सोमवार, 12 अगस्त 2024

इतिहास में विखंडनवाद को समझिए

(Understand the Deconstructionism in History)

किसी भी इतिहास को सही एवं समुचित तरीके से समझाने के लिए हमें ‘इतिहास के विखंडनवाद’ (Deconstructionism in History) को समझना जरुरी है| वैसे इस विखंडनवाद को सबसे पहले ‘भाषा विज्ञान’ में विस्तारित स्वरुप में फ़्रांसिसी दार्शनिक जाक देरिदा (Jacques Derrida) ने समझाया है, लेकिन मैं आपको इसे इतिहास में समझने के लिए पहली बार एक ‘अवधारणात्मक उपकरण’ (Conceptual Tool) के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ| इस नयी अवधारणा से आप किसी भी इतिहास की समझ और उसके परिणाम की बदलती गत्यात्मकता (Dynamism) को आसानी से समझ सकते हैं|

उदाहरण के लिए, भारत में ‘नाग’ शब्द बहुत प्रचलित है और सम्मानित भी है| आपने भारतीय संस्कृति में ‘नागपंचमी’ का नाम सुना ही होगा, जो पवित्र माह सावन में ही आता है| भारत में बौद्धिक समूहों के लिए सावन मास से प्रारंभ ‘वर्षावास’ की अवधारणा मनन मंथन एवं गहन विमर्श के लिए निर्धारित है| आप सावन में तो कहीं आ जा भी सकते हैं, लेकिन ‘भादों’ माह में मानसूनी बरसात की विकरालता कहीं भी जाना आना खतरनाक बना देता है| ऐसे में उन बौद्धिक विचारकों (जिन्हें देव कहा जाता रहा) को भादों मास के आगमन से पूर्व ही अच्छे एव पर्याप्त खाद्य रसद पहुँचा देना अति शुभ एवं उचित समझा जाता है| ऐसे में ही देवों एवं देवों के महादेवों के स्थल में रसद पहुंचाने (कांवड़ यात्रा) की परम्परा अपने बदले हुए स्वरुप में भारत में सावन माह में आज भी लोकप्रिय है| इसे भी समझाने में इतिहास का यही विखंडनवाद सफल एवं वैज्ञानिक व्याख्या कर पाता है|

‘नाग’ शब्द के अर्थ की गतिशीलता को इतिहास का यही विखंडनवाद स्पष्ट करता है| ‘नाग’ का अर्थ आज भारत में एक जहरीले सरीसृप के अर्थ में लिया जाता है| तो क्या इसी नाग के वंशजों के लिए ही “शेषनाग” (शेष बचे हुए नागों) कहा गया, जिस पर यह समस्त संसार (वैश्विक गतिविधियाँ) टिका हुआ है? तो क्या इसी ‘नाग’ सर्प के वंशजों के नाम पर ही ‘नागरिक’ शब्द बना है? क्या ‘नागरी’ लिपि भी इन्हीं नागों द्वारा विकसित किया गया है? क्या वास्तुकला की ‘नागर’ शैली’ भी इन्ही सर्प वंशीय लोगों द्वारा उद्विकसित है? क्या ऐसे लोगों के रहने के स्थान को ही ‘नगर’ कहते हैं और वहाँ रहने वाले को नागर कहते हैं? यह नागालैंड, नागपुर एवं छोटानागपुर इन्हीं नागों से सम्बन्धित है? इन सभी का सकारात्मक उत्तर है। नागों से सम्बन्धित वर्तमान इतिहास भी इसी विखंडनवाद का परिणाम है| आज इन नागों की वैज्ञानिक ऐतिहासिकता को यही विखंडनवाद ही स्पष्ट करेगा|

‘नाग’ प्राचीन भारत में एक बौद्धिक वर्ग समूह थे, जो समझदार भी थे, सुसंकृत भी थे, और संपन्न भी थे, और इसीलिए इन्हीं नागों से ‘नागरिक’ शब्द भी बना| अर्थव्यवस्था के प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक प्रक्षेत्र के अधिकतर लोग ग्रामीण परिवेश में भी रह सकते हैं, लेकिन बहुतायत बौद्धिक, संपन्न और नीति निर्धारक (अर्थव्यवस्था के चतुर्थक एवं पंचक प्रक्षेत्र) लोग अक्सर नगरों में ही रहते हैं, और इसी से नगर एवं नागर शब्द की उत्पत्ति हुई है| वास्तुकला की नागर शैली इन्ही नागों से सम्बन्धित हैं| इसी तरह देव नागरी लिपि भी इन्ही लोगों के द्वारा विकसित है| संस्कृति चूँकि मानसिक निधि होती है और उसका उद्विकास सदैव मानसिक प्रक्रियाओं में होता रहता है| सभ्यता मानवीय समाज का भौतिक संरचना होता है, और यह सब समय के साथ नष्ट होता रहता है, और इसीलिए सभ्यताएँ तो नष्ट होती रहती है| लेकिन संस्कृति मानसिक समझ एवं अवस्था होती है, और यह आबादी की निरंतरता के साथ किसी भी सकारात्मक या नकारात्मक दिशा में विकसित होती रहती है|संस्कृति में बदलाव की निरंतरता एक प्राकृतिक एवं नियमित स्वभाव होता है। इसीलिए किसी भी संस्कृति के उद्विकास को इसी तरह समझा जाना चाहिए|

