समस्या क्या होता है? समस्या उसे कहते हैं, जो आपके विचारों, कार्यों या किसी
चीज में बाधा या रुकावट डालती है। इस तरह समस्या वह होता है, जिसका समाधान हमें ज्ञात नहीं होता है। जिन समस्याओं का समाधान हमें ज्ञात
होता है, वह समस्या ही नहीं कहलाता। समस्याओं की प्रकृति (Nature),
स्वरुप (Form), प्रकार (Types) और प्रतिरुप (Patterns) में विविधता होती है। लेकिन
समस्याओं का समाधान कैसे होता है?
समस्याओं के समाधान के लिए समस्याओं के मूल को स्पष्ट रूप से समझा
जाना चाहिए। समस्या क्या है,
क्यों है और किस स्तर पर है—इसे साफ-साफ
यथास्थिति में जानने समझने की अनिवार्यता है। इन्हें अपनी भावनाओं से अलग होकर
तथ्यात्मक रुप में देखने की आवश्यकता होती है। समस्याओं के पीछे के मूल कारणों (Root
Causes) को खोजने के लिए ‘सांस्कृतिक वर्चस्ववाद’ की अवधारणा को
समझते हुए आगे बढ़ा जाना चाहिए। बहुत सी समस्यायों का आधार विरोधियों की मंशाओं और
अवधारणाओं को नहीं समझना और उन्हीं को सही मान लेना होता है| इसे ही एन्टोनियो
ग्राम्शी का ‘सांस्कृतिक वर्चस्ववाद’ की क्रियाविधि कहते है| समस्याओं के लक्षणों
(Symptoms) पर काम नहीं कर, उसके कारणों पर काम किये जाने की
आवश्यकता होती है। एक ही समाधान पर अटकना समुचित नहीं है।
आईन्सटीन ने कहा है कि जिस चेतना स्तर ने समस्यायों को जन्म दिया है, उसी स्तर से उन समस्यायों का
समाधान नहीं किया जा सकता| कोई समस्या आज इसलिए खड़े हैं, क्योंकि आज तक किसी ने
उसका समुचित और पर्याप्त व्यवहारिक समाधान नहीं दे पाए है, या आज के लोग उसको समझ
ही नहीं पाए हैं| लोगों को ‘और’ संगठित करना, या ‘और’ ज्यादा मात्रा में काम करना
अपने को समाधान पा लेने के भ्रम में रखने का सरल और साधारण बहाना है| इसे दुबारा
पढ़ लें| आज भी यदि किसी समस्या के समाधान पाने के लिए विमर्श करने की आवश्यकता है,
तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि आज तक किसी ने उन समस्यायों का समुचित और
व्यवहारिक समाधान नहीं दे पाया है| बार बार एक ही तरह की सोच और उसके क्रियान्वयन को
दोहराने से संभवतः वही परिणाम प्राप्त होंते है, जो पहले भी प्राप्त
होते रहे हैं। इसे ही ‘बौद्धिक पागलपन’ कहते हैं| लोग क्रियान्वयन में लगे हुए
रहते हैं और उनको वही परिणाम मिलता रहता है| ऐसे ही बौद्धिकों को एन्टोनियो
ग्राम्शी ‘निर्जीव बौद्धिक’ कहते हैं|
किसी समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए किसी विचारक को देवता मान
कर पूजते रहना और उनके समाधानों को बदलते परिवेश के अनुरूप संशोधित और संवर्धित
नहीं करना भी समाधान की दिशा में ‘ठहराव’ है| ठहरे हुए पानी में भी दुर्गन्ध उठने
लगता है, जबकि बहता हुआ जल पीने योग्य रहता है| विचार सदैव जीवन्त होते हैं| यह चिन्तन की
प्रकृति में बदलाव और सचेत चिन्तन को रेखांकित करता हैं। यह स्पष्ट है कि समस्याओं
का समाधान हमारे सोचने के तरीके में बदलाव से शुरू होता है, न कि केवल हमारे कार्यों की
मात्रा घटाने बढाने से होता है। सिर्फ़ चलना या दौड़ना ही पर्याप्त नहीं होता,
बल्कि समुचित दिशा भी अनिवार्य होता है। सिर्फ दौडते रहना ही
पर्याप्त नहीं होता, बल्कि ठहरना और गहराइयों में उतरना,
समझना और उसमे बदलाव भी महत्वपूर्ण होता है। यह सब लोगों के सोचने के सामान्य
तरीके को चुनौती देता है| सामान्य प्रचलित अवधारणाओं को आधार बनाकर सामान्य
समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है, लेकिन चिरकालिक या जड़
समस्याओं का समाधान अलग और नवाचारी अवधारणाओं पर ही सम्भव हो पाता है।
आज भी दुनिया जटिल व्यक्तिगत, सांस्कृतिक, सामाजिक और वैश्विक चुनौतियों का सामना
कर रही है। वास्तविक समाधान आंतरिक परिवर्तन से शुरू होते हैं, जो विचारों, अवधारणाओं और मान्यताओं के नवाचारी
बदलाव से आता है। नए विचारों एवं अवधारणाओं पर समाधान पाने की क्रिया को ही ‘आउट –आफ
–बाक्स थिंकिंग’ (Out –of –Box Thinking) कहते हैं| इसे ही सम्युअल थामस कुहन ‘पैरेड़ाईम
