मानव इतिहास में यह एक तथ्य है, और इसीलिए यह अकाट्य
सत्य है कि बहुसंख्यक कभी भी शासक नहीं होते, अपितु शासक सदैव अल्पसंख्यक ही रहते हैं, यानि अल्प संख्या में ही रहते हैं| चूँकि
शासक बहुत चतुर होता है, अर्थात चेतना के उच्चतम स्तर के होते हैं, इसीलिए शासक अदृश्य
अवस्था में भी होते हैं| अधिकांश लोग अपनी साधारण आँखों से ही देख सकते हैं, इसलिए
उन्हें ‘कठपुतली शासक’ भी ‘वास्तविक शासक’ की ही तरह दिखते रहते हैं, जबकि उस ‘कठपुतली’
का सञ्चालन सूत्र कहीं और होता है, या हो सकता है| आधुनिक जटिल अर्थव्यवस्था वाले
समाज में तो ‘वास्तविक शासक’ और उसकी राष्ट्रयिता की पहचान कर पाना बहुत कठिन होता
है, लेकिन ‘वास्तविक शासक’ सदैव ही अल्प संख्या में ही होंगे, चाहे आप उन्हें अपनी
सुविधा से जैसे भी वर्गीकृत करें| यानि उन्हें किसी भी वर्ग में रखें| लेकिन वे
अल्प संख्या में क्यों होते है?
कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि कोई अपनी संख्या या शक्ति बल के आधार पर ‘शासक’ हो सकता है, तो वे स्पष्टतया भ्रम में होते हैं| जंगलों में हिरण या भैसें कभी भी संख्या बल के आधार पर शासक नहीं हुए हैं| शासक सदैव ही चेतनता के सर्वोच्च स्तर के अवस्था के लोग होते हैं, यानि उनकी चिंतन का स्तर सर्वोच्च, उत्कृष्ट, विशिष्ट और अद्वितीय होता है| इस अवस्था में ‘आलोचनात्मक चिंतन’ (Critical Thinking) एवं ‘आउट आफ बाक्स चिंतन’ (Out of Box Thinking) वाले लोग ही होते हैं| इसीलिए ‘राजनीति’ शासन की वह कला होती है, जिसकी ‘नीतियों’ (Policies) का ‘राज’ (Secracy) कोई नहीं जान, समझ पाता हो, यानि नीतियाँ राजपूर्ण होती है|
सामान्यत: लोग (अर्थ) व्यवस्था के प्रारंभिक
तीन स्तर – प्राथमिक, द्वितीयक, एवं तृतीयक प्रक्षेत्र (Sector) को जानते, समझते
और अमल में लाते हैं| ये सामान्य लोग कभी कभी ‘चतुर्थ सेक्टर’ (Quaternary Sector)
को तो जानते होते हैं, लेकिन ‘पंचम सेक्टर’ (Quinary Sector) को तो जानते ही नहीं
होते हैं, और ‘शासक’ बनने का दिवास्वप्न ही देखते देखते सदियों गुजार देते हैं| अर्थव्यवस्था के ‘चतुर्थ
सेक्टर’ में ‘ज्ञान का सृजन’ होता है, और ‘पंचम सेक्टर’ में शासन, संस्कृति, वैचारिकी
सहित अन्य नीतियों का निर्माण किया जाता है| जब किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के
दृष्टि में ये चौथा और पांचवाँ सेक्टर का विचार ही नहीं होता है, तो वे शासक बनने के
योग्य कैसे हो सकते हैं| वैसे कोई भी किसी अन्य को या स्वयं को भ्रम में रखकर
आनन्दित होना चाहता है, तो यह स्वतन्त्रता सभी को प्राप्त है|
मतलब किसी को भी शासक बनना हो, तो उसका एक ही
