शनिवार, 13 मई 2023

प्रीति भाभी का “ड्रम सर्किल”

 (“Drum Circle” of Priti bhabhi)

मुझे मीडिया में यह देखने का अवसर मिला कि ‘प्रीति’ भाभी ने सामाजिक बदलाव यानि रूपांतरण के लिए “ड्रम सर्किल” (Drum Circle) के रूप में एक नई ‘सांस्कृतिक तकनीक’ (Cultural Technique) की व्यावहारिकता का ईजाद कर एक ‘नई पहल’ (Initiative) के रूप में उसे जमीन पर सफलतापूर्वक उतार भी दिया है| हालाँकि यह मौलिक अवधारणा ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), रांची’ के प्रोफ़ेसर गौरव मनोहर मराठे जी का है, लेकिन भाभी के बढ़ते कदम के कारण मुझे भाभी जी की ओर ही झुकना पड़ गया है| यह प्रीति भाभी मानवता को नई उंचाईयों पर ले जाने के लिए अपने नाम के अनुरूप ही बहुत “प्यारी” (प्रीति) सोच रखती हैं| हालाँकि मुझे सिर्फ ‘सोच’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके कार्यान्वयन के लिए ये जो योजना बना रही है, तकनीक में नवाचार (Innovation) सुझा रही है,, और इसके व्यापक प्रसार- प्रचार के लिए अपना समय, संसाधन, धन, उत्साह, ऊर्जा, जवानी और अपना सब कुछ झोंके हुए हैं; फिर इनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के लिए कोई एक शब्द खोज पाना मेरे लिए मुश्किल है| जी, आप सही समझ रहे हैं, यह रांची के अपने राजीव भाई की "जीवन साथी" हैं| राजीव भाई तो मेरी ‘प्रीति’ भाभी की मात्र “अभिव्यक्ति” (Expression) ही हैं| भाभी तो इस भव्य भवन की आधारशिला (Foundation Stone) है| भाभी के बिना राजीव भाई के लिए यह सब संभव ही नहीं था और अभी भी नहीं है|

वैसे यह तकनीक होने से स्वयं साध्य (लक्ष्य) कम और साधन (पाने का माध्यम) ज्यादा है। यह ‘ड्रम सर्किल’ (Drum Circle) या ‘ड्रम संस्कृति’ (Drum Culture) या ‘ड्रम तकनीक’ (Drum Technique) क्या है? इस नई पहल को समझने से पहले एक बार राजीव भाई का भी परिचय जान लें| श्री राजीव गुप्ता मूलत: बिहार के नवादा से हैं, और भाभी मूलत: बिहार के हिलसा, नालन्दा से हैं| राजीव अभी  “टेड एक्स काँके” (TEDXKanke) के क्यूरेटर (Curator) हैं| ये झारखंड सरकार से स्वैच्छिक सेवानिवृत वाणिज्य कर विभाग के पदाधिकारी रहे हैं| ये रांची में रह कर “Ideate, Inspire, Ignite Foundation” नाम से एक अभियान चलाए हुए हैं| इसके द्वारा लोगों के जेहन में आदर्श एवं विचार पैदा (Ideate) करना, लोगों को बड़ा करने के लिए प्रेरित (Inspire) करना, और  इसके लिए उनमे ‘जज्बा’ पैदा करना (Ignite) है, जिसका मकसद समाज में मौलिक एवं युगांतकारी बदलाव लाना है|

वैसे तो सामाजिक परिवर्तन या सामाजिक रूपांतरण करने के दावेदार बहुत होते हैं, परन्तु बहुतो को संस्कृति और इस “सांस्कृतिक क्रियाविधि” (Cultural Mechanism) की ही समझ नहीं होती है| वे सांस्कृतिक जड़ता (Cultural Inertia) के यानि विचारो की जड़ता (Inertia of Thought) के शिकार होते हैं| ऐसी स्थिति में बदलाव के ऐसे दावेदारों के कार्य मसखरा (Joker) के कार्य की श्रेणी में माने जाते हैं, क्योंकि यह बदलाव घिसटता (Crawl) हुआ होता है, या मात्र एक भ्रम (Delusion) ही होता है| ये मसखरा यानि जोकर सामान्य लोगों से उनकी भावनाओं से जुड़ी हुई बड़ी बड़ी भावनात्मक बातें करेंगे, कुछ भौतिक आवश्यकताएँ मुफ्त में भी उपलब्ध करा देंगे, और काफी प्रशंसा भी बटोर लेंगे| परन्तु ‘विकास के बैल’ की गति या स्थिति खलिहान के ‘दमाही के बैल’ जैसा ही खूंटे का चक्कर लगता रहता है, और विकास भी जड़ (Static) हो जाता है| ‘संस्कृति’ जीवन जीने की विधि है, जो परम्परा से अपने सामाजिक व्यवस्था में सीखी जाती है| इस तरह ‘संस्कृति’ समाज का अदृश्य ‘साफ्टवेयर’ है, जो पुरे तंत्र (System) को संचालित, नियंत्रित, नियमित और संरक्षित करता रहता है| यह हमारे विचारो, व्यवहारों, मूल्यों, आदर्शो, प्रतिमानों, मानसिकता, परम्पराओं एवं रीति रिवाजों में अभिव्यक्त होता रहता है| प्रीति भाभी ने इसी सांस्कृतिक समझ और इसकी क्रियाविधि (Mechanics) का उपयोग किया है|

