हमारे भारत में “सांस्कृतिक
साम्राज्यवाद” (Cultural Imperialism) इस तरह हावी है, या प्रभावी है कि यहाँ
कोई चीज भी ‘साम्राज्यवाद’ के इस रूप में भी प्रचलित है कि किसी को इस पर विश्वास
भी नहीं होता है| और इस ‘साम्राज्यवाद’ की कार्यप्रणाली भी ऐसी सूक्ष्म होती है कि
अक्सर किसी भी भावना, विचार, व्यवहार या कर्म का मूल उद्देश्य भी हमें नहीं दिखता
है। हमलोग साधारणतया बिना किसी आलोचनात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन के और बिना
समझे ही किसी परम्परा को धूमधाम से मनाने लगते हैं। हालाँकि यदि कोई परम्परा अपने
‘धार्मिक स्वरुप’ में रहती है, या दिखती है, तो इसका विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन करना
कठिनतर हो जाता है|
‘17 सितम्बर’ की
कहानी भी ऐसी ही है। इस दिन मानवता के
महान भारतीय नायक ‘पेरियार रामा स्वामी’ का जन्मदिन है| और
इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म दिन का त्योहार भी है| इन्हें हिन्दू
देवता माना जाता है, जो भवन निर्माण
एवं अन्य अभियंत्रण आदि के देवता हैं। आज के संदर्भ में कहें, तो ये सिविल इंजीनियरिंग सहित अन्य इंजीनियरिंग (अभियंत्रण) के देवता हुए।
तो मूल प्रश्न यह उठता है कि इन दोनों में सबसे प्राचीन परम्परा कौन है और क्यों
है? क्या भगवान विश्वकर्मा की जन्मोत्सव की परम्परा अति प्राचीन है, या रामा
स्वामी पेरियार का जन्म पहले हुआ था? बहुत से लोगों का मानना है कि ‘पेरियार
रामा स्वामी’ के जन्मोत्सव की बढती लोकप्रियता से चिंतित बौद्धिकों ने इनके
कार्यों के कारण और इसके बाद ही भगवान विश्वकर्मा के जन्मोत्सव की परम्परा शुरू की गई?
यह एक ऐसा अध्ययन है जिससे हम मध्य काल एवं आधुनिक वर्तमान काल में
शुरू की गई अनेक परम्पराओं का आलोचनात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन करके उनकी वास्तविकता
को समझ सकते हैं| इसके ही साथ हम ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद’ की सूक्ष्म
कार्यप्रणाली और क्रियाविधि को भी समझ सकते हैं| 15 सितम्बर को
ही इंजीनियर्स (अभियंता) दिवस मनाते हैं। इस दिन
आधुनिक भारत के महान अभियंता श्री मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया का जन्म दिन है, जो 15
सितम्बर को ही वर्ष 1861 में जन्म लिए। फिर दो ही दिन बाद
17 सितम्बर को एक गैर ऐतिहासिक व्यक्तित्व “भगवान
विश्वकर्मा” का जन्म दिन को मनाने की आवश्यकता क्यों पडी? गैर ऐतिहासिक व्यक्तित्व का अर्थ हुआ कि इनको किसी भी इतिहास की पुस्तकों
में कोई स्थान नहीं दिया गया है यानि कोई विवरण नहीं दिया गया है, यानि इनका कोई
ऐतिहासिक अस्तित्व ही नहीं रहा है|
भगवान विश्वकर्मा का यह
जन्म दिन एक ऐसा जन्मदिन है, जो विक्रम संवत या शक संवत पर आधारित नहीं होकर,
ग्रेगेरियन पंचांग (अंग्रेजी कैलेण्डर) पर पूर्णतया आधारित है।
अर्थात इनका जन्म किसी विक्रम संवत या शक संवत के महीने एवं तिथि के अनुसार नहीं
होता है| इस “भगवान विश्वकर्मा” के अलावा हिन्दू संस्कृति में कोई भी ऐसा त्योहार नहीं
