मंगलवार, 3 जून 2025

राजीव गुप्ता का काफी हॉउस

बात राजीव गुप्ता के “काफी हॉउस” की है| राजीव भाई मेरे विभागीय बैचमेट हैं, लेकिन स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने में मुझसे बहुत आगे निकल गये, अर्थात ये मुझसे बहुत पहले ही राज्य ‘वित्त सेवा’ की नौकरी छोड़ दिए और ‘सामाजिक आर्थिक नवनिर्माण’ में लग गये| इनको प्रीति भाभी का अदम्य समर्थन जो मिल गया था| ये ‘टेड एक्स – काँके’ के संरक्षक (Curator) भी हैं, और इनके इस प्लेटफार्म पर देश विदेश के कई नव निर्माता एवं विचारक भी आते रहते हैं| इन्होने रांची ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान’ (IIM) से प्रबन्धकीय उपाधि भी ले रखी है| दरअसल ये मेरे जिला-जवार के भी हैं|

तो बात उनके ‘काफी हॉउस’ की हो रही थी| ‘काफी हॉउस’ और कुछ नहीं, सिर्फ काफी पीने के बहाने “विचार विमर्श” का अड्डा होता है| यह ब्रिटिश संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा था, और शायद अभी है| वही ‘ब्रिटिश संस्कृति’ जिसका वैश्विक प्रसार पहले साम्राज्यवाद के रूप था,और अब वैश्विक संस्कृति के रूप में जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद है| मतलब इस ‘काफी हॉउस’ ने ब्रिटिश समाज के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक – जीवन के सभी क्षेत्रों में ‘उत्कृष्टता’ लाया है| यह ‘विचारों की शक्ति’ है, जिसने विश्व व्यवस्था को बदल दिया और ब्रिटिश संस्कृति को वैश्विक स्तर पर व्यापक एवं गहन बना दिया| यह ‘काफी हॉउस’ ‘विमर्श’ का केंद्र हुआ करता था, कोई ‘बहस’ करने का जमघट नहीं था| उत्तरी भारत में ‘चाय दूकान’ बहस का अड्डा होता है, जहाँ संसद से ज्यादा गंभीर मुद्दों पर बहस छिड़ा रहता है, लेकिन सभी बातें नकारात्मक ही होती है, और इसीलिए यह बहस बड़ी कडवाहट के साथ समाप्त होती है| यह ‘चाय दूकान’ ब्रिटिश ‘काफी हॉउस’ का भारतीय, लेकिन नकारत्मक संस्करण है|

ब्रिटिश ‘काफी हॉउस’ ने तो ब्रिटिश साम्राज्य का भौगोलिक, आर्थिक, वित्तीय, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक विस्तार दिया, लेकिन भारतीय संस्करण ‘चाय दूकान’ ने तो आपसी कलह एवं विद्वेष बढ़ाने एवं फैलाने में बड़ी अहम भूमिका निभाने लगी है| चूँकि ‘काफी हॉउस’ में ‘विमर्श’ होता है, इसीलिए इसका मुद्दा “आदर्श एवं विचार” (Ideals n Ideas) का होता है, लेकिन ‘चाय दुकान’ का मुद्दा सदैव ‘व्यक्ति एवं घटना’ (Individuals n Incidences) का विवरण तथा समीक्षा होता है| जहाँ ब्रिटिश ‘काफी हॉउस’ की विषय वस्तु सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक नव निर्माण की होती है, वहीं भारतीय ‘चाय दूकान’ का मुद्दा राजनीतिक ज्यादा होता है, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक नव निर्माण की तो कदापि नहीं हो सकता| और मुद्दा जब राजनीति का होगा, तब उत्तर भारतीय बिना धर्म एवं जाति के मुद्दों के रह ही नहीं सकते हैं| मतलब यह साफ़ है कि ‘चाय दूकान’ कभी सृजनात्मक एवं सकारात्मक पहल का केंद्र बन नहीं पाता है| इसीलिए राजीव भाई ने ‘भारतीय ‘काफी हॉउस’ की शुरुआत की है|

जब मैं पहली बार उनके रांची स्थित ‘काफी हॉउस’ में गया था, तो मैं उस ‘काफी हॉउस’ की मूल भावना और कार्य प्रणाली को भी समझना भी चाह रहा था| मैं एक निष्क्रिय श्रोता के रूप में काफी की चुस्की ले रहा था| बात यह चल रही थी कि ‘विचार’ कैसे समाज को नियमित और नियंत्रित करता है| वहां एक वक्ता काफी के चुस्कियों के साथ फ़्रांस के इतिहास के सम्बन्ध में एक प्रसंग सुना रहे थे| एक बार जर्मनी की सेना ने फ़्रांस विजय की मंशा से फ़्रांस पर आक्रमण कर दिया| इस आक्रमण के सम्बन्ध में राजधानी पेरिस के एक प्रमुख अखबार एक प्रसंग का ब्यौरा प्रकाशित हुआ|

