शनिवार, 31 मई 2025

“हिटलर” सिर्फ हिटलर में ही नहीं होता!

आपने सही पढ़ा है – ‘“हिटलरसिर्फ हिटलर में ही नहीं होता’, बल्कि यह हिटलरकिसी और में भी होता है, या हो सकता है| स्पष्ट है कि शीर्षक का पहला शब्द हिटलरएक विशेषण है, जो एक कुख्यात जर्मन तानाशाह के चरित्र, प्रकृति, स्वभाव, कार्य- प्रणाली एवं विचारधारा की विशेषताओं को स्पष्ट करता हुआ होता है, और शीर्षक का दूसरा शब्द हिटलर एक व्यक्ति है और इसीलिए यह व्यक्तिवाचक संज्ञा है , जो एक सिपाही से जर्मनी का शासक बना थाउस हिटलर के आदर्शों एवं विचारधाराओं को इतिहासकार और दार्शनिक नाजीवाद कहते हैं| मतलब जो भी शासक अपने प्रकृति, स्वभाव, चरित्र एवं कार्य में उस नाजीवाद का अनुकरण करता हुआ समझा जायगा, या उसी नाजीवाद के आदर्शों से मिलता जुलता पद चिन्हों पर यानि उस नाजीवादके आदर्श पर चलता हुआ समझा जायगा, यानि उस नायक के व्यक्तित्व से समरूप व्यक्तित्व अपनाता हुआ या दिखता हुआ माना जायगा, उसे भी हिटलरही कहा जायगा|

हिटलर का उदय और शुरुआत एक सिपाही के द्वारा राष्ट्रवादके उभार पर, यानि राष्ट्रवाद के घोड़ेपर सवार होकर शुरू हुआ, और अंध राष्ट्रवाद में बदल गयायह राष्ट्रवाद’ बिस्मार्क के द्वारा जर्मनी के एकीकरण के समय से शुरू हुआजो जातीय (प्रजातीय) सर्वश्रेष्टता  के रूप मी आया था| उसने जर्मन लोगों को दुनिया सर्वोत्कृष्ट जाति का समुदाय बता कर उनके मनोबल मजबूत कर दिया था, और उसी मनोबलके उभार पर सवार होकर हिटलर हिटलरबन गया था| विश्व विज्ञान ने मानव के जीनीय भिन्नताओं के जेनेटिक आधार को अमान्य कर दिया है, क्योंकि विश्व के सभी वर्तमान मानव एक ही परिवार समूह से उत्पन्न है। लेकिन भारत में तो बहुसंख्यक आबादी के मनोबलको तोड्ने के लिए क्षुद्रिकरण यानि शुद्रीकरण का महान अभियान चलाया जा रहा है, और इसी पर राष्ट्रवादको सवार करने का प्रयास जारी है| उस नाजीवादका आवश्यक परिणाम यह हुआ कि जर्मनी के तो दो टुकडे हो गये, हिटलर का अंत मौत में हुआ, और विश्व ने भयानक त्रासदी झेली| आज हिटलर का नाम आदर्शके रूप लेने वाला कोई  नहीं है, आज कोई भी अपने को उसका उत्तराधिकारी या वंशज होने का दावा खुलकर नहीं करता हैयह सभी हिटलरोंकी भी खासियत हो जाती है|

