रविवार, 27 जून 2021

मूल निवासी : मिथक या विज्ञान

मूल निवासी के विषय पर विस्तार से जाने से पहले हमें यह समझना होगा कि यह अवधारणा ‘मात्र मिथक’ है या ‘शुद्ध विज्ञान’ है या ‘विज्ञान को ओढ़े, मात्र मिथक’ (Only Myth in Camouflage of Science ) है? 

इसके लिए हमें पहले 'मिथक' को और 'विज्ञान' को समझना होगा| इसके बाद हम आपको आधुनिक युग के पाँच क्रांतिकारी  विचारकों के विचार को समझाते हुए आगे के मूल विषय को देखेंगे| इससे हमें 'मूल निवासी' की कहानी की वास्तविकता समझने में मदद मिलेगी| इन विचारकों के नाम – चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin), कार्ल मार्क्स (Karl Marx), सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud), अल्बर्ट आइन्स्टीन (Albert Einstein), और फर्डीनांड डी सौसुरे (Ferdinand de Saussure) हैं|

मिथक (Myth) यानि मान्यतावादी कहानी और विज्ञान (Science) – दोनों के सम्बन्ध बड़े विवादास्पद हैं, अर्थात लोग मिथक को भी विज्ञान समझते हैं| उदहारण के लिए, "पीपल का पेड़ हमेशा ऑक्सीजन गैस ही छोड़ता है", भारत में ऐसी ही मान्यता या मिथक है| परन्तु विज्ञान के विद्यार्थी जानते हैं, कि हर जीव, पौधों सहित, श्वसन (Respiration) की प्रक्रिया में हमेशा ऑक्सीजन गैस ही लेता है, और कार्बन डाय ऑक्साइड गैस ही छोड़ता है| यह प्रक्रिया दिन रात चलती रहती है| लेकिन प्रत्येक पौधा सूर्य की किरणों में (सिर्फ दिन में) प्रकाश संशलेषण की प्रक्रिया दौरान कार्बन डाय ऑक्साइड गैस लेता है, और अपनी जड़ों से प्राप्त पानी(H2O) के ऑक्सीजन को वायुमंडल में छोड़ता है| यह प्रक्रिया सिर्फ पौधे में होती है, और यह रात में नहीं होती है| लेकिन मूर्ख एवं धूर्त लोग इसी मान्यता को ही मानते हैं| अब आप मिथक या मान्यता एवं विज्ञान के बीच के सम्बन्ध को समझ गए होंगे|

‘मिथ’ (Myth) को हिन्दी में मिथक, कल्पित कहानी, या पौराणिक कथा कहा जाता है| इसे अंग्रेजी में Illusion, Delusion, Hallucination, Fallacy और Misbelief के रूप में भी समझा जाता है| यह लोकप्रिय विश्वास या परम्परा है, जिसे समय काल में गढ़ा गया या रचा गया है| इसे दूसरे शब्दों में “धर्म या संस्कार” के आवरण में कल्पित कथाएं कह सकते हैं| यह विज्ञान के नाम पर मनमानी काल्पनिक कथाएं होती हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार या साक्ष्य नहीं होता| 

वैसे अज्ञानियों के लिए ‘विज्ञान’ और ‘मिथक’ में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता है| यह व्यक्ति एवं समाज की बुद्धिमता पर निर्भर करता है| आस्था वाले समाज में अर्थात जिस समाज में प्रश्न पूछना अशिष्टता (Rudeness) समझी जाती है, उस समाज में मिथक व्याप्त होता है| परन्तु कारण खोजने वाले समाज में अर्थात जिस समाज में प्रश्न पूछना बौद्धिकता मानी जाती है, उस समाज में विज्ञान का ही विकास होता है| जो  समाज मिथक को सही मानता है, ऐसे समाज की संस्कृति पिछड़ी हुई होती है| मिथक को विज्ञान मानने वाला  समाज, सन्दर्भ (काल एवं देश) के अनुसार बदलता रहता है| जब समाज छोटा होता है, और शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक रूप से निम्नतर होता है, तो मिथक को आसानी से विज्ञान मान लिया जाता है, जैसे ऊपर पीपल के पेड़ के सम्बन्ध में बताया गया| परन्तु जब समाज व्यापक होता है और शैक्षणिक- सांस्कृतिक स्तर उच्चतर होता है, तो मिथक को विज्ञान मानने में कठिनाई होती है। जैसे पश्चिमी समाज,.. पश्चिमी समाज बहुत से मिथकों को विज्ञान से अलग कर आज दुनिया में सर्वाधिक तीव्र गति से विकास के पथ पर अग्रसर है|

