बुधवार, 14 जून 2023

हम इतिहास निर्माता नहीं हैं, बल्कि हम इतिहास द्वारा निर्मित है|

हम इतिहास निर्माता नहीं हैं, बल्कि हम इतिहास द्वारा निर्मित है| इस गंभीर कथन के विश्लेषण एवं निष्कर्षण के लिए हमें सबसे पहले ‘इतिहास’ को परिभाषित करना चाहिए| इससे ही हम इतिहास की अवधारणा का सम्यक विशेषण कर सकेंगे और उपरोक्त सन्दर्भ में इसका समीक्षात्मक मूल्याङ्कन भी कर सकेंगे| इसी विधि से हम इस कथन की सत्यता की जांच कर सकेंगे और सत्य के करीब पहुँच सकेंगे|

‘इतिहास’ क्या है? परंपरागत रूप में यानि घिसे पिटे स्वरुप में इतिहास बीती हुई घटनाओं का क्रमिक ब्यौरा है| परन्तु जब इसका समेकित एवं व्यापक परिभाषा देखते हैं, तो इसकी गहराई एवं व्यापकता समझ में आती है| सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूपांतरण का क्रमिक तथा व्यवस्थित ब्यौरा ही इतिहास है| इस तरह, इतिहास में समाज एवं उसकी संस्कृति का स्थायी एवं अग्रगामी परिवर्तन का विवरण है, जो क्रमिक भी हो और व्यवस्थित भी हो|

इसे सभ्यता एवं संस्कृति की उद्विकासीय कहानी भी कह सकते हैं| सभ्यता यदि समाजिक तंत्र यानि व्यवस्था तंत्र का ‘हार्डवेयर’ है, तो संस्कृति उस सामाजिक तंत्र का ‘सॉफ्टवेयर’ है| अर्थात सामाजिक तंत्र की दृश्य भौतिक वस्तुएं एवं सुविधाएँ ‘सभ्यता’ है, और सामाजिक तंत्र के अदृश्य विचार, मूल्य, प्रतिमान, अभिवृति, संस्कार, परम्परा, रीति रिवाज आदि ही ‘संस्कृति’ है| यानि संस्कृति एक विचार है| सभ्यता का तो उत्थान एवं पतन होता रहता है, लेकिन संस्कृति में निरन्तरता होती है, चाहे उसका स्वरुप बदलता हुआ ही क्यों नहीं हो| अर्थात संस्कृति बदल सकती है, विरूपित हो सकती है, स्थायित्व का दावा कर सकती है, लेकिन संस्कृति सदैव अपने बदलते पारितंत्र के अनुकूल बदलती रहती है|

इस तरह संस्कृति हमारे समाज का समेकित मानसिक निधि होता है| यह समाज के लम्बे काल का अनुभव, संस्कार, मूल्य, परम्परा एवं प्रतिमान का समेकन होता है| यह सब हम अपने समाज से ही सीखते हैं, जो हमें संस्कृति के रूप में सिखाती रहती है| हम पाते हैं कि हम संस्कृति के रूप में अपने विचार, मूल्य, प्रतिमान, अभिवृति, संस्कार, परम्परा, रीति रिवाज आदि निश्चित करते हैं, ढालते हैं एवं उसे संचालित करते हैं| अर्थात हम वैचारिक यानि मानसिक स्तर पर अपने संस्कृति के अनुरूप बनते हैं|

इस तरह हमारी संस्कृति ही हमें एक पशुवत मानव से एक संस्कारित मनुष्य बनाती है, जो हमारी बौद्धिकता की पहचान भी है| हमारी पहचान आज एक बौद्धिक मानव, एक संस्कारित मानव, एवं एक सभ्य सामाजिक मानव के रूप में है, यानि आज जो कुछ भी हैं, हम अपनी संस्कृति के कारण है| यह संस्कृति किसी को भी सामाजिक विरासत के रूप में मिलती है, यानि उस सांस्कृतिक समाज के सदस्य होने के कारण ही मिलती है| इस संस्कृति के अभाव  में ही कोई होमो सेपियन्स “मोगली’ बन जाता है और कोई अरस्तु बन जाता है|

सामाजिक तंत्र को संचालित, नियंत्रित, नियमित एवं प्रभावित करने वाली ‘साफ्टवेयर’ के रूप में महत्वपूर्ण संस्कृति हमारे ‘इतिहास बोध’ से निर्मित होती है| यह इतिहास बोध हमारी अपने इतिहास के प्रति समझ है, जिसे हम समझते एवं स्वीकार कर अपनाते है| चूँकि संस्कृति अदृश्य रह कर अचेतन स्तर पर मानव एवं समाज को संचालित करती रहती है, इसीलिए कोई भी यथास्थितिवादी व्यवस्था या तंत्र या शासन इसी संस्कृति को अपने अनुकूल बनाये रखने या उसे बदलने के लिए ही इतिहास को बदलता है| इसीलिए प्रसिद्ध लेखक जार्ज ऑरवेल ने कहा था कि, “जो इतिहास पर नियंत्रण रखता है, वह वर्तमान और भविष्य को भी नियंत्रित करता है”|इस तरह इतिहास संस्कृति के रूप में हमारा ही निर्माण करता है। 

लेकिन एक व्यक्ति की भूमिका भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूपांतरण में होती है, यानि एक व्यक्ति भी इतिहास की धारा को प्रभावित भी करता है| हमें किसी व्यक्ति के ‘तितली प्रभाव’ यानि “Butter Fly Effects” को नहीं भूलना चाहिए, जो परिवर्तन का एक नया दौर शुरू कर देता है| वह एक ‘उत्प्रेरक’ यानि एक Catalyst की भूमिका भी निभा जाता है| बुद्ध, मार्क्स, अल्बर्ट आइन्स्टीन, सिगमण्ड फ्रायड, आदि अनेको नाम हैं, जिन्होंने इतिहास की धाराओं को प्रभावित किया है| 

हालाँकि आधुनिक एवं वैज्ञानिक इतिहासकारों का मानना है कि इतिहास की वास्तविक निर्माण आर्थिक शक्तियां ही करती है, यानि ऐतिहासिक शक्तियां ही करती है, और इनमे व्यक्ति विशेष का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता है| ऐतिहासिक शक्तियों में उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग के साधन एवं शक्तियों के अन्तर्सम्बन्ध शामिल हैं| इस तरह स्पष्ट है कि एक इतिहास के निर्माण में एक व्यक्ति के रूप में हमारी भूमिका नहीं होती है, और शायद इसीलिए अब इतिहास की स्तरीय पुस्तकों से व्यक्ति विशेष का नाम विलुप्त होता जा रहा है|

अत: हम स्वीकार कर सकते हैं कि हम इतिहास निर्माता नहीं हैं, बल्कि हम इतिहास द्वारा निर्मित है| इसे इसी कारण सत्यता के करीब मान सकते है|

आचार्य निरंजन सिन्हा

(यह निबंध बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा वर्ष 2023 में आयोजित मुख्य परीक्षा में निबंध पत्र का निबंध है, जिसमें इस एक निबंध के लिए 100 अंक निधारित है।) 

 

 

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