शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

आज बुद्ध क्यों?

“आज बुद्ध क्यों?” यह प्रश्न हम सब के मन में हमेशा कौंधता रहता है| आज विज्ञान (Science) का युग है, वैज्ञानिकता (Scientism) का युग है| फिर यह प्रश्न आता है कि इतिहास के एक अतीत का, एक विरासत का आज के विज्ञान और वैज्ञानिकता से क्या मतलब है? बुद्ध के नाम इतनी ज्ञान की बातें हैं कि यह भी प्रश्न स्वाभाविक है कि बुद्ध एक व्यक्ति (Individual) थे या एक संस्था (Institution) थे? क्या आज भी बुद्ध विज्ञान, सामाजिक विज्ञान (Social Science), मानविकी (Humanities) और जीवन दर्शन में सांदर्भिक हैं, यानि उपयोगी और महत्वपूर्ण हैं? इसका उत्तर है – हां, बुद्ध आज भी महत्वपूर्ण मार्ग दर्शक (Guide) हैं, महत्वपूर्ण हैं, उपयोगी हैं, और सांदर्भिक (Relevant) भी हैं|

विज्ञान और वैज्ञानिकता में हर बात या विचार या व्यवहार निश्चितया सम्यक तथ्य (Fact), तर्क (Logic), साक्ष्य (Evidence), विश्लेषण (Analysis) एवं विवेक (Rational) पर आधारित होता है| अन्यथा इसके किसी भी एक तत्व के अभाव में हर बात या विचार या व्यवहार बकवास मानी जाती है| आज़ इसी वैज्ञानिकता के कारण ही यह पश्चिम में लोकप्रिय होता जा रहा है। आज हर कोई हर बात में, हर विचार में, हर व्यवहार में, हर विषय में, हर सन्दर्भ में, और हर प्रसंग में विज्ञान एवं वैज्ञानिकता खोजता है, तलाशता है, देखता है| दरअसल बुद्ध उन्हीं लोगो के लिए है. जिनको अपने जीवन में, समाज में, और हर क्षेत्र में विज्ञान एवं वैज्ञानिकता की जरुरत है| बुद्ध की शिक्षाओं (Teachings) एवं दर्शन (Philosophy) में विज्ञान एवं वैज्ञानिकता का ही अवलोकन किया जाना चाहिए, गंभीर वैज्ञानिक सिद्धांत को ही रेखांकित किया जाना चाहिए| यह सब बुद्ध की शिक्षाओं में है| दरअसल बुद्ध एक संस्था थे, और गोतम बुद्ध उस परम्परा में 28वें ‘बुद्ध”थे| ‘विशिष्ट’ (Specific), ‘उत्कृष्ट’ (Excellent) एवं 'स्तरीय’ (Up to Level) बुद्धि धारण करने वाले ही “बुद्ध” घोषित हुए|   

आज हमें जीवन के हर क्षेत्र में वृद्धि (Growth) तो दिखती है, परन्तु क्या हम उसे विकास (Development) या प्रगति (Progress) कह सकते हैं? जीवन में वृद्धि तो है, परन्तु उतनी ही अशांति, असंतोष, तनाव, परेशानी एवं अवसाद (Depression) भी है| इन सबों के साथ कलह (आन्तरिक एवं बाह्य संघर्ष) भी व्यक्तिगत जीवन में, पारिवारिक जीवन में, सामूहिक जीवन में, सामाजिक जीवन में एवं वैश्विक जीवन में व्याप्त एवं गंभीर है| इसकी आवश्यकता आज़ के युवा वर्ग को सबसे ज्यादा हो गया है। आज लोगो को जीवन की सार्थकता एवं मकसद की तलाश है, पर यह समझ भी सभी लोगों में अवचेतन (Sub Consciousness) एवं अचेतन (Un Consciousness) स्तर पर ही है, चेतन अवस्था में इसे समझने वाले तो नगण्य ही हैं| 

