शनिवार, 11 सितंबर 2021

चाणक्य महान! क्यों?

 

चाणक्य भारतीय मिथक का एक ऐसा पात्र है, जिसमे योग्यता ही योग्यता है| कुछ लोगो को इसे मिथक कहने में आपत्ति होगी| अधिकतर लोग इसे इतिहास का ऐतिहासिक पात्र मानते हैं| इसे कुछ लोग 'विष्णुगुप्त' मानते हैं| कुछ लोग के अनुसार यही 'कौटिल्य' है| यह एक ऐसा पात्र है, जिसने मगध साम्राज्य के उदय में चन्द्रगुप्त मौर्य के सहयोग में निर्णायक भूमिका निभाई| यह सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रमुख मंत्री एवं सलाहकार भी रहा| इनकी महानता की कई चर्चाये हैं| इनके बारे में हमलोग बाद में आयेंगे|

इन्हें समझने के लिए पहले मैं दो प्रसंग संक्षेप में बताऊंगा| पहला प्रसंग संयुक्त राज्य अमेरिका का है| लगभग कोई एक सौ पचास वर्ष पहले की बात है| अमेरिका में उस समय एक ऐसा क्षेत्र था, जहां जाने आने के लिए पानी के जहाज ही फेरे लगाते थे| शिपिंग कंपनी को फेरे लगाने का अनुबंध (Contract) वहां की सरकार ने किया हुआ था| उस क्षेत्र को रेल एवं रोड से जोड़ने के लिए रेल एवं रोड का पुल बनाया जाना था| शिपिंग कंपनी ने न्यायालय  में पुल बनाने वाली 'रेल रोड कंपनी' के विरुद्ध मुक़दमा दायर कर दिया| शिपिंग कंपनी के वकील ने शिपिंग कंपनी के पक्ष में बहुत ही विद्वतापूर्ण एवं सूक्ष्म विश्लेषण के साथ विशद (Detailed) क़ानूनी पक्ष रखा| अंत में पुल निर्माण वाली 'रेल रोड कंपनी के वकील ने माननीय न्यायलय के समक्ष यह प्रश्न रखा कि अमेरिकी नागरिको अपने देश में कहीं आने जाने और अपने परिवहन के साधन अपनी इच्छा से चुनने का मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता है या नहीं? यह मुख्य मुद्दे की बात थी| न्यायलय का निर्णय नागरिको एवं पुल निर्माण कंपनी के पक्ष में हुआ| इनके वकील का नाम अब्राहम लिंकन था, जो बाद में वहां के राष्ट्रपति भी हुए| कहने का तात्पर्य विशद वर्णन में जाने पहले मुख्य मुद्दे की बात हो और इस पर निर्णय के बाद अन्य मुद्दे पर बात हो|

इसी तरह दूसरा प्रसंग है| माना कि एक व्यक्ति का नाम मोहन लाल है| उसने एक ऐसी जमीन के टुकड़े को गिरिधारी जी को बेच दिया, जिस जमीन पर उसका किसी भी तरह से स्वामित्व नहीं था| गिरिधारी ने इस टुकड़े को राधे किशन को बेच दिया| अब कोई विवाद गिरिधारी और राधे किशन में उसके स्वामित्व को लेकर हो गया| मामला न्यायलय में गया| माननीय न्यायलय का निर्णय यह होगा कि यह जमीन इन दोनों की नहीं है, क्योकि भूमि पर स्वामित्व की तथाकथित शुरुआत ही फर्जी थी| इस स्थिति में कानून की बारीकियां, प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ, और किसी की विद्वता एवं मंशा का कोई वर्णन सब निरर्थक है|

यदि चाणक्य का पात्र ही कल्पना हो, जिसका कोई पुरातात्विक, ऐतिहासिक या अन्य तार्किक आधार ही नहीं हो, तो इन पर आधारित सब विद्वतापूर्ण वर्णन बेकार हैं| यह सब उसी तरह बेकार होंगे, जैसे ऊपर के प्रसंग में हुए|