'व्यवस्थित ज्ञान' को विज्ञान कहते (Systematic Knowledge is Science) हैं| यह व्यवस्थित ज्ञान किसी विषय वस्तु पर सम्यक (Proper) विचार (Thought), सम्यक अवलोकन (Observation), सम्यक अघ्ययन (Study), सम्यक विश्लेषण (Analysis) एवं सम्यक प्रयोग (Experiment) से ही मिलता है| इन प्राप्त व्यवस्थित ज्ञान से हम किसी वस्तु या तंरग की प्रकृति एवं कार्य-कारण संबंधों को जान पाते हैं| इस ज्ञान में हम तथ्य, सिद्धान्त, एवं तरीकों को परिकल्पना (Hypothesis) एवं प्रयोग (Experiment) से स्थापित और व्यवस्थित करते हैं| इस तरह किसी भी विषय का क्रमबद्ध व्यवस्थित ज्ञान, जो सत्यता के करीब ले जाता है, विज्ञान है| 

यह प्रकृति के नियमों को समझने, उसके उपयोग एवं भावी संभावनाओं को जानने का व्यवस्थित अध्ययन है| विज्ञान कार्य -कारण संबंध पर टिका हुआ है, और इस संबंध के बिना विज्ञान की कल्पना ही नहीं की जा सकती| यही कार्य - कारण का अन्वेषण (खोज) विज्ञान को विकसित करता रहा| बुद्ध का आग्रह रहा कि 'पराप्राकृतिक' (Un Natural) का खण्डन करने अर्थात् कार्य के कारणों को जानने के लिए आदमी बुद्धिवादी बने| आदमी सत्य की खोज स्वतंत्रतापूर्वक करे। मिथ्या विश्वास (False Faith) ही मिथक है| मिथ्या विश्वास आदमी की वैज्ञानिक प्रवृ​त्ति को समाप्त करता है| यही बुद्ध का ‘हेतुवाद’ (हेतु का वाद अर्थात किसी घटना या वस्तु का कारण होने का सिद्धांत) है| यही बुद्धिवाद की शिक्षा देता है| यही हेतुवाद विज्ञान का आधार है, यही विज्ञान है| यहीं से कार्य - कारण का व्यवस्थित अवलोकन (Observation), अघ्ययन (Study), अन्वेषण (Investigation), परीक्षण (Examination) एवं प्रक्षेपण (Projection) का प्रांरभ हुआ|

मिथक की आवश्यकता क्यों होती है? मिथक सत्य से दूर होता है, जबकि विज्ञान सत्य के निकट होता है| जब विज्ञान निष्पक्ष रूप में तथाकथित प्रबुद्ध समाज की मंशा या शोषक वर्ग की मंशा के अनुरूप व्यवस्था की व्याख्या नहीं करता है, तो विज्ञान के स्थान पर सत्ता या व्यवस्था को मिथक गढ़ने की आवश्यकता हो जाती है| लोगो की अज्ञानता उन्हें मिथक को ढोने को बाध्य करती है, परन्तु मिथक को बनाये रखने में साजिशें भी होती हैं| साजिशन इसीलिए मिथक को विज्ञान के आवरण में पेश किया जाता है|

 मुझे तो यहाँ तक कहना कि, मिथक ने सिर्फ विज्ञान का ही नहीं, बल्कि धर्म एवं संस्कृति का भी आवरण (Veil) ओढ़ लिया है, और जन जीवन में समाहित होकर व्याप्त हो गया है| विज्ञान में बौद्धिकता होती है अर्थात तर्क होता है| मिथक में धर्म होता है अर्थात भावनात्मकता होती है|

पश्चिम के समाज ने क्या किया, जिससे वहाँ पुनर्जागरण आया, फिर विकास हुआ, और फिर वह काफी मजबूत होकर उभरा?

