शनिवार, 11 मई 2024

इतनी बढती आबादी का क्या होगा?

पृथ्वी की इस बढती आबादी का कोरोना और उसके वैक्सीन से क्या संबंध है? इस बढती आबादी का अंतिम परिणाम क्या हो सकता है? क्या यह आबादी घट सकती है, या घटाया जा सकता है, या स्पष्ट कहें तो, क्या इस बढ़ी हुई आबादी को घटाया जा रहा है? इसका उत्तर यह हो सकता है - हाँ, इसे घटाए जाने पर काम हो रहा है| कोरोना की बीमारी और उसका तथाकथित टीकाकरण पर उठे हुए विवाद पर थोडा नजर घुमाइए, आपको बहुत कुछ समझ में आने लगेगा| यह तो एक शुरूआती ट्रायल है| यह सब कुछ आपके स्वास्थ्य की सुरक्षा एवं संरक्षा के नाम पर होगा| यह सब आपको अटपटा लग रहा होगा, लेकिन इस आलेख को पढने के बाद आपको थोडा भी अटपटा नहीं लगेगा| विश्व की आठ सौ करोड़ की आबादी को इस शताब्दी के अन्त तक लगभग पचास करोड़ के पास पहुंचा दिया जायगा| प्रजनन क्षमता को प्रभावित होना या करना और ‘सोमैटिक/ न्यूरो चिप’ का शरीर में लगाया जाना इस प्रक्रिया का पहला कदम होगा| इस प्रक्रिया को आप लगभग सुनिश्चित समझें, यही पृथ्वी ग्रह के भविष्य की  भी मांग है| विश्व के “सुपर बौद्धिकों” का चिंतन एवं कार्यक्रम इसी दिशा में अग्रसर है|

इस पृथ्वी पर ऐसी घटना ‘मानव – इतिहास’ (Homo History) में पहले भी घटित हुआ है, जब विश्व पर प्रभुत्व जमाये रखने वाली शक्तिशाली और व्याप्त दो मानव (Homo) प्रजाति का समापन हो गया था| जो साधन और शक्ति उस बदलाव के समय प्रभावी था, उसी प्रकृति के साधन और शक्ति यानि आधार यानि कारक फिर से काम करने लगा है| इन सब साधन और शक्ति के कारक बुद्धि का एक विशिष्ट स्तर है| आधुनिक एवं वर्तमान मानव को विज्ञानियों की भाषा में ‘होमो सेपियंस’ (Homo Sapiens) कहते हैं| मानव विज्ञानियों की माने, तो वर्तमान होमो सेपियंस का उदय ही कोई एक दो लाख वर्ष पूर्व हुआ है| इस होमो सेपियंस की उत्पत्ति अफ्रीका के वोत्सवाना के मैदान में हुआ है, और कोई पचास हजार पहले उसी अफ्रीका से निकल कर पुरे विश्व में फ़ैल गए| लम्बे अवधि तक विश्व के विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूलन (Adoptation) के परिणाम स्वरुप अब यह वर्तमान मानव प्रजाति कई अलग अलग शारीरिक विशेषताओं के साथ दिखने लगे हैं| यह सब चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के अनुरूप ही है|

जब वर्तमान मानव प्रजाति “होमो सेपियंस” का उदय एवं विकास हो रहा था, उस समय इस प्रथ्वी पर सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली मानव “होमो नियंडरथल” (Homo Neanderthalensis) और “होमो इरेक्टस” (Homo Erectus) थे| होमो सेपियंस के उदय एवं विकास के समय यही दोनों इस पृथ्वी पर व्याप्त थे, लेकिन इन होमो सेपियंस के बुद्धि के विकास के साथ उन दोनों मानव जातियों का समापन (Extinction) हो गया| कहने का तात्पर्य यह है कि बुद्धि के विशिष्ट विकास के साथ ही विज्ञान, अभियंत्रण (Engineering), एवं प्रोद्योगिकी (Technology) उन्नत होता रहता है, जो “आर्थिक शक्तियों” (Economic Forces) की क्रियाविधि को ही बदलने लगता है| यही आर्थिक शक्तियाँ ही तत्कालीन समय में “बाजार की शक्तियाँ” (Market Forces) कहलाती है| और यही ‘बाजार की शक्तियाँ’ समय के साथ इतिहास के साधन एवं शक्तियाँ बदलती रहती है, और यह साधन एवं शक्तियाँ दोनों ही एक साथ कार्य कर वर्तमान को ही बदलता रहता है| यही “तत्कालीन शक्तियाँ” (Contemporary Forces) ही यानि समकालीन घटनाओं को बदलने वाली शक्तियों के ही बदलने से ही इतिहास बदलता रहता है| ‘इतिहास’ के काल में इन शक्तियों को ही “ऐतिहासिक शक्तियाँ” (Historical Forces) कहते हैं||

