यदि आपको किसी देश की
प्रगति से समस्या है और आप उसे वहीं रोके रखना चाहते हैं, या
उन्हें और नीचे गिराना चाहते हैं, तो आप उनकी बहुसंख्यक और
अल्पसंख्यक आबादी को अनेकों *भावनात्मक सतही मुद्दो में* उलझा सकते
हैं। पिछड़े हुए देशों की आबादी की *आलोचनात्मक चिंतन* का स्तर कम और
कमजोर है,
इसीलिए उन्हें भावनाओं की आंधी में उड़ा ले जाना बहुत आसान है।
आप उनके सामने स्थानीय तथाकथित बुद्धिजीवियों के सहयोग और समर्थन
से *अनेकों भावनात्मक राजनीतिक, धार्मिक, जातीय
आदि विभिन्न स्वरुपों में सतही मुद्दे* प्रस्तुत करें। इन मुद्दों को
वे सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यक मुद्दे समझते हैं। इन मुद्दों पर विरोध में, समर्थन
में, विश्लेषण में, अकादमिक विमर्श के
रुप में प्रस्तुत करते रहे, देश का सम्पूर्ण समाज अपने *_तथाकथित हवा हवाई बुद्धिजीवियों के_* साथ *इसमें अपनी
समस्त उर्जा, धन, संसाधन, समय, जवानी, उत्साह और
सम्पूर्ण वैचारिकी झोंके रहेंगे।* हमें उन
बुद्धिजीवियों और नौजवानों में इस ‘आपसी भिडंत’ की आदत लगा देनी है| फिर वे आपसी
मामलों में दुनिया में हो रहे प्रगति को भूल कर इसी तरह समस्याओं के समाधान में आदतन
भिड़ते रहेंगे| फिर देश और राष्ट्रीयता के मुद्दे गौण हो जायेंगे| आपके समर्थन
में वे सभी राजनेता भी आ जायेंगे, जिनको आपसे फायदा होगा| तब आंतरिक
संघर्ष का ‘चेन रिएक्सन’ शुरू हो जायगा, और फिर उस पर कोई भी चाह कर भी नियंत्रण
पा नहीं सकता है| इसके अतिरिक्त वे कुछ और भी सोच समझ नहीं सकते हैं और आप सफल हो
जाएंगे। वे अपनी हवाई बौद्धिकता में गोते लगाते हुए आत्ममुग्ध रहेंगे।
*आज बाजार की शक्तियां ही, यानि आर्थिक शक्तियां ही राजनीतिक, सामाजिक,
सांस्कृतिक बदलाव और प्रगति के उपकरण और आधार है।* अर्थात आज
बाजार की शक्तियां ही राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक
बदलाव सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रभावकारी साधन यानि उपकरण हो गया है| इन सम्पूर्ण
आबादी का ध्यान इस महत्वपूर्ण और अनिवार्य उपकरण, यानि बाजार की क्रियाविधियों (Mechanics)
की ओर नहीं जाना चाहिए| कहने का तात्पर्य यह है कि वे समाज आर्थिक रूप में
मज़बूत होने नहीं पाए|
ऐसे समाजों, या संस्कृतियों, या देशों का ध्यान उनकी *सम्पूर्ण
आबादी के आर्थिक सशक्तिकरण* की ओर नहीं जाने देना चाहिए। इस तरह वे
धार्मिक, जातीय, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सतही मुद्दों में अपनी समस्त
उर्जा, धन, संसाधन, समय, जवानी, उत्साह और
सम्पूर्ण वैचारिकी झोंके रहेंगे| और बाकी मजा लेते
रहिए।
विशेष तो आप खुद समझदार है।
आचार्य निरंजन सिन्हा
भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक
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