उन्नीसवीं सदी में और उसके आसपास वहाँ पाँच विचारक पैदा हुए,और इनके विचारों के कारण सब कुछ बदल गया| इन पांचो ने मिथकों पर कई दृष्टिकोणों से प्रहार किया और हर किसी चीज को देखने एवं समझने का नजरिया बदल दिया| इन्होंने हर चीज को एक वैज्ञानिक नजरिया (Attitude) देकर उसके वर्तमान स्वरुप को निखार दिया| ये पाँच विचारक - चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin), कार्ल मार्क्स (Karl Marx), सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud), अल्बर्ट आइन्स्टीन (Albert Einstein), और फर्डीनांड डी सौसुरे (Ferdinand de Saussure) हैं| यही पाँचों विचारक ही आधुनिक युग की आधुनिकता यानि वैज्ञानिकता के जनक हैं, और विकास के आधार हैं| 

हमें विज्ञान एवं मिथक को समझने का आधार समझना होगा| इसी से मिथक से विज्ञान को अलग किया जा सकेगा| इसी से समाज में वैज्ञानिकता एवं आधुनिकता आ सकेगी| यही विकास को गति देगा और मानव संसाधन को अपनी पूरी संभावनाओं (Full Potential) को प्राप्त करने में सहायक बनेगा|   

"मूल निवासी" की अवधारणा को अच्छी तरह से समझने के लिए इनके विचार को जाना जाए| अब हमें यह समझना है, कि इन पाँचों विचारकों ने क्या दिया और कैसे इसे प्रभावित किया? 

मानव समाज ‘प्रकृति’ (Nature) का अभिन्न अंग है तथा ‘प्रकृति’ सदैव बदलती रहती है, और इसीलिए मानव समाज भी सदैव बदलता रहता है| डार्विन ने ‘मानव समाज’ का ‘प्रकृति’ से सम्बन्ध (संघर्ष) को, मार्क्स ने मानव समाजों के आपसी सम्बन्ध (संघर्ष) को, फ्रायड ने मानव के ‘आंतरिक सम्बन्ध (संघर्ष)’ को, आइंस्टीन ने पृथ्वी वासियों (मानव) एवं ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध को, तथा सौसुरे ने मानव के व्यक्त (अभिव्यक्त – Expressed) शब्दों तथा उसके अव्यक्त भावों या मंशाओं के सम्बन्ध को रेखांकित किया|

डार्विन ने बताया कि सभी जीवों का क्रमिक विकास अर्थात उद्विकास (Evolution) हुआ है| सभी जीव, मानव सहित, किसी सर्वोच्च रचियता के विशिष्ट निर्माण का परिणाम नहीं हैं| ‘सर्वोच्च रचियता’ (God) के द्वारा किसी ‘विशेष जीव’ की रचना किए जाने के विचार का खण्डन हुआ अर्थात तथाकथित ईश्वर के होने का खण्डन हुआ|  

इन्होंने अपनी पुस्तकों  “On the Origin of Species by Means of Natural Selection” (1859) एवं “The Descent of Man” (1871) में उद्विकास के प्राकृतिक चयन  (Natural Selection), अनुकूलन (Adoption) एवं योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the Fittest) के सिद्धांत दिए| इसी से यह स्थापित हुआ कि सभी जीवों का उद्विकास एक कोशिकीय प्राणी से हुआ तथा इनके प्रजातीय भिन्नता में प्राकृतिक चयन एवं अनुकूलन की भूमिका है| इसने आदमी के ईश्वरीय रचना की अवधारणा को ध्वस्त कर दिया| उस समय यह एक क्रन्तिकारी अवधारणा थी| आज भी बहुत से समाजों में तथाकथित ईश्वर और उनकी लीलाओं की मान्यता व्याप्त है; तय है ये सभी अविकसित समाज एवं देश में ही होंगे| इसने व्यक्तियों, समाजों या मानव समूहों की भिन्नताओं को जानने एवं समझने के लिए तार्किक एवं वैज्ञानिक आधार दिया| इसी के आधार पर प्राकृतिक चयन, अनुकूलन, उत्परिवर्तन, जीन एवं  जीनीय पूल, अनुवांशिकी बहाव तथा अनुवांशिकी प्रवाह विकसित हुआ जो प्रजातियों एवं मानवों में भिन्नताओं के कारणों को समझने में सहायक हुआ| यह मूल निवासी की कहानी की सत्यता को समझने में सहायता करती है|