 इजरायल के प्रसिद्ध लेखक युवाल नोहा हरारी बताते हैं, कि मानव की अगली प्रजाति “होमो ड्यूस” (Homo Deus) के उदय एवं विकास के साथ ही “होमो सेपियंस” का समापन निश्चित है| मानव की यह प्रजाति होमो ड्यूस अपने पूर्व के, यानि वर्तमान के इस मानव प्रजाति होमो सेपियंस से जीनीय संरचना में उत्कृष्ट होंगे, यानि यह होमो ड्यूस अपने पूर्व के मानव प्रजाति होमो सेपियंस से शारीरिक एवं मानसिक गठन में श्रेष्ठतर होंगे| होमो ड्यूस अपनी “आलोचनात्मक चिंतन” (Critical Thinking) में होमो सेपियंस से बहुत ही आगे और बहुत भिन्न होगा| जिनके पास ‘आलोचनात्मक चिंतन’ का कोई स्तर ही नहीं होगा, उनकी इस पृथ्वी पर कोई आवश्यकता ही नहीं होगी, भले ही गेहूँ के साथ कुछ ‘घुन’ (गेहूँ को खाने वाला एह सूक्ष्म जीव) भी पिसा जाय| अमेरिका के प्रसिद्ध उद्योगपति एलन मस्क के “न्यूरालिंक” (Neuralink) परियोजना को आप जानते ही होंगे, जिसमे जीवों के शरीर या दिमाग में ‘माइक्रो (ब्रेन) चिप्स’ लगा कर उनकी भावनाओं, विचारों एवं व्यवहारों को नियंत्रित, संचालित, नियमित, संवर्धित, परिवर्तित एवं प्रभावित किए जायेंगे, और उनको इसमें शरुआती सफलता भी मिल रही है|

वर्तमान विज्ञान, अभियंत्रण, एवं प्रोद्योगिकी के विकास के साथ आज हम लोग “कृत्रिम बुद्धिमता” (Artificial Intelligence), “ह्युमोनोइड रोबोटिक्स” (Humanoid Robots), “इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स” (Inernet of Things), “सायको- सोमैटिक टूल” (Pscho -Somatic Tools), “इंडस्ट्री- 4”, 3D प्रिंटिंग’ (3D Printing), “ब्लाकचेन तकनीक” (Blockchain Technology) आदि में बहुत आगे बढ़ चुके हैं| कहने का तात्पर्य यह है कि आदमी के शारीरिक श्रम के कार्यों को और दिमागी श्रम के कामों को करने के लिए ये अभियंत्रण एवं प्रोद्योगिकी के साधन, शक्ति और क्रियाविधि तैयार हो चुके हैं, और आगे भी संवर्धित हो रहे हैं| अभियंत्रण एवं प्रोद्योगिकी के ये साधन, शक्ति और क्रियाविधि इनको सौपे गए कार्यों को शुद्धता एवं सम्पूर्णता के साथ और कम समय में एवं कम स्थान को घेरते हुए पूरी दक्षता के साथ कही भी एवं कभी भी पूरी तत्परता के साथ करता है, जिनमे कुछ कार्य मानव की सीमाओं से बहार भी होता है| ऐसी स्थिति में एक मानव के पास सिर्फ “मन” (Mind) यानि चेतना से सम्बन्धित कार्य ही रह जाएंगे, जिसमे सिर्फ ‘मानसिक’ एवं ‘आध्यात्मिक’ कार्य ही शामिल होते हैं| एक ‘मन’ उस व्यक्ति के ‘दिमाग’ (Brain) से अलग और भिन्न होता है| एक दिमाग यानि मस्तिष्क उस व्यक्ति के लिए उसके ‘मन’ का “मोड्यूलेटर” (Modulator) होता है| कहने का अर्थ यह हुआ कि एक दिमाग (Brain, not Mind) का विकल्प “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” (AI) हो चुका है, लेकिन यह “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” मानव ‘मन’ का, यानि ‘चेतनता’ (Consciousness) का विकल्प नहीं दे पाया है| एक बार स्टीव जाब्स ने कहा था कि विज्ञान एवं तकनीक विगत पांच हजार वर्षों में जितना सामाजिक परिवर्तन कर चुका है, विज्ञान एवं तकनीक के साथ उससे भी ज्यादा परिवर्तन आगामी कुछ दशकों में होगा|

