चाँद पर बिहार
यदि
बिहार चाँद पर होता तो विश्व में सबसे अनूठा होता | तब यह भारत का सबसे विकसित
राज्य होता | आप कहेंगे कि यह क्या बकवास है कि भारत धरती पर है और बिहार चाँद पर
रहता तो विकास में अव्वल होता | आप ये कह सकते हैं कि यह एक बकवास है और मानसिक
दिवालियापन के लक्षण है ; आप सही ही कह रहें हैं | आप यह सब कह सकते हैं क्योंकि
मैं बिहार का बड़ा राजनेता नहीं हूँ या बड़ा अधिकारी नहीं हूँ | चलिए, यह मान लेता
हूँ कि चाँद पर बिहार का होना और बिहार के विकसित होने का सम्बन्ध एक बकवास है |
पर
यदि मैं यह कहूँ कि बिहार अमेरिका या जापान में होता, तो यह एक अतिविकसित राज्य
होता | पर आप पूछेंगे कि फिर यह कैसी बेकार एवं बेदिमाग का प्रश्न है ? आप कहेंगे
कि ऐसी कल्पना और ऐसी शर्त क्यों जो बिहार के लिए अव्यवहारिक और बेतुका है | मतलब
कि यह बात भी आपको बेकार की लगी | यदि मैं बिहार का बड़ा सलाहकार अधिकारी होता तो
आप ऐसा नहीं कहते | आप ऐसा इसलिए नहीं कहते कि मैं बड़ा पदाधिकारी होता तो आप मेरे
बड़े सेवा का तमगा देखकर ही मुझे बड़ा विद्वान समझ लेते ; भले मैं अतार्किक एवं
वास्तव में बकवास कहता | आप ऐसा इसलिए भी नहीं कहते क्योंकि प्रमुख मीडिया भी कई प्रकार
के विज्ञापन देने के घाटे से बचने के लिए मेरे नियंत्रण में होता | आप यदि ठेके पर
काम करने वाले या आपूर्तिकर्ता होते तो भी आप भी मेरे इन
अतार्किक बातों की सराहना कर रहे होते |
यदि
बिहार अमेरिका या जापान में नहीं है तो विकास का शर्त भी समुद्री किनारा नहीं हो सकता
क्योंकि यह भौगोलिक बदलाव बेतुका है | बिहार को यदि
समुद्री किनारा मिल ही जाता और बिहार उसी से विकसित हो जाता, तो बिहार को इतने सालों
के बाद मेरी जरुरत ही नहीं पड़ती और आजादी के सत्तर सालों में बिहार अतिविकसित होता
| क्या यह एक बेतुका और अतार्किक बात नहीं है ? यदि यह मैंने नहीं कहा; मेरे
सलाहकारों ने कहा तो आप कह सकते हैं कि मैं कैसे कैसे डिग्रीधारी और तथाकथित विद्वान
रखता हूँ जिनको सामान्य व्यावहारिक ज्ञान भी नहीं है | लेकिन आपको मुझसे कोई लाभ
हैं तो भी आप मुझे कुछ नहीं कहेंगे |
सवाल
है कि विकास यदि जगह का होता है और उद्देश्य ही जगह या किसी व्यक्ति का विकास है
तो कोई बात नहीं | तब आप धन्य हैं और मुझे आपसे कुछ नहीं कहना | परन्तु यदि
विकास आदमी का होता है और लक्ष्य भी आदमी ही है , आप आदमी के विकास को विकास
कहेंगे |
“वास्तव
में विकास
आदमी
का,
आदमी
के द्वारा
और
आदमी के लिए ही होता है|”
आपको
भी पता है कि आदमी ही सबसे बड़ा संसाधन है जो किसी भी प्राकृतिक वस्तु को बहुमूल्य
संसाधन में बदल देता है | भारत में पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य समुद्री
किनारा का रोना नहीं रो रहे; विकास का पैमाना गढ़ रहे हैं | विकास के लिए आदमी ही
प्रमुख और महत्त्वपूर्ण है |
मैंने
आपके लिए बहुत काम किया, मेरे बाप दादे ने भी आपके लिए बहुत काम किया | पर यदि मैं
अब बीमार (जरुरी नहीं कि बीमारी शारीरिक
ही हो और आपको दिखे ही) हो गया हूँ या किसी घेरे में ले लिया गया हूँ और मैं लोगो
के मानसिक विकास का ध्यान भी नहीं रख पा रहा हूँ ; तो मुझे क्या करना चाहिए ? दोष मेरा हो या मेरे सलाहकारों का, आप मेरे नीयत