मार्क्स ने समाजो के विकास (Development) एवं रूपांतरण (Transformation) की प्रक्रिया की वैज्ञानिक व्याख्या किया| इनका तर्क था, कि संस्था (Institution) ही विचारो (Ideas, Thoughts) को निरुपित करती है| अर्थात उसकी प्रकृति को आकार देती है, और यही समाज की प्रकृति को परिभाषित करता है| इन्होंने समाज के विकास, भिन्नताओं एवं रूपांतरण को आर्थिक शक्तियों के प्रभाव से निर्मित, संचालित, नियमित तथा नियंत्रित बताया| आर्थिक शक्तियों से इनका तात्पर्य मानव समाज के उत्पादन (Production), वितरण (Distribution) एवं विनिमय (Exchange) की शक्तियों एवं उनके अंतर्संबंधों से है| यह आज भी किसी समाज की भिन्नताओं और इनके सम्बन्धों की वैज्ञानिक व्याख्या करने में सक्षम है| इसके पहले समाज में पौराणिक कल्पित कथाओं यानि मिथकों का ही चलन व्याप्त था| समाज यानि मानव समूहों की भिन्नताओं की वैज्ञानिक व्याख्या इसके पहले नहीं मानी जाती थी| मिथक हमें समस्या की जड़ तक पहुँचने में बाधक बनता है| मिथक उस समाज की एक बड़ी आबादी को निकम्मा बनाए हुए रहता है| मिथक, चूँकि समस्या की जड़ तक पहुँचने नहीं देता है, समाज की अधिकांश उर्जा, समय, धन एवं संसाधन को बरबाद कर देता है| समाज का बहुसंख्यक आबादी अनावश्यक उलझन में उलझी रहता है, और प्रगति के तथाकथित धुंध (Mist) में बर्बाद होती रहती है| मार्क्स की अवधारणा इस धुंध को हटाकर सब कुछ स्पष्ट कर देती है| इसके आधार पर हम आर्यों की कल्पित कहानी और उनके तथाकथित मूल निवासियों से कल्पित संघर्ष को समझ सकते हैं|साथ ही इससे हम इन कल्पित कहानियों की आवश्यकता को भी समझ सकते हैं|

फ्रायड ने सामाजिक विकास एवं रूपांतरण की व्याख्या में पहली बार मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को आधार दिया| इसमें उसने मानवीय 'सहज प्रवृति' (Instincts या Drives) को मानवीय विचार, व्यवहार एवं आदर्श को निर्धारित एवं नियंत्रित करने वाला पाया| इन्होंने 'आत्म' (Self) की क्रियाविधि को इड (Id), इगो (Ego), एवं सुपरइगो (Superego) के आधार पर समझया| 'इड' जैवकीय अचेतन की प्रेरणा (Biological Unconscious Drives) है, और सभी जीवों में पाया जाता है| यह सभी की प्राकृतिक प्रवृति है| 'सुपरइगो' समाज द्वारा नियंत्रित आलोचनात्मक चेतना (Critical Conscious) है| यह 'इड' की भावनाओं को संस्थाओं (विवाह, परिवार, समाज, विद्यालय, राज्य, मुद्रा, कम्पनी इत्यादि) द्वारा प्रतिबंधित  करता है, (जो निम्नतर पशुओ में नहीं होता है)| 'इगो' शेष दोनों इड एवं सुपरइगो के बीच वास्तविक संतुलन बनाता है|

अब किसी भी मानवीय विचार, व्यवहार एवं आदर्श को समझने के लिए मनोविज्ञान का होना महत्वपूर्ण हो गया|

किसी समाज के किसी वर्ग की आवश्यकता (Needs), मंशा (Intentions) तथा बाध्यता (Compulsions) को समझने के लिए उसके व्यक्तिगत एवं सामाजिक मनोविज्ञान को समझना जरूरी है| कोई बात वस्तुनिष्ट नहीं होती है| उसकी वस्तुनिष्टता को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक समझ फ्रायड देते हैं| इसके आधार पर आप भी किसी बात को समझने में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित कर सकते है| इससे आप शासक या शासित वर्ग का मनोविज्ञान जानकर उनके व्यवहारों एवं कार्यों को जान पाते हैं| आज मनोविज्ञान बहुत ही विकसित अवस्था में है| इससे आपको मूल निवासी की कहानी के पीछे के कहानी यानि मंशा (Intention) को समझने में सहायता मिलती है| इससे हमें, शासकों के लिए मूल निवासी अवधारणा की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता क्यों पड़ी, समझा जा सकता है|