किसी का भी वही “मन” (Mind) उन्नत एवं परिष्कृत माना जाता है, जिनमे उच्च स्तरीय ‘आलोचनात्मक चिंतन’ (Critical Thinking) का स्तर एवं क्षमता हो| असली ‘शिक्षित’ (Educated) व्यक्ति वही हैं, जिनमे उच्च स्तरीय आलोचनात्मक चिंतन की क्षमता एवं दक्षता है, बाकि सब ती डिग्रीधारी “साक्षर” (Literate) मात्र हैं, लेकिन शिक्षित नहीं हैं| स्पष्ट है कि ऐसे “डिग्रीधारी साक्षरों” की इस विज्ञान एवं तकनिकी युग में अब कोई जरुरत ही नहीं रह गई है| शारीरिक श्रमिकों का विकल्प तो पहले ही निकल चुका है| ऐसे ही स्थिति में होमो सेपियंस को होमो ड्यूस विस्थापित करने वाले हैं| और इस विस्थापन, यानि प्रतिस्थापन (Substitution) का कार्य इस शताब्दी के समापन के पूर्व ही हो जाना सुनिश्चित है| तो प्रश्न यह है कि इस प्रतिस्थापन के कार्य परियोजना पर क्या कार्य प्रगति पर है?

एक “डिग्रीधारी साक्षर” के पास धन हो सकता है, पद एवं प्रतिष्ठा हो सकता है, क्योंकि उसे शिक्षित डिग्रीधारी माना जा सकता है| चूँकि एक ‘शिक्षित’ होना एक सापेक्षिक, यानि तुलनीय स्तर है, इसलिए एक एक तथाकथित शिक्षित अपने से कमतर शिक्षित यानि मूर्खों की अपेक्षा ज्यादा समझदार हो जाता है| चूँकि आज का वैश्विक परिदृश्य पहले के यानि पुराने अलग थलग रहने वाले या अल्प निर्भर विश्व से पूर्णतया अलग एवं भिन्न हो गया है| यानि पहले जो हुआ, सो हुआ, अब वही फिर नहीं होने वाला है| आज का विश्व एक ‘वैश्विक गाँव’ (Global Village) हो गया है, और कोई भी समाज, संस्कृति, देश एवं राष्ट्र इस वैश्विक बदलाव से अछूता नहीं रह सकता| आप इसे “कोरोना” की महामारी और उसके ईलाज की विधि से भी समझ सकते हैं| इस कोरोना ने पुरे विश्व को एक साथ ही नियमित एवं नियंत्रित कर दिखा दिया, यह पहला कदम था, जो अपने उद्देश्य में सफल रहा| अत: जो वर्तमान में अपमे समाज में, संस्कृति में, देश में, या राष्ट्र में तथाकथित चतुर, चालाक, और धूर्त हैं, या ऐसा समझते हैं, तो वे यदि वैश्विक स्तर पर तुलनात्मक रूप में ‘मूर्ख’ ही हैं| ऐसे सभी लोगो को इस शताब्दी के अन्त तक विदा होना तय है| ऐसे ‘तथाकथित बुद्धिमान’ इसीलिए हैं, क्योंकि ये जिनके सापेक्ष बुद्धिमान हैं, वे ही अज्ञानी हैं और इसीलिए ये ‘मूर्ख’ समझे जाते हैं| वैसे होमो सेपियंस भी एक पशु ही है, जो अपनी बुद्धिमत्ता के साथ ही ‘निर्माता मानव' यानि 'होमो फेबर’ (Homo Faber) और ‘सामाजिक मानव' यानि 'होमो सोशियस’ (Homo Socius) बन सका, अर्थात ‘बुद्धि’ ही पशु और मानव में अन्तर करता है|