और एकमात्र शर्त है कि वह अपनी चेतनता को सर्वोच्च स्तर की अवस्था तक विकसित करे,
उन्नत करे, समृद्ध करे, यानि उनके चिंतन का स्तर सर्वोच्च, उत्कृष्ट, विशिष्ट और
अद्वितीय अवश्य ही होना चाहिए| इसके आलावा अन्य कोई दूसरा रास्ता महज एक राजनीति
है, बहलावा है, छलावा है, और दूसरों को महज मूर्ख बनाना है, या हो सकता है कि वह
खुद को भी मूर्ख ही बना रहा हो| अर्थात यदि किसी व्यक्ति को, समाज को, वर्ग को,
संस्कृति को, और राष्ट्र को ‘वास्तविक शासक’ बनना है, तो वह अपना और तथाकथित अपने समाज,
संस्कृति, वर्ग एवं राष्ट्र की चेतना को समृद्ध, विकसित करे| आधुनिक स्वतंत्र भारत
के उदय के दो वर्ष बाद ही वर्तमान चीन का उदय हुआ, और आज चीन विश्व की सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था एवं सबसे शक्तिशाली व्यवस्था को भी नियंत्रित करता हुआ है| इसका एक
और एकमात्र कोई मूल कारण है, तो वह उसकी चेतनता का विकास करना ही है| लेकिन हमलोग
गोबर में डूब जाने को ही अपनी चेतनता की समृद्धि समझते हैं|
यदि आप किसी भी व्यक्ति की चेतनता की संरचना और
व्यवस्था को समझना चाहते हैं, तो आपको गंभीरता से इस पैरा को समझना होगा| चेतना के
अस्तित्व के कारण ही कोई जीवित है, कोई पशु है, या पशु (पशु सिर्फ चार पैरो पर ही
नहीं होता) के समतुल्य है, या कोई ‘मानव’ भी है| चेतना के स्तर के अनुसार आप मानव
का, समाज का, संस्कृति का, वर्ग का और राष्ट्र का स्तरीकरण यानि वर्गीकरण कर सकते
हैं| तो आप किसी की चेतनता की संरचना पर ध्यान दें| कोई भी व्यक्ति साधारणतया तीन
संरचना में अस्तित्व में होता है, और वह तीन तरह की सामग्री से निर्मित रहता है|
पहला स्तर मुख्यतया ‘पदार्थ’ (Matter) से निर्मित होता है और इसमें उसका ‘शरीर’ (Body)
एवं ‘मस्तिष्क’ (Brain) आता है| दूसरा उच्चतर स्तर ‘ऊर्जा’ (Energy) की एक विशिष्ट
विन्यास की संरचना होता है, और इसमें उसका ‘मन’ (Mind) और उसका ‘आत्म’ (Spirit)
आता है| तीसरा एवं सर्वोच्च स्तर 'बल - क्षेत्र' यानि ‘क्वांटम फील्ड’ ('Quantam Field' - A 'force field', that produce 'particle' n 'energy') (कृपया क्वांटम
फील्ड सिद्धांत का अवलोकन किया जा सकता है) की संरचना होती है, और इसे ‘अनन्त
प्रज्ञा’ (Infinite Intelligence) कहा जाता है| किसी का ‘मस्तिष्क’ (Brain) उसके
शरीर एवं ‘मन’ (Mind) तथा ‘आत्म’ (Spirit) के बीच ‘मोडयुलेटर’ (Modulator) का
कार्य करता है, जो उसकी भावनाओं, विचारों एवं व्यवहारों में समन्वय करता हुआ ‘अभिव्यक्त’
होता है| किसी का ‘मन’ (Mind) उसके ‘विचारों’ (Thoughts) का उत्पादन, नियमन,
सञ्चालन आदि करता है, और किसी का ‘आत्म’ (Spirit) उसकी ‘भावनाओं’ (Emotions) का
