गुरुवार, 11 मई 2023

लम्बे जीवन का विज्ञान

 (The Science of Long Life)

आपके लम्बे जीवन का रहस्य यानि

एक लम्बे जीवन का विज्ञान इस प्रश्न के उत्तर में निहित है कि

आप आत्महत्या क्यों नहीं करते?

लम्बे जीवन का अर्थ यह हुआ कि एक लम्बे अवधि के लिए एक स्वस्थ जीवन, अर्थात एक आनन्दमयी जीवन, अर्थात एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना। इसका अर्थ यह हुआ कि हर लम्बा जीवन उद्देश्यपूर्ण होता है, और वह उद्देश्य उस व्यक्ति के लिए अवश्य ही बहुत बड़ा या बहुत महत्वपूर्ण होगा| जब जीवन उद्देश्यपूर्ण (Purpose of Life) होगा, तब उसका जीवन अवश्य ही आनन्दमयी भी होगा| जब कोई भी एक लम्बा जीवन पाता है, तो वह निश्चितया ही वह स्वस्थ शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक जीवन जी रहा होगा और इसलिए आनन्दित भी रहेगा। तो अबतक हमने संक्षेप में लम्बे जीवन का अर्थ समझा। यदि लम्बे जीवन का कोई विज्ञान है, तो निश्चितया इसका कोई स्पष्ट मूलभूत सिद्धांत (Fundamental Theory) भी होगा, इसका कोई विशिष्ट (Specific) एवं निश्चित आधारभूत संरचना (Basic Structure) भी होगा और एक स्पष्ट वैज्ञानिक एवं तार्किक क्रियाविधि (Mechanics) भी होगा। पहले इसके मूलभूत सिद्धांत को समझेंगे। फिर अन्त में इसकी क्रियाविधि को समझेंगे।

यदि आपसे यह पूछा जाय कि आप 'आत्महत्या" यानि 'सुसाइड' (Suicide) क्यों नहीं कर लेते? तो आप अपने जीवित रहने का कोई एक या कुछेक कारण बता ही देते हैं, जिस कारण से या जिसके लिए आप जीवित हैं, या जीवित रहना चाहते हैं। अर्थात किसी के जीवित रहने का कोई स्पष्ट और निश्चित मतलब (Meaning) यानि उद्देश्य (Purpose) होता है। यदि कोई आदमी अपने जीवित रहने का एक या कुछेक "जबरदस्त" (Strong) या "बहुत बड़ा" (Great) कारण खोज लेता हैं या बना लेता हैं, तो निश्चितया वह उस कारण के लिए एक लंबा जीवन को जी ही लेगा। मतलब कि जीवित रहने और एक लम्बे समय के लिए जीवित रहने का कोई प्रमुख प्रेरक एवं गहरा कारण अवश्य होगा| तो हमलोग लम्बे जीवन का पहले सिद्धांत खोजेंगे और फिर ऐसे जीने की क्रियाविधि को समझेंगे।

लम्बे जीवन के संबंध में बहुत से वैश्विक शोध (Research) एवं अनुसंधान (Investigation) हुए हैं| सभी शोध एवं अनुसंधान में “लम्बे जीवन” के रहस्य के मूल (Fundamental), मौलिक (Original) और प्रधान (Principal) कारक के रुप में एक ही चीज सामान्य (General) पाया गया, यानि एक ही चीज सबमें सामूहिक (Common) पाया गया कि जीवन का जीना उद्देश्यपूर्ण (Purposeful) होना ही चाहिए| इसी महान उद्देश्य के लिए कोई उस वातावरण को, उस माहौल को और उस प्रकृति को उस उद्देश्य को पाने के लिए आवश्यक शर्तो एवं परिस्थितियों के अनुरूप और अनुकूल गढ़ लेता है, या अपनी प्राथमिकता के अनुरूप और अनुकूल वातावरण में ही रहने चला जाता है| किसी क्षेत्र में पेयजल का शुद्ध होना, खाद्य पदार्थ का सात्विक होना, वायु का प्रदूषणमुक्त होना और माहौल का सकारात्मक ऊर्जा देने वाला होना प्राथमिक शर्त नहीं होता है| जीवन जीने का एक बड़ा कारण किसी को जीवन में किसी भी समझौते के लिए शक्ति और जज्बा देता है, जो उसे बहुत कुछ सहने (Endurance) की क्षमता देता है|

 जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाने का एक ही तरीका है कि अपने “जीवन आदर्श” को बड़ा बनाएं यानि महान बनाएं। किसी का ‘जीवन आदर्श’ कब और कैसे बड़ा बनता है, या महान कहलाता है? जब कोई एक व्यक्ति अपने जीवन के आदर्श उद्देश्य में अपने "प्रजनन के परिवार" के बाहर के सदस्यों को भी अपने जीवन आदर्श उद्देश्य में शामिल कर लेता है, समाहित कर लेता है, तब उसका जीवन महान होने लगता है। इस तरह महान होना एक विचार है, मानव का लम्बा जीवन जीना भी एक विचार है, जो वास्तविक जीवन में क्रियान्वित होता है। एक पशु अपने प्रजनन के परिवार को ही अपने जीवन उद्देश्य में रख पाता है, इसलिए एक मानव को एक पशु जीवन के उद्देश्य से उपर उठना होगा। इसीलिए एक महान आदमी के जीवन उद्देश्य में उसके समाज के लोग, उसके संस्कृति के लोग, उस देश के लोग और पूरी मानवता ही समाहित नहीं रहती, अपितु उनके जीवन उद्देश्य में प्रकृति और भविष्य भी शामिल (Involve) रहता है या समाहित (Include) रहता है। आप भी इस विचार कर अपने जीवन में शामिल करें।

“जीवनलक्ष्य उपचार” यानि “Logotherapy” (वस्तुत: हिंदी शब्दावली में कोई भी सर्वमान्य उपयुक्त शब्द नहीं है) एक उपचार की पद्धति है, जो जीवन जीने के उद्देश्य को खोजने में, उसे स्पष्टता देने में और उसे पाने में सभी संभव सहायता उपलब्ध करता है| आजकल सामान्यत: लोग अपने जीवन में वही कर रहे हैं, जो दुसरे अन्य कर रहे हैं, या दुसरे उन्हें करने को कह रहे हैं, परन्तु वे वह नहीं कर रहे हैं जिसे वे वास्तव में करना चाहते हैं| और वे इसी द्वन्द के अनावश्यक तनाव में जी कर अपना समस्त ऊर्जा (Energy), केन्द्रण (Concentration), शक्ति, संसाधन, उत्साह (Vitality) आदि को भो झोके हुए हैं| इस तरह यह राष्ट्रीय एवं सामजिक संसाधन और समय की भी बर्बादी है|

जब हम ‘जीवन उद्देश्य’ की निश्चित पहचान कर लेते हैं, तो इसे पाने की प्रेरणा में हम अपने उद्देश्यपूर्ण भोजन को समझने लगते हैं, उपयुक्त माहौल को जानने लगते हैं, और आवश्यक कार्यशील व्यायाम (शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक यानि आध्यात्मिक) करने लगते हैं। शारीरिक गतिविधियाँ यानि शारीरिक श्रम करना ही शारीरिक व्यायाम (Physical Exercise) है, जो शारीरिक अस्तित्व के लिए आवश्यक है| पारिवारिक और सामाजिक अपनापन यानि ऐसी मिलनसारिता ही तो मानसिक व्यायाम है, जो संज्ञानात्मक बुद्धिमत्ता (Cognitive Intelligence) के अतिरिक्त भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence) और सामाजिक बुद्धिमत्ता (Social Intelligence) की क्रियाशीलता के रूप में हमारे सामने आता है। इसके लिए मानसिक व्यायाम (Mental Exercise) यानि श्रम करना पड़ता है एवं उनमे समुचित संतुलन भी बनाना होता है| मित्र बन्धु, समाज और परिवार की महत्ता इसी में शामिल होता है। अपनी चेतना यानि आत्म (Self, आत्मा नहीं) यानि मन का तादात्म्य प्रकृति से यानि प्राकृतिक शक्तियों से करना ही आत्मिक यानि आध्यात्मिक व्यायाम (Spiritual Exercise) है| यह हमारे प्राकृतिक क्षेत्रों और उनमे की गयी गतिविधियों के द्वारा अभिव्यक्त होता है। यह चमत्कारिक जीवन है, जिसमें अपने मन यानि चेतना यानि आत्म को अनन्त प्रज्ञा से जोड़कर बहुत से अन्तर्ज्ञान (Intuition) प्राप्त करना होता है| यह सब मानवता को अभूतपूर्व योगदान देता है|