सामाजिक बदलाव (Change) तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन यह सामान्यत: अपनी पूर्व की अवस्था में आ जाने (Reversible) वाला होता है| जैसे किसी को कुछ धन दिया गया, लेकिन उसकी संस्कृति यानि मानसिकता और समझ नहीं बदली, तो वह जल्दी ही अपनी पुरानी अवस्था में लौट आता है| लेकिन सामाजिक रूपान्तरण (Transformation) तो स्थायी परिवर्तन होता है, जो सांस्कृतिक बदलाव से ही संभव होता है| और इसलिए हम सकारात्मक दिशा में आगे जाने वाले रूपान्तरण की ही बात कर रहे हैं| स्पष्ट है कि ‘सकारात्मक सामाजिक रूपान्तरण’ के लिए ‘बदलाव के नायक’ में तो लोगों की मनोवैज्ञानिक समझ होनी ही चाहिए और समाज की सांस्कृतिक समझ भी होनी चाहिए| जब किसी समूह या समाज को यह लगता है कि उनकी भावनाओं को उनकी सहभागिता (Participation) में गरिमामयी सम्मान (Glorious Respect) दिया गया है, तो वे अपनी सक्रिय सकारात्मक भागीदारी सुनिश्चित करने लगते हैं| तब कोई भी ऐसे आयोजन में एक दर्शक के रूप में नहीं होता है, बल्कि एक सक्रिय भागीदार के रूप में होता है| एक महज दर्शक होने पर उन पर पड़ने वाली मनोवैज्ञानिक छाप और उसके सक्रिय भागीदार के रूप में मनोवैज्ञानिक प्रभाव में बहुत गुणात्मक अन्तर होता है| ‘प्रीति भाभी की ड्रम तकनीक’ यही भावना लोगो में जगा कर और उन प्रतिभागी समूहों में हिस्सेदारी बढा कर सहभागिता पैदा कराती है|

“ड्रम” (Drum) एक वाद्ययंत्र (Instrument) है, जो समाज विशेष में ‘ढोल’, ‘ढाक’, ‘ढोलक’, ‘डफली’, ‘तबला’, नगाड़ा, ‘डमरू’, ‘मृदंगम’, एवं अन्य कई और नामों से जाना जाता है, अर्थात ये सब तकनिकी रूप में ड्रम ही हैं| यह तकनिकी रूप से “झिल्ली” के उपयोग से बना होता है, जो सामान्यत: पशुओं के खाल (Hide/ Skin) होता है| इस झिल्ली को किसी विशेष आकार के आकृति यानि बर्तन पर तान (Stretched) या कस (Tighten) दिया जाता है| इसके तने हुए या कसे हुए होने और उस पर विशेष दबाव देने से एक विशेष ध्वनि पैदा होता है| इसे हाथ से, अंगुली से या एक- दो छड़ी से बजाया जाता है| यह संभवत: मानव द्वारा ईजाद किया गया पहला वाद्य यन्त्र है| इसके निर्माण सामग्री, इसके झिल्ली के स्वरुप, प्रकृति एवं आकार एवं बजाने के तरीके से कई प्रकार के ध्वनि निकलते हैं|