पर शक नहीं करते हुए भी कहेंगे कि मैंने निकम्मा एवं दृष्टिविहीन लोगों को अपने
घेरे में रखा है | आप ऐसा इसलिए कहेंगे कि आपका विकास अब मेरे द्वारा नहीं हो रहा
है, सिर्फ ठेकेदारों और नौकरशाहों का ही विकास आपको दिखता है |
विकास
की इस स्थिति की बात मैं ही नहीं कह रहा हूँ ; व्यवस्था के राष्ट्रीय एवं
अन्तरराष्ट्रीय संगठन कह रहे हैं | बिहार की आबादी देश में तीसरा स्थान रखती है और
सकल घरेलु उत्पाद में तेरहवां स्थान है | बिहार का औद्योगिक विकास दर 0. 38 % है जबकि
देश का औद्योगिक विकास दर 7.80 % है | बिहार ने बहुत विकास किया, पर प्रति व्यक्ति
घरेलु उत्पाद में बिहार देश के सबसे निचला स्थान पर है; यह जानकारी विकिपीडिया पर
है, आप भी जांच लें | बिहार में विकास हुआ, मतलब कि शेष भारत के सभी प्रान्त भी
इसी दर से या इससे ज्यादा दर से विकसित हो रहा है | फिर किस बात का ऐतिहासिक प्रशंसा
? यह कैसा विकास की बात बिहार में है, जब गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार एवं निरंकुशता
चरम पर है ? क्या विकास सिर्फ ठेकेदारी में ही निवास करता है ? एक तिहाई आबादी
गरीबी रेखा से भी नीचे है | भारत भूखे देशों के सूचि में बिहार के कारण विश्व में
नीचला स्थान पर आ गया है ; ऐसी ख़बरें समाचार पत्रों में भी आई है |
बिहार
में सभी मुलभुत चीजें हैं, फिर विकास नहीं हो रहा | उद्योग धंधे नहीं लग रहे | यह
भारत का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है | पानी है | कच्चा माल है |
“फिर
भी बिहार में निवेश नहीं हो रहा है |
क्यों
?
क्योंकि
व्यवस्था ही निरंकुशता एवं भ्रष्टाचार पर टिका हुआ है |
इस
निरंकुशता के विरुद्ध सुनवाई भी निरंकुश एवं भ्रष्ट नौकरशाह ही कर रहे हैं|“
कुछ
बड़े नेतृत्व ने विद्वता का पैमाना संघ लोक सेवा आयोग की अनुशंसा को ही मान लिया है
| हालांकि आयोग भी अपने चयन के पैमानों पर विचार करती है और पैमानों में बदलाव भी
करती है; पर अनुशंसाओं की आवधिक समीक्षा ही नहीं करती है | एक बार जो हो गया, उसकी
आवधिक समीक्षा ही नहीं हो सकती और यदि समीक्षा हो सकती है तो वही निरंकुश एवं
भ्रष्ट नौकरशाहों की फौज ही करेगी | बिहार में यदि निवेश नहीं हो रहे है तो यह
प्रशासनिक निरंकुशता एवं भ्रष्टाचार ही एकमात्र एवं एकमात्र कारण है जिसके विरुद्ध
सुनवाई ही नहीं है ; यह सब जानते हैं और इसीलिए भी चुप हैं |
विकास
सिर्फ हार्डवेयर का ही नहीं होता ; विकास सॉफ्टवेयर का भी होता ; यह समझने के लिए
कोई तैयार नहीं है | व्यवस्था के सुचारू सञ्चालन के लिए हार्डवेयर यदि जरुरी है तो
सॉफ्टवेयर भी उतना ही जरुरी है | विकास का लक्ष्य आदमी हो और विकास आदमी का हो |
ठेकेदारों एवं कुछ खास नौकरशाहों का ही विकास बिहार का विकास नहीं है |
इसलिए
यह बात छोड़ दीजिए कि बिहार चाँद पर होता या अमेरिका में होता या समुद्री किनारा पर
होता तो विकास होता | तंत्र बदलिए | भ्रष्ट एवं निरंकुश नौकरशाहों एवं सलाहकारों
को समझिए | ऐसे ही लोग व्यवस्था को डूबाते रहें हैं|
आप
भी विचार करें |
निरंजन
सिन्हा
व्यवस्था
विश्लेषक, चिन्तक एवं शिक्षक