यदि नाग ऐसे लोगों से सम्बन्धित थे, तो यह सरीसृप (सांप) से सम्बन्धित कैसे हो गये? यह कोई टोटम आदि नहीं है| इसे समझने के लिए ‘इतिहास के विखंडनवाद’ के साथ साथ ‘इतिहास के नव बोल संरचना’ की अवधारणा को समझना आवश्यक है| ‘इतिहास के नव बोल संरचना’ में किसी भी शब्द के ‘बोल’ को किसी सन्दर्भ या पृष्ठभूमि में ‘बदले हुए अर्थ’ में उपयोग एवं प्रयोग करके उस शब्द की संरचना एवं मूल अर्थ को ही बदल दिया जाता है| इसी ‘इतिहास के नव बोल संरचना’ के अनुसार भारत के उत्कृष्ट नागरिक को एक जहरीले सरीसृप के अर्थ में बदलना पडा| यह सब ऐतिहासिक शक्तियों के प्रभाव में मध्य युग में आया, जब सामन्तवाद का उदय एवं उद्विकास होना शुरू हुआ| यदि नाग एक उत्कृष्ट नागरिक थे, तो यह स्पष्ट है कि ये लोग सिर्फ बौद्धिक, सुसंकृत एवं संपन्न ही नहीं थे, बल्कि स्वतंत्रतावादी, समतावादी एवं बंधुत्व के समर्थक न्यायप्रिय नागरिक भी थे| मध्य युग में जब ‘समता (Equality) एवं समानता (Equity) का अन्त’ होने लगा, यानि ‘सामन्तवाद’ का उदय एवं उद्विकास होने लगा, तो ऐसे न्याय प्रिय एवं न्यायिक चरित्र के नीति निर्धारक उत्कृष्ट लोग सामन्तवादियों के आँखों में खटकने लगे|ऐसे सामन्तवादियों ने इन नागो को यानि नागरिकों को नाग सांप का पर्यायवाची बना दिया। ऐसे ही क्रान्तिकारी बदलाव यानि आमूलचूल बदलाव के कारण ही इतिहास में प्राचीन व्यवस्था का समापन माना जाता है और एक नए युग – 'मध्य युग' – का उदय माना जाता है| ऐसे ही ‘समता एवं समानता’ के विरोधी लोगों ने, यानि ‘सामन्तवादी’ लोगों ने अपने इतिहास विवरण में उन उत्कृष्ट नागरिकों को बदनाम करने के किए एक जहरीले सरीसृप के उपनाम से संबोधित करने लगे|

यह उपनाम सदियों के कालक्रम के प्रभाव में अपनी संरचना एवं मूल अर्थ को ही नहीं बदली, अपितु इतिहास के विखंडनवाद को भी प्रभावित किया| समझने वाले या समझाने वाले पाठक उन ऐतिहासिक लेखों को अपने समझ के अनुसार ही उन लेखों का अर्थ समझा, लेकिन उस अर्थ में नहीं, जिस अर्थ में लेखकों ने इतिहास के लेख  लिखे थे| दुर्भाग्य ऐसे लिखित इतिहास सामन्तवादियों के द्वारा मध्य काल में ही नष्ट कर दिए जाने के कारण आज उसी स्वरुप में उपलब्ध नहीं हैं| इस मध्य युग के कारीगरों, शिल्पकारों एवं मूर्तिकारों ने ‘इतिहास की विखंडनवाद’ की अवधारणा को सही साबित करते हुए प्राचीन इतिहास के लिखित पाठ्यों के बदले हुए अर्थ को समझा और अपना लिया|

अब नाग जैसे उत्कृष्ट नागरिकों का स्थान शिल्पों एवं मूर्तियों में अब के एवं तत्कालीन समय में प्रचलित जहरीले साँपों ने ले लिया| यही विखंडनवाद है| इन शिल्पकारों ने ऐसे ही सर्प को कल्याणकारी (शिव) 'देवों में महादेव' के आसपास भी दिखाए गए, और उनके गर्दनों में भी लिपटे हुए दिखाए गए| देवताओं में 'पालनकर्ता विष्णु' की तो शैया ही शेष बचे हुए साँपों (शेष नाग) की हो गयी| बुद्ध को इन्हीं नागों से संरक्षित दिखाया गया है| भगवान कृष्ण को यमुना की उफनती धारा में शेषनाग ही बारिश (संकटों की बरसात) से बचा रहे थे| क्या आपको ये नाग इन महान देवताओं को एक सूत्र में पिरोते हुए दिखते हैं? इस दिशा में, और इस नजरिए से समझने देखने का एक गंभीर प्रयास कीजिए, आपको एक सम्बन्ध दिखने लगेगा| आपको अब तक का बहुत से भ्रम छंट जाएगा, और वैज्ञानिकता दिखने लगेगी| इन संबंधों को इतिहास का विखंडनवाद ही स्पष्ट कर सकता है, कि उन सभ्य नागरिकों का उन देवताओं से कैसा सम्बन्ध था?

