शुक्रवार, 2 मई 2025

आतंकवाद क्यों समाप्त नहीं हो रहा?

कश्मीर के पहलगामा में पर्यटकों पर जिस तरह से वहशी और कायरतापूर्ण हमला किया गया, उसने मानवता को झकझोर दिया है। इससे यह सवाल उठता है कि हम कहाँ जा रहे हैं? आतंकवादी कौन होते है?, ये आतंकवादी क्यों बनते हैं? यह आतकवाद क्यों समाप्त नहीं हो पा रहा है? कोई बात या विचार जबरदस्ती किसी दूसरे पर थोपने के लिए किया दहशत यानि आतंक ही आतकवाद है| यह बहुत ही सटीक लेकिन व्यापक परिभाषा है, जिसमे सभी आतंकवाद शामिल हो जाता है, जो किसी भी श्रेष्टता, प्रजातीयता, सम्प्रदायिकता, राष्ट्रीयता, जातियता, या कोई अन्य संकीर्ण भावना पर आधारित होता है|

सभी आतंकवादियों का कुछ मौलिक एवं विशिष्ट प्रकृति तथा स्वभाव होता है, जो सर्वव्यापक एवं सार्वजनीन भी होता है| आतंकवादियों की संरचना के दो स्वरुप होते हैं, जिनमे पहला, खुलकर सामने आने वाले कार्यकर्ता होते हैं और दूसरा, इनका उपयोगकर्ता होता है| ये कार्यकर्ता बिना किसी हथियार के भी आतंक फैलाते हुए होते हैं, और हथियार के साथ भी आतंक फैलाते हुए होते हैं| इनका उपयोग अधिकतर राजनीति के लिए ही होता है, भले ही यह सामान्य लोगों को सांप्रदायिक, या धार्मिक, या जातीय, या नस्लीय, या भाषाई स्वरुप आदि के रूप में दिखता है|

यदि आतंकवाद विश्व से समाप्त नहीं हो पा रहा है, तो उसका एक बड़ा कारण यह भी है कि हम तथाकथित दूसरों का आतंकवाद तो समाप्त करना चाहते हैं, लेकिन अपना नहीं। इसी कारण व्व्यस्था आतंकवाद के मूल को समाप्त ही नहीं करना चाहता है। शायद इसका मूल कारण यह हो कि हम आतंकवाद की उत्पत्ति, उद्विकास, एवं क्रियाविधियों को ही नहीं समझते हैं। मानव मूलतः एक स्तनपायी पशु ही है, और इसीलिए निम्नतर मानसिकता के लोगों में इसकी हिंसक पाशविक प्रवृत्तियाँ अभी भी मौजूद है। हम यह भी जानते और समझते हैं कि शांति, सहयोग और समरसता की भावना के कारण ही हमलोग आज एक वर्तमान सभ्य एवं विकसित मानव बन सके हैं। मतलब हम शांति, सहयोग और समरसता की भावना को मूल पशुवत हिंसा की भावना पर प्राथमिकता देते हैं, और इसी कारण हम आज आधुनिक मानव भी बन सके। स्पष्ट है कि हमें मिल कर मूल पशुवत हिंसक भावना को हटाकर शांति, सहयोग और समरसता की भावना को उभारना होगा, और इसके लिए हमें सजग, सतर्क, समर्पित और योजनाबद्ध प्रयास और प्रयोग करना है।

आतंकवादियों में अधिकतर ऐसे लोग होते हैं, जो भावनात्मक रूप में बहने वाले होते हैं, आलोचनात्मक चिंतन के अभाव में विचारों में जड़ता होती हैं और इसीलिए ये अपनी पूर्व धारणाओं को बदल नहीं सकते| इसीलिए ये मूढ़ भी होते हैं और अंधभक्त भी होते हैं। ये लोग जिसे सत्य और सही मानते हैं, उनके लिए वही अंतिम तथ्य होता है, भले ही उसका तार्किकता, वास्तविकता, मानवता और वैज्ञानिकता से कोई संबंध नहीं हो। दरअसल आतंकवादियों के नेता या उपयोगकर्ता बहुत ही चतुर और चालाक होते हैं, जो अपने स्वार्थसिद्धि के लिए ‘मूर्खो’ को अपने साधन यानि ‘आतंकी कार्यकर्त्ता’ के रूप में उपयोग करते हैं| लेकिन ये आतंकवादी नेतागण जिन लोगों का उपयोग आतंक फैलाने में करते हैं, यदि ये ‘मूढ़’ लोग इनको उपलब्ध नहीं हों, तो इन आतंकवादियों के नेताओं को ही समाप्त होना होगा|

स्पष्ट है कि इन आतंकवादियों को समाप्त करने के लिए इन सामान्य लोगों के अज्ञानताओं को मिटाना, हटाना, और समाप्त करना होगा| दुर्भाग्य यह है कि राजनीतिक लोग अपनी राजनीतिक लाभ के लिए इन अज्ञानताओं को मिटाना ही नहीं चाहते हैं, और आतंकवादियों को मिटा देने का बड़ी बड़ी डींगें हाँकते रहते हैं| विश्व के जितने भी आतंकवादियों के संगठन हैं, उनके साथ यही हो रहा है| अफगानिस्तान के आतंकवादी हो, या अन्य किसी देश के आतंकवादी हो, या नक्सलवादी हो, सभी समस्याओं की जड़ यही अज्ञानता है|

ऐसा हर व्यक्ति, जो न्याय, स्वतंत्रता, समता, समरसता, बंधुत्व में विश्वास नहीं करता है, जिसके विचारों का तार्किकता, वास्तविकता, मानवता और वैज्ञानिकता से कोई संबंध नहीं है, जिसका विश्वास ही सत्यता का अपेक्षित प्रमाण है, उसका अवश्य ही आतंकवादी बनना सुनिश्चित है। ऐसा ही मूढ आदमी दुष्ट होता है, ऐसा ही आदमी अपने विचारों में जड़ होता है, और उसे लगता है कि जो उसके अनुसार नहीं है, वे सभी अनैतिक है, अधार्मिक है, गलत है। आतंकवादियों के सभी गुणों, स्वभावों एवं प्रकृतियों का आधार सिर्फ ‘अज्ञानता’ ही है| लोगों की अज्ञानता दूर कर दीजिए, आतंकवादियों का प्रत्येक संगठन समाप्त हो जायगा| अन्यथा ऐसा व्यक्ति, चाहे वह किसी भी प्रजाति, सम्प्रदाय, जाति, या राष्ट्रीयता का हो, आतंकवादी हो ही जा सकता है| ऐसे लोगों को सांप्रदायिक आधार या धार्मिक विश्वास, या नस्लीय दुर्भावना, या जातीय पूर्वाग्रह, या भाषायी श्रेष्ठता आदि भावनाओं में उड़ा या बहा ले जाना बहुत आसान होता है| ऐसा हर अतार्किक एवं अवैज्ञानिक आदमी आज नहीं, तो कल आतंकवादी बनेगा ही, या उसका समर्थक ही बनेगा|

हमलोग मूलत: एक पशु ही है, और इसीलिए इसकी हिंसक पाशविक प्रवृत्तियाँ अभी भी मौजूद है। हम यह जानते और समझते हैं कि शांति, सहयोग और समरसता की भावना के कारण ही हमलोग एक वर्तमान मानव बन सके हैं। मतलब हम शांति, सहयोग और समरसता की भावना को मूल हिंसा की भावना पर प्राथमिकता देते हैं, और इसी कारण हम मानव भी बन सके। स्पष्ट है कि हमें मिल कर मूल हिंसक की भावना को हटाकर शांति, सहयोग और समरसता की भावना को उभारना होगा, और इसके लिए हमें सजग, सतर्क, समर्पित और योजनाबद्ध प्रयास और प्रयोग करना है। इस योजनाबद्ध प्रयास में अन्य परंपरागत प्रयासों के अतिरिक्त ज्ञान एवं समृद्धि का विस्तार करना शामिल हो| ध्यान रहें कि यह ज्ञान (Wisdom) मात्र शिक्षाडिग्री (Educational Degree) या साक्षरता (Literacy) का पर्यार्य नहीं है, बल्कि शिक्षा या साक्षरता के बहुत बहुत आगे की चीज है| ज्ञान (Wisdom) में मानवता शामिल होता है, प्रकृति शामिल होता है, और भविष्य भी शामिल होता है|

यदि कोई उपरोक्त को नहीं समझता है, या नहीं समझना चाहता है, और फिर भी आतंकवाद समाप्त करना चाहता है, तो वह ऐसा करने का मात्र दिखावा करता है, नाटक कर रहा है। कोई भी यदि किसी भी स्वरूप के आतंकवाद को मिटाना चाहता है, और आतंकवाद के किसी दूसरे स्वरूप की निरन्तरता जारी रखना चाहता है, तो यह राजनीति है। ऐसी राजनीति किसी खास व्यक्ति या समूह को क्षणिक लाभ दिला सकती है, लेकिन यह सब मानवीय उद्विकासीय इतिहास में एक कलंक या धब्बा के रूप में याद किया जाएगा। इसे ध्यान में रखना है|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|

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