बुधवार, 12 मार्च 2025

होलिका दहन या होली का दहन?

“होलिका दहन” या “होली का दहन” शब्द- युग्म देखने में तो एक जैसे लगते हैं, परन्तु इन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है| ‘होली का दहन' एक ऐतिहासिक सामाजिक सांस्कृतिक ‘प्रक्रम’ है एवं मूल है, जबकि ‘होलिका दहन’ एक आख्यान है, एक कथानक है, जो जन जीवन में लोकप्रिय है| जैसे उर्दू में शाब्दिक- संकेतों के हेर फेर से शब्द ‘खुदा’ भी शब्द ‘जुदा’ हो जाता है, उसी तरह यहाँ भी ‘का’ के स्थान- संरचना के हेर फेर से पूरा ताना बाना ही बदल जाता है|

आपने होली के अवसर पर देखा होगा कि होली के सम्बन्ध में, अपने समाज में, अपने आसपास में ‘तथाकथित बौद्धिकों की व्याख्याओं’ की बाढ़ आ जाती है| बताया जाता है कि 08 मार्च को “अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस” के अवसर कुछ बौद्धिक महिलाओं के अधिकार दिवस के अवसर पर एक दूसरे को बधाईयाँ देते हैं, मानवतावादी दिखने के लिए लम्बी लम्बी हाँकते हैं, और दो पक्षों (15 दिवस) के भीतर ही एक महिला के दहन के अवसर पर एक दूसरे को बधाइयाँ भी देते हैं| इससे कुछ या अधिकतर ऐसे तथाकथित बौद्धिक परेशान परेशान हो जाते हैं कि ये कैसे बौद्धिक हैं, जो खुल कर दोहरा चरित्र जीते हैं – एक तरफ महिला के गरिमामयी जीवन की कामना करते हैं, और इसी के साथ एक महिला – होलिका के दहन के अवसर पर बधाईयाँ भी देते हैं| | ऐसे तथाकथित बौद्धिकों को काफी कोफ़्त भी होता रहता है|

इसके ही साथ कुछ स्थानीय या अपने आसपास के क्षेत्रों का नाम लेकर ‘इतिहास’ के नाम पर एक कहानी दोहरायी जाती है – फलाने क्षेत्र में एक दुष्ट राजा था| उसका नाम हिरण्यकश्यप था| उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्त था| हिरण्यकश्यप को उसके ईश्वर भक्ति से चिढ थी, इसीलिए उसे मार देने की कई प्रयास किए गए, लेकिन सभी प्रयास बेकार रहा| उस राजा की बहन ‘होलिका’ को आग में नहीं जलने का वरदान मिला हुआ था| कहानी के अनुसार होलिका प्रहलाद को अपने गोद में लेकर आग में बैठ गयी, लेकिन होलिका जल गयी, और ईश्वर भक्त प्रहलाद बच गया| विचित्र बात यह है कि इस कहानी को ऐतिहासिक मानने वाले अधिकांश तथाकथित बौद्धिक ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास भी नहीं करते हैं, लेकिन प्रहलाद को बचाने वाले ईश्वर अवतार – नरसिंह में विश्वास भी करते हैं| उनके अनुसार होलिका एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व थी, यानि वह किसी ऐतिहासिक काल की महिला हुई, जिसका दहन किया गया, और यह गलत हुआ| लेकिन इसी मान्यता के साथ ही ऐसे लोग ईश्वर के अवतार के वहाँ उपस्थित होने तथा एक ऐतिहासिक व्यक्ति को बचाने के प्रसंग पर चुप्पी साध लेते हैं| इस तरह यह स्पष्ट है कि जब होलिका एक ऐतिहासिक व्यक्ति रही, तो उसकी बचाने वाला भी एक ऐतिहासिक व्यक्ति अवश्य ही रहा होगा| यदि एक भाग सही था, तो दूसरा भी अवश्य ही सही होगा, यानि ईश्वर भी एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं| लेकिन यदि एक भाग सही है और दूसरा अभिन्न भाग गलत है, तो यह अधकचरा हो जायगा| यदि यह स्थिति अधकचरा की हुई, तो वैसे लोगों की बौद्धिकता को क्या कहा जाय?