इस विखंडनवाद का मूल भावार्थ यह है कि लिखित पाठ्यों के लिए जो अर्थ या भावार्थ उसके लेखक के लिए होते हैं, वही अर्थ या भावार्थ पाठकों के नहीं होते हैं| अर्थात एक लेखक ने जिस अर्थ में, यानि जिस भाव सम्प्रेषण के लिए किसी शब्द को गढ़ता है, या वाक्य या वाक्य- समूह को रचता है, तो उसके पाठक उनके अर्थों को अपने समय के सन्दर्भ में, अपने बौद्धिक स्तर के अनुसार एवं अपनी संस्कृति के प्रचलित मानकों, परम्पराओं, मूल्यों, मान्यताओं एवं प्रतिमानों से संचालित, नियमित, नियंत्रित एवं प्रभावित होते हैं| नागों का अर्थ भी समय के साथ इन्हीं संदर्भो में बदलता हुआ आज के अर्थ में आ गया है| इसे ही समझना आज की वैज्ञानिकता है|

एक लेखक ने जो पाठ्य लिखा है, उसी पाठ्य का अर्थ भिन्न भिन्न पाठकों के लिए भिन्न भिन्न होता है| मतलब यह है कि एक ही शब्द या वाक्य या वाक्य-समूह को भिन्न भिन्न पाठक अपनी अपनी समझ के अनुसार उसे विखंडित करता है, और उसका अर्थ ग्रहण करता है, यानि उसका अर्थ समझता है| यह विखंडनवाद एक ही शब्द या वाक्य या वाक्य-समूह के अर्थ को कई तरह से एक साथ प्रस्तुत कर सकता है, जिसे उसका केन्द्रीय (मूल) अर्थ, सीमांत अर्थ, भावार्थ, निहित अर्थ, सतही अर्थ,आदि के रूप में लिया जा सकता है| इस तरह यह अर्थ व्यक्ति की समझ, संस्कृति की स्थिति, क्षेत्र एवं समय के सन्दर्भ  अनुसार एक ही शब्द या वाक्य या वाक्य-समूह के लिए गत्यात्मकता लिए होती है|

यद्यपि जाक देरिदा ने इसे लिखित पाठ्यों के सन्दर्भ में और भाषा विज्ञान के सन्दर्भ में लिया है, लेकिन इसे थोडा और विस्तारित कर दिए जाने से इसे इतिहास के सन्दर्भ में प्रयोग एवं उपयोग किया जा सकता है| इसे लिखित पाठ्यों के सन्दर्भ के साथ साथ व्यवहारिक दुनिया में किये जाने वाले प्रस्तुति के सन्दर्भ में भी लिया जाना चाहिए| चूँकि एक इतिहास सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि सम्बन्धित रूपान्तरण एवं बदलाव का व्यवस्थित एवं क्रमानुसार लिखित ब्यौरा होता है, इसीलिए इतिहास के विखंडनवाद में ये सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि क्षेत्र शामिल हो जाते हैं| तब इसमें सम्बन्धित सभी मान्यताएँ, परम्पराएँ, विचार, आदर्श, मूल्य एवं प्रतिमान आदि सभी विषय क्षेत्र विखंडनवाद के परिसर में आ जाते हैं| कहने का तात्पर्य यह है कि एक ही लिखित शब्द या वाक्य या वाक्य-समूह के अर्थों में गतिशीलता होती है, और यह गतिशीलता पाठकों के समझ के अनुसार बदल जाती है| चूँकि एक पाठक एक मानव या मानव द्वारा निर्मित साधन होता है, इसीलिए एक पाठक या मानव द्वारा निर्मित साधन भी मानवीय मनोविज्ञान के तत्वों एवं कार्यों से प्रभावित, संचालित एवं नियंत्रित होता है| इसी कारण एक पाठक के द्वारा समझा गया अर्थ भी इन तत्वों एवं कारकों से प्रभावित, संचालित एवं नियंत्रित होता रहता है| कभी कभी ऐसा अर्थ निकालने के लिए भी लेखक द्वारा भ्रमित किये जाने वाले दिशा निर्धारण भी कर दिया जाता है|

एक संक्षिप्त आलेख में विखंडनवाद को अन्य उदाहरणों के साथ समझाना स्थान का अभाव को रेखांकित करता है| अब आप अपनी समझ से अपने आस पास की दुनिया पर नजर डालें, आपको बहुत सी चीजें स्पष्ट दिखनी लगेगी|

आचार्य प्रवर निरंजन 

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