शनिवार, 26 सितंबर 2020

रूपान्तरण की प्रक्रिया : एक उदहारण- गया नगर

 

रूपान्तरण की प्रक्रिया : एक उदहारण- गया नगर

 मैं संस्कृतियों के रूपांतरण प्रक्रिया का अध्ययन कर रहा था| इस प्रक्रिया को समझने में बिहार की मोक्ष नगरी – गया का एक उदहारण आपके समक्ष रखता हूँ|

आप एक और उदहारण गया नगर (बोधगया नहीं) के पितृपक्ष पक्ष मेला के आयोजन से समझें| गया गोतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति की नगरी है जो बोधगया के नाम से प्रसिद्ध है और वर्त्तमान गया के पास है| वर्तमान गया का अद्यतन स्वरुप सामन्त काल यानि मध्य काल में आया| गया नगर में एक बड़ा मेला सम आयोजन होता है जिसमे हिन्दू संस्कृति के लोग अपने पुरखों को पिंडदान एवं तर्पण अर्पित करते हैं| यह समय सामान्यत: बरसात के महीने के बाद का अगला माह है जो आश्विन के नाम से जाना जाता है| यह विक्रम पंचांग का एक महीना है| इस पिंडदान एवं तर्पण से पुरखों को मोक्ष (पुनर्जन्म से मुक्ति) मिलती है| हिन्दू संस्कृति में शूद्रों अर्थात सेवकों की संख्या समाज में 90 % से अधिक है और सामान्यत: उनका जीवन कष्टमय रहता है| इसलिए आध्यात्म में जीवन का कष्टमय होना एक सामान्य बात होना बताया गया और इसे धार्मिक स्वीकृति भी मिली हुई है| लोगों को इससे सहमत कराया गया कि मानव का जीवन  कष्टमय होता ही है और इससे कोई नहीं बचता| इससे इस कष्टमय जीवन से किसी को आपत्ति नहीं होती है (चूँकि यह सामान्य जीवन का एक भाग है) और इसीलिए वे दूसरों के भी जीवन में सुख नहीं समझ पाते हैं एवं देख भी नहीं पाते| वे पिंडदान एवं तर्पण कर अपने पुरखों को पुनर्जन्म से मुक्त करते हैं और पुरखों का तथाकथित कल्याण करते हैं| इन कारणों से गया को मोक्ष नगरी भी कहा गया है|

दरअसल गया बुद्ध की नगरी के रूप में उस समय ज्ञात विश्व में प्रसिद्ध रहा और आज भी है| लोग बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के कारण वैशाख पूर्णिमा को ज्ञान- प्राप्ति दिवस एवं आषाढ़ पूर्णिमा को प्रथम प्रवचन के दिन को ज्ञान प्रसार दिवस के रूप में मानते एवं मनाते हैं| इसके बाद मानसूनी बरसात का समय आ जाता है| इस बरसात के बाद ही आश्विन माह आता है जिसमे लोग भारत एवं विश्व के विभिन्न भागों से बुद्ध स्थल के दर्शन को आते रहे| समूह में व्यापक पैमाने पर आना सामन्त काल में भी नहीं रुका जो सामन्तवादियों के लिए चिंता का विषय रहा| निरंजना नदी में स्नान के बदले लोगों को फल्गु नदी में स्नान करना मनाया एवं बनाया गया| बोधगया जाने वाली समूह को दस किलोमीटर पहले ही रोक दिया गया| बुद्ध के स्थान पर गया में एक असुर (दुष्ट राक्षस) बनाया गया जिसका नाम “गया का असुर” (गयासुर) रखा गया| आप समझ गए होंगे कि वह गया का असुर कौन है जिससे वे सामन्तवादी बहुत परेशान थे? सामंत काल में एक मन्दिर भी बनाया गया जो विष्णुपद मन्दिर के नाम से ख्यात है| बुद्ध को विष्णु का भी अवतार बनाया गया| “गया” नगर से सामन्तवादियों को इतनी चिढ है कि गया नगर से गुजरने वालो को आज भी निकृष्ट समझा जाता है; आज भी “गया गुजरा आदमी” निकृष्ट आदमी को कहा जाता है| गया क्षेत्र जिसे मगह या मगध कहा जाता है और आज भी बहुत से लोग इसीलिए गंगा के  दक्षिण किनारा (मगह को छूती किनारा) को अपवित्र मानते हैं| परम्परा से लोग अपना दाह संस्कार उत्तरी किनारा पर ही करना पसंद करते हैं|

यह भी परम्पराओं के रूपांतरण का सर्वश्रेठ उदहारण है| जब लोग अपनी मौलिक एवं सनातन (प्रारम्भ से चली आ रही वर्त्तमान तक की) परंपरा को नहीं छोड़ते हैं तो सामन्तवादी ने अपनी इच्छानुसार उस परंपरा में विरूपण कर मूल भाव को नष्ट कर देते है| इसे लोग समझें कि रूपांतरण की प्रक्रिया कैसे काम करता है?|

निरंजन सिन्हा

व्यवस्था विश्लेषक एवं चिन्तक

www.niranjansinha.com

(बुद्ध: दर्शन एवं रूपांतरण” से)


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