यह सवाल कि क्या आस्तिकता और नास्तिकता एक ही तथ्य के दो स्वरुप है? आपको बहुत अटपटा लग रहा होगा। हाँ, दोनों ही एक है। इसके लिए आपको इस संक्षिप्त आलेख को ध्यान से पढना और समझना है। इसके अन्तिम पैरा में आपको स्वत: स्पष्ट हो जाएगा।
यदि हमलोग
अपने आप को बुद्धिजीवी समझते हैं,
और मानवता के वर्तमान एवं भविष्य को सजाना और संवारना चाहते
हैं, तो बहुत अच्छी समझ है| लेकिन यदि हमलोग सिर्फ अपने को ही समझदार और बौद्धिक
समझें, और इसके साथ ही सामने वाले को सिर्फ मूर्ख समझते रहें, तो यह हमारा घमंड है
और इसीलिए शायद हमलोग बौद्धिक ही नहीं है| ऐसे लोग प्रत्येक सामाजिक फोरम पर दूसरे
के ज्ञान एवं समझ पर नुक्स तो निकालते रहेंगे, लेकिन उनके द्वारा कोई व्यावहारिक समाधान
नहीं सुझाया जायगा, या समाधान की ओर कोई नेतृत्व भी नहीं दिया जायगा| ऐसे लोग
सिर्फ बड़ी बड़ी सैद्धांतिक बाते करेंगें, लेकिन ऐसे लोग कोई ठोस व्यवहारिक समाधान नहीं
देंगे| ऐसे लोगों को अपने ज्ञान पर घमंड होता हैं, लेकिन उन्हें अपने घमंड का
ज्ञान ही नहीं है|
'आस्तिकता और नास्तिकता' को जानने के लिए हमें बौद्धिकता, चेतनता एवं व्यावहारिकता को समझना चाहिए।|बौद्धिकता वह अवस्था है जिसमे कोई व्यक्ति बुद्धि का समुचित एवं उपयुक्त उपयोग एवं प्रयोग करता है| अपने परिवेश एवं पारिस्थितिकी के प्रति चेतनशील यानि संवेदनशील रहना, यानि इसके बदलते स्वरुप के प्रति सजग, सतर्क, संवेदनशील और व्यावहारिक रहना ही चेतनता है| बौद्धिकता और चेतनता का ऐसा उपयोग करना, जिससे मानवता के वर्तमान एवं भविष्य को सुधारा एवं सजाया जा सके, व्यावहारिकता कहलाता है|
आप
कोई बौद्धिक बात,
वैज्ञानिक बात,
यानि समझदारी भरी ज्ञान किसी को समझाना या देना चाहते हैं
और सामने वाला वह व्यक्ति उन सब बातों को नहीं समझ पा रहा है, तो इसके क्या
क्या निहितार्थ हो सकते हैं? इसका स्पष्ट
मतलब है कि या तो उस सामने वाले व्यक्ति के चेतना का स्तर आपसे निम्नतर है, या आपका ही
चेतना का स्तर उससे निम्नतर है,
और इसीलिए उसे नहीं समझाया जा सकता है। तब आपका ऊर्जा, समय, संसाधन एवं
वैचारिकी व्यर्थ जा रहा है,
अर्थात आपका वह प्रयास ही व्यावहारिक नहीं है। स्पष्ट है कि चूँकि उसकी चेतना
का स्तर ही आपसे निम्नतर है,
या आपसे उच्चतर है, तो ऐसी अवस्था में चेतनता की दो अलग अलग दुनिया है, और
इसीलिए इसमें बौद्धिकता का प्रवाह ही नहीं होगा|
बाजार
की बदलती हुई व्यवस्थाओं में,
यानि तेजी से बदलती हुई आर्थिक शक्तियों के प्रभाव में
चेतना संबंधित अवधारणाएँ भी तेजी से बदलती जा रही है। लेकिन
सामान्यतः लोग इस बात को लेकर सचेत नहीं है कि उनकी चेतना के प्रति धारणाओं को कौन
और किस विधि से स्वरूप दे रहा है?
ये अवधारणाएँ व्यक्ति,
परिवार, समाज
और मानवता को किस दिशा में ले जा रही है,
या ले जाना चाह रही है?