आइन्स्टीन ने विज्ञान में पूरा पैरेडाइम शिफ्ट कर दिया| उन्होंने पृथ्वी सहित ब्रह्माण्ड की हर वस्तु एवं घटना को सापेक्षिक (Relative) बताया| इन्होंने समय (Time), स्थान एवं आकार (Space) को भी सापेक्षिक बताया| उन्होंने सापेक्षिता के विशेष नियम (1905) एवं सापेक्षिता के साधारण नियम (1915) के द्वारा परम्परागत भौतिकी में क्रान्ति ला दिया| इन्होंने फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव (आइन्स्टीन को नोबल पुरस्कार इसी के लिए मिला, सापेक्षिता के सिद्धांत के लिए नहीं) की व्याख्या कर पदार्थ एवं उर्जा के अंतर्संबंधों को समझाया|  इसके आधार पर 'प्रकृति'(Nature या कायनात) की क्रियाविधि को ज्यादा निकटता से समझा जा रहा है| आप इसके द्वारा यह जान पाते हैं कि आपकी सोच कैसे वास्तविकता में बदलती है? वस्तु एवं तरंग के सम्बन्ध ने 'क्वांटम भौतिकी' को 'क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत' (Quantum Field Theory) तक बढ़ा दिया| आज प्रेक्षक सिद्धांत (Observer Theory) से सोच कर भौतिक पदार्थो को पाने की यह क्रिया विधि समझाता है| यह सब मिथक की कहानियों को खंडित करने एवं विज्ञान को सत्य के करीब लाने में सहायक हुआ| यह पहले यह संभव नहीं था|

इनके सापेक्षता के सिद्धांत ने हमें हर विषय को दूसरे के सन्दर्भ में समझने के लिए बाध्य किया| इससे यह समझने में आसानी हुई कि "मूल निवासी" की कहानी भी आर्यों की कहानी के सापेक्ष आयी, और यह आर्यों की कल्पित कहानी को सही बताने के लिए आयी| फिर आर्यों की कहानी से कैसे कुछ तथाकथित वर्णों की उत्कृष्टता, सर्वोच्चता, विशिष्टता, एक शुद्धता स्थापित होती है, यही समझना है|

फर्डीनांड डी सौसुरे ने लिखावट के शब्दों एवं वाक्यों को समझने के तरीको को बदल डाला| इन्होंने शाब्दिक अर्थो के मकड़जाल (The Web of Meaning) की अवधारणा को जन्म दिया एवं संरचनावाद (Structuralism) का सिद्धांत दिया| इनका कहना है, कि किसी भी शब्द या वाक्य के अर्थ का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता है| इनके अनुसार उसका अर्थ उसके अपने सन्दर्भ (Reference और Ecosystem), अन्य शब्द एवं वाक्य के सम्बन्ध में होता है| इससे भाषाओं के अध्ययन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ| इन्होंने कहा कि शब्द किसी लिखावट में संकेतों (Sign, Characters) का समूह है, जो किसी ध्वनि  को, किसी विचार को या अवधारणा को प्रतिबिंबित (Reflect) करता है एवं सम्बन्धित (Corelate) करता है| इस तरह शब्द या वाक्य का स्वयं कोई अर्थ नहीं होता, और वह उस पुरे लिखावट के सन्दर्भ में तथा पूरी पारिस्थितिकी (Whole Ecosystem) (समय, स्थान, कालक्रम, परिस्थिति) के सन्दर्भ में होता है| इसीलिए किसी भी शब्द या वाक्य के अर्थ को सही ढंग से समझने के लिए उस पूरी लिखावट को, उसके प्रतिरूप (Pattern) को, उस समय के काल क्रम को, उस समय के लोग को, उस समय की परिस्थिति (Situation) को, उस स्थान की पारिस्थितिकी (Ecology) को सम्यक (Proper) रूप में समझना होगा| इस तरह किसी शब्द का सतही अर्थ (Surface Meaning) भी हुआ और उसका वास्तविक अन्तर्निहित अर्थ (Underlying Meaning) भी| इसलिए किसी भी लिखावट की प्राधिकृत व्याख्या पर संशय किया जाने लगा| अत: हमें भी किसी शब्द के ‘सतही अर्थ’ एवं ‘अन्तर्निहित वास्तविक अर्थ’ को समझना है| इनकी अवधारणा मूल निवासी एवं सम्बंधित अवधारणाओं को सही सन्दर्भ एवं अर्थ में समझने में सहायता करेगी| इनके द्वारा आप वैज्ञानिक बामशाद एवं उनकी टीम, उनके पीछे के लोग, और उसमे जाने- अनजाने लगे हुए लोगों की भावनाओं एवं मंशाओं (Emotions & Intentions) को समझ सकेंगे|

