पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन (भाग - 17)
मै
आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप *पुरोहित* बनिए, *संस्कारक* बनिए और समाज का *सलाहकार* बनिए।
यदि
आपको वृहत समाज का पुरोहित बनने में किसी कारणवश झिझक हो रही है, तो आप कम से कम अपने समाज का
ही पुरोहित बनिए।
यदि
आपको अपने समाज में भी एक पुरोहित के रूप में स्वीकार्यता पर संदेह है, तो आपको अपने व्यक्तित्व का
मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इस पर विचार कीजिए।
सबसे
प्रमुख *सवाल* है कि
*एक पुरोहित में व्यापक प्रभाव उत्पन्न करने की शक्ति कहाँ से आती है?*
वह अपने आसपास समां कैसे बांध देता है? यह
सवाल विचारणीय है।
पुरोहितों
में *एक निश्चित और उच्च स्तरीय प्रतिष्ठा* होती है, जो उसको उसके पद से, परम्परा से, इतिहास से जुडा़ हुआ होता है।
और यही प्रतिष्ठा ही उसकी
शक्ति की नींव होती है,
समां बांधने के लिए ऊर्जा का स्रोत होता है।
किसी
की प्रतिष्ठा ही उसकी विद्वता की धाक की, या सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक दबदबा कायम रखने का जरिया होता है। पुरोहित की परम्परागत
प्रतिष्ठा उच्च स्तरीय होती है। उपयोग कीजिए।
प्रतिष्ठा
शोहरत देता है और शोहरतें आपमें आन्तरिक मूल्य स्थापित करता है और असरदार बाह्य
प्रभाव पैदा करता है।
किसी
का भी
मूल्यांकन का आधार उसकी *आँखे* होती है, जो *_उनके वस्त्र, मुद्राओं शब्दों
की अभिव्यक्ति, हावभाव, और ऐतिहासिक पद_*
से मिलता होता है। और *यही सब कुछ समेकित रुप में प्रतिष्ठा और
शक्ति प्रदान करता है।* यही आपकी आभा मंडल को
स्थापित करता है,
उसको विस्तार करता है और एक विशिष्टता भी देता है।
यही
आपका
परिचय प्रत्र
होता है। अतः एक पुरोहिताई के पद का उपयोग एक परिचय पत्र के रुप में कीजिए। इसीलिए
अपने को एक पुरोहित के रूप में प्रस्तुत कीजिए।
ऐसे में आपको पुरोहितों के स्वरूप में सफल होना सुनिश्चित ही होता
है।
इसे
समझिए। और पुरोहित बनिए|
आचार्य
प्रवर निरंजन
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