पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन (भाग - 11)
एक
बार फिर, ‘पुरोहित’
कौन होता है, और क्या करता है? "पुर (बसावट - Settlement)"
का "हित (Intrest)" देखने वाला,
भला करने वाला ही "पुरोहित" होता है। 'पुर' का
अर्थ निम्न उदाहरण, यथा दिसपुर, गोरखपुर,
कानपुर, जयपुर, जबलपुर,
शोलापुर, खडगपुर, भागलपुर,
बिलासपुर, जमशेदपुर, मणिपुर,
होशियारपुर, पेशावर, बहावलपुर, जनकपुर, राजापुर
इत्यादि इत्यादि से स्पष्ट है। यह उदाहरण पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यथा भारत
सहित अफगानिस्तान, पकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल एवं बँगलादेश में विस्तारित है| इस तरह यह 'पुरोहित' समाज का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है।
यह पुरोहित हमारी सांस्कृतिक
परम्परा की विरासत है और अभी भी इसका महत्व है एवं आगे भी रहेगा।
जो
लोग "सांस्कृतिक जड़ता" (Inertia
of Culture) की अवधारणा एवं इसकी क्रियाविधि को नहीं समझते हैं,
वे सामाजिक सांस्कृतिक बदलाव के इस 'मानवीय
मनोविज्ञान की क्रियाविधि' (Mechanics of Human Psychology) को
भी नहीं समझते हैं।
'पुरोहिताई' एक "सांस्कृतिक ढांचा" (Cultural
Framework) है, जिसका 'सामाजिक
और सांस्कृतिक मूल्य'' (Social n Cultural Values) होता है,
भले ही उसका 'आन्तरिक संरचना'
(Internal Structure) एवं उद्देश्य भिन्न भिन्न हो।
आपको
अपना ढांचा बरकरार रखना है, और आप उस ढांचे में अपने इच्छानुसार ‘संरचना’ (आतंरिक बनावट) बदल सकते
हैं। इसे भारतीय संविधान के भाग-3 (मूल अधिकार) में अनुच्छेद
25 में संरक्षित किया गया है।
‘पुर' का 'हित'
करने वाले पुरोहित किसी भी पंथ, सम्प्रदाय एवं
धर्म के हो सकते हैं।
इसीलिए
समाज से बेहतर संवाद का जरिया पुरोहित ही बन सकता है।
और
इसकी शुरुआत पुरोहिताई से ही संभव है। इस पर ठहर कर ध्यान दें।
इसे
समझिए। और अभी शुरुआत कीजिए।
स्पष्ट
शब्दों में, इसके लिए इस
"पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन" के राष्ट्रीय प्लेटफार्म और संगठन से
जुडिए।
अब
हमको और आपको ही आगे आना है।
विचार
कीजिए।
आचार्य
प्रवर निरंजन
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