पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन (भाग - 12)
‘संस्कार’
क्या है? ‘संस्कृति’ क्या है? और इसका एक पुरोहित से क्या सम्बन्ध है?
'समाज' (Society) की 'स्वीकृत संस्मरण (Sanctions Memoir)' को 'आकार (Shape)' देना ही 'संस्कार' (Sanskaar - Norms n Values) है। यह सामाजिक व्यवस्था विकास एवं समृद्धि के
लिए आवश्यक होता है| इसमें समाज द्वारा स्वीकृत भावना, विचार, व्यवहार और कर्म शामिल
रहता है|
‘संस्कार’
से युक्त भावना, विचार, व्यवहार एवं कर्म ही ‘संस्कृति’ है| व्यक्ति और समाज को
संस्कारयुक्त करना ही ‘संस्कृति’ का कार्य है|
और
यह संस्कार एवं संस्कृति की निरन्तरता बनाए रखने का सामाजिक सांस्कृतिक
उत्तरदायित्व ‘पुरोहितों’ पर ही रहता है|
स्वभाविक
है कि “संस्कार”
1. समाज का 'स्वीकृत्यादेश' (Sanctioned Orders)
होगा।
2. इसीलिए समाज के 'मानकों' (Standard) में सकारात्मक होगा।
3. इससे सम्बन्धित अपेक्षा (Expectation) उसके सामाजिक
पद या स्थिति से निर्धारित होती है।
4. यदि आप इन संस्कारों से विहीन हैं, तो आप अनार्य हैं,
अनाड़ी हैं, दुष्ट हैं, घमंडी
है, और क्षुद्र भी हैं।
और इसीलिए
आप असामाजिक माने जाते हैं|
यदि आप पदधारी है,
यदि आप डिग्रीधारी है,
यदि आप धनधारी है,
और आप में संस्कार नहीं है।
तो
आप में "भावनात्मक बुद्धिमत्ता" (Emotional Intelligence) नहीं
है,
और
आप में "सामाजिक बुद्धिमत्ता" (Social Intelligence) नहीं है।
ऐसे
ही लोग सभी क्षमताओं के बावजूद जीवन में असफल ही रहते हैं।
इसीलिए
संस्कार एवं संस्कारक के महत्व को समझिए
और
संस्कारक बनिए।
इसीलिए
समाज से बेहतर संवाद का जरिया पुरोहित और संस्कारक ही बन सकता है।
इसे
समझिए। और अभी शुरुआत कीजिए।
स्पष्ट
शब्दों में, इसके लिए इस
"पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन" के राष्ट्रीय प्लेटफार्म और संगठन से
जुडिए।
अब
हमको और आपको ही आगे आना है।
विचार
कीजिए।
आचार्य
प्रवर निरंजन
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