शिफ्ट’ (Paradigm Shift) कहते हैं|
अधिकतर समस्याएँ आकस्मिक नहीं होतीं। वे आदतों, मान्यताओं और धारणाओं का परिणाम
होती हैं| इसीलिए इनको समय के साथ बदलकर इन निर्णयों को आकार दिया जा सकता हैं। जब
इन आदतों, मान्यताओं और धारणाओं के प्रतिरुप (पैटर्न)
अपरिवर्तित रहते हैं, तो समस्याएं अक्सर अलग-अलग रूपों में
वापस आ जाती हैं। बहुसंख्यक लोग अपनी परंपरागत आदतों, मान्यताओं
और धारणाओं को बदलना नहीं चाहते हैं और उनका समाधान भी चाहते हो, और इसीलिए असफल
रहते हैं|
किसी के ‘चेतना
का स्तर’ यह दर्शाता है कि कोई व्यक्ति किसी स्थिति को कितनी गहराई और व्यापकता के
साथ साथ कितनी सूक्षमता से समझता है। इसमें जागरूकता, मूल्य,
भावनात्मक परिपक्वता और सीखने की तत्परता शामिल होती है। इन
क्षेत्रों में विकास के बिना, समाधान केवल थोड़े समय के लिए
ही कारगर होता हैं। किसी समस्या को हल करने के लिए केवल अधिक प्रयास करना ही काफी
नहीं है, बल्कि अलग तरीके से सोचना भी जरूरी है। यह भी ध्यान
में रखना है कि पुरानी सोच को दोहराने से असफलता ही मिलती है| लोग अक्सर चुनौतियों का सामना करने के
लिए परिचित तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि वे इसमें सुरक्षित और सहज महसूस
करते हैं। सरल और परम्परागत तरीके आरामदायक और सुविधाजनक हो सकती है, लेकिन यह प्रगति को सीमित कर सकता है। पुरानी सोच किसी समस्या के अस्तित्व
का कारण तो समझा सकती है, लेकिन हमेशा उसे दूर नहीं कर सकती।
लोगों को बहुत सी समस्यायों के समाधान संघर्ष करने में दिखता होता
है| संघर्ष से समस्यायों को सुलझाने के लिए नियंत्रण या आधिपत्य का प्रयोग अक्सर ‘और’
अधिक प्रतिरोध एवं उलझन उत्पन्न करता है। इसके संघर्ष –रहित और सामानजनक समाधान के
लिए परंपरागत आदतों, मान्यताओं
और अवधारणाओं को पूरी तरह बदल कर पाया जा सकता है| गलतियों को सुधारने के लिए
जल्दबाजी का प्रयोग अधिक त्रुटियों को जन्म दे सकता है। अपने चिन्तन में बदलाव हमें
धीमे चलने और कार्यों के पीछे की सोच पर सवाल उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है। चेतना
का उच्च स्तर लोगों को प्रतिक्रिया देने के बजाय सुनने, निर्णय
लेने के बजाय समझने और प्रतिस्पर्धा करने के बजाय सहयोग करने की क्षमता प्रदान
करता है। यह मानसिकता रचनात्मक और शांतिपूर्ण समाधानों के द्वार को खोलती है। आदतों,
मान्यताओं या भावनात्मक प्रतिक्रियाओं में बदलाव से बेहतर परिणाम
मिलते हैं। परिस्थितियों या लोगों को दोष देने के बजाय ऐतिहासिक जड़ों को समझने के
लिए बाजार की शक्तियों और उनकी क्रियाविधियों को समझना समाधान को वैज्ञानिक आधार
देता है| यह सब आत्म-चिन्तन को प्रोत्साहित करता है।
अच्छे नेता बदलते हुए हालातों को वैज्ञानिक ढंग से समझते हुए होते
हैं। वे पुरानी अवधारणाओं और पुरानी प्रणालियों पर सवाल उठाते हैं और नए विचारों
के प्रति खुले रहते हैं। यह मानसिकता विश्वास और दीर्घकालिक सफलता का आधार बनती
है। आधुनिक दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन कई समस्याएँ अनसुलझी ही रह गई हैं। किसी समाधान के लिए केवल
गति ही पर्याप्त नहीं है। नए विचारों के बिना प्रगति रुकी हुई सी महसूस हो सकती
है। किसी को मात्र दोषारोपण करना समस्याओं का समाधान नहीं देता है। बिना दोष
निर्धारण के भी समस्याओं का समाधान किया जाता है। इसे ‘बड़ी लकीर’ खींचना कहते हैं|
परिवर्तन भीतर से शुरू होता है। इसका शाश्वत महत्व केवल प्रेरणा देने की क्षमता
में ही नहीं, बल्कि चिन्तन को निर्देशित करने की क्षमता में
भी निहित है।
समस्याएं केवल बाहरी चुनौतियां नहीं हैं, बल्कि आंतरिक चिन्तन का प्रतिबिंब
हैं। सच्चे समाधानों के लिए जागरूकता, ज्ञान और दृष्टिकोण
बदलने का साहस आवश्यक है। जब सोच का विस्तार होता है, तो समाधान
की संभावनाएं भी बढ़ती हैं।
आचार्य प्रवर निरंजन जी
अध्यक्ष, भारतीय
अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|
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