कहा जाता है कि चाणक्य की उत्पत्ति मैसूर संग्रहालय के एक क्यूरेटर (संग्रहालय यानि म्यूजियम के रख रखाव के लिए कर्मचारी ) श्री सामदेव शास्त्री के द्वारा लगभग एक सौ वर्ष पहले अर्थात उन्नीसवीं सदी के प्रथम दशक में हुई| यह समय था अंग्रेजो के उपनिवेशवाद का| उस समय अंग्रेजो का मानना था कि भारतीय स्व शासन योग्य नहीं थे| भारतीय राष्ट्रवाद का उभार हो रहा था और भारतीय स्व शासन के पक्ष में बाते रखी जा रही थी| सन 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने पहली बार धम्म लिपि को पढ़ा| उसी धम्म लिपि को बाह्मी या ब्राह्मी लिपि कहा जाता है| भारत में इतने बौद्धिक षडयंत्र इस क्षेत्र में हुए हैं कि अब उन सबों से पर्दा हट रहा है| इस तरह आधुनिक भारत मौर्य साम्राज्य को  जान सका था| उस क्यूरेटर के टीम ने उनके “अर्थशास्त्र” को भी तैयार कर दिया| कहाँ से तैयार किया, कोई पता नहीं| प्रसिद्ध जर्मन भारतीयविद मैक्स मुलर ने भी इसका समर्थन कर दिया| ब्रिटेन और जर्मनी साम्राज्यवाद के दो विपरीत धुरी (Pole) थे| अत: एक जर्मन का, अंग्रेजी हितों का विरोधी होना स्वाभाविक था|

चाणक्य के पक्ष में कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है| इनके समर्थन में इनका कोई प्रसंग तत्कालीन किसी भी विदेशी या भारतीय ग्रन्थ में नहीं है| इन्हें संस्कृत ही आता था और उस समय संस्कृत के प्रचलन या अस्तित्व का कोई साक्ष्य नहीं है| अशोक ने कई भाषाओँ में तथा द्वि भाषाओं में शिलालेख लिखवाये, परन्तु संस्कृत में कोई शिलालेख नहीं है| वास्तव में संस्कृत भाषा और ब्राह्मण, ब्राह्मणवाद, वर्ण एवं जाति का उदय ही सामंतकाल में सामंतवाद की आवश्यकतायों के कारण ही हुई है, यह अब स्थापित हो गया है| सामंतवाद के पहले “बमण” एवं “बम्हण” शब्द भारत में विद्वानों के संबोधन के लिए था| यही समानार्थी शब्द सामंत काल में ब्राह्मण नाम का जाति सूचक शब्द बना| इन बातों के समर्थन में ये पुस्तके और वे पुस्तके हो सकती है, जो खुद काल्पनिकता को पुष्ट करने के लिए सामंतकाल में प्राचीनता के नाम पर बहुत बाद में रची गयी हैं| चाणक्य के समर्थन में कोई भी प्राथमिक प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है।

अत: पहले चाणक्य की ऐतिहासिकता स्थापित हो, तब ही उनकी विद्वता का बखान (Description) समुचित होगा| आप किसी भी बात के समर्थन में साक्ष्य, तर्क, विवेकशीलता एवं वैज्ञानिकता को अवश्य देंखे| उनके समर्थकों से भी यही मांगे| यही बौद्धिकता का परीक्षा है| अत: इसकी महानता एवं उपलब्धियों की चर्चा करना व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के समय, उर्जा, धन एवं संसाधन की बर्बादी है|

निरंजन सिन्हा

मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक, एवं बौद्धिक उत्प्रेरक|

मेरे अन्य आलेख www niranjansinha.com पर भी देखे जा सकते हैं।

 

 

 

 

 


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार एवं तथ्यात्मक वर्णन कर इतिहास के खंडहर को मजबूत करने का सार्थक प्रयास सर।

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  2. बहुत उत्कृष्ट वर्णन कर इतिहास के खंडहर को मजबूत करने का सार्थक प्रयास सर।

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  3. Great thought. Accepting this fiction has created is causing immense harm to national interest. By supporting Sankrit Govt is wasting resources for the benefit of a small minority linguistic group which is being created for misappropriation of majority interest. This has increased divisions by demand of recognition of other languages which are much popular than Sanskrit today when effort should be to integrate linguistically.