उत्पादन, नियमन, सञ्चालन आदि करता है| किसी का ‘आत्म’ उसके ‘मन’ एवं ‘अनन्त
प्रज्ञा’ को सम्बन्धित करता है| ‘अनन्त प्रज्ञा’ ही ‘नवाचार’ (Innovation) एवं ‘अंतर्ज्ञान’
यानि ‘आभास’ (Intuition) देता है| इसी संकल्पना के आधार पर नोबल पुरस्कार विजेता
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डेनियल कुहनमन ने Thinking Fast and Slow लिखा|
अत: जिसके पास सिर्फ शरीर एवं मस्तिष्क की ही चेतना
होता है, उसका चिंतन स्तर निम्नतर होता है, यानि उनके सोचने, समझने एवं
परिणामस्वरुप उनकी भावनाओं, विचारों एवं व्यवहारों की अभिव्यक्ति करने का स्तर
निम्नतर होता है| ऐसे लोग सदैव ही ‘शासित’ होते हैं, यानि ‘चेतनता का संवर्धन करना’
ही ‘शोषित’ होने से मुक्ति का साधन हो सकता है, और अन्य उपागम (Approach) मात्र
छलावा है| जिन लोगों के पास इन दोनों निम्नतर स्तर के अतिरिक्त ‘मन’ एवं ‘आत्म’
स्तर की चेतना होता है, यानि इसके ‘सामान्य ज्ञानेन्द्रियों’ के स्तर के चेतना के अतिरिक्त
‘मानसिक चिंतन’ होता है, वे लोग प्रथम निम्नतर स्तर के लोग से बेहतर होते हैं| ऐसे
द्वितीय स्तर के लोग शासक के उपकरण होते हैं, यानि नौकरशाही के स्तम्भ या औजार या
साधन होते हैं, हो सकते हैं, लेकिन शासक नहीं होते हैं| शासक वर्ग में, यानि
चेतनता के सर्वोच्च वर्ग के लोग इन दोनों निम्नतर स्तर के अतिरिक्त अपनी पहुँच ‘अनन्त
प्रज्ञा’ तक रखते हैं| ऐसे लोग अपनी ‘आत्म’ (यह Spirit है, और इसे आत्मा से भिन्न
समझा जाय) को ‘अधि’ (यानि ऊपर, अर्थात अनन्त प्रज्ञा) से जोड़ लेते हैं, और इन्हें
ही “आध्यात्मिक” (Spiritual) कहते हैं, वैसे मैं ‘बाजारू’ आध्यात्मिकता की बात
नहीं कर रहा हूँ| ऐसे ही लोग इस धरती पर के सर्वश्र्ष्ट चेतनशील व्यक्ति होते हैं|
स्पष्टतया ऐसे लोग ही शासक होते हैं|
वैसे तो अधिकतर लोग अपनी सामान्य चेतना, यानि
अपनी सामान्य ज्ञानेन्द्रियों के आधार पर ‘शासक’ एवं ‘शासित’ समूह को अपनी सुविधा
के अनुसार ‘रंग’, ‘प्रजाति’, ‘जाति’, ‘कास्ट’, ‘’संस्कृति’, ‘सम्प्रदाय’ आदि के
आधार पर ऐसे वर्गीकृत करते हैं, ताकि अपने को ‘शोषक’ या ‘शासक’ वर्ग में रखकर या ‘शोषित’
या ‘शासित’ वर्ग में रखकर अपने को आनन्दित समझें, या उत्पीडित समझें, वह पूर्णतया
सवतंत्र है|
इसीलिए बहुसंख्यक कभी भी शासक नहीं होते हैं, और अल्पसंख्यक ही सदैव शासक होते हैं, क्योंकि चेतनता की उत्कृष्टता बहुत ही कम संख्या में लोग विकसित कर पाते हैं| आप भी इस पर गहनता से विचार करें|
आचार्य
प्रवर निरंजन जी
अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति
संवर्धन संस्थान|
अत्यंत तार्किक एवं सकारात्मक प्रस्तुति।
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