उपरोक्त
शीर्षक में ‘अर्थ’ का दो बार प्रयोग किया गया
है, जिसमे पहले ‘अर्थ’ का मतलब ही ‘मतलब’ (Meaning) होता है, और दूसरे
अन्तिम ‘अर्थ’ का मतलब धन/ सम्पत्ति (Wealth) होता है| यानि इन दोनों शब्दों की उत्पत्ति एक ही
भाव से, एक ही उद्देश्य से एवं एक ही साथ हुआ है, यानि इन दोनों में बहुत ही गहरा सम्बन्ध है| तो पहले वाक्यांश “जीवन का ‘अर्थ’”
(Meaning) का क्या आशय है और उसके दुसरे वाक्यांश “‘अर्थ’ (Wealth) की व्यवस्था” का क्या आशय है और यह कैसे काम करती है, और इन
दोनों में क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट है कि ‘अर्थ’ (Wealth) वही है, जो मानव जीवन के उद्देश्य (Purpose) की, यानि मानव जीवन के लक्ष्य की पूर्ति की व्यवस्था
करता है| यानि यही ‘अर्थ’
ही धन/ सम्पत्ति है, जो जीवन के सपनों को
साकार बनाता है, आकार देता है| अत: जीवन के ‘अर्थ’ (Meaning) को स्पष्ट करने वाली ‘धन’ की
व्यवस्था ही ‘अर्थ की व्यवस्था’ यानि ‘अर्थव्यवस्था’ कहलाती है| जब जीवन में यह इतना
महत्वपूर्ण है, तो यह हमारी प्राथमिकता में रहनी चाहिए|
ब्रह्माण्ड
में हर चीज की उपस्थिति का कोई कारण होता है और साथ ही उसका कोई स्पष्ट अर्थ भी
होता है, अर्थात उसका
भी कोई उद्देश्य होता है, जिसे प्रकृति ही निर्धारित करता है|
इसी तरह हमारे जीवन का भी कोई एक स्पष्ट उद्देश्य होता होगा,
यानि होना चाहिए| किसी भी उद्देश्य के बिना
किसी का भी जीवन किसी भी एक स्पष्ट दिशा में अग्रसर नहीं होकर किसी उलझन में उलझा
हुआ होता है, जैसे ‘लक्ष्य’ के बिना सागर में तैरता हुआ दिशाविहीन एक नाव| और
इसीलिए ऐसे उद्देश्यविहीन मानव का उत्पादकता एवं
उत्पादन भी न्यूनतम स्तर पर ही होती है| जीवन के
इसी अर्थ की खोज और उसको पाने के लिए जो धन आदि की व्यवस्था की जाती है, उसे ही भारतीय परम्परा और भारतीय भाषाओँ में ‘अर्थ की व्यवस्था’
(Economy) कहते हैं, जो किसी के जीवन को कोई
अर्थ देता है|
इस
तरह ‘जीवन के अर्थ’
से यह तात्पर्य है कि आपके ‘जीवन का उद्देश्य’
क्या है? और यही ‘जीवन
का उद्देश्य’ यानि आपके ‘जीवन के अर्थ’
की व्यवस्था ही आपकी अर्थव्यवस्था हुई| यही ‘जीवन उद्देश्य’ (Purpose of Life) आपके जीवन को “खींचने
वाला’, यानि ‘आगे ले जाने वाला’,
यानि जीवन को संचालित करने वाला प्रमुख “कर्षण
बल” (Driving Force) साबित होता है| इस तरह ‘जीवन उद्देश्य’ किसी के
जीवन को उसके किसी मंजिल तक ले जाने वाली मुख्य शक्ति या साधन होती है| यही 'जीवन उद्देश्य' ही उसे सभी सामर्थ्य, कर्मठता, योग्यता एवं कौशल को पाने के लिए आन्तरिक शक्ति का स्रोत बनती है|
किसी
का भी जीवन उसके भौतिक शरीर में ही निवास करता है, चाहे उसका जीवन शारीरिक
गतिविधियों में संलग्न हो, या उसका जीवन बौद्धिक एवं
आध्यात्मिक उपलब्धियों में लगा हुआ हो| कहने का तात्पर्य यह है कि किसी के भी
जीवन की उपलब्धियों को प्राप्त करने का माध्यम उसका शरीर ही बनता है| और इसीलिए किसी के शरीर का सभी तरह से स्वस्थ होना भी अनिवार्य होता है|
शरीर के इस स्वस्थता का आधार भी ‘अर्थ’
(Wealth) की ही व्यवस्था होता है, अर्थात एक
भौतिक शरीर को भी भौतिकता का ही आधार चाहिए होता है| इतना ही
नहीं, किसी के भी व्यक्तित्व के महत्तम विकास के लिए,
यानि उसकी महत्तम उपलब्धियों, यानि उसके
योगदान देने के लिए भी भौतिक साधनों की ही जरुरत होती है| इन्ही
भौतिक साधनों एवं सुविधाओं की व्यवस्था, संरचना एवं ढांचा
खड़ा करने के लिए और उसे संचालित करने के लिए जो अनिवार्यताएं होती है, वह ‘अर्थ’ की व्यवस्था ही
उपलब्ध कराती है| इसीलिए
ही किसी के भी जीवन का उद्देश्य एवं पूर्ति उसकी ‘अर्थ’ की
मजबूत, दृढ, एवं पर्याप्त व्यवस्था पर
निर्भर करती है| इस
पर ठहर कर ध्यान देने की जरुरत है| अर्थात आप अपनी अर्थव्यवस्था की समुचित एवं
पर्याप्त व्यवस्था किए बिना किसी भी तरह शारीरिक, बौद्धिक
एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं|
आप
ध्यान देंगे कि एक पशु यानि जीव- जन्तु के अन्य प्रजातियों में कोई जीवन उद्देश्य
नहीं होता है| सभी अपने अस्तित्व की निरंतरता यानि
अपने प्रजाति के अमरत्व के लिए प्रजनन करते हैं, एवं प्रजनित
पीढ़ियों का पालन पोषण करते हुए और उसे देखते हुए मर भी जाता है| यदि कोई मानव (जो मूलत: एक
स्तनपायी पशु ही है) भी ऐसा ही करता हैं, यानि बच्चे पैदा करता है, उसको पालता पोषता है, और उसे ही देखता हुआ मर भी
जाता है, तो उनमे और अन्य पशुवत जीवन में कोई अन्तर नहीं है| स्पष्ट है कि यही जीवन उद्देश्य ही इस मानव को एक सामान्य पशु की श्रेणी अलग करता है और उच्च श्रेणी में रखता है| कहने का तात्पर्य यह है
कि ‘जीवन के उद्देश्य से विहीन; कोई भी प्राणी निश्चितया
एक पशु ही है, भले ही वह एक लंगूर या बन्दर की तरह दो पैरो
पर खड़ा होकर अपने अलगे दोनों पैरों का इस्तेमाल ‘हाथ’
की तरह करना जानता हो| यही ‘जीवन उद्देश्य एवं उसकी प्राप्ति’ की ही मानसिकता ही
उसे एक मानव बनाता है|
इसीलिए
किसी का ‘जीवन का
उद्देश्य’ ही उसे स्वस्थ रहने को प्रेरित करता रहता है,
और वह इसी कारण से सजग, सतर्क, क्रियाशील एवं प्रयत्नशील भी होता है| और इसीलिए किसी का यही ‘जीवन का उद्देश्य’ ही उसे उच्च स्तरीय बौद्धिक एवं आध्यात्मिक बनने के लिए प्रेरित करता है और
उसे प्राप्त करने के लिए ‘आन्तरिक शक्ति’ भी देता है| एपल कम्पूटर के वर्तमान संचालक टीम कुक बताते हैं कि उनको अपने जीवन का उद्देश्य एक लम्बे समय के प्रयास के बाद
समझ में आया| उनके
अनुसार उनके ‘जीवन का उद्देश्य’ ही “मानवता
की सेवा” करना है| स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति का जीवन उद्देश्य
जितना महान होगा, वह व्यक्ति उतना ही महान होता है| बुद्ध के
जीवन में मानवता,
प्रकृति और भविष्य समाहित था, और इसीलिए बुद्ध
इतने महान कहलाये| आप भी अपने जीवन उद्देश्य में ऐसे मुद्दों को शामिल कर महान बन सकते हैं|
कोई
भी अन्य जीव जन्तु किसी को याद कर, यानि उनके कृतित्व को स्मरण कर उस व्यक्ति को ‘यादगार’
बनाने की कोशिश नहीं कर सकता है| किसी को ‘यादगार’ बनने के लिए मानवता की ही सेवा करनी होती है,
क्योंकि कोई मानव ही किसी की कृतित्वों को याद रख सकता और यह उनके
सकारात्मक, रचनात्मक एवं सृजनात्मक योगदान से ही आता है|
किसी की भी धूर्ततापूर्ण कारनामे को इतिहास उसी तरह से याद करता है| अत: भविष्य यानि अगली पीढियाँ आपके मानवता के इसी सकारात्मक, रचनात्मक एवं सृजनात्मक योगदान को ही याद करेगी|
अन्तिम
बात, किसी की अर्थव्यवस्था यानि
उसकी ‘Economy’
उसकी मितव्ययता, यानि उसकी Economic होने की, यानि उसकी फिजूल खर्ची को रोकने की आदत से
जुड़ी होती है| आप यहाँ ‘Economy’ और ‘Economic’
में सम्बन्ध देख रहे हैं| इसीलिए किसी की भी अर्थव्यवस्था की
सुदृढ़ता उस व्यक्ति के मितव्ययी यानि Economic बनने की प्रवृति
एवं प्रकृति पर ही निर्भर करती है| इसी कारण आप मितव्ययी
होकर अपनी ‘अर्थ’ की व्यवस्था को मजबूत,
दृढ, स्थिर कर ही इसे विकासोन्मुख बना सकते
हैं| इसीलिए हर किसी को मितव्ययी बन कर, मितव्ययता की आदत डाल कर, मितव्ययता की अभिवृति पैदा
कर एवं मितव्ययता की मानसिकता रख कर अपने जीवन के उद्देश्य को साकार करने के लिए
अपनी ‘अर्थ’ की न्यूनतम अनिवार्ताओं के
लिए मजबूत, दृढ, एवं पर्याप्त व्यवस्था
अवश्य करें|
तो
आप भी अपना ‘जीवन उद्देश्य’ निश्चित कीजिए, स्पष्ट कीजिए और उसको प्राप्त करने के
लिए ‘अर्थ’ की व्यवस्था भी कीजिए, अन्यथा आपके जीवन का कोई ‘अर्थ’ नहीं
रह जायगा| आप भी कोई महान उद्देश्य को अपने ‘जीवन का उद्देश्य’
बनाइए|
इसीलिए,
हर एक सामाजिक कार्यकर्ता
अपने लोगों की 'अर्थ' की व्यवस्था को सुदृढ़ कीजिए,
अन्यथा सामाजिक कल्याण
करने का ढोंग बन्द कीजिए|
आप
इस पर ठहर कर गंभीरता से विचार कीजिए|
आचार्य
प्रवर निरंजन