मदारी तो सब जगह रहते हैं और अपने अपने
प्रभाव क्षेत्र में वे डुगडुगी बजाते रहते हैं, लेकिन असली मुख्य मदारी कौन है? आज हमलोग वैश्विक मुख्य मदारी के सन्दर्भ में समझेंगे| एक मदारी को अपने पात्र का ऐसा मानसिक और आध्यात्मिक नियंत्रण, नियमन,
निर्देशन करना होता है कि वह पात्र उस मदारी के इशारों पर अपना भाव, विचार, व्यवहार
और कार्य करने को समर्पित करता रहे। ऐसा करते हुए एक मदारी
अपने पात्र को इस जन्म या अगले जन्म में लाभ होने का लोभ भी देता है, किसी
अज्ञात या ज्ञात का, वास्तविकता या काल्पनिकता का भय भी देता
दिखता है। इस तरह एक मदारी अपने पात्र का धन, संसाधन, उर्जा, उत्साह,
जवानी, समय, समर्पण,
वैचारिकी और भक्ति का उपयोग या दुरुपयोग करने के लिए नियंत्रित,
नियमित, निर्देशित करता है। इस
प्रक्रिया में अपने पात्रों से मात्र क्रिया ही करवाता हो, ऐसी
बात नहीं है। वह मदारी अक्सर अपने पात्रों से
प्रतिक्रिया लेकर भी उन्हें संचालित कर नियंत्रित करता है। फल के पेड़ पर बैठे बंदरों को यदि आप पत्थर या ढेला फेंकेंगे, तो वह बन्दर अपने स्वभाव के अनुसार उस पेड़ के फल को आपके पास फेंक कर
प्रतिक्रिया देगा। प्रतिक्रिया लेना भी नियंत्रित करने का एक बहुत सुन्दर
प्रस्तुति होता है।
स्पष्ट कहें, तो एक मदारी डुगडुगी के इशारे पर लोगों को,
समाज को, और पूरे तंत्र को नचाते रहते हैं। मदारी
का पात्र मदारी के इशारों पर उछल कूद कर अपने को धन्य धन्य हो जाता हुआ मानता है। आप भी उन
पात्रों का समर्पण, समर्थन, और भक्ति देखकर मदारी की
भूमिका में आ जाना चाहेंगे। लेकिन आज़ जमाना बदल गया है और इसीलिए मदारियों
के स्वरूप, वेशभूषा, क्रियाविधि और तौर
तरीके भी बदल गया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के
साथ साथ डिजीटलीकरण ने तो मदारियों की पहचान को ऐसा बदल दिया है कि
अच्छे अच्छे तथाकथित बौद्धिक भी उन मदारियों को ढंग से
नहीं पहचान पाने के कारण परेशान हैं।
उपनिवेशवाद के समाप्ति और साम्राज्यवाद के बदलते स्वरूप ने
तो मदारियों के स्वरूप और क्रियाविधियों को पूरी तरह से रहस्यमयी ही बना दिया है। वणिक
साम्राज्यवाद और औद्योगिक
साम्राज्यवाद की प्रकृति, स्वरुप और
क्रियाविधि तो किसी भी साधारण बौद्धिकता की समझ वाले को पूरा समझ में आ जाता है,
लेकिन वित्तीय साम्राज्यवाद और सूचना
साम्राज्यवाद की प्रकृति, स्वरुप और
क्रियाविधि तो किसी भी साधारण बौद्धिकता वाले की समझ से बाहर की ही होती है।
साम्राज्यवादियों में एक सांस्कृतिक साम्राज्यवाद' भी
होता है, जो अपने पात्रों को स्वचालित मोड में रखता है।
साम्राज्यवादी मदारियों को जानना और पहचानना बहुत ही मुश्किल है, क्योंकि इनके अस्तित्व का अहसास भी बहुतों को नहीं है।
उपनिवेशवाद, वणिक साम्राज्यवाद और औद्योगिक साम्राज्यवाद की तो
भौगोलिक सीमाएं भी होती थी, यानि इनका सुनिश्चित भौगोलिक
क्षेत्र होता था। लेकिन आज़ वित्तीय साम्राज्यवाद, सूचना
साम्राज्यवाद और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद' अपने स्वरूप,
प्रकृति और क्रियाविधि में अदृश्य तो रहता ही है, और इसके ही साथ इन्हें भौगोलिक सीमाओं से निर्धारित नहीं किया जा सकता है। अर्थात
यह सब वैश्विक प्रभाव रखता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, आनुवांशिकी
(Genetics) और डिजीटलीकरण ने तो
इन मदारियों को इतना रहस्यमयी बना दिया है कि इनके द्वारा और इनके पीछे भी कोई
मदारी करामात कर रहा है, विश्वास ही नहीं होता।
इन मदारियों के कार्टेल (cartel) तो वित्तीय
साम्राज्यवादियों और सूचना साम्राज्यवादियों के वैश्विक संयुक्त शीर्षस्थ नेताओं का
समूह होता है। इन्हें एक गिरोह कहना अनुचित होगा,
क्योंकि ये अन्ततः मानवतावादी है और प्रकृतिवादी भी है। वैसे पूंजी