लोग अपने जीवन मूल्यों (Values of Life) को समझना चाह रहे है और उसे स्थापित भी करना चाह रहे हैं, पर उन्हें यह समझ में नहीं आता है, कि उन्हें क्या और कैसे करना चाहिए? यहां बुद्ध पूरी वैज्ञानिकता और मानवता के साथ इसके व्यवहारिक समाधान के लिए आष्टांगिक मार्ग के साथ उपस्थित हैं। ऐसे ही तलाश कर रहे भोले भाले लोगों को पाखंडी तथाकथित धर्म गुरुओं के झांसे में आना एवं बरबाद होना पड़ता है| ऐसी कहानियां विश्व में भरी पड़ी है और आप भी अपने आस पास इसे आसानी से देख सकते हैं| ऐसी स्थिति में समाज के प्रबुद्ध जनों को बुद्ध से ही एकमात्र आशा है. जो ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास एवं कर्मकांड से मुक्त हो, और विज्ञान पर आधारित हो|

समाज में, और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय मूल्यों का पतन, मानवीय गरिमा (Human Dignity) का खुलेआम खण्डन, सामाजिक असामनता आदि को देख कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति व्यथित हो जाता है| जीवन में दुःख, अवसाद, अशांति, तनाव और कष्ट का समाधान नहीं दिखता है| लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इन सबों का क्या निदान है? कैसे इन सबों पर आसानी से विजय यानि फतह पाया जा सकता है? बुद्ध ने उपाय तो बताया था, परन्तु वह भी आज एक परंपरागत धर्म के रूप में ही प्रस्तुत है| आज के लोग विज्ञान में समाधान चाहते हैं, तथाकथित पाखंडियों के द्वारा दिए गए समाधान से बचना चाहते है| कोई भी समाधान समझने में सरल हो, करने में सहज हो, अपनाने में साधारण हो, जीवन में व्यावहारिक हो, और निश्चितया तर्क, साक्ष्य, विश्लेषण एवं विज्ञान से समर्थित हो|

‘सांस्कृतिक सामन्तवादियों’ ने जाने में या अनजाने में इनकी शिक्षाओं एवं दर्शन को ऐसे विरूपित  (Distortion) कर दिया है, कि आज यह भी अन्धविश्वास एवं पाखण्ड से भर गया है| इनकी शिक्षाओं को आज भी ऐसे प्रस्तुत किया जाता है, मानो यह बुद्ध की वैज्ञानिक एवं सामाजिक विज्ञान की शिक्षा नहीं होकर, बुद्ध द्वारा स्थापित कोई आज की परंपरागत धार्मिक शिक्षा हो, यानि साम्प्रदायिक चेतना हो| इनकी शिक्षाओं को प्रचलित धर्म एवं बुद्ध को ईश्वर बना कर इसे अन्य धर्मों की श्रेणी में ला दिया है| समाज के प्रबुद्ध जानना चाहते हैं कि बुद्ध क्यों एक वैश्विक गुरु बन सके? समाज के प्रत्येक समझदार व्यक्ति बुद्ध की वैज्ञानिक एवं सामाजिक विज्ञान की शिक्षाओं को जानना चाहता है| हमें इसी सम्बन्ध में प्रयास भी करना है|

आज बुद्ध के नादान अनुयायी इस प्रचार से बहुत खुश हो जाते हैं, कि बौद्ध धर्म को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म मान लिया गया है| मैं नहीं जानता कि इस दावे में कितनी सच्चाई है| यदि यह दावा सही है, अर्थात इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म मान ही लिया गया है, तो यह बौद्ध दर्शन एवं वैज्ञानिक शिक्षा के विरुद्ध एक गहरा एवं गंभीर षड़्यंत्र है| बुद्ध की शिक्षाएँ एवं दर्शन तो शुद्ध विज्ञान है, सफल सामाजिक जीवन के प्रबंधन का तकनीक है, यह तो ‘धम्म’ है, घिसी पिटी परम्परागत ‘धर्म’ या सम्प्रदाय नहीं| किसी के द्वारा ‘धम्म’ को ‘धर्म’ के भावार्थ में अनुवाद कर और दोनों को एक दुसरे का पर्यायवाची बनाकर एक गहरा एवं खतरनाक बौद्धिक षड़्यंत्र किया गया है| इसीलिए मैं ‘धम्म’ और ‘धर्म’ को एक ही मानने के बावजूद भी बुद्ध की शिक्षाओं के लिए आज के परिवेश में ;धम्म’ का ही प्रयोग एवं उपयोग करता हूँ, इनके लिए ‘धर्म’ शब्द का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए|

