प्यारे युवा दोस्तों,
भारत की प्राचीनतम भाषा में कहा गया है - "धारेती ति धम्मों" अर्थात 'जो धारण करने योग्य है, वहीं धर्म है'। तो आज की दुनिया में धारण करने योग्य धर्म क्या है, अर्थात आज़ का सबसे उत्तम, सबसे प्रभावशाली, सबसे शक्तिशाली और सबसे महत्वपूर्ण धर्म क्या है?
..... आप भी इस पर सोचिए ......
जरा रुकिए! आज़ के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक जीवन में आपको कौन नियमित, नियंत्रित और संचालित कर रहा है? आज़ लगभग सभी राष्ट्रों के कार्यपालिका प्रधान भी अपने अपने राष्ट्रों में मैनेजर मात्र रह गए हैं। आज़ वैश्विक वित्तीय शक्तियां जो चाहती हैं, जैसा चाहती हैं, सभी वैश्विक संगठन और सभी राष्ट्र उसी के अनुरूप कार्य कर रहे हैं।
पहले आवश्यकता के अनुसार उत्पादन किया जाता रहा, लेकिन अब उत्पादन करने के लिए आवश्यकताओं को पैदा किया जा रहा है। इसे समझिए। अब ऐसी आवश्यकताएं मानवता के नाम पर, प्रकृति संरक्षण के नाम पर और भविष्य में सस्टेनेबिलिटी के नाम पर उत्पन्न किए जाते हैं। मैं अभी इसका विश्लेषण भी नहीं करुंगा। और जब आवश्यकताएं महसूस होगी, तो इसके लिए उत्पादन होगा ही और फिर बाजार की क्रियाविधि तेज हो जाएगी।
पहले परिवार और समुदाय सबसे प्रभावशाली संस्था होता था और व्यक्ति एवं राज्य कमजोर होता था। लेकिन अब परिवार एवं समुदाय अपेक्षाकृत कमजोर हो गया है और व्यक्ति एवं राज्य ज्यादा मजबूत हो गया है। वर्तमान युग में बाजार सभी को, चाहे आप व्यक्ति हैं, परिवार हैं, समुदाय हैं या राष्ट्र ही हैं, अपना उपभोक्ता ही समझता है और उसी अनुरूप उससे संबंध भी बनाता है, उसे नियंत्रित भी करता है और संचालित भी करता है।
तो आज सबसे प्रभावशाली, सबसे शक्तिशाली, और सबसे महत्वपूर्ण कारक “वित्तीय शक्तियां” ही हो गई है। जब आप अपनी बुद्धि को, अपने ज्ञान को, अपने कौशल को और अपनी सम्पत्ति को उत्पादक पूंजी बना देते हैं, तो आप सफल हो जाते हैं। वैसे ‘पूंजी’ ‘उत्पादक सम्पत्ति’ को ही कहा जाता है।
अतः आपका वित्तीय शक्ति बनना ही आपका सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च धर्म होना चाहिए।
बाकी आपकी और समाज की सभी विशेषताएं आपके आगे पीछे रहेगा।
ऐसे सभी सफल समुदायों को देखिए, समझिए और इसका अनुकरण भी कीजिए। लेकिन इन समुदायों का विश्लेषण कभी भी धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र और राजनीतिक चश्मे से नहीं कीजिए। कुछ तथाकथित धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र और राजनीति के ठेकेदारों की मंशा भी नहीं समझनी है। इसे समझने में अपना समय, धन, संसाधन, उत्साह, जवानी और वैचारिकी को भी नहीं लगाना है, यह सब उनके फेर में बर्बाद हो जाएगा।
इसे स्थिरता से समझिए। आप ठहरिए। जो ठहरता है, वही गहराइयों में भी उतर सकता है। जो जीवन की आवश्यकताओं के पीछे मात्र दौड़ लगाता रहता है, वह वैश्विक प्लेटफार्मों पर मात्र फिसलता रहता है।
आप तो समझदार है।
आप आर्थिक शक्ति बनने का अभी से निर्णय कर लीजिए।
आप आगे बढ़िए, और लोग आपसे जुड़ते जाएंगे, और कारवां बनता जाएगा।
अब आपको यही सोचना है, यही बोलना है, यही सुनना है, यही देखना है, आपके सपनों में भी यही सब आना चाहिए। आपको इसी वैचारिकी में रहना है।
क्वांटम भौतिकी के प्रेक्षक सिद्धांत भी यही कहता है कि यही सब भौतिकता में बदल जाता है।
तब सारे धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र और देश आपके साथ होंगे। आप आज ही दुनिया के सबसे शक्तिशाली धर्म – “वित्तीय धर्म” को अपनाइए।
आचार्य निरंजन सिन्हा
भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक
(इस आलेख को और व्यवस्थित तरीके से पढ़ने के लिए और अन्य आलेख पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर भी अवलोकन किया जा सकता है)
बौद्धिक संपत्ति को उत्पादन में बदलकर आर्थिक मजबूती में रूपांतरित करने पर हम वैश्विक शक्ति बन सकते है।
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