उपरोक्त पाँचों विचारकों के कारण मिथक मरणासन्न हो गया है| अब ये मिथक कुछ दिनों के मेहमान हैं| आज मिथकों को यूनेस्को (UNESCO) के प्रजाति सम्बन्धी घोषणा पत्रों (Declaration relating Race), जीवविज्ञान (Biology), आणविक जीवविज्ञान (Molecular Biology), अनुवांशिकी (Genetics), मानव विज्ञान (Anthropology), पुरातत्व विज्ञान (Archaeology), मनोविज्ञान (Psychology), अर्थशास्त्र (Economics), भाषाविज्ञान (Linguistics), आधुनिक भौतिकी (Modern Physics) (क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत – Quantum Field Theory) के आधार पर देखा एवं कसा (to Scale) जाने लगा है| आज विश्व एक सीमित गाँव हो गया है| जिस भी चीज को विश्व यदि मिथक मान लेता है, तब विश्व के किसी भी अन्य हिस्से को उसे कल्पना मान लेने की बाध्यता हो जाती है| आप अपनी बात को विश्व जनमत तक पहुचायिए, आपकी विजय निश्चित है|

आज वैज्ञानिक मानसिकता की स्वीकार्यता बढती जा रही है| विज्ञान गुत्थियों को सुलझाता जा रहा है| इसीलिए कुछ चतुर चालक लोग विज्ञान के आवरण (Veil) में मिथक को स्थापित करने में लगे हैं| यह आपकी सजगता एवं आपकी वैज्ञानिक मानसिकता से स्पष्ट हो सकता है| मैं मिथक पर विज्ञान का आवरण चढ़ाने का एक उदहारण देना चाहूँगा| बहुत से लोग आपको इस सृष्टि (Universe) की विशेषताओं का वृहत, विस्तारित एवं वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत करेंगे| लम्बे समय तक विवरण सुनाने के बाद अर्थात लम्बे समय तक विज्ञान का गुणगान करने के बाद अंत में इसे किसी ईश्वर का कमाल बता देंगे| कम बौद्धिक क्षमता और विश्लेषण क्षमता के लोग प्रकृति और उसके व्यक्तिकरण (Personification - मानव स्वरूप) में अंतर नहीं कर पाने के कारण, इसे ही सही मान लेते हैं| इतना मान लेने के बाद उनके मिथकों का खेल शुरू होता है| वे उन ईश्वर के मध्यस्थ बनते हैं, मानों वह ईश्वर उनकी बात सुनता, समझता और मानता भी है| इस तरह वे प्रकृति एवं उसके मानव स्वरूप का धुन्ध बनाने में सफल हो जाते हैं| प्राकृतिक शक्तियों का गुण- धर्म स्थिर रहता है और हम उनके अनुसार इसका उपयोग कर पाते हैं| जबकि ईश्वर की स्थिति में हम कुछ मध्यस्थों के कारण ईश्वर के ही गुण – धर्म को बदल देते हैं| यह अंतर उन्हीं को समझ में आएगा जिन्होने अपनी तर्कशीलता एवं विवेकशीलता का उपयोग किया है| ये मध्यस्थ विज्ञान के आवरण में अपनी बात रखते हैं और तथाकथित रट्टू लोगों को अपनी बात मनवाने में सफल होते हैं| आज विकसित समाजों के तथाकथित धार्मिक स्थल उपेक्षाओं के शिकार हो रहे हैं| यह मिथक पर वैज्ञानिकता का एक उदहारण मात्र है|