अर्थात आज के विज्ञान, अभियंत्रण, एवं प्रोद्योगिकी में जिन कार्यो का विकल्प मिल गया है, या जल्दी ही मिलने वाला है, ऐसे कार्यों को करने वालों जीवों की अब क्या जरुरत है? ऐसे लोग अब इस धरती के भार यानि बोझ होने जा रहे हैं| इसीलिए “वैश्विक थिंक टैंक” ऐसे बोझ से इस धरती को मुक्त करना चाहती है| लेकिन ऐसे अनावश्यक लोगों की कोई हत्या नहीं होने जा रहा है, ऐसे लोगों के निपटान के लिए “साफ्ट हथियार” काफी है, जिसमे नवोदित बीमारियाँ एवं उनके वैक्सीन भी शामिल है| आगे एलन मस्क के न्युरालिंक का चिप्स भी प्रभावशाली होने जा रहा है| ये चिप्स आपको स्वथ्य रखेंगे, सचेत रखेंगे, जानकार बनायेंगे, बुद्धिमान बनायेंगे, दक्ष भी बनायेंगे, आपके कठिन परिस्थितियों आपको समाधान भी सुझायेंगे, और इस तरह आपको पूर्णतया अपने नियंत्रण में रखेंगे| जो साधन आपको किसी भी एक निश्चित दिशा में ले जा सकने में सक्षम होंगे, वही साधन आपको किसी भी दिशा में आपके किसी पूर्व अनुमति के ही ले जाने में भी सक्षम होंगे| किसी को सूर्य जैसे तपते तारे पर भेज दिया जायगा और वहां भी जलने के लिए चले जाने में विरोध नहीं कर पाएंगे|

तब वर्तमान विज्ञान, अभियंत्रण, एवं प्रोद्योगिकी के विकास के युग में इस धरती पर वैसे ही लोगों की आवश्यकता रह जायगी, जिनका ‘मन’ (Mind) या चेतनता का स्तर उत्कृष्ट होगा| उन्ही लोगों का मन यानि चेतनता उन्नत एवं उत्कृष्ट हो सकता है, जिनमे उच्च स्तरीय ‘आलोचनात्मक चिंतन’ की योग्यता एवं दक्षता होगा| मैं क्या कहना चाह रहा हूँ, जो आपको अभी तक स्पष्ट नहीं हो पा रहा है? इसे भारतीय सन्दर्भ में और कुछ उदाहरण के साथ समझें| जिन लोगों को ‘ईश्वर’ (God) और ‘अनन्त प्रज्ञा’ (Infinite Intelligence) में, यानि ‘ईश्वर’ और ‘प्राकृतिक शक्तियों’ (Natural Forces) में अन्तर समझ में नहीं आता; जिन्हें ‘आत्म’ (Self) और ‘आत्मा’ (Soul) में अन्तर, ‘इस शरीर के साथ पुनर्जन्म’ (Rebirth) और ‘इस शरीर के बाद के पुनर्जन्म’ में अन्तर; इस शरीर में कर्म का फल पाना और तथाकथित पुनर्जन्म के शरीर में फल को पाने के धोखे में अन्तर करना समझ नहीं आता है, तो वैसे लोगों का “आलोचनात्मक चिंतन” का स्तर बहुत ही निम्नतर होता है| उपरोक्त कुछ भारतीय उदाहरण हैं, जबकि ऐसे कई और उदाहरण हो सकते हैं| ऐसे लोगों की इस वैश्विक गाँव में इस स्तर के विज्ञान, अभियंत्रण, एवं प्रोद्योगिकी के युग में कोई आवश्यकता ही नहीं रह गई है| ऐसे लोगों को “वैश्विक थिंक टैंक” के द्वारा इस धरती का बोझ समझा और माना जा रहा है|

वैसे युवाओं को तो बहुत कुछ जानना, सीखना, और अनुभव करना है, इनके पास तैयारी के लिए यानि बदलाव के लिए पर्याप्त समय भी है, इसलिए वे समय के साथ आगे भी  समझ सकते हैं| लेकिन उन लोगों को ‘चिंतन’ करनी होगी, जो बदलते समय को पहचानना और समझना नहीं जानते हैं, या नहीं चाहते हैं|

आचार्य निरंजन सिन्हा

भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक 

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