पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन (भाग - 14)
"जन-गण-मन" को ही 'जनता' कहते
हैं, और एक ‘पुरोहित’ 'पुर' का 'हित' देखने वाला’ होता है।
इसी
तरह ‘मनोविज्ञान’ मानव की ‘भावनाओं, विचारों, व्यवहारों एवं क्रियाओं की
क्रियाविधियों का विज्ञान है। अर्थात मनोविज्ञान मानव 'मन' (Mind) का विज्ञान
है।
अतः
मानव भावनाओं, विचारों और व्यवहारों (क्रियाओं) को बदलने के लिए हमें
जनता के मन को, पुरोहितों की संरचना को और मनोविज्ञान
की क्रियाविधियों को अच्छी तरह समझना आवश्यक है। वैसे इसे समझे बिना बौद्धिकता के नाम पर बकवास करने वालों को कोई रोक भी नहीं सकता है।
ऐसे लोग सिर्फ "बतकूच्चन" (सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए कुछ भी
बोल या लिख देना) करेंगे, लेकिन किसी जमीनी मुहिम का नहीं तो
समर्थन करेंगे और ना ही अपने विचारों को जमीन पर लाने के लिए कोई शुरुआत ही
करेंगे।
मनोविज्ञान
समझाता है कि
हर
आदमी मानसिक रूप से बदलाव चाहता है,
लेकिन "आदतों की जड़ता" (Inertia of Habits) को नहीं समझते हैं। _एक साथ बहुत ज्यादा बदलाव बहुत
परेशानी पैदा कर देता है।
इसीलिए
बदलाव के साथ साथ पुराने तरीकों का सम्मान करना होता है। इसमें किए गए परिवर्तन को
'मामूली
सुधार' (Nominal Improvement) ही दिखना चाहिए, कोई बडा़ बदलाव नहीं दिखना चाहिए।
आपके
परिवर्तन,
यदि कोई हो तो, क्रांतिकारी नहीं दिखना चाहिए।
आपको
जन मानस के "जीवन
मूल्यों और परम्पराओं"
(Values
n Traditions of Public Life) का सम्मान
करना ही होगा,
अन्यथा आप जन मानस को स्वीकार्य नहीं हो सकतें है।
एक
पुरोहित इन भावनाओं, विचारों और व्यवहारों पर अच्छी तरह से काम करता हुआ समाज को अपने मन माफिक दिशा देता है,_
और यही
इतिहास भी रहा है। इसे समझिए।
ऐसे
पुरोहित नामक बौद्धिकों के ही हर शब्द और वाक्य जन-गण-मन को "अति ग्राह्य
" (Super Acceptable) होते है।
इसीलिए
समाज से बेहतर संवाद का जरिया पुरोहित और संस्कारक ही बन सकता है।
इसे
समझिए। और अभी शुरुआत कीजिए।
स्पष्ट
शब्दों में, इसके लिए इस
" *पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन* " के राष्ट्रीय प्लेटफार्म और संगठन
से जुडिए।
विचार
कीजिए।
आचार्य
प्रवर निरंजन
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