आज के विश्व -समाज को यदि विकास के पैमाने पर वर्गीकृत किया जाए तो मेरे अनुसार समाज को विकसित (Developed) और अविकसित (Undeveloped) केवल दो ही अवस्था में होना चाहिए| हाँ, कुछ देश अविकसित हैं, और उनके संस्कार भी अविकसित है, परन्तु अविकसित कहलाने में शर्म महसूस होती है, तो आत्ममुग्धता के लिए यानि झेंप मिटाने के लिए उन्होंने एक नया शब्द गढ़ लिया है| इसे 'विकासशील' (Developing) समाज या देश कहा जाता है| क्या विकास का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मान्यता या मिथक एवं विज्ञान से है? इसका स्पष्ट उत्तर है – हाँ। ‘मिथक’ गलत उद्देश्य को स्थापित करने एवं उसे बनाए रखने के लिए काल्पनिक कहानियाँ होता है और विज्ञान सामाजिक विकास एवं रूपांतरण  की सही प्रक्रिया को समझने की विधि है| इसी विज्ञान की समझ (Understanding of Science) से ही विकास के संस्कार (Mentality / Outlook of Development) पैदा होते हैं| इसीलिए ‘मिथक एवं विज्ञान’ के सन्दर्भ में विकास की अवस्था पर विमर्श कर रहा हूँ| वैसे कुछ समाज, बाज़ार (पश्चिमी देशों से) से कुछ चीजें खरीद कर भी अपने को विकसित समझने का भ्रम बनाते हैं| कुछ समाज अपने बड़े बाजार होने के कारणों के महत्व से अपनी व्यवस्था को  विकास (Development)  समझने की गलती कर बैठते है| इसी को लेकर कुछ अविकसित देश अपने को विकासशील समझते हैं और अपने देश को एक ही काल में ठहराए हुए रहते हैं| इसे वर्तमान के प्रति, भविष्य के प्रति, समाज के प्रति और देश के प्रति एक गंभीर अपराध माना जाना चाहिए|

यूरोप में पुनर्जागरण के आन्दोलन ने विज्ञान को मिथक के आवरण से मुक्त कराया और वह एक विकसित समाज बन गया| यूरोप में सोलहवीं शताब्दी में फ्रांसिस बेकन ने ‘कारण- कार्य के सम्बन्ध’ को रेखांकित किया और वहाँ विज्ञान का विकास हो सका| फ्रांसिस बेकन ने जो काम यूरोप में सोलहवी शताब्दी में किया, वह भारत में दो हजार छ: सौ वर्ष पूर्व गोतम बुद्ध ने किया था| परन्तु अपने सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण पूरब के देश एवं मध्यपूर्व के देश मिथक को विज्ञान के घालमेल से मुक्त नहीं करा पाये है| इसे आप यथास्थितिवादी शक्तियों की इच्छा का परिणाम भी बता सकते हैं| इसका परिणाम यह है कि अपने ऐतिहासिक अतीत के गौरव के बावजूद भी ये क्षेत्र अभी भी अविकसित क्षेत्र हैं| ये समाज आत्ममुग्धता के लिए  अपने को तथाकथित विकासशील या कोई दूसरे नाम से अपने को संबोधित करते हैं | तथाकथित 'मूल निवासी' अवधारणा एवं सापेक्षिक आर्यों की कल्पित कहानी से मिथक को हटाने लिए ही एक व्यापक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है| यह दृष्टिकोण इसके अलावे अन्य में भी मिथक को विज्ञान से अलग करने में सहायक होगा|

निरंजन सिन्हा 

चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक, एवं बौद्धिक उत्प्रेरक 

3 टिप्‍पणियां:

  1. "मूल निवासी का सच" पुस्तक का एक अध्याय।

    बहुत ही वैज्ञानिक, तर्कशील, एवं गहन अध्ययन।

    वास्तव में सम्पूर्ण पुस्तक शानदार होगा।

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  2. सादर प्रणाम सर जी
    बहुत सराहनीय ज्ञानवर्धन लेख जिसमे विज्ञान व मिथक जानने का अवसर मिला । आभार सर जी

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  3. जबरदस्त लेखन। जैसे दूध से खोवा निकाला जाता है, वैसे ही समाज को अपने ज्ञान की आँच में तपाकर सार निकाल लेते हैं। पुस्तक की बेसब्री से प्रतीक्षा में..

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