स्पष्ट है कि उपरोक्त कहानी एक कथानक (Narrative) है, एक आख्यान है, एक मिथक है, और उससे ज्यादा और कुछ नहीं है| एक कथानक में सामान्य किस्म के आदमियों को ‘भावना’ में बहा ले जाने की अद्भुत क्षमता होती है| जब भारत में बौद्धिकता ह्रास हुआ और सामन्ती सामाजिक संस्कृति का उद्भव हुआ, तभी ऐसे कथानकों को गढ़ा गया| एक कथानक सुनने एवं समझने में आसान, सरल एवं साधारण होते हैं| चूँकि इसका कोई पुरातात्विक प्रमाण या कोई अन्य प्राथमिक प्रमाणिक प्रमाण नहीं है, जो ऐसे किसी कहानी को इतिहास के काल खंड में स्थापित कर सकते हैं, इसीलिए ये कहानियाँ मात्र एक मिथक ही होती है| ऐसे कहानियाँ यह स्पष्ट करते हैं कि ‘कथानक ही शासन करता है’| सामान्य लोग शारीरिक ज्ञानेन्द्रियों से ही कोई बात समझ पाते हैं| ऐसे सामान्य लोगों को उलझा देने के लिए, या सुलझा देने के लिए ही मानसिक ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग किया जाता है| ऐसे सामान्य लोग अपनी मानसिक दृष्टि का उपयोग नहीं कर पाते हैं, और उसी कहानी का नया नया निष्कर्ष निकाल कर और सामान्य लोगों को बेवकूफ बना कर स्वयं बौद्धिक दिखलाने का प्रयास करने में सफल हो जाते हैं|

अब आप अपने बौद्धिक दृष्टि से इन सारे प्रकरण पर नजर डालें| विश्व में बौद्धिकता का उद्भव एवं उद्विकास कृषि के साथ ही शुरू हुआ| मानव जीवन में कृषि ही वह पहली व्यवस्था हुई, जब भोजन की सुनिश्चितता उन लोगों के लिए भी संभव कराया, जो कृषि कार्य में नहीं लगे थे| इस तरह कृषि व्यवस्था ही सम्पूर्ण जीवन का आधार बना| अर्थव्यवस्था के पाँचों प्रक्षेत्रों का विकास भी इसी सुनिश्चितता के साथ हुआ| चौथा प्रक्षेत्र ज्ञान सृजन का एवं पंचम प्रक्षेत्र नीतियों (शासकीय सहित) का निर्माण किया जाता है| राज्य का आर्थिक आधार भी कृषि उपज का लगान और कृषि उत्पाद का व्यापार एवं उस आधारित कर- स्नाग्रहण ही रहा| इस समय खेतों में रबी फसल तैयार रहता है, और पके हुए फसलों को खलिहान लाने की उत्साहपूर्ण तैयारी की जाती है| पुराने कृषि – अपशिष्ट एवं अन्य गन्दगी को नष्ट करना एवं नए क्षेत्र को तैयार करना बेहद जरुरी हो जाता रहा| ऐसे पुराने कचडों एवं अपशिष्टों को जला देना एक सुन्दर विकल्प रहा, जो होली का दहन हुआ| आधुनिक युग के तथाकथित बौद्धिक उस प्राचीन काल के कृषि कार्य के संपादन के प्रक्रम को आधुनिक अर्थव्यवस्था एवं नागरीय जीवन की नजरों से देखने समझने का प्रयास करते हैं, और कुंठित होते रहते हैं| अपने को आधुनिक एवं वैज्ञानिक समझने के भ्रम में सामान्य बुद्धि वाले लोग महान भारतीय सांस्कृतिक विरासत की भावना (Essence) को तोड़ मरोड़ दे रहे हैं| यह आपकी संवैधानिक स्वतन्त्रता है कि आप कोई पर्व या त्यौहार मनाएँ, या नहीं मनाएँ, लेकिन महान भारतीय संस्कृति विरासत के मूल भाव की गलत व्याख्या नहीं करे|

