शनिवार, 13 जुलाई 2024

बौद्धिक बकवास बंद कीजिए

प्यारे युवा दोस्तों

लोग 'बकवास' करते हैं और यह समझते हैं कि वे "बौद्धिक विमर्श" कर रहे हैं। लेकिन बकवास किसे कहते हैं? विमर्श का तो कोई मूल मुद्दा होता है, जो व्यक्ति हित में, समाज हित में, या मानवता हित में उपयोगी होता है और जिसके इर्द-गिर्द  ही सारे विचार चक्कर लगाते हैं। इस तरह यदि किसी विमर्श का मूल ही, यानि यदि अपने मूल मुद्दे की स्थापना में ही अपने परिणाम में अपने हितों के विरुद्ध हो जाता है, तो वह 'बौद्धिक विमर्श' नहीं है, सिर्फ "बकवास" है। और ऐसे बकवास पर तथाकथित बौद्धिकता का मुलम्मा चढ़ा देने से वह बौद्धिक नहीं हो जाता। ध्यान रहे कि किसी की बौद्धिकता का कोई प्रत्यक्ष संबंध उसके पद, पदवी यानि डिग्री एवं धन से नहीं होता है।‌ 

बुद्धि के ज्ञाता मानते हैं कि किसी भी चीज को देखने समझने के लिए पांचों इंद्रियों के अतिरिक्त मानसिक दृष्टि अति महत्वपूर्ण और प्राथमिक होता है। किसी की मानसिक दृष्टि उसके आलोचनात्मक चिंतन के स्तर और गहराई से विकसित होता है और निखारता है। अधिकांश लोग बिना ‘आलचनात्मक दृष्टि’ (Critical Vision) के ही होते हैं और वे पांचों इंद्रियों के द्वारा ज्ञात जानकारी को ही अंतिम प्रमाण और अंतिम सत्य मान लेते हैं। ऐसे लोगों में अधिकतर ज्ञाता व्हाट्सएप दुनिया के ही होते हैं। इसी कारण ऐसे लोग सतही होते हैं और वे किसी सकारात्मक परिणाम के नहीं होते हैं।

किसी भी व्यक्ति का तीन ही स्वरुप क्रियाशील हो सकता है, यानि कार्यान्वित हो सकता है - शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। अंतिम दोनों स्वरुप, यानि मानसिक और आध्यात्मिक भी उस व्यक्ति के शारीरिक स्वरुप पर ही आश्रित होता है। और किसी का भी शारीरिक स्वरुप भी पूर्णतया भौतिक ही होता है। और भौतिकता की पूर्ति भी सिर्फ भौतिक पदार्थों के ही मूल पर ही आधारित है। और इसके लिए धन की ही आवश्यकता होती है। अतः जिन विमर्शों के मूल में ही आपके शारीरिक अस्तित्व के आधार को ही नकार दिया जाता है, वैसे ही विमर्श को "बकवास" मान लिया जाना चाहिए, या मान लिया जा सकता है। 

कहने का स्पष्ट तात्पर्य यह है कि किसी के व्यक्तित्व के महत्तम विकास के लिए एक न्यूनतम एवं निरंतर आर्थिक संरचना एवं आधार चाहिए, तभी ही उसकी मानसिक और आध्यात्मिक उपादेयता भी व्यवहारिक रूप में क्रियान्वित हो सकता है। और यदि किसी भी विमर्श में यही मूल मुद्दा उपेक्षित है, तो वैसे सभी विमर्श  'बकवास' है, 'बेतुका' है, 'बेहुदा' है। इसीलिए राजनीति, जाति और साम्प्रदायिकता का नशा उतारिए, यह आपके लिए बहुत खतरनाक है। 

अर्थात कोई भी विमर्श, यानि कोई भी विचार, भावना, व्यवहार और कार्य यदि आपके मूल आधार, यानि आपके शारीरिक अस्तित्व की उपेक्षा कर देता है, या गौण कर देता है, तो वह विचार, भावना, व्यवहार और कार्य सिर्फ "बकवास" है। इस तरह यह स्पष्ट होता है कि किसी भी विचार, भावना, व्यवहार और कार्य के लिए विमर्श का 'फलदाई' या 'बकवास' होना एक सापेक्षिक स्थिति है। यानि किसी भी विचार, भावना, व्यवहार और कार्य के लिए विमर्श का 'फलदाई' या 'बकवास' स्थापित होना उसके संदर्भ, पृष्ठभूमि, परिस्थिति, वातावरण, समय, एवं अवस्था के अनुसार बदल जा सकता है। यानि एक ही विचार, भावना, व्यवहार और कार्य के लिए विमर्श आपके लिए, या किसी के लिए एक समान उद्देश्य का और सदैव स्थिर नहीं हो सकता।

इसीलिए यदि कोई विमर्श वर्तमान में आपके शारीरिक न्यूनतम हितों के स्थायित्व एवं निरंतरता की उपेक्षा करता है, या इसे गौण करता है, तो आप सावधान और सतर्क हो जाएं। यह सब आपके अस्तित्व के विरुद्ध एक षड्यंत्र है, धूर्तता है, बेहूदा मजाक है। 

विज्ञान के अनुसार इस जीवन के परे कोई अस्तित्व नहीं है। यदि इस जीवन के परे भी बहुत कुछ अच्छा है, तो ऐसा कहने और मानने वाले अपनी भौतिक सुविधाओं एवं आकांक्षाओं को त्याग कर अपने पूरे परिवार के साथ उसकी तैयारी क्यों नहीं करते, या अविलम्ब क्यों नहीं चले जातेऐसे लोग सिर्फ दूसरों को प्रवचन एवं उपदेश ही देते हैं| ऐसा बकवास 'बौद्धिक विमर्श' के नाम पर आपके समय, संसाधन, धन, ऊर्जा, योग्यता, वैचारिकी, जवानी, क्षमता और उपयोगिता को नष्ट कर रहा है, और आप अब सावधान हो जाएं। ऐसे लोग आपकी कीमत पर सिर्फ अपनी नेतागिरी चमका रहे हैं।

अतः आपको भी यदि अपनी नेतागिरी चमकानी हो, तो भी सबसे पहले अपनी न्यूनतम भौतिकता की स्थायी व्यवस्था कर लीजिए, अन्यथा आप जीवन भर मात्र झंडा ढोने वाले बनकर रह जाएंगे। इसके ही बाद, आपको जाति की, आपके  मूल निवासी या आपकी नृवंशतता की, आपके सम्प्रदाय की, आपकी राजनीति की, भाषा की, संस्कृति की, क्षेत्र की बौद्धिकता भरी विमर्श शोभा देगा। इसलिए सबसे पहले, यानि प्राथमिकता के साथ अपनी आर्थिक आधार और संरचना को मजबूती दे, स्थायित्व दे, निरंतरता दे और सम्पन्नता दें। यही आपको काम देगा। यही आपके व्यक्तित्व और उपयोगिता को महत्तम उंचाई देगा।

आप इस पर थोड़ा ठहर कर विचार करें, मनन करें, मंथन करें। आपको अपने व्यक्तित्व का क्षैतिज विस्तार भी मिलेगा और उर्ध्वगामी गहराई के साथ उंचाई भी मिलेगा। आपको एक सुखद अहसास भी होगा।

आचार्य प्रवर निरंजन

 


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