प्रसंग यह था कि जब जर्मन सेना एक पहाड़ी नदी पर बने पुल को पार कर फ़्रांस क्षेत्र में प्रवेश कर रही थी, उसी समय उसी पुल के नीचे एक फ्रेंच महिला कपडे धो रही थी| दरअसल उस महिला का कपड़ा धोना उसका पेशा था, और उसी सिलसिले वह अकसर नदी तट पर आती रहती थी| उसने पहली बार विचित्र वेश भूषा कुछ हथियाबन्द लोगों को अपने देश की सीमा घुसते देख रही थी| ऐसी स्थिति में वह ‘धोबिन’ उस पुल पर चली आयी, जिस रास्ते जर्मन सेना फ़्रांस में प्रवेश कर रही थी| उसे यह जानने की उत्कट अभिलाषा थी, कि वे लोग कौन हैं, और वे क्या करने फ़्रांस देश में आ रहे हैं? उसे बहुत अटपटा लग रहा था| उसे कुछ समझ में नहीं आया, तो वह महिला उस संकरे रास्ते के मध्य खड़ी होकर उस सैन्य अभियान की बाधा बन गयी, और उससे परिचय और प्रयोजन पूछ डाली|

जब वह महिला उस सैन्य दस्ता का परिचय और प्रयोजन जान गयी, तब वह महिला अपनी पूरी शक्ति से उस सैन्य दस्ते पर वहां पड़े हुए रोड़े (पत्थर) बरसाते हुए विरोध करने लगी| इसके ही साथ वह महिला चिल्ला भी रही थी, कि उसके जिन्दा रहते कोई विदेशी सैन्य दस्ता फ़्रांस के देश में नहीं घुस सकता है| देश की रक्षा के लिए अपने सामर्थ्य से अधिक विरोध करते हुए वह महिला वहीं शहीद हो गयी| अखबार के इस प्रकाशित समाचार ने फ़्रांसिसी नागरिकों में देश भक्ति उबाल ला दिया| फ़्रांसिसी देशभक्ति का उफान अपनी चरम पर थी| जर्मन सेना को फ्रांसीसियों का सशक्त विरोध झेलना पडा, और वह जर्मन अभियान असफल हो गया| फ़्रांसिसी नागरिक विजयी हुए|

अब, फ़्रांस की उस सीमा पर शहीद हो गयी उस महान महिला की तलाश की गयी| दरअसल वह महान महिला फ़्रांस की गौरव का प्रतीक बन गयी थी| उस महान मातृ शक्ति का बहुत पता किया गया, लेकिन उस महान शहीद महिला का कुछ भी पता नहीं चला| अन्त में, उस अखबार के सम्पादक से संपर्क किया गया, तो सम्पादक ने उस फ़्रांसिसी दार्शनिक के बारे में बताया, जिसने उस घटना का यह विस्तृत ब्यौरा उस अखबार को भेजा था| जब उस फ़्रांसिसी दार्शनिक से संपर्क किया गया, तो इस प्रसंग के बारे में जान कर फ्रांसीसियों को काफी आश्चर्य हुआ| दरअसल वह सम्पूर्ण प्रसंग ही उस दार्शनिक की कल्पना की उपज थी, और सीमा पर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था|

यह है “विचारों की प्रचंड शक्ति”, जिसने शक्तिशाली जर्मन सेना को हरा दिया था, और जर्मन सेना को तुरंत वापस लौट जाना पड़ा| मैं राजीव भाई के इस ”वैचारिक उत्पादन केंद्र” के दर्शन को समझ कर स्तब्ध था, जिस केंद्र पर राष्ट्र और मानवता के नव निर्माण के लिए “प्रचण्ड विचारों” का अद्भुत उत्पादन हो रहा था| मैं तो अबतक विश्व विद्यालयों को ही वैचारिकी उत्पादन का केंद्र समझता आ रहा था| लेकिन विश्व विद्यालयों के वैचारिक उत्पादन तो घिसी पिटी पैटर्न (प्रतिरूप) पर ही होती है, और नयी नवाचारी बातों एवं विचारों के लिए विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय प्रबंधन अनुमति ही नहीं देते, कुछ अपवाद को छोड़ कर| लेकिन राजीव भाई के इस ‘भारतीय काफी हॉउस” में तो नवाचारी विचारों के उत्पादन के लिए समाज के सभी धाराओं का स्वागत है, और शायद इसीलिए मुझे यह नवाचारी बात सुनने का मौका मिला| मैं तो वहां कुछ बोल नहीं पाया, लेकिन मनन मंथन में डूब तो गया ही|

मैं अब यह चाहने लगा हूँ कि राजीव भाई मेरे छोटे नगर में भी ‘भारतीय काफी हॉउस” की स्थापना और सञ्चालन में मदद करें और सक्रिय मार्गदर्शन भी करें|

इस सम्बन्ध में आपकी राय क्या है?

आचार्य प्रवर निरंजन जी

अध्यक्षभारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|

4 टिप्‍पणियां:

  1. कॉफी हाउस के जरिए 'विमर्श की उपादेयता ' पर अत्यंत गहन एवं सार्थक विश्लेषण। ' विचार क्रांति ' के माध्यम से समाज के युवा वर्ग को सतत नई दिशा तथा ऊर्जा प्रदान करने के लिए भाई राजीव तथा भाई निरंजन को हार्दिक बधाई तथा साधुवाद !

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  2. यह कहानी न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि एक सशक्त नैरेटिव (वृत्तांत) कैसे समाज को दिशा दे सकता है। विचारों की ताकत और सही कहानी कहने की कला से परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है — यही इसका सबसे बड़ा संदेश है।

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  4. बहुत ही प्रेरक आलेख, जो इस बात के महत्व को रेखांकित करता है कि किस प्रकार सकारात्मक विचारों तथा कथानकों का उत्पादन होता है, और कैसे वह जनमानस में गहरी पैठ बनाकर उनके आचरण और व्यवहार को प्रति पल नियंत्रित और निर्देशित करता है।

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