हिटलर के अंत के साथ विश्व से औद्योगिक साम्राज्यवादऔर उपनिवेशवादका भी समापन हो गयाऔद्योगिक साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का स्वरुप, कार्य प्रणाली एवं प्रतिफल सामान्य ज्ञानेन्द्रियों से देखा समझा जा सकता हैलेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया से साम्राज्यवाद समाप्त हो गया, ऐसी बात नहीं हैबल्कि वह औद्योगिक साम्राज्यवादऔर उपनिवेशवादअब वित्तीय साम्राज्यवाद में बदल कर कार्यरत हो गया| द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साम्राज्यवाद के इसी बदलते स्वरुप के परिणामस्वरुप दुनिया के अनेक औद्योगिक साम्राज्यवादऔर उपनिवेशवादसमाप्त हुआ तथा अनेक देशों को तथाकथित संप्रभुतामिली हैवित्तीय साम्राज्यवादका स्वरुप, कार्य प्रणाली एवं फलाफल को देखने एवं समझने के लिए मानसिक दृष्टि चाहता है| ‘वित्तीय साम्राज्यवादके आगमन के बाद और कंपनियों के स्वरुप एवं प्रकृति के कारण इन वित्तीय साम्राज्यवादियोंकी राष्ट्रीयताओं को खोजना एवं समझना असम्भव हो गया हैवैश्वीकरण की आर्थिक आवश्यकताओं ने राष्ट्रीयताओं की विश्व व्यवस्थामें किसी स्थान की संकल्पना को ही ध्वस्त कर दिया है| लेकिन कुछ नादानखिलाड़ी अब भी राष्ट्रीयता के घोड़े पर सवार होना चाहते हैं| आज के इन आर्थिक शक्तियों एवं साधनों की क्रियाविधियों के समक्ष ये राष्ट्रीयता के घोड़ेही बिदकने लगे है और उस भूमि की फसलों को ही कुचलने लगे हैं|

मैं बात हिटलरकी कर रहा था| यहाँ यह भी ध्यान में रहना चाहिए कि हिटलरसिर्फ व्यक्तिही नहीं होता है, बल्कि हिटलरसंस्थागत भी होता है, यानि यह हिटलरसंस्था (Institution, not Institute) भी होता है| किसी व्यक्ति शासक’ (Person Ruler)’ के मरने के बाद, या प्रभावित होकर बदल जाने के बाद, या हट जाने के बाद  उसकी प्रकृति, विचार एवं कार्यप्रणाली समाप्त हो जा सकती हैलेकिन ऐसा किसी संस्था शासक’ (Institution Ruler)’ के साथ नहीं होता है| किसी संस्थाके मामले किसी व्यक्ति शासकके मरने, हटने, या प्रभावित होने के बाद भी वह शासन व्यवस्थाजीवित होता है और कार्य करता हुआ होता है, क्योंकि एक संस्था शासकऐसे जैवकीय कारकों से नियमित एवं नियंत्रित नहीं होता हैयह भी देखना महत्वपूर्ण है कि संस्थगत हिटलरके मामलों हिटलरकी भूमिका में रहने वाला व्यक्ति मात्र कठपुतली भी हो सकता है, जो सिर्फ अपने आकाओं की भावनाओं, विचारों एवं व्यवहारों को ही अभिव्यक्त करता हुआ होता है, और उस नादान व्यक्ति का अपना कुछ नहीं होता हैऐसा सभी देशों में, चाहे वह पूंजीवादी व्यवस्था का देश हो, चाहे वह साम्यवादी व्यवस्था का देश हो, या कोई अन्य सामान्य व्यवस्था वाला देश हो, हो सकता है|

लेकिन, पुन: लेकिन, ऐसा नहीं होता है, कि किसी ‘’संस्था शासकका नाश ही नहीं होता है, या किसी संस्था शासकको नष्ट ही नहीं किया जा सकता हैयदि कोई विचारवान है, यानि बौद्धिक है, तो किसी संस्थाको नष्ट करना, यानि मिटा देना किसी भी व्यक्तिके विचारों को नष्ट करने की अपेक्षा बहुत आसान, सरल एवं साधारण होता हैकिसी भी प्राचीनतम या स्थापित संस्था को समाप्त करने के लिए उनके आदर्शों को मात्र काल्पनिक, मिथक एवं अवैज्ञानिक ही साबित करना होता है वह संस्थागत शासकसमाप्त| बिना किसी आदर्श एवं विचार के कोई संस्था हो ही नहीं सकता है, भले ही किसी को किसी संस्था के मूल आदर्श देखने समझने की क्षमता या योग्यता नहीं हो|

