकते हैं| इतिहास कभी भी किसी व्यक्ति या छोटे समूह के हित के पक्ष में रहने वाले को आदर से नाम नहीं लिया है| सबकी भागीदारी में कोई भी घालमेल जल्दी ही खुल जाता है| यह भी राजनीति के आयाम और परिणाम को समझने की क्रियाविधि (Methodology) है, जरा स्थिर से समझा जाय|

राजनीति में कौन किसका मित्र है, कौन किसका शत्रु है, या कौन किसका उपकरण है, इसे साधारणतया समझना बहुत मुश्किल होता है| मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक कहानी है, मगध को अजेय वैशाली पर विजय पाना था| मगध ने अपने एक सबसे समझदार एवं चतुर मंत्री को तैयार किया| तैयारी के अनुसार निश्चित भूमिका के साथ उस मंत्री महोदय को भारी अपमान के साथ देश निकाला दिया गया| मगध के अपमानित मंत्री को यानि मगध के राज्य दुश्मन को वैशाली में शरण मिलना था, कालांतर में मिल ही गया| आगे क्या हुआ, इतिहास गवाह है| वैशाली को मगध में मिल जाना पड़ा| यह वास्तविक कहानी भी राजनीति के घटना क्रम को समझने में सहायक है|

एक बार फिर हिटलर को याद किया जाय| जब समय खराब होता है, तो कुत्ता  बिल्ली भी शक्तिशाली शासक के विरुद्ध उसके ऊपर टूट पड़ता है| हिटलर ने पोलैंड को और फ़्रांस को रौंद दिया| अपनी बारी आती देख इनके समर्थन में ब्रिटेन भी आ गया| हिटलर ने रूस पर भी आक्रमण कर दिया| अब तटस्थ बैठा अमेरिका भी सहम गया| हिटलर जैसे शक्तिशाली शासक ने एक साथ कई फ्रंट खोल दिए, अर्थात उसने एक साथ सभी को अपना दुश्मन बना लिया| उसने यही सोचा कि विश्व में उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं रहे| उसकी यही अहम या यही भावना इसके सभी दुश्मनों एवं तटस्थों को एक घेरे में ठेल (Push) दिया| तब सभी को अपने अस्तित्व की चिंता हो गई| सभी प्रत्यक्षत: या चुपचाप एक हो गए| परिणाम यह हुआ कि हिटलर को आत्महत्या करना पड़ा, और बाकी इतिहास आप जानते ही हैं|

वैसे मैंने एक कुशल रणनीति (Strategy) की चर्चा “शासन के क्वांटम सिद्धांत” में किया है, जो www.niranjansinha.com पर भी उपलब्ध है| चूँकि राजनीति सभी की जीवन को निर्धारित करने का महत्वपूर्ण उपकरण है, इसलिए विश्व की सभी आगे बढ़ते देशों की क्रियाविधि (Methodology) को वैज्ञानिकता (Scientism), आधुनिकता (Modernism) एवं संस्कृति के रूपांतरण (Transformation) के सन्दर्भ में समझना होगा| सभी जनों को समाहित (Integrate) कर और सभी की सहभागिता (Participation) सुनिश्चित कर ही कोई अपने समाज और देश को आगे ले जा सकता है; बाकी सब दिवास्वप्न (Daydream) है|

निरंजन सिन्हा 

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