बुद्ध की शिक्षाओं एवं दर्शन को सर्वश्रेष्ठ धर्म बता कर इसे पहले तथाकथित परम्परागत धर्म के श्रेणी में लाया जाता है या लाया गया है, यानि इसे “तर्क, साक्ष्य, विश्लेषण एवं विवेकशीलता की वैज्ञानिकता” के सर्वोच्च स्तर से उतार कर “आस्था (Devotion) के धर्म” के निम्न एवं काल्पनिक स्तर पर लाया गया| वही धर्म, जिसे महान दार्शनिक एवं सामाजिक वैज्ञानिक कार्ल मार्क्स ने अफीम से तुलना कर समाज के लिए घातक बताया था| एक बार जब इसे सर्वश्रेष्ठ धर्म बना दिया गया, मतलब यह कि यह वैज्ञानिकता के स्तर यानि श्रेणी में नहीं रहा और यह ‘आस्था के धर्म’ के श्रेणी में आ गया| अब यह वैसा ही धर्म हो गया, जैसा अन्य अंधविश्वास, पाखण्ड एवं कर्मकांड से भरा दूसरा धर्म है| अब इसमें भी पुरोहितवाद अपने विशिष्ट तरीकों से प्रभाव फैलाने के लिए पाखंड स्थापित कर सकता है| बुद्ध की शिक्षाओं पर धर्म का ठप्पा लगने से ऐसे लोगो का तो खुश होना स्वाभाविक ही है|

डा० भीमराव आम्बेडकर ने भी लिखा है कि कोई भी अपना धर्म नहीं बदलना चाहता, और बदलना भी नहीं चाहिए, क्योंकि धर्म किसी की आस्था का विषय होता है| और इसीलिए किसी की आस्था एवं धार्मिक विश्वास में किसी भी प्रकार का कोई भी संशोधन, अतिक्रमण यानि हस्तक्षेप होना भी नहीं चाहिए| इसी कारण किसी दुसरे धर्मावलम्बी के धर्म को बदलने की कोशिश एक घृणात्मक कार्य या घटिया कार्य की श्रेणी में माना जाता है| इसे धर्म की श्रेणी में लाने का एक दूसरा अर्थ यह भी निकालता है, कि चूँकि यह भी एक धर्म ही है, और इसीलिए इसे भी एक धर्म की ही तरह अपने व्यवहार एवं कर्तव्य को मर्यादा में नियंत्रित करने चाहिए और दुसरे धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए| सभी धर्म वाले अपने – अपने धर्म को देखें और किसी भी दुसरे के धर्म में हस्तक्षेप नहीं करें अर्थात सभी मठाधीशों का धार्मिक साम्राज्य अखंड बना रहे| मैं फिर स्पष्ट करूं कि बुद्ध की शिक्षाएं धर्म है ही नहीं, और इसीलिए यह किसी धर्म में कोई हस्तक्षेप करता ही नहीं है|

बुद्ध की शिक्षाओं को अज्ञानी एवं नादान लोग ही परम्परागत धर्म का स्वरुप देते हैं, और इसे परम्परागत धर्म मानते हैं| हाँ, कुछ भारतीयों की सांस्कृतिक विश्लेषण अवस्था एवं समझ दयनीय है, और वे परम्परागत धर्म के बिना जीवित भी नहीं रह सकते| “चूँकि सांस्कृतिक विश्लेषण क्षमता के अभाव में पिछड़ा समाज कतिपय छोटे अवधि में रूपान्तरित नहीं हो सकता और उनका बदलना या रुपान्तरित होना भी बहुत से कारणों से जरुरी हो, तो ऐसे समाज को विकल्पहीनता की स्थिति में इसे धर्म के रूप में उपयोग कर समाज के कल्याण किए जाने के ऐतिहासिक उदाहरण (14 अक्टूबर 1956 का दीक्षा समारोह) भी प्रेरणादायक है|” इसे ध्यान से और फिर से पढ़ें| बुद्ध की शिक्षाओं को किसी भी अन्य धर्म से कोई आपत्ति भी नहीं है| वास्तव में जब बुद्ध का आगमन हुआ था, उस समय ऐसा कोई तथाकथित दूसरा धर्म (वर्तमान स्वरुप में) अस्तित्व में था ही नहीं था, कि जिस पर उन्होंने किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दिया हो|