किसी का आत्म (Self), यानि मन (Mind), यानि चेतना (Consciousness, चाहे वह अचेतन हो, या अधिचेतन हो) उसके भौतिक शरीर में ही वास करता है और उसी शरीर से संचालित होता है। हम जानते हैं कि हमारा मन, यानि हमारी चेतना हमारे शरीर से अलग होते हुए भी हमारे शरीर से ही संपोषित (Nourished) होता रहता है और यह मन हमारे मस्तिष्क यानि दिमाग (Brain) की क्रिया से अभिव्यक्त (Expressed) होता है| शरीर को लम्बे जीवन की प्रेरणा उसके मानसिक अवस्था यानि मन के अस्तित्व से मिलता है। इस तरह मन और शरीर का संतुलन लम्बे जीवन का आधार हुआ। इसी तरह हमारा शरीर भी हमारे मन यानि हमारी चेतना से संचालित, नियंत्रित, नियमित होता रहता है। इसीलिए हमारे शरीर को जवान बनाए रखने के लिए हमारे मन को, अर्थात हमारे चेतनता को भी जवान रहना पड़ता है| अर्थात हमारे विचारों एवं गतिविधियों को भी सदैव रचनात्मक और सकारात्मक रुप में सक्रिय बनाए रखना होता है। इसी से शरीर भी जवान यानि स्वस्थ बना रहता है| आप अपने “जैवकीय आयु की घडी” (Biological Clock of Age) में एक निश्चित जीवन काल का सुनिश्चयन कर सकते हैं| यह भी आश्चर्यजनक रूप से काम करता है|

जीवन में तनाव (Stress) की महत्वपूर्ण भूमिका है। अत्यधिक तनाव शारीरिक इकाईयों (Cellular Units) की स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया को ही बाधित कर देता है, या विकृत कर देता है, अर्थात यह शरीर को समय से पहले ही बूढ़ा (Ageing) बनाने लगता है। लेकिन पशुवत तनाव रहित जीवन आदमी को ‘पशु’ ही बनाए रखता है| उपेक्षित निश्चिंतता भी जीवन में सड़ांध ही पैदा करता है, वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार लम्बे जीवन के लिए ऐसा करना सर्वथा उपयुक्त नहीं है। इसीलिए कहा गया है कि बहता जल में सड़ांध पैदा नहीं होता और इसीलिए जीवन को प्रवाहशील बनाना चाहिए। जीवन में प्रवाह यानि गतिशीलता उसके विचारों से संचालित एवं नियंत्रित होता है, जो उसके विचारों से नियमित एवं प्रभावित होता है| हल्की चिंता यानि हल्का तनाव तो चेतनता के विकास के लिए एक आवश्यक तत्व है। यही तनाव तो शारीरिक कोशिकाओं को पुनर्जीवित करता रहता है, यही तनाव मानव को सक्रिय और उत्साहित रखता है, ऐसा वैज्ञानिक शोधों में सामने आया है। इन सबों को आप सामूहिक रुप में या समेकित रुप में "जीवन का मध्यम मार्ग" कह सकते हैं। उद्देश्यपूर्ण जीवन यही सब कुछ करता रहता है।

अबतक हमने इसका मूलभूत सिद्धांत समझा, अब इस पर आधारित इसकी क्रियाविधि समझेंगे। इसके लिए भोजन कैसा चाहिए? इसके लिए जो भोजन प्रकृति के अनुरूप हो और ज्यादा प्राकृतिक हो, अर्थात यह स्पष्ट है कि यह वहां के उपलब्ध वातावरण में आपके सामान्य ज्ञान में उपयुक्त हो| शरीर के व्यायाम के लिए शारीरिक गतिशीलता को ज्यादा अवसर मिले, पहलवानी की कोई आवश्यकता नहीं है| अर्थात शारीरिक गतिशीलता में शारीरिक खिचाव (Stretch) और शारीरिक उपयोग आवश्यक है| मानसिक व्यायाम के लिए पारिवारिक एवं सामाजिक मधुरता लाना ही पर्याप्त है| सूर्य की प्राकृतिक रोशनी और खुला प्राकृतिक हवा का उपयोग कोई विकल्प नहीं देता है| प्राकृतिक माहौल यानि वनस्पति एवं पशु- पक्षियों के बीच समय देना ही प्रकृति का अनुकूलन है|

यहाँ मैं अतिसंक्षिप्त इसलिए हूँ कि अपेक्षित वर्णन से एक पुस्तक भर सकती  है, लेकिन इसका विवरण समाप्त नहीं हो सकता| मैं चाहूंगा कि आप “लम्बे जीवन जीने” के मूल सिद्धांतों (विज्ञान) को जाने और इसकी क्रियाविधि को समझें| बाकी इससे सम्बन्धी उदाहरण तो स्वत: स्पष्ट हो जाता है, इसे सिर्फ सामान्य बुद्धिमत्ता के साथ स्थिरता चाहिए| इस पर विचार कर इसका अनुपालन कीजिए|

आचार्य प्रवर निरंजन

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