हिटलर का उदय हिटलरके रूप में हुआ था, क्योंकि वह जर्मन भू- राजनीति” (Geo politics) की आवश्यकता हो सकती थी, लेकिन आज के युग में भू- राजनीतिकी अवधारणा ही भूगोल और राजनीति से बाहर कर दी गयी, और आज सिर्फ राजनीतिक भूगोल” (Political Geography) ही प्रचलित रह गया है| “यह भू -राजनीति उस हिटलर के साथ ही समाप्त हो गया, क्योंकि तब साम्राज्यवाद का दृश्य स्वरुप भी बदल कर वित्तीय साम्राज्यवादमें बदल गया था| मुझे यह समझ नही है कि आज के बहुत से तानाशाह ऐसे क्यों हैं, जिनके आर्थिक सलाहकारों को इस वित्तीय साम्राज्यवादकी क्रियाविधि एवं अस्तित्व की समझ नही है

संभवत: हिटलरआगे भी आते रहेंगे, और जाते रहेंगे, लेकिन सभी हिटलरउस जर्मन जैवकीय हिटलर की ही तरह मरेंगे, या नहीं, यह कहना मुश्किल है| लेकिन यह तो स्पष्ट है कि विश्व के तमाम हिटलरको उसके जैवकीय मौत के बाद मानव- इतिहासमें कोई भी सम्मानजंक स्थान नहीं मिलता है| उनके अंध भक्त समर्थकों को भी ग्लानि होने लगता है, कि वे कैसे डिग्रीधारी थे, कैसे पदधारी थे, और कैसे बौद्धिक थे, जो उन्हें समय रहते समझ में क्यों नहीं आयायह पता नहीं किया जा सकता कि कोई जैवकीय हिटलरकब समाप्त होगा, लेकिन यह सब को पता होता है कि उस हिटलरका अंत अंत्यंत दुखदायी ही होता है|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

अध्यक्षभारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|

4 टिप्‍पणियां:

  1. हिटलरों के भविष्य का सटीक विश्लेषण

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  2. भारत में हिटलर शाही संस्थागत है, छद्म राष्ट्रवाद, जातीय श्रेष्ठता ,और काल्पनिक विचार धारा, और पूंजीवाद को लेकर आगे बढ़ रहा है

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  3. यह निबंध एक सशक्त स्मरण है कि व्यक्ति भले ही चले जाते हैं, लेकिन उनके विचार, सोच और विचारधाराएं संस्थाओं का रूप ले लेती हैं। यही विचार आगे चलकर समाज और राजनीति में स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। ऐसे विचारों का समय रहते प्रतिरोध करना आवश्यक है, वरना वे व्यवस्था में गहराई तक जड़ें जमा लेते हैं।

    निबंध यह भी दर्शाता है कि “हिटलर” केवल एक व्यक्ति नहीं था, बल्कि एक प्रवृत्ति है जो आज भी विभिन्न रूपों में दिखाई देती है—कभी सत्ता की लालसा में, कभी राष्ट्रवाद की आड़ में, और कभी धार्मिक या जातीय श्रेष्ठता के नाम पर। हमें सजग रहना होगा कि ये विचार संस्थागत न बन पाएं।

    सिर्फ विरोध करने से नहीं, बल्कि वैकल्पिक और लोकतांत्रिक सोच को मज़बूत कर ही इस खतरे से निपटा जा सकता है। जब तक नागरिक समाज, बुद्धिजीवी वर्ग और युवा पीढ़ी सक्रिय भूमिका नहीं निभाएंगे, तब तक ऐसे “हिटलर” समय-समय पर लौटते रहेंगे।

    यह लेख हमें न केवल अतीत से सीखने की प्रेरणा देता है, बल्कि वर्तमान को समझने और भविष्य को सुरक्षित करने की चेतावनी भी देता है।

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