आज भारत में बुद्ध के अनुयायिओं को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है| पहला, जिन्हें परम्परागत धर्म में मानवीय गरिमा के अनुरूप सम्मान नहीं था, इसलिए विकल्पहीनता की स्थिति में इनके अनुयायी बने| दुसरा, जिन्होंने आज की जाति व्यवस्था को ही सही मानकर बुद्ध को भी जाति की कथा में शामिल कर इसे स्वीकार कर लिया, और उनके समान जाति के नाम पर उनके अनुयायी हो गये| ध्यान रहे कि प्राचीन काल में वर्ण और जाति की व्यवस्था ही नहीं थी| तीसरे श्रेणी में वे आते हैं, जिन्होंने उनकी वैज्ञानिकता के कारण ही उन्हें अपना मार्गदर्शक माना है| भारत में ऐसे अनुयायी नगण्य है| बाकी अनुयायी उन्हें ईश्वर मान कर उनसे कृपा की उम्मीद करते हैं, और उन्हें मार्गदर्शक नहीं समझते| ऐसे अनुयायी ‘आत्मा’ और ‘पुनर्जन्म’ भी मानते हैं|

बुद्ध की उपलब्धियों में स्वयं (Self) का अवलोकन, स्वयं का नियंत्रण एवं स्वयं पर केन्द्रण करने की निष्पक्ष, सरल, सहज, व्यक्तिगत, एवं वैज्ञानिक विधि की स्थापना है, जिसे "विपस्सना" (Vipassana) कहते हैं। इसे सभी को जानना और समझना चाहिए|दुःख क्या है? जब हमारी आन्तरिक इच्छाएं अपने बाह्य जगत के अनुरूप नहीं हो सकती, दुःख होता है। यहीं दुःख का समाधान है। हमें अपने को नियंत्रित कर अपने को बाह्य जगत के अनुरूप करना ही दुःख का समाधान है, जिसे दूसरे शब्दों में "आष्टांगिक मार्ग" भी कहते हैं। यही दुःख की क्रियाविधि (Mechanism) है और यही इसका विज्ञान भी है। जब आपको स्वयं का अवलोकन (विपस्सना) करना आ गया, तो आपकी लगभग सारी समस्याएं समाप्त हो गयी| 

आज सामाजिक बुद्धिमता (Social Intelligence) एवं भावनात्मक बुद्धिमता (Emotional Intelligence) के बिना साधारण यानि संज्ञानात्मक बुद्धिमता (General or Cognitive Intelligence) भी प्रभावोत्पादक नहीं माना जाता है| आज सामाजिक बुद्धिमता को ही सफलता का सही विज्ञान बताया जा रहा है| बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग यही है, अर्थात आष्टांगिक मार्ग अपने में उपरोक्त सभी तीनों प्रकार के बुद्धिमता (संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक) को समेटे हुए है|

आप अपना कोई भी उत्पाद (Product), चाहे उसका स्वरुप वस्तु हों, सेवा हो, संपत्ति हो, व्यक्ति हो, स्थान हो, नीति हो, कार्यक्रम हो, विचार हो या आदर्श हो, बिना मार्केटिंग की समझ के आप इस संसार में सफल रूप में स्थापित नहीं हो सकते| बुद्ध का मार्केटिंग सिद्धांत विश्व का पहला सफल और व्यवहारिक मार्केटिंग (विपणन) सिद्धांत था और यह आज भी पूरा प्रासंगिक है, जिसे सभी सफल व्यक्ति या समाज जानना चाहेगा|

आप विज्ञान एवं वैज्ञानिकता समझे बिना इस विज्ञान के युग में ढंग से एक कदम भी नहीं चल सकते| बुद्ध विज्ञान एवं वैज्ञानिकता के मूल (Fundamental), मौलिक (Original), आधारभूत (Basic) एवं तर्कसंगत (Logical) अवधारणा समझाते हैं, जिससे सभी की वैज्ञानिक समझ बढ़ जाती है| बुद्ध अपने अध्यात्म में आत्म (स्वयं) को अनन्त प्रज्ञा (Infinite Intelligence) से जोड़ने एवं उसकी शक्तियों को प्राप्त करने की समझ पैदा करते है| इसे आजकल अनन्त प्रज्ञा से ज्ञान प्राप्त करना कहते हैं, जिसे ‘अंतर्ज्ञान’ या ‘आभास’ (Intuition) भी कहते हैं|