इसका उपयोग उत्साहवर्धन सहित कई स्वरूपों में किया जाता है| इसका उपयोग कर प्राचीन काल में संवाद को प्रेषित किया जाता रहा है| इसे लोगों को एक विशेष स्थान पर बुलाने और जमा करने के लिए किया जाता है| सेना या पुलिस के जवानों को अनुशासन सिखाने का यह भी एक महत्वपूर्ण यन्त्र होता है| मुझे बचपन याद है, जब नगाड़े पर पूरा शरीर थिरकने (Vibrate) लगता था| ढोल या ढोलक लोगो को यदि ‘झुमा’ (Vacillate) देता है, तो मृदंगम लोगों को अपनी स्वर लहरी में बहा (Wash away) ले जाता है| शायद इन्ही बारीकी क्रिया विधि के कारण इसका उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में “संगीत चिकित्सा” के रूप में भी होता है| इसी सुक्ष्मीय क्रियाविधि (Micro Mechanism) के कारण ही यह त्योहारों में, सांस्कृतिक अवसरों पर, युद्ध घोषो या युद्ध मैदानों में या विद्यालयों में आदि में भी उपयोग एवं प्रयोग होता रहा| आधुनिक जीवन में और बहुविध स्वरुप में फिर से जबरदस्त ढंग से इसे रेखांकित करने के लिए ‘प्रीति भाभी’ को तो याद किया जाता रहेगा ही| इसके धरातली क्रियान्वयन में राजीव भाई और ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), रांची’ के प्रोफ़ेसर गौरव मराठे का नाम भी जुड़ा ही रहेगा, क्योंकि ये सभी मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं| इसके प्रारम्भिक जमीनी कार्यान्वयन के लिए श्री अग्रसेन स्कूल, भुरकुंडा, रांची के निदेशक श्री प्रवीण राजगढ़िया जी के बौद्धिक समझ को नमन करता हूँ, जिन्होंने अपने विद्यालय में इसे सबसे पहली बार आयोजित करवाया|  इस पर आधारित ‘ड्रम’, ‘डांस’ और ‘डायलाग’ का थीम इसे जादुई स्वरुप दे देता है|

प्रीति भाभी से बात करने पर इसके कई और अकादमिक पहलु सामने आए| यह "ड्रम सर्किल" वास्तव में अपने व्यापक स्वरूप में "ड्रम संस्कृति" है। सर्किल (Circle) यानि वृत एक समावेशी (Inclusive) अवधारणा है, जो अपने में सभी को समाहित कर लेता है, यानि एक सर्किल के घेरे में ले लेता है। यह एक विशिष्ट यानि अनन्य (Exclusive) अवधारणा नहीं है, जो किसी एक विशेष, या एक या कुछ विशिष्ट को ही पहचानता एवं समझता है और शेष को छोड़ देता है। एक सर्किल अपनी व्यावहारिकता की उपस्थिति में ऊर्ध्वाधर (Vertical) नहीं रह सकता, अपितु अपनी व्यवहारिकता में यह क्षैतिज (Horizontal) विस्तार ही देता हुआ होता है, जो सभी को, सभी संस्कृतियों को, सभी समाजों को अपने में समेटे हुए होता है। क्षैतिज विस्तार में क्षेत्र का संकुचन ऊर्ध्वाधर चीजों के आधार (Base) की तरह संकुचित नहीं होता है, अपितु व्यापक (Wider) होता है। केलाग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (Kellogg School of Management) के मार्केटिंग के प्रसिद्ध प्रोफेसर फिलिप कोटलर विचारों, आदर्शों और मूल्यों के मार्केटिंग (प्रसिद्ध पुस्तक Marketing 4.0 में) को समझाते हुए बताते हैं कि आज़ व्यवहारिक सफल मार्केटिंग के लिए हमें व्यक्तिगत (Individual) से  सामाजिक (Social) होने के साथ साथ विशिष्ट (Exclusive) से समावेशी (Inclusive) होना होगा और ऊर्ध्वाधर (Vertical) से क्षैतिज (Horizontal) होना ही होगा, जिसका वर्णन मैंने अभी उपर किया। प्रीति भाभी बताती है कि लोगों का बढ़ता हुआ एकाकीपन खतरनाक दिशा (Direction) और दशा (Stage) में है और इसीलिए ड्रम सर्किल में सामाजिकता (Individual to Social) को बढ़ाने का व्यवहारिक मनोविज्ञान समझना चाहिए। बदलते हुए समाज और उसकी संस्कृति का मनोविश्लेषणात्मक (Psycho Analytical) समझ रखना और व्यवहारिक व्यवस्था "ड्रम सर्किल" के रूप में करना एक अद्भुत सफल प्रयोग है।

