गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

साधारण पुरोहित भी सम्मान क्यों पाता है?

पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन  (भाग - 16) 

 कुछ लोग *पुरोहित के स्वरूप की महत्ता* से इनकार करते हैं और सैद्धांतिक विरोध भी करते हैं। दरअसल उन्हें नहीं तो ‘पुरोहित की अवधारणा’ की सही समझ होती है, और नहीं हो उन्हें *पुरोहिताई की क्रियाविधि (Mechanism)* की ही समझ होती है। ऐसे लोग समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं, या उन्हें अपनी तथाकथित बौद्धिकता का गर्व (घमण्ड) होता है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि वे *भाषा के संरचनावाद एवं विखण्डनवाद* को तो एकदम ही नही समझते हैं। यह भी हो सकता है कि उनमें इसे समझने के लिए पर्याप्त "आलोचनात्मक चिंतन" (Critical Thinking) का स्तर और समझ भी नहीं हो। आलोचनात्मक चिंतन में विश्लेषण, मूल्यांकन और सापेक्षिकता का समावेश रहता है। 

हमें यहाँ यह समझना है (या हम समझाना चाहते हैं) कि एक साधारण पुरोहित क्यों बहुत लोकप्रिय और सम्मोहक होता है, एवं उसकी बातें उपदेश की तरह ही अति ग्राह्य क्यों होता है? इसके लिए हमें "विखण्डनवाद (Deconstructionism)" को अवश्य समझना होगा। 

यह "विखण्डनवाद”  शब्दों और वाक्यों के अर्थ को पाठकों (पढने वाले या सुनने वाले) के दृष्टिकोण से समझाता है। लेखकों के पाठों (Texts) के या वाचकों (Speakers) के शब्दों एवं वाक्यों के अर्थ या मायने भले ही उच्च स्तरीय हो, या अत्यंत बौद्धिक हो

परन्तु उनके अर्थ पाठकों या श्रोताओं के अपने अपने समझ और स्तर के अनुरूप ही होता है, या लेता है।  

यह बातें प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक जाक देरिदा अपने *विखण्डनवाद* में समझाते हैं। उपरोक्त आशय ही विखण्डनवाद है। 

आप जो कुछ भी है, कितना भी बौद्धिक विद्वान हैं, एक पाठक या श्रोता उनकी बातों की अपनी मानसिक स्थिति, स्तर, ज्ञान और अपनी सांस्कृतिक जड़ता ( *Cultural Inertia* ) के प्रभाव में ही समझेगा। 

लेकिन जब आप *एक पुरोहित संस्कारक के रुप में* अपनी प्रस्तुति करते हैं, तब कुछ बदल जाता है। लेखकों के लेख के पाठों या वक्ताओं के शब्दों में स्थिरता के बावजूद भी उसके अर्थ पाठकों और श्रोताओं की मानसिक स्थिति के अनुसार बदल जाता है। 

एक पुरोहित संस्कारक के स्वरुपों के कारण उनकी बातों को वही श्रोता दिव्य समझता है, दैवीय मानता है, और उसे अति श्रद्धा के साथ अपनाता है। 

लेकिन जिन लोगों को गंभीर आलेख पढने समझने नहीं आता है, और वे अपना ज्ञान व्हाट्सएप विश्वविद्यालयों से प्राप्त करते हैं, वे व्हाट्सएप विश्वविद्यालयों से ही मान्यता पाने के लिए बेकरार बेचैन रहते हैं। 

 अब आप विखण्डनवाद को समुचित रूप में समझ गए होंगे। *ऐसे में आपको पुरोहितों के स्वरूप में सफल होना सुनिश्चित ही होता है।  इसीलिए एक पुरोहित जन मानस को ज्यादा स्वीकार्य होतें है।* 

 इसे समझिए। और पुरोहित बनिए। 

आचार्य प्रवर निरंजन

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