बुद्ध प्रकृति की क्रिया विधि (Mechanics of Nature) समझाते हैं| बुद्ध यह भी समझाते हैं कि समुचित न्याय (Proper Justice) कैसे विकास एवं समृद्धि को सहारा एवं समर्थन देता है| अब आप ही बताए कि यह सब जानना कैसे किसी परम्परागत धर्म में हस्तक्षेप है, या यह किसी घिसी पिटी धर्म का हिस्सा है? क्या हम बीमार (चाहे वह मानसिक ही हो) होने पर किसी चिकित्सक से उचित दवा नहीं लेते या समुचित व्यायाम नहीं करते? यह सत्य है कि इसे किसी घिसी पिटी धर्म या आस्था या विश्वास से कोई लेना देना नहीं है, यह तो शुद्ध विज्ञान है| बुद्ध की शिक्षाएँ भी तो शुद्ध विज्ञान है|

सभी वर्तमान धर्मों (जिसमे तथाकथित बौद्ध धर्म भी शामिल है, यदि यह भी परम्परागत धर्म है तो) का तथाकथित स्वरुप मध्य काल में आया| मध्य काल, जो राजनीतिक एवं सांस्कृतिक सामंतवाद के उदय के साथ ही अस्तित्व में आया, एक बड़े आर्थिक उथल- पुथल यानि बड़े आर्थिक परिवर्तन के साथ आया| यह सामाजिक रूपान्तरण उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग के साधनों एवं शक्तियों और उनके अंतर संबंधों में परिवर्तन से प्रभावित एवं निर्धारित होती है| यह आधार इतिहास की सभी कालो एवं क्षेत्रो की सटीक व्याख्या भी करती है| इसी के आधार पर बुद्ध के उदय, विकास, रूपांतरण  एवं तथाकथित अंत की भी समुचित व्याख्या कर देती है|

यह हमारा दुर्भाग्य है कि 

हम अपनी सांस्कृतिक जड़ता (Cultural Inertia) यानि 

विचारों की जड़ता (Inertia of Thoughts) के कारण 

शुद्ध विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, मानवीय मूल्यों और जीवन दर्शन को भी नहीं समझना चाहते।

 इस पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए।

आचार्य निरंजन सिन्हा 

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--- Prof (Dr) Vinay Paswan,

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Contact:  94302 88077.

2 टिप्‍पणियां:

  1. बुद्ध जयंती पर भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का वर्तमान परिपेक्ष्य में सांदर्भिकता, वैज्ञानिकता तथा उपयोगिता का अत्यंत सूक्ष्म एवं सरल विश्लेषण कर आपने एक सार्थक एवं साहसिक पहल की है। यह स्पष्ट है कि तथागत बुद्ध का दर्शन अत्यंत वैज्ञानिक,मानवोपयोगी एवं लोक कल्याणकारी है। यह प्राचीन काल में भी मंगलकारी था, आज भी मंगलकारी है और भविष्य में भी मंगलकारी होगा।आत्मावलोकन (विपसस्ना) एवं व्यक्तिगत चरित्र की शुद्धता (पंचशील तथा अष्टांगिक मार्ग) की विशिष्टता के कारण पूरे विश्व में बुद्ध धम्म की सर्वकालिक उपयोगिता बनी रहेगी।
    इतना सुन्दर, सार्थक,सरल एवं बोधगम्य आलेख प्रस्तुत करने के लिए भाई आचार्य निरंजन को हार्दिक बधाई एवं साधुवाद!

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  2. प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में बुद्धों की परंपरा में आज 28वें बुद्ध तथागत गौतम बुद्ध का जन्मदिन है।इस उपलक्ष्य में आचार्य निरंजन सिन्हा जी द्वारा प्रस्तुत उक्त आलेख बुद्ध होने के वास्तविक तात्पर्य, बुद्ध परंपरा के 'धम्म' का वास्तविक अर्थ तथा कालांतर में मध्यकालीन सामंतवादी युग(9वीं से 12वी सदी) में बुद्ध और धम्म की गौरवशाली परंपरा जिसने भारत को 'विश्व गुरू' का दर्जा प्रदान कराया, के विकृतिकरण को बहुत ही सुन्दर एवं तर्कपूर्ण ढंग से समझाया है।

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