बुधवार, 19 जून 2024

आर्थिक सशक्तिकरण क्यों जरुरी है?

साधारणतया सामान्य बुद्धिजीवी समाज के सम्पूर्ण बदलाव के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव को पूर्व शर्त समझते हैं। ऐसा ही पहले के सभी ज्ञानी और स्थापित विद्वान जन समझते रहे हैं। इसीलिए इन सिद्धान्तों को आज भी सही समझा जाता है, लेकिन अब परिस्थितियों में बदलाव हो जाने से बहुत कुछ बदल गया है। 

तो पहले सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव को समझते हैं। समाज संबंधों की एक सुव्यवस्थित तंत्र है| इसीलिए सामाजिक बदलाव में सामाजिक संबंधों की संरचना में बदलाव है| यदि कोई सामाजिक तंत्र यानि सामाजिक संरचना न्याय, स्वतन्त्रता, समता व समानता एवं बंधुत्व की भावना पर आधारित नहीं है, तो आधुनिक युग में उस समाज की संरचना को न्याय, स्वतन्त्रता, समता व समानता एवं बंधुत्व की भावना पर आधारित होना होगा| यही  सामाजिक बदलाव का लक्ष्य होता है| इस लक्ष्य का प्रावधान एवं इसकी प्राप्ति के लिए आवश्यक तंत्र की व्यवस्था भारतीय संविधान में समुचित रूप में कर दी गई है| आजादी के पूर्व की स्थिति में बहुत कुछ बदलाव हुए हैं, और बहुत से बदलाव अभी भी अपेक्षित है, तथापि सिर्फ उसी में ही अटका रहना अन्य विकल्पों को छिपा देता है

 बाजार की शक्तियां व्यक्ति और समाज को एक उपभोक्तामान कर इसकी भावनाओं, विचारों एवं व्यवहारों को नियमित, संचालित, नियंत्रित एवं प्रभावित कर सम्हालती है| बाजार की उपभोक्तावाली मानसिकता ने भी सामाजिक संरचना को बहुत बदला है, और बदलाव की गति काफी तेज होती जा रही है| हमें बाजार की शक्तियों, यानि आर्थिक शक्तियों की क्रियाविधि एवं प्रभाव को समझने, सहेजने और सम्हालने के लिए अभी से तैयार रहना है|

 संस्कृति किसी भी समाज का साफ्टवेयर है, जो अदृश्य रहकर सम्पूर्ण समाज को नियमित, संचालित, नियंत्रित एवं प्रभावित करती रहती है| इसमें धर्म, सम्प्रदाय, विचार, आदर्श, आस्था, विश्वास, मूल्य, प्रतिमान आदि आदि कई तत्व शामिल रहते हैं| इस तरह संस्कृति एक मानसिकता, यानी एक माइंड सेटहोता है| यह इतना व्यापक अवधारणा है कि इसमें सम्पूर्ण जीवन जीने की विधि समाहित हो जाती है| इस तरह सांस्कृतिक बदलाव में इससे सम्बन्धित सभी संरचनाओं में बदलाव हो जाता है| अर्थात इसमें धर्म, सम्प्रदाय, विचार, आदर्श, आस्था, विश्वास, मूल्य, पतिमान आदि आदि कई तत्वों की मूलभूत बुनियाद में बदलाव होता है| इससे सम्बन्धित पर्याप्त जागरूकता कई रूपों में समाज में प्रचलित है, जिसे आधुनिक सोशल मीडिया सहित अनेक नवोदित तंत्र समर्थन दे रहे हैं

कहने का तात्पर्य यह है कि  सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव के लिए काफी कुछ किया गया है, काफी कुछ होना भी है, लेकिन सिर्फ इन्ही दोनों तत्वों तक ही सीमित नहीं रहना है| हमें फैलते वित्तीय साम्राज्यवाद के साधनों एवं शक्तियों और उनके अंतर्संबंधों को समझना है, ताकि  हम उस वित्तीय तंत्र को समझ सकें और उसे सम्हाल सके

हाल तक बाजार की शक्तियों के सशक्त होने से पहले तक सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव बहुत महत्वपूर्ण होते थे| इसीलिए बहुत सामाजिक विद्वानों ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव को ही स्थायी एवं प्रभावशाली राजनीतिक बदलाव की पूर्व शर्त मानते रहे हैं| उन विद्वान लोगों के इस दुनिया से विदा होने के बाद इस दुनिया में बहुत से परिवर्तन हुए हैं| इसमें जनान्कीय संरचना, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित सुचना क्रान्ति, नए सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनुसंधान एवं शोध, तकनिकी साधनों एवं शक्तियों में तीव्र विकास औए वित्तीय साम्राज्यवाद संरचना एवं क्रियाविधि में बहुत बदलाव हुए हैं, और यह बदलाव अभी भी तीव्र वृद्धि दर से हो रहे हैं| जनान्कीय संरचना के बदलाव में युवाओं की संख्यात्मक हिस्सेदारी में बढ़ोतरी और आधी आबादी, यानि महिलाओं के घर की चाहरदीवारी से बाहर निकलना सबसे प्रमुख है| जनसंख्या के इन संरचनात्मक बदलाव ने समाज के बदलाव की शक्तियों एवं क्रियाविधियों में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है

उपरोक्त सभी कारकों एवं क्रियाविधियों ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव के कारको एवं क्रियाविधियों के स्थापित मान्यताओं को सचमुच बदल दिया है| इसीलिए अब हमें राजीनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक बदलाव के लिए आर्थिक सशक्तिकरणपर ही केन्द्रित करना चाहिए|

आचार्य निरंजन सिन्हा

भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक 

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