रविवार, 28 अप्रैल 2024

बुद्ध और बुद्धि

 

विशिष्ट बुद्धि वाले व्यक्ति को बुद्ध कहा जाता रहा है| बुद्ध और बुद्धि में बहुत गहरा संबंध है और यह संबंध भी प्रत्यक्ष है| दरअसल बुद्ध एक संस्था का नाम भी था, और उस संस्था के सदस्य के रूप में कई बुद्ध हुए, जिन्हें “बुद्धत्व” की प्राप्ति हुई थी| इनमे सबसे महत्वपूर्ण बुद्ध गोतम (पालि में गोतम, एवं संस्कृत तथा हिंदी में गौतम) हुए, जो इस “बुद्ध” की परम्परा की कड़ी में सबसे अंतिम हुए, और जिन्होंने अपने प्राप्त विशिष्ट “वैज्ञानिक प्रज्ञा” के साथ साथ अपने पूर्व के सभी बुद्धों द्वारा प्राप्त ज्ञान-विज्ञान को सकलित किता, सम्पादित किया एवं अंतिम स्वरुप भी दिया| दरअसल ‘बुद्धत्व’ को प्राप्त करने वाले को “बुद्ध” कहा जाता रहा, और इसीलिए ‘बुद्धत्व’ “बुद्धि” की एक विशिष्ट एवं सर्वोच्च उपाधि हो गयी| इस तरह,‘गोतम बुद्ध’ ‘बुद्धत्व’ की परम्परा में 28 वें ‘बुद्ध’ हुए|  ‘बुद्धत्व’ किसी व्यक्ति विशेष को प्राप्त बुद्धि की एक विशिष्ट अवस्था है, एक सम्मान है, और यह सर्वोच्च स्तरीय विशिष्ट बुद्धि की उपाधि हो गई| इसीलिए ‘बुद्धि’ के अनुयाई को बौद्ध कहा जाता रहा और आज भी कहा जा सकता है।

यह अलग बात है कि आजकल लोग इसे परम्परागत धर्म