की क्रियाविधि का एक आवश्यक तत्व यह होता है कि इसमें कोई मदारी यदि कोई काम अपने
लाभ के लिए ही करता है, फिर भी इसका प्रभाव एवं परिणाम समस्त
मानवता और प्रकृति के हितों को भी साधता हुआ होता है। कहने का
तात्पर्य यह है कि ये मदारी मानवता के भविष्य के शुभचिंतक ही नहीं है, बल्कि
ये मदारी भविष्य के नियन्ता, अभियंता और निर्माता भी हैं। इनकी
गलतियों को आप अपवाद मान सकते हैं, अपने सीमित बौद्धिक स्तर
का प्रभाव मान सकते हैं और उनके कार्यों को नहीं समझ पाने के कारण रहस्यमयी भी मान
सकते हैं।
बहुत अधिक सम्भावना है कि ये कार्टेल वैश्विक आबादी को इस शताब्दी
के अन्त तक मात्र पचास करोड़ की आबादी के पास स्थिर कर दें। आप सही पढ़
रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि विविध कारणों के बहाने विविध स्वरूपों में
कोई लगभग आठ सौ करोड़ की आबादी इस शताब्दी के अन्त तक पृथ्वी
को हल्की कर देगी। यूवाल नोआ हरारी तो
आनुवांशिकी की बात कर और होमो ड्यूस की
अवधारणा देकर कुछ ऐसा ही कहना चाहते हैं। इतनी बड़ी आबादी अपनी तथाकथित प्राकृतिक
क्रियाओं और स्वरुपों में दुनिया से विदा हो जाएगी। यह सब इस
शताब्दी के अन्त तक हो जाना है। इस विदाई अभियान को आप अपराध की श्रेणी में नहीं
रख सकते हैं, क्योंकि ये सब वैधानिक रूप में मृत्यु दण्ड या
हत्या की परिभाषा में नहीं आएंगे।
एक असली मदारी सिर्फ डुगडुगी ही नहीं बजाता है, बल्कि
इशारों के सहारे पूरे तंत्र को नचाता रहता है। आपके
सूचनाओं से लाभ लेने की स्वाभाविक प्रकृति और प्रवृति का सदुपयोग कर हमें कई लाभ
उपलब्ध कराए जाते हैं, लेकिन सूचनाओं के
इसी लाभ के साथ हमारी प्रत्येक प्रकृति और प्रवृति का विश्लेषण, मूल्यांकन
और अनुश्रवण कर नियंत्रित ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि
हमें नियमित, संचालित और निर्देशित भी किया जा रहा है। एलन मस्क की न्यूरालिंक की
शोधों और उपलब्धियों के साथ साथ शरीर में न्यूरोन को
संचालित और निर्देशित करने वाली माइक्रो चिप्स के निकट भविष्य में प्रत्यारोपण की
संभावना वास्तविकता में बदल जाएगी।
जब विश्व में ऐसे ऐसे मदारियों का कार्टेल काम कर रहा है, तो किसी
देश, राज्य (इसे प्रान्त समझ सकते
हैं, या नहीं भी) और तथाकथित राष्ट्र की सीमाओं के अन्दर में
उछल कूद मचाने वाले मदारियों को अपने कुशल और सफल मदारी होने का भ्रम ही है। किसी देश, राज्य
और तथाकथित राष्ट्र की सीमाओं के अन्दर में जाति,
प्रजाति, धर्म, सम्प्रदाय,
भाषा, संस्कृति, क्षेत्र,
लिंग आदि के आधार पर तमाशा करने और तमाशा दिखाने वाले जितने भी
क्षेत्रीय मदारी हैं, उन मदारियों को अपनी कुशलता, योग्यता और सफालता पर भले ही घमंड रहा हो, लेकिन यह
तो स्पष्ट है कि इन क्षेत्रीय मदारियों का अस्तित्व,
महत्व और भूमिका उन वैश्विक मदारियों के सामने पूर्णतया तुच्छ है,
क्षुद्र है और बेवकूफी भरा भी है। कहने
का तात्पर्य यह है कि उन वैश्विक मदारियों के लिए ये बेवकूफ जीव है, जिन्हें आपसी तिकड़मबाजी से फुर्सत ही नहीं है। ये
क्षेत्रीय मदारी अपने अपने डुगडुगी में इतने मग्न हैं कि इन्हें यह अहसास ही नहीं
है कि कोई वैश्विक मदारियों का कार्टेल भी इन क्षेत्रीय मदारियों के मन और
मस्तिष्क पर ही नियंत्रण किए बैठा है। इन क्षेत्रीय मदारियों को तो साधारण शारीरिक
आंखों से ही सब कुछ दिखाई देता है, इसलिए इन्हें वैश्विक
मदारियों की ओर ध्यान नहीं है।
अब तो आप वैश्विक मदारियों के साथ साथ अपने क्षेत्रीय मदारियों को
पहचानना, जानना और समझना शुरू कर दिया होगा। यदि आप इसे पहले
से जान समझ रहे हैं, तो अन्य के लिए मुझे रेखांकित करना ही
चाहिए था।
आचार्य प्रवर निरंजन
सही सटीक आलेख।
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