मंगलवार, 15 सितंबर 2020

17 सितम्बर का ऐतिहासिक महत्व।

हमारे भारत में धार्मिक सामंतवाद इस तरह प्रभावी है और इसका कार्यप्रणाली ऐसा है कि अक्सर हमें मूल उद्देश्य दिखता ही नहीं है। हमलोग साधारणतया बिना किसी विश्लेषण के और बिना समझे ही किसी नव परम्परा को धूमधाम से मनाने लगते हैं।

17 सितम्बर की कहानी भी ऐसी ही है। भगवान विश्वकर्मा का जन्म दिन का त्योहार। इन्हें हिन्दू देवता माना जाता है, जो भवन निर्माण एवं अन्य अभियंत्रण आदि के देवता हैं। आज के संदर्भ में कहें, तो ये सिविल इंजीनियरिंग सहित अन्य इंजीनियरिंग (अभियंत्रण) के देवता हुए।

 हमलोग 15 सितम्बर को ही इंजीनियर्स (अभियंता) दिवस मनाते हैं। इस दिन आधुनिक भारत के महान अभियंता श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म दिन है, जो वर्ष 1861 में जन्म लिए। फिर दो ही दिन बाद 17 सितम्बर को एक गैर ऐतिहासिक व्यक्तित्व यानि ऐसे व्यक्ति का जन्म दिन को मनाने की आवश्यकता क्यों पडी, जिसका कोई ऐतिहासिक अस्तित्व ही नहीं है?

भगवान विश्वकर्मा का जन्म दिन एक ऐसा जन्मदिन है, जो विक्रम संवत या शक संवत पर आधारित नहीं होकर, ग्रेगेरियन पंचांग (अंग्रेजी कैलेण्डर) पर पूर्णतया आधारित है। इसके अलावा हिन्दू संस्कृति में कोई और त्योहार ग्रेगेरियन पंचांग पर आधारित नहीं है, मकर संक्रांति भी वर्षों बाद धीरे-धीरे बदलता रहता है, पर यह विश्वकर्मा जयंती यानि पूजा की तिथि नहीं बदलता। यह सदैव 17 सितंबर को ही मनाया जाता है। लगता है कि विश्वकर्मा के पूजन का इतिहास या अस्तित्व इतिहास भी एक शतक से ज्यादा पुराना नहीं है। कोई अन्य ऐतिहासिक प्रसंग उपलब्ध नहीं है। ऐसा लगता है कि इनका जन्म दिन और पूजन किसी खास उद्देश्य से स्थापित किया गया है।

17 सितम्बर 1879 को ही भारत में एक महान क्रान्तिकारी सामाजिक सांस्कृतिक आन्दोलन के जनक का जन्म दिन है, जिनका नाम ईरोड वेंकटप्पा रामासामी (ई० वी० रामास्वामी) था, जो पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस क्रांतिकारी व्यक्तित्व ने भारत में व्याप्त सामंतवाद के धार्मिक स्वरुप पर करारा असरदार प्रहार किया। इनके सम्मान में इनका जन्म दिन एक सम्मान समारोह के रूप में आयोजित किया जाने लगा। इनके सम्मान समारोह पर धार्मिक सामंतों को बहुत बुरा लगा। आप पेरियार साहब का चेहरा, दाढ़ी, मूंछ आदि देखें और तथाकथित भगवान विश्वकर्मा जी को देखें; आप उन दोनों की समानता देख अचंभित हो जाएंगे, आप सोचने पर विवश हो जाएंगे कि पेरियार जी को ही भगवान विश्वकर्मा में रुपांतरित कर दिया गया। ऐसा क्यों हुआ? आप विचार करें। 

17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म दिन है, या पेरियार का जन्म दिन है? वैसे दाढ़ी मूंछ वाले भारतीय देवता बहुत ही कम रहते हैं। आप भी इनसे समानता कर पेरियार जी का जन्मदिन धूमधाम से मना सकते हैं और सांस्कृतिक नवनिर्माण के देवता के रूप में स्थापित कर सकते हैं।

मैं सिर्फ विचारों के युवाओं से अनुरोध करता हूं, कि वे विचार करें कि 17 सितम्बर को सांस्कृतिक नव निर्माण के अग्रदूत पेरियार का जन्म दिन मनाया जाय, या निर्माण के किसी काल्पनिक देव का जन्म दिन मनाया जाय? 

मैंने सिर्फ विमर्श और मंथन के लिए सामग्री दिया है। इसका उपयोग आप पर निर्भर करता है।

निरंजन सिन्हा

व्यवस्था विश्लेषक एवं चिंतक।

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