है, जो ग्रेगेरियन पंचांग पर आधारित है| मकर संक्रांति यानि ‘तिलवा सक्रांत’ भी ग्रेगेरियन पंचांग में वर्षों
बाद धीरे-धीरे बदलता रहता है, पर यह विश्वकर्मा जयंती यानि पूजा
की तिथि ग्रेगेरियन पंचांग में नहीं बदलता। यह सदैव 17 सितंबर को ही मनाया जाता है। लगता है कि विश्वकर्मा के पूजन का इतिहास या
अस्तित्व इतिहास भी एक शतक से ज्यादा पुराना नहीं है। कोई अन्य ऐतिहासिक प्रसंग
उपलब्ध नहीं है। ऐसा लगता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म दिन और पूजन किसी खास उद्देश्य से
स्थापित किया गया है।
17 सितम्बर 1879 को
ही भारत में एक महान क्रान्तिकारी सामाजिक सांस्कृतिक आन्दोलन के जनक
का जन्म दिन है, जिनका नाम ईरोड वेंकटप्पा
रामासामी (ई० वी० रामास्वामी) था, जो “पेरियार” (हिंदी में ‘सम्मानित’) के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस क्रांतिकारी
व्यक्तित्व ने भारत में व्याप्त ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद’’ के ढोंग, पाखण्ड,
अन्धविश्वाश एवं अत्यधिक कर्मकांड पर करारा असरदार प्रहार किया। इन्होने ‘न्याय’,
स्वतंत्रता’, ‘समता’ एवं ‘बंधुत्व’ के पक्ष में यानि ‘मानवता’ के लिए आन्दोलन
किया| इस तरह ‘पेरियार’ जैसे इस महान व्यक्तित्व के सम्मान में इनका जन्म दिन एक
सम्मान समारोह के रूप में आयोजित किया जाने लगा। इनके सम्मान समारोह पर ‘सांस्कृतिक
साम्राज्यवादियों’ यानि ‘धार्मिक सामंतों’ को बहुत बुरा लगा। ‘समता’
के सिद्धांत एवं व्यवहार को ‘अंत’ करने वाली व्यवस्था यानि ‘समता’ + ‘अंत’ यानि ‘सामन्त’
व्यवस्था के लाभार्थियों को बहुत बुरा लगा| इसी कारण ‘पेरियार’ जैसे इस महान
व्यक्तित्व के सम्मान को विलोपित करने के लिए ही इनके सादृश्य व्यक्तित्व को दुसरे
नाम से प्रस्तुत किया गया|
आप पेरियार साहब के ‘मुखाकृति’
को देखिए| इनका चेहरा, दाढ़ी, मूंछ आदि देखें और
तथाकथित भगवान विश्वकर्मा जी को देखें; आप उन दोनों की
समानता देख अचंभित हो जाएंगे| आप सोचने और इस निष्कर्ष
पर पहुँचने को विवश हो जाएंगे कि पेरियार जी को ही भगवान विश्वकर्मा में रुपांतरित
कर दिया गया। ऐसा क्यों हुआ? आप विचार करें।
मूल प्रश्न यह है कि 17 सितंबर
को भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म दिन है, या पेरियार का जन्म
दिन है? वैसे दाढ़ी मूंछ वाले भारतीय देवता बहुत ही कम हैं
या नहीं ही है। आप भी इनसे समानता कर उस महान व्यक्तित्व पेरियार जी का जन्मदिन
धूमधाम से मना सकते हैं और सांस्कृतिक नवनिर्माण के देवता के रूप में स्थापित कर
सकते हैं।
मैं सिर्फ विचारों के
युवाओं से अनुरोध करता हूं, कि वे विचार करें कि 17 सितम्बर
को “सांस्कृतिक नव निर्माण” के अग्रदूत पेरियार का जन्म दिन मनाया जाय, या
निर्माण के किसी काल्पनिक देव का जन्म दिन मनाया जाय?
मैंने सिर्फ विमर्श और मंथन के लिए
सामग्री दिया है। इसका उपयोग आप पर निर्भर करता है।
निरंजन सिन्हा
व्यवस्था विश्लेषक
एवं चिंतक।
Periyar was atheist, but was made GOD :(
जवाब देंहटाएं