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  4. बहुत ही शानदार सर। हम इस तथ्य पर किसी अन्य लेख के माध्यम से विस्तार से आपके सारगर्भित विचार जानना चाहेंगे।

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  5. अत्यंत महत्वपूर्ण, तर्कपूर्ण तथा बौद्धिकता से परिपूर्ण आलेख।
    भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था की गहरी समझ रखने वाले विद्वान लेखक माननीय निरंजन सिन्हा जी बहुत बहुत बधाई।...और उनसे आग्रह है कि उनके द्वारा इसी तरह के आलेख भारतीय जनमानस में जड़ जमाकर बैठे हुए अन्य मिथकीय विषयों पर भी लिखे जांय, जिन्हें भारतीय जनमानस में वास्तविक इतिहास के रूप में मान्यतावादी इतिहासकारों ने अपने वर्गीय हितों की वजह से सदियों से कुतर्क तथा अप्रमाणिक पुस्तकीय आधारों पर बैठा रखे हैं।
    उदाहरण के तौर पर ऐसे विषय हैं, ....वैदिक संस्कृति तथा वैदिक युग, आर्यों के आगमन की काल्पनिक कहानी तथा उनके द्वारा सिन्धु सभ्यता को नष्ट कर भारत में वैदिक धर्म एवं संस्कृति की स्थापना करना।... यह मिथक कि संस्कृत भाषा दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है तथा सभी भारतीय भाषाएं उसी से निकली हुई हैं। ... ॠग्वेद दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।.... जिन्हें आम जनता प्रचार तंत्र के प्रभाव में आकर सदियों से वास्तविक ऐतिहासिक चरित्र मान बैठी है तथा तमाम सार सामाजिक संगठन उनमें आंखे बंद करके अपने पूर्वजों का इतिहास और भूगोल ढूंढने में अनावश्यक समय,श्रम और देश का कीमती संसाधन बर्बाद कर रहे हैं।
    यदि प्रबुद्ध लेखक महोदय अपने तर्कपूर्ण, सुगम एवं धारदार लेखों के माध्यम से उपरोक्त विषयों पर अपनी कुशल लेखनी चलाकर भारतीय जनमानस की सदियों पुरानी मानसिक जकड़न तथा अनजानी और अनचाही मानसिक गुलामी से उसे मुक्ति दिलाते हैं,तथा उसकी मानसिक ऊर्जा का प्रवाह भारत देश की राष्ट्रीय एकता अखंडता एवं गौरव की स्थापना में लगायी जाती है,तो यह प्रबुद्ध लेखक का महान भारतीय राष्ट्र के प्रति एक अमूल्य योगदान होगा, और उनके इस योगदान को कृतज्ञ राष्ट्र कभी नहीं भूलेगा।
    🙏🙏

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  6. शानदार, तथ्यपूर्ण एवं सारगर्भित जानकारी सर चाणक्य या विष्णुगुप्त या कौटिल्य की जानकारी का मूल स्रोत कौटिल्य का अर्थशास्त्र सिंहली कल्पनिक बौद्ध साहित्य महावंश तथा विशाखादत की नाटक मुद्राराक्षस ही है। इसके अलावा कोई चाणक्य के जानकारी का कोई स्रोत नहीं है।

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  7. My honest suggestion is that you should start your YouTube channel and projecting these thought provoking insights on Indian History or any other thoughts of wisdom.. These days youngester are more inclined to consuming YouTube contents rather than reading books and articles. Nevertheless as always perfect commentary.

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