होली के समय जाड़े की ऋतु की विदाई हो चुकी होती है, और गर्मी दस्तक देता हुआ होता है| यह वसंत का सुहावना समय होता है| अधिकतर पेड़ अपने पुराने पत्ते झाड़ दिए होते है, और नए नए हरे कोपलों एवं हरे हरे नए पत्तों से सभी पेड़ सज धज कर तैयार हो जाते हैं| अनाज, दहलन, तेलहन एवं अन्य पौधें की फसलें पक कर तैयार रहती है| आम, महुआ, जामुन, कटहल आदि फलों के फूल मन्जर अपने सुगन्धों से फिजाँ बदल देता है| यही समय राज्यों के राजस्व संह्रहण का भी होता है| अब आप ही बताएँ कि राजा से लेकर प्रजा तक ऐसे समय में अपनी खुशियों का इजहार नहीं करे? ऐसे समय में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए ही ‘रंगों’ का उपयोग करते हैं| यदि कोई इन प्राकृतिक रंगों के नाम पर कोई अन्य कृत्रिम एवं जहरीले रंगों का दुरूपयोग कर दे, तो दोषी वह व्यक्ति हो सकता है| परन्तु इस ‘दुष्टता’ के लिए यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत कतई दोषी नहीं होगी|

समय के संस्कृति बदलती रहती है, यानि संस्कृति गतिमान होती है| होना भी चाहिए, ‘अनुकूलन’ (Adoptation) करना ही जीवन की निरंतरता का आधार है| इसी कारण आज संस्कृति अपने स्वरुप को वैश्विक बनती जा रही है| समय बदलता रहता है, प्रसंग एवं पृष्ठभूमि भी बदलता रहता है और इसी कारण इसकी उपयोगिता एवं सार्थकता भी बदलती रहती है| जब यह सब बदलेगा, तो अनुकूलन के लिए ढाँचा भी बदलेगा, संरचना भी बदलेगा, और विन्यास भी बदलेगा, लेकिन भाव यानि मकसद तो स्थिर ही रहेगा| यह होली एक ‘पशु मानव’ के ‘बौद्धिक मानव’ में बदलने की घटना की याद दिलाती है|

‘होली’ (Holi/ Holy) का अंग्रेजी अर्थ ‘पवित्र’ होता है| अधिकतर लोग, जो आदमियों में समानता के स्थान पर विभेद ही ज्यादा खोजते रहते हैं, उनके लिए यह ‘वाक्य’ अटपटा लगेगा| एक इंगलिश शब्द है और दूसरा हिंदी शब्द है, तो समानता कहाँ से?, यह एक यक्ष प्रश्न के रूप में लाते हैं| ऐसा लगता है कि ब्रिटिश जैसे रोते हैं, हँसते हैं, तो भारतीय दूसरे स्वरुप में रोते एवं हँसते हैं| नहीं, दोनों में समानता होती है| एक यह ध्यान देने की बात है कि विश्व में वर्तमान सभी मानव ‘होमो सेपियन्स सेपियन्स’ हैं, और सभी एक ही मानव समूह (परिवार) की संतानें हैं| इनकी उत्पत्ति ही कोई एक लाख वर्ष के अन्दर ही अफ्रीका के वोत्सवाना के मैदान में हुई है, और यहीं से समय के साथ सारे विश्व में फ़ैल गए| जब कुछ समय पहले एक ही थे, और परिस्थिति के अनुकूलन के परिणाम स्वरुप सतही ढाँचे एवं संरचना में ही बदलाव हुआ है| ऐसा ही भाषा एवं संस्कृति के साथ हुआ  है| जब आप सामानता खोजेंगे, तो आपको आंतरिक समानता मिलेंगे, और जब आप असमानता खोजेंगे, तो आपको सतही असमानता मिलेंगे|  स्पष्ट है कि भारतीय ‘होली’ (Holi) भी इसी ‘पवित्रता’ (Holy) की भावना अपने में समाहित किए हुए है|

आइए, होली का त्यौहार मनाए|

मौसम के परिवर्तन के अवसर पर, फसलों के आगमन के अवसर पर, नवीनता के आगमन के अवसर पर हम भी उत्साहित हों|

स्वरुप बदल सकते हैं, तरीका बदल सकते हैं, परन्तु भाव बनाए रखिए|

जीवन में नवीनता लाने के बहाने को अवसर बनाइए|

भारतीय सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखिए|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही अच्छी व्याख्या सर। हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखना होगा 🙏

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