यह चेतना ही हमारी जीवन दृष्टि है,
विश्व दृष्टि है,
भविष्य दृष्टि है। क्या हम अपने आसपास के लोगों के चेतना के स्तर की समझ रखते
हैं? सभी लोग अपनी चेतना के अनायास प्रयास से ही अवधारित स्वरूप को ही अन्तिम सत्य मान चुके हैं। इसी कारण तथाकथित
बुद्धिजीवियों को चेतना पर विमर्श के लिए ध्यान ही नहीं जाता, और
परिणामस्वरूप ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों में सिर्फ सामाजिक सांस्कृतिक पीड़ा ही व्यक्त
होती रहती है।
किसी
भी वस्तु या अवस्था का वास्तव में एक ही समय में एक ही स्वरूप होता है, लेकिन उसी का
अर्थ अवलोकन करने वाले व्यक्तियों के चेतना के स्तर के अनुरूप ही बदलता रहता है। इस तरह एक ही तथ्य के कई सत्य स्वरूप हो जाता है। चेतनता के इसी मनोविज्ञान को तथाकथित बौद्धिक नहीं समझ पाते
हैं, और इसीलिए अपने सम्पूर्ण समर्पण के वाबजूद भी सफल नहीं हो पाते हैं|
ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी चेतना को ही नहीं समझते और वे चेतना के दर्शन को नहीं
समझते, चेतना
के मनोविज्ञान नहीं समझते,
चेतना के विज्ञान एवं यांत्रिकी को नहीं समझते, और इसे समझे बिना ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी कोल्हू के बैल
साबित होकर रह जाते हैं। चेतना का दर्शन हमें जीवन का सफर सुगम बनाने की समझ
देता है। चेतना का मनोविज्ञान चेतनाधारक के जीवन को संचालित करने वाले
साफ्टवेयर, यानि
संस्कृति की सम्पूर्णता को समझाता है। तब हमें यह सब समझना चाहिए। मतलब किसी भी एक
ही वस्तु या अवस्था का स्वरूप अवलोकन कर्ता के चेतना, यानि समझदारी
के स्तर के अनुसार बदल जाता है, या बदलता रहता है, और वह अपनी समझ के अनुसार ही
व्यवहार करेगा|
चेतना और कुछ नहीं है, यह सिर्फ किसी वस्तु, या अवस्था, या परिवेश को सम्यक् एवं समुचित रुप से समझना
है। समाज में चेतना के स्तर पर
तीन तरह के लोग होते हैं| ईल्यानोर
रुजवेल्ट ने लोगों को उनके चेतना की प्रकृति के अनुसार तीन स्तर पर
वर्गीकृत किया है|
चेतना के प्रथम या उच्चतर स्तर,
चेतना के द्वितीय यानि मध्यम स्तर,
एवं चेतना के तृतीय यानि निम्नतर स्तर। मैडम रुजवेल्ट ने इसे क्रमशः बौद्धिकता
के उच्चतर लोग या चिन्तक,
मध्यमवर्गीय लोग या मध्यवर्गीय चिन्तक,
और निम्न वर्गीय लोग या छोटे चिन्तक भी कहा है। किसी समेकित आबादी का स्वरुप चेतना
के इन संयुक्त स्तर के लोग मिलकर एक पिरामिड का आकार देता हैं, जिसका आधार (base)
निम्नतर चेतना वाले, शिखर
(tip) पर उच्चतर चेतना वाले,
और दोनों के मध्य में मध्यम चेतना के मध्यमवर्गीय लोग होते हैं, और इस स्वरूप
में इसका जनसांख्यिक महत्व भी समझा जा सकता है।
मैडम के
अनुसार, छोटे
स्तर के चेतना के लोग व्यक्तियों (Individuals)
की बात ज्यादा करते हैं, यानि व्यक्तियों
के बारे में ब्यौरा ज्यादा देते हैं, यानि शारीरिक ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर ही
निर्णय ले सकते हैं|
उच्चतर स्तर के लोग विचारों एवं आदर्शो पर विमर्श (Ideas n Ideals) ज्यादा
करते हैं, यानि शारीरिक ज्ञानेन्द्रियों के अतिरिक्त मानसिक एवं
अध्यात्मिक शक्तियों (इसे अन्तर्ज्ञान - Intuition भी कहते हैं, और यह बाजारु आध्यात्मिकता से भिन्न है) का उपयोग करते हैं| मध्यमवर्गीय लोग घटनाओं (Incidences) के
विवरण ज्यादा देते हैं, यानि ये लोग निम्नतर एवं उच्चतर स्तर के मध्य में होते
हैं| स्पष्ट है कि एक ही वस्तु, या एक ही अवस्था, या एक ही परिवेश के लिए चेतना के
विभिन्न स्तरों के आधार पर भिन्न भिन्न अर्थ निकलता है, या निकाला जाता है|
इसलिए एक ही वस्तु, या अवस्था, या स्थिति को भिन्न भिन्न स्तर के लोग अलग अलग नाम देते हैं| सम्पूर्ण विश्व एवं ब्रह्माण्ड एक ‘एकीकृत फील्ड’ (देखें Unified Field Theory) से संचालित है, और इसको इसी रूप में समझने वाले लोगों को चेतनता का उच्चतर अवस्था में रखते हैं, और इनको वैज्ञानिक या वैज्ञानिक मानसिकता वाले लोग कहते हैं| ऐसे लोगों को ही 'नास्तिक' समझा जाता है। इसी अवस्था को निम्नतर चेतनता के स्तर के लोग "ईश्वर" या ‘व्यक्ति स्वरुप’ (Personification) समझते एवं व्यवहार करते हैं| इसी को कुछ लोग “सर्वोच्च सत्ता” (Supreme Power) भी कहते हैं| ऐसे लोगों को ही 'आस्तिक' कहा जाता है। इन दोनों के मध्य चेतनता वाले लोग इसे ही ‘बलों’ (Forces) एवं कणों (Particles) का सञ्चालन समझते हैं|ऐसे लोग नास्तिकता और आस्तिकता के मध्य अस्पष्ट अवधारणा में होते हैं।
इसीलिए यह एक ही तथ्य - "एकीकृत फील्ड" (Unified Field Theory) के दो पक्ष - नास्तिकता और आस्तिकता है, जिसकी समझ लोगों की चेतना, यानि उसकी बौद्धिकता के स्तर से निर्धारित होता है। इस तरह नास्तिकता और आस्तिकता एक ही सत्य के दो स्वरूप हुए।
अत: हमें लोगों की चेतनता को समझना है, और इसी
के अनुसार उनकी बौद्धिकता को भी समझना है, और इसी
के अनुरूप हमें व्यवहारिक भी बनना है; अन्यथा हम
हवा हवाई बौद्धिक हैं, और हम किसी व्यवहारिक
उपयोग के लायक नहीं हैं|
कृपया विचार
कीजिएगा|
आचार्य प्रवर निरंजन जी
अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|
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