आजकल "साफ्ट पावर" (Soft Power) का युग है, और आजकल परम्परागत शक्ति या हथियारों का प्रयोग या उपयोग नादान एवं मुर्ख लोग ही करते हैं| "साफ्ट पावर" को ही यानि इसकी शक्ति, प्रभाव एवं इसकी क्रियाविधि को ही समझ से ही सामाजिक रुपांतरण संभव है, और यह “ड्रम सर्किल” इस 'सामाजिक रुपांतरण' का व्यापक (Extensive) एवं गहन (Intense) स्वरूप है। लोगों की सामाजिक एवं भावनात्मक (Emotional) आवश्यकताओं को ही समझ कर प्रचार (Publicity), प्रसार (Broadcasting/ Propagation) और अभिप्रचार (Propaganda) किया जाता है। जब आप Institute of Propaganda Analysis के निष्कर्षो का अध्ययन करेंगे, तो इस ‘ड्रम सर्किल’ की महत्ता और व्यवहारिकता समझने लगेंगे। भारत में इसका अर्थात इन भावनात्मक तकनीकों का उपयोग राजनीति में कुछ लोग सफल रुप में कर ले रहे हैं, लेकिन सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए इसका सदुपयोग नहीं पो पाया है। प्रीति भाभी के इस पहल से मुझे निकट भविष्य में इस तकनीक से इन उपेक्षित (सामाजिकसांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तन) क्षेत्रों में रुपान्तरण होता दिखने लगा है।

"ड्रम सर्किल" का प्रभाव तो सकारात्मक और रचनात्मक होता ही है, लेकिन इससे जो उमंग और उत्साह पैदा होता, जो सकारात्मक ऊर्जा भर जाती है और जो मजबूत आत्म विश्वास उभरने लगता है, उनके लिए उत्तरदायी हार्मोनों (Hormones) को कौन सा ‘जैविक रासायनिक’ तत्व कौन सा तंत्र पैदा करता है, अभी अध्ययन किया जाना बाकी है। ड्रम की ध्वनि की लहर (Wave), पिच (Pitch), आवृत्ति (Frequency), मात्रा (Quantity) की विविधताओं पर मनोवैज्ञानिक (Psychological), मनोशारीरिक (Psycho Somatic) और जैव रासायनिक (Bio Chemical) प्रभाव और क्रियाविधि का अध्ययन निकट भविष्य किया ही जाएगा। यह कैसे सामूहिकता की भावना पैदा करता है, कैसे सभी को लयबद्ध करता है और कैसे अनुशासित करता है, यानि सभी को कैसे एक ही दिशा में और एक ही दशा में समेट कर बहा ले जाता है, यह क्रिया विज्ञान भी समझने योग्य है। यह आपसी विश्वास को और मजबूत करता है। यह टीम भावना को मजबूत करता है| यह ड्रम सर्किल तनाव को मिटाकर कैसे उमंग और उल्लास भरता है, क्रियाविधि जो कुछ भी हो, इसमें शामिल लोगो पर तत्काल ही प्रभाव दिखाता है।

ड्रम की गूंजती आवाजें सिर्फ ध्यान ही नहीं खींचती, बल्कि सभी की मानसिकता को अपने पास बुला कर केन्द्रित कर लेती है। ड्रम की गूंजती आवाजें अपनी द्वारा उत्पन्न ऊर्जा की ऊँची लहरों में सभी को उसी तरह बहा (Wash Away) ले जाती है, जैसे उच्च स्तरीय 'रिचर स्केल' (Ritcher Scale) पर भूकम्प आने पर पृथ्वी के ठोस संरचना में भी तरलता (Liquidity) लाकर सब कुछ पाने में डुबो (immerge) देता है। सभी का ‘निजी’ (Personal) मानसिक अस्तित्व यानि अहम् (Ego) समाप्त हो जाता है और सभी सामूहिकता में विलीन होने लगते हैं। इसे कोई सांस्कृतिक आयोजन में, या जन्मदिन के अवसर पर, या वैवाहिक समारोह में, या खेल के मैदान में उपयोग करता रहा है| युद्धों में सफल प्रयोग की ऐतिहासिकता तो भरी पड़ी है| लेकिन आज के तनावग्रस्त डिजीटल तकनीकी युग में ‘प्रीति’ भाभी का प्यारा, लेकिन गहरा रेखांकन आपको भी ठहरा देगा, थोडा स्थिरता से विचार तो कीजिए|

इसे आप भी आज़मा कर देख ही लीजिए।

आचार्य निरंजन सिन्हा

www.niranjansinha.com

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--- Prof (Dr) Vinay Paswan,

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