रविवार, 20 जुलाई 2025

अमीर बनने का सिद्धांत

अमीरी एक अवस्था है| ‘अमीर’ (Rich) बनना या अमीर बने रहना एक संस्कृति है, जिसे कोई भी विकसित कर सकता है| चूँकि यह एक संस्कृति है, इसीलिए यह किसी समाज में पूर्व से स्थापित होती है, या हो सकती है, या स्थापित नहीं भी हो सकती है| संस्कृति सामूहिक अचेतन होता है, जो स्वचालित स्वरुप में सदैव अचेतन पर कार्य करता हुआ होता है| जिन समाजों में यह पूर्व से स्थापित एवं प्रचलित होती है, वहाँ इसे फिर से विकसित करने की आवश्यकता नहीं होती है| लेकिन यह जिन समाजों में यह पूर्व से स्थापित या विकसित यानि प्रचलित नहीं होती है, वहाँ इसे व्यवस्थित एवं संगठित तरीके से विकसित कर स्थापित करना आवश्यक होता है| भारतीय समाज में इसकी बहुत आवश्यकता है| यह कोई ‘धनी’ (Wealthy) बनने की अवस्था नहीं है, जिसे कोई भी धन संग्रहीत कर बन जाता है| स्पष्ट है कि ‘धनी’ होना कोई ‘अमीर’ बनने की संस्कृति नहीं है|

स्पष्ट शब्दों में और संक्षिप्त में कहूँ तो अमीर बनने का एक स्पष्ट स्थापित सिद्धांत है| सिद्धांत (Theory) सिद्ध (Proved) भी होता है, और अंत (End) भी होता है, यानि इसे फिर से साबित करने की जरुरत भी नहीं है और यही अंतिम (Final) सत्य भी है, एवं इस सम्बन्ध में कोई दूसरा सूत्र भी नहीं है|

इस सिद्धांत में तीन ही सूत्र हैं –

प्रथम, अमीर बनने का लक्ष्य स्पष्ट और निर्धारित हो| किसी को जो भी बनना या बनाना होता है, उसके पास उस लक्ष्य के लिए एक स्पष्ट मानसिक चित्र होना चाहिए, क्योंकि यही मानसिक चित्र लगातार उसके मन मस्तिष्क में बना रहता है और वही मानसिक चित्र वास्तविकता में बदल पाता है| मानसिक चित्र के अधिक ‘विवरणात्मक’ होने से उस चित्र में स्पष्टता ज्यादा रहती है| यही स्थिति अमीर बनने में भी होती है| लेकिन कोई भी मानसिक चित्र किसी के मन मस्तिष्क में तभी लम्बे समय तक बना रह सकता है, जब उस लक्ष्य को पाने का कोई बहुत बड़ा कारण हो, जो उसके लिए स्पष्ट हो, अन्यथा वैसे लक्ष्य तो क्षणभंगुर होते हैं और इसीलिए वे कोई प्रभाव ही नहीं डाल पाते| मतलब किसी को अमीर बनने की इच्छा उसमें उसी समय जागेगी, जब वह अमीर बनने के लिए कोई बड़ा सा कारण खोजेगा, या चाहेगा| यही बड़ा कारण उसके लिए प्रेरक शक्ति बनता है, अन्दर की आग को ईंधन देता रहता है| ऐसा कारण स्पष्टतया उसके जीवन से, पद से, प्रतिष्टा से आदि से जुडा होन चाहिए|

द्वितीय, अमीर बनने का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत उसके व्यवहारिक समझ से सम्बन्धित है| किसी भी अमीर के विचार, भावनाएँ, एवं व्यवहार समुचित रहता है| अमीर बनने के लिए खुशनुमा भावनाओं के साथ विचार या व्यवहार के साथ सेवा (Services) या वस्तु (Goods) देना होता है| शिक्षा उसे कहते हैं, जो लोगों को बदलती दुनिया को समझने में और उसके अनुकूल अपने को ढलने ढालने में मदद करे| ऐसी ही शिक्षा किसी को अमीर बनने की भी यह एक आवश्यक शर्त है|

पहले सूचनाओं के संग्रहण को, यानि याद रखने और उसके अनुप्रयोग करने के स्तर को शिक्षा के स्तर का पैमाना माना जाता था| इसे ही ‘सामान्य बुद्धिमता’ कहते हैं| लेकिन कोई अपने सामने वाले की भावनाओं को समझ कर और उनकी भावनाओं के अनुरूप अपनी भावनाओं को व्यवस्थित कर व्यवहार करता है, तो उसे ‘भावनात्मक बुद्धिमता’ कहा जाता है| इसके लिए सहानुभूति (Sympathy) की जगह समानुभूति (Empathy) दिखाया जाता है| यह गुण अमीरी के लिए विकसित करना आवश्यक संस्कार है| यदि कोई अपने समाज की आवश्यकताओं को अपने ध्यान में रखता है, तो उसे अपने समाज का भी समार्थन मिलता है| ऐसा व्यक्ति पहले की अपेक्षा ज्यादा सफल रहता है| ऐसी समझदारी को ‘सामाजिक बुद्धिमता’ कहते हैं| आजकल ज्यादा अमीर बनने वाले अपने समझ में मानवता, प्रकृति एवं भविष्य को भी समाए होते हैं| इसी को ‘बौद्धिक बुद्धिमता’ कहते हैं| मानवता, प्रकृति एवं भविष्य की समझ को समा लेना ही संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) का ‘धारणीय लक्ष्य’ (Sustainable Goals) कहलाता है| अमीरी का स्तर पाने में इन बुद्धिमत्ताओं के स्तर का भी योगदान होता है|

तृतीय एवं अंतिम सिद्धांत में आवश्यकता (Need), इच्छा (Desire), और मांग (Demand) को समझना अनिवार्य है| जो व्यक्ति इन अवधारणाओं मे अंतर नहीं कर सकता है, वह कभी भी अमीर नहीं बन सकता है| ‘प्रबंधन के केलौग स्कूल’ के फिलिप कोटलर ‘Need’, ‘Want’, ‘Desire’ एवं ‘Demand’ में अंतर समझाते हैं| इन्होने Want और Demand में अंतर किया तो है, लेकिन Want के लिए उपयुक्त हिंदी शब्द मुझे ज्ञात नहीं है| ‘Demand’ के लिए हिंदी में प्रचलित शब्द ‘मांग’ है, तो ‘Want’ के लिए ? किसी की भूख के लिए भोजन उसकी आवश्यकता (Need) है, लेकिन उस भोजन के प्रकार, यथा रोटी, चावल, बेकरी, या अन्य उसका ‘Want’ है| कुछ भी पाने का मन करना उसका ‘इच्छा’ (Desire) हुआ, जो उसके लिए अनिवार्य नहीं भी हो सकता हो| कोई भी ‘मांग’ (Demand) तब बनता है, जब कोई इसके लिए धन खर्च करने तैयार रहता है| किसी के शारीरिक एवं अन्य व्यक्तित्व विकास के लिए अनिवार्य संसाधन की अनिवार्यता ही उसका ‘Need’ है| यह व्यक्ति के अनुसार बदलता रहता है| मतलब किसी को भी अपनी अनिवार्यता और उसकी इच्छाओं में अंतर करना स्पष्ट होना चाहिए, अन्यथा वह अमीर बन ही नहीं सकता है|

जब मैं स्कूली बच्चों को समझाता हूँ, तब उन्हें इस तरह समझाता हूँ कि यदि तुम्हारे पाकेट में कुछ रुपैया हो जिसे तुम्हें कोई ऐसे ही दिया हो, या मिल गया हो, और तुम पूरा बाजार घूम लो, और फिर भी तुमने वह रुपैया खर्च नहीं किया, तब तुम्हारे अमीर बनने की पूरी संभावना है| मतलब किसी को भी अपनी इच्छाओं को दमित करने की क्षमता और समझ होनी चाहिए| तब ही कोई अपने प्राप्त धन को उत्पादक बना सकता है| अर्थात अमीर बनने के लिए ‘धन’ (Wealth/ Money) को ‘पूंजी’ (Capital) बनाना अनिवार्य होता है| ‘धन’ को ‘पूंजी’ में बदलने की समझ एवं तरीकों पर पहले भी कई आलेखों में समझाया गया है, और इसीलिए यह यहाँ सन्दर्भ में नहीं है|

उपरोक्त यही तीन सूत्र अमीर बनने के लिए मूल एवं अनिवार्य है| ऐसे कोई भी इनमे और सूत्र जोड़ सकता है, जो उनके समझ में आता है|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान|

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अमीर बनने का सिद्धांत

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