(The Science of
Wealth)
यदि ‘विज्ञान’ ‘विवेकपूर्ण
ज्ञान’ (Rational Wisdom) है, या ‘विज्ञान’ एक ‘व्यवस्थित और सत्यापित किये जाने
योग्य (To be Verified or Tested) ज्ञान’ है, तो निश्चितया धन का, यानि धनवान
होने का, यानि धनी बनाने का कोई निश्चित विज्ञान भी होगा| अर्थात धनी यानि अमीर बनने का कोई निश्चित (Certain),
व्यावहारिक (Practical), व्यवस्थित (Systematic), विवेकपूर्ण (Rational), सत्यापित (Tested) एवं अनुकरणीय (Imitable) ज्ञान होगा, जिसे हमें
आपके समक्ष विमर्श के लिए प्रस्तुत करना है| चूँकि एक धनवान बनना एक प्रक्रिया (Process) है,
यानि कुछ चेतन एवं अचेतन मन की कुशलता (Skill) सम्बन्धी गतिविधियाँ (Activities) हैं, इसीलिए
इसे कोई भी धैर्यपूर्वक अपना सकता है, या सीख सकता है| चूँकि धनवान बनना एक
प्रक्रिया (Process) है, इसलिए इसे आप धनी बनने की क्रियाविधि (Mechanism) के रूप
में समझ सकते हैं| इस तरह यह “धनवान की क्रियाविधि”
(The Mechanics of Wealthy) हुआ|
चूँकि यह एक मानव के सन्दर्भ में है, यानि एक
मानव के मन (Mind) यानि चेतना (Consciousness) के सम्बन्ध में ज्ञान है, इसलिए आप इसे "धनवान का मनोविज्ञान" भी कह सकते हैं| इस तरह यह ‘धन’
का मनोविज्ञान भी हुआ| जब बात मनोविज्ञान पर आएगी, तो निश्चितया इसमें प्रसिद्ध मनोविश्लेषक सिग्मंड
फ्रायड अवश्य ही आ जाएंगे, अर्थात धन के सम्बन्ध में ‘इड’ (Id), ‘इगो’ (Ego) और ‘सुपर इगो’ (Super Ego) अवश्य ही विमर्श में चला आएगा, अन्यथा उसके बिना उस धनी यानि अमीर के मन (Mind) का
समुचित (Proper), यथार्थ (Real) एवं यथोचित (Appropriate) विश्लेषण नहीं हो पाएगा| इसलिए यह सब उसके लालच (Greed), धैर्य (Patience/ Endurance), प्रतीक्षा, विवेक, प्रसन्नता, समझदारी और प्रतिष्ठा से जुडा हुआ है|
धनी होने के सम्बन्ध में एक बात महत्वपूर्ण है, कि कोई भी किसी को धनी बनने की प्रक्रिया, या धनी होने की क्रियाविधि, या धनी होने
का विज्ञान, या धनी बनने का मनोविज्ञान को खोल कर रख सकता है, यानि सब कुछ बता समझा सकता है, परन्तु कोई भी
समझदार आदमी किसी को भी इस सम्बन्ध में कोई ठोस, यानि कोई निश्चित, या स्पष्ट निर्देश या निदेश नहीं
दे सकता है| यानि कोई भी व्यक्ति इस सम्बन्ध में किसी को भी कोई स्पष्ट एवं निश्चित निर्देश (Instructions) या
निदेश (Order) नहीं दे| कोई भी ‘धन का विशेषज्ञ’ किसी व्यक्ति की ‘अवस्था’, ‘प्राथमिकता’
एवं ‘आवश्यकता’ और ‘इच्छा’ को ठीक से नहीं समझ या जान पाता है, इसीलिए इसकी उपयोग और बचत का यथावश्यक
संतुलन वह खुद ही बनाए| वह इस संबंध में किसी दुसरे को हुए किसी उलझन के झोल में
नहीं पड़े|
धनी बनने का पहला और प्राथमिक नियम है कि आप अपने ‘धन’ (Money/ Wealth) को ‘पूंजी’ (Capital) में बदलने की आदत बनाएं| अर्थात आप अपने निष्क्रिय ‘धन’ को सक्रिय एवं उत्पादक (पूंजी) बनाएँ, जो आपके लिए धन का उत्पादन करे, यानि उसमे वृद्धि करे| ‘धन’ को ‘पूंजी’ बनाने का सबसे आसान और सहज तरीका ‘धन’ को ‘पूंजी बाजार’ में निवेश (Invest) करना है| अर्थात अपने धन को लम्बे समय के लिए निवेशित करना है, धन का ‘ट्रेडिंग’ (Trading) नहीं करना है| ध्यान रहे कि निवेश लम्बी अवधि की होती है और ट्रेडिंग अल्प अवधि की होती है।
निवेशकों की दुनिया के सर्वाधिक सम्मानित बारेन बफे कहते हैं कि उन्होंने ‘पूंजी बाजार’ में ‘ट्रेडिंग’ करके किसी को अमीर बनते नहीं देखा है, अर्थात सिर्फ लम्बे समय के लिए निवेश करने वाले ही अमीर बनते हैं| आज के आधुनिक और डिजीटल तकनिकी युग में सबसे सुरक्षित और नियंत्रित निवेश पूंजी बाजार में ही है। यह अन्य विकल्पों (जमीन / भवन / सोना आदि) की तुलना में बेहतर विकल्प है| अब आप धन और धनी के प्रति सम्मान रखे, यानि इसके प्रति चिढ़ या झुन्झुलाहट नहीं रखें, इसका सीधा मनोवैज्ञानिक प्रभाव आपके धन की वृद्धि पर पड़ता है।| चूँकि धन का आना जाना लगा रहता है, यानि धन की गति या अवस्था सदैव स्थिर नहीं रहती है, इसीलिए धनी होने पर ‘विनम्रता’ नहीं खोएं और धन के जाने पर ‘धैर्य’ भी नहीं खोएं| यह सब आपके अचेतन मन पर कार्य करता रहता है। यही बुद्ध का अनित्यवाद है।
यदि किसी की आन्तरिक (मन की) अवस्था उसके बाह्य वातावरण
के अनुरूप नहीं हो पाता है, तो यही अवस्था दुख को जन्म देता है| यही आन्तरिक और बाह्य के अन्तर
की मात्रा ही दुःख की मात्रा को निश्चित यानि निर्धारित करता है| इच्छा के
विपरीत होने वाले हर अवस्था को दुर्भाग्य की अवस्था भी नहीं माना जा सकता है, क्योंकि अक्सर ही ‘विपरीत
परिस्थितियाँ’ ही कुछ नया एवं अच्छा करने का अवसर भी देता है, वशर्ते यदि आपकी प्रवृत्ति सकारात्मक एवं
रचनात्मक होती हैं| इसलिए आशावादी भी बनिए, और अवसर खोजने वाला अवसरवादी भी बनिए|
‘अनन्त प्रज्ञा’ (Infinite Intelligence) की शक्ति और उसकी क्रियाविधि पर विश्वास आपको किसी 'समस्या' को ‘अवसर’ बना देने में
सहायक सिद्ध होगा|
निवेश करने के लिए ‘बचत’ (Savings) की आदत डालनी होगी| इसके लिए आपको 'इच्छाओं' (Desire) और 'आवश्यकताओं' (Needs) में अन्तर करना समझना होगा। और आवश्यकताओं में भी प्राथमिकता के लिए आपको "आवश्यकता के प्रकार" (Wants) की अनिवार्यता को एवं उसे सामान्य रुप में टालने योग्य जरुरत को जानना और समझना होगा| ‘तात्कालिक इच्छाओं और आवश्यकताओं’ को टालने की आदत डालिए, और जो आवश्यकताएं फिर भी बनी रहती है, वही आवश्यकता प्रमुख होती है और शेष छोड़ने योग्य, यानि टालने योग्य है| इस बचत की आदत को अपने बच्चों में भी विकसित कीजिए और उसे प्रोत्साहित कीजिए| ‘स्वास्थ्य’ और ‘शिक्षा’ (व्यक्तित्व विकास) जैसी बुनियादी जरुरत और तथाकथित सामाजिक प्रतिष्ठा की जरुरत में अंतर करना आवश्यक है| चूँकि किसी भी व्यक्ति का “इगो” उसके ‘इड’ और उसके ‘सुपर इगो’ के बीच का संतुलन है, और इसीलिए “इगो’ का संतुलन बनाना एवं आय का अधिकतम भाग का बचत करना आपकी कुशलता और समझदारी है| इसीलिए कहा जाता है कि एक “अच्छा संतुलन का बचत” वह है, जो आपकी स्वाभाविक नींद को परेशान नहीं करता है, अर्थात आपकों सकून की नींद लेने देता है| आपकी बचत की मात्रा से ज्यादा महत्वपूर्ण “बचत करने की आदत” है, जिसे विकसित करना और संवर्धित (Improve) करना सबसे ज्यादा जरुरी है|“आदत” सभी आवश्यक प्रक्रियाओं को सरल, सहज और स्वाभाविक बना देता है|
बहुत से लोग दिखावटी भौतिकता में समाज से सम्मान खोजते हैं, यानि अपने आलिशान मकान, कार, पहनावा या ऐसा ही बहुत कुछ से सामाजिक प्रतिष्ठा खोजते हैं, और उस अंधी सुरंग में भटक जाते हैं, या समा जाते हैं| यह प्रतिष्ठा और सम्मान उनके विनम्र स्वाभाव, मिलनसारिता, विचार एवं व्यवहार से उत्पन्न सामाजिकता से भी मिलता है, यानि यह सम्मान समाज में समय देने से भी मिलती है| इसीलिए इसे समझिये| बचत के लिए बहाना खोजिए|
‘बचत’ और’ निवेश’ करना मानवता की
सेवा है, और राष्ट्र भक्ति भी है, क्योंकि यही समाज और देश में संवृद्धि पैदा करता है, रोजगार के
अवसर उत्पन्न कर समाज को कई सुविधाएं भी देता है| हमें ‘बचत’ और’ निवेश’ के प्रति
समाज में यही भावना प्रोत्साहित करना चाहिए| ‘बचत’ और’
निवेश’ करने में आपने जो “तथाकथित कष्ट” उठाया है, वह दरअसल आपके अमीर बनने की
कीमत (Price/ Cost) है (क्योंकि कोई भी चीज मुफ्त में नहीं मिलती है); यह कोई शास्ति (Penalty), दण्ड (Punishment) या जुर्माना (Fine) नहीं है| इसका
विशेष ध्यान रखना है|
धन की दुनिया के कुछ
सामान्य, परन्तु नहीं दिखने वाले, यानि अक्सर चर्चा से बाहर रहने वाले "दुर्भाग्य" को निकटता
से देखना, जानना और समझना होगा|धन की क्रियाविधि को आप कितना भी समझ ले, इसके गलत हो जाने
की संभावना की प्रतिशतता तीन चौथाई से अधिक यानि लगभग सत्तर - अस्सी प्रतिशत होती है| इसीलिए
किसी भी बहुत अधिक सफल निवेशकों की सफलता उसके समेकित (Integrated) यानि कुल (Total) निवेश के लगभग एक
तिहाई हिस्से से प्राप्त लाभ से ही होता है, और शेष सभी की भरपाई भी करता है|बारेन बफेट की भी यही स्थिति है और आप उनसे ज्यादा अपने समझदारी को किनारे रख दीजिए। चूँकि अमीर बनना एक आदत (Habit) है, एक स्वभाव (Nature) है, जीवन जीने की एक
विधि (Methodology) है, और इसलिए इन दुर्भाग्यों के रहते हुए भी सफलता पाई जाती है| इसलिए
निवेश में धैर्य (Endurance) भी चाहिए, स्थिरता (Stability) भी चाहिए, और लम्बे समय के लिए संयम (Moderation) भी चाहिए| इसलिए निवेश के साथ आ रहे, या हो रहे दुर्भाग्य को निवेश का एक आवश्यक हिस्सा मानते हुए देखें|
‘बचत’ और’ निवेश’ के साथ
धैर्य इसलिए जरुरी है, क्योंकि “चक्रवृद्धि ब्याज की
शक्ति” (Power of Compound Intrest) एक समय की बाद ही अपना जादू दिखाना शुरू करता है| “चक्रवृद्धि ब्याज की
शक्ति” को स्थिरता से समझिये| बारेन बफे की सम्पत्ति जितना पचास वर्ष की उम्र तक
बन पाया, बाद में उससे भी ज्यादा सम्पत्ति को बनने में मात्र चार पांच वर्ष का समय ही लगा| यही “चक्रवृद्धि
ब्याज की शक्ति” है| “चक्रवृद्धि ब्याज की शक्ति” को आपके धन पर कार्य करने दीजिए, यह समय लेता है|
स्पष्ट है कि अमीर यानि धनवान बनना एक संस्कृति (Culture) है, जीवन जीने का एक ढर्रा (Routine) है, एक प्रतिरूप (Pattern) है, एक आदत (Habit) है| इसे समझिए, इसे विकसित कीजिए, इससे प्यार कीजिए,
इसे सम्मान दीजिए, और यह आपके जीवन में एक समय के बाद यह आपको एक गर्वित जीवन (Glorious Life) का सम्मान
देगा, जिसे राकफेलर ने भी अनुभव किया और खूब जिया
भी|
इसे आप भी अनुभव कर सकते हैं|
दुसरे को खुश रखने में आपकी सहभागिता और आपकी भूमिका आपको जो ख़ुशी देगी, वह आप ही अनुभूत कर सकते हैं|
इसलिए
अमीर बनिए, और दूसरों को भी अमीर बनाइए|
आचार्य
निरंजन सिन्हा
www.niranjansinha.com
An Appeal
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--- Prof Vinay Paswan,
Keshopur, Vaishali, Dist - Vaishali, Bihar, India.
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