पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध
मिशन (भाग - 15)
सबसे बड़ा सवाल यह है कि *पुरोहित सफल क्यों होते हैं?*
इसका जबाव *संरचनावाद* में निहित है।
इसे
समझने के लिए हमें "संरचनावाद"
(Structuralism) को समझना होगा। यह भाषा विज्ञान में
शब्दों और वाक्यों के अर्थ को बेहतर ढंग से समझने के लिए यह *एक उपकरण है, पद्धति है। इसका उपयोग एवं प्रयोग
समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के अतिरिक्त कई अन्य विधाओं में भी किया जाने लगा है।
"संरचनावाद" स्विस दार्शनिक फर्डीनांड डी सौसुरे द्वारा अवधारित एक
महत्वपूर्ण संकल्पना है। यह
संरचनावाद यह समझाता है कि सभी शब्दों और वाक्यों का
अपना अपना
एक संरचनात्मक ढांचा (Structural Frame work) और
उसका अन्तर्निहित बनाबट (Interal Matrx/ Design) होता है। इसी कारण एक ही शब्द एवं
वाक्य के *"सतही अर्थ"* *(Superficial Meaning)* भी होता है, और *"निहित अर्थ" (Implied Meaning)* भी होता है। यह सब उसकी *संरचनाओं* से
निर्धारित एवं प्रकाशित (Broadcast)
होता है।
एक पुरोहित शब्द की संरचना
में निम्न
भावना निहित होता है --
1. उसका एक निर्धारित *वेशभूषा*
की संकल्पना निहित होता है,
2. उसकी *वाणी में दिव्यता* का अंश या अर्थ निहित माना जाता है,
3. उन पुरोहितों पर *दैवीय या अनन्त प्रज्ञा की कृपा दृष्टि* होना समझा जाता
है,
4. उन्हें *दिव्य ज्ञान* का ज्ञाता माना जाता है,
5. उन्हें *सांस्कृतिक एवं धार्मिक परम्परा का ध्वजवाहक* समझा जाता है,
6. उनके पास *सब लोक का प्राधिकृत सूचनाओं* की उपलब्धता होता है।
7. उन्हें शुभ अशुभ आदि कई तरह के ज्ञान और गणना क्षमता रखने वाला एवं
सुधारने वाला समझा जाता है।
8. उन्हें *अतीत और भविष्य सुधारने वाला* भी मान लिया जाता है,
9. और उन्हें *सभी संस्कारों में पारंगत* माना जाता है।
अतः
संरचनावाद यह समझता है कि एक "पुरोहित" शब्द के द्वारा उपरोक्त आशयों का
संसूचन (Communication)
एक साथ हो जाता है।
ऐसे संरचना वाले पुरोहितों का सफल होना सुनिश्चित ही होता है। इसीलिए एक पुरोहित जन मानस को ज्यादा स्वीकार्य होतें है।
इसे
समझिए। और पुरोहित बनिए।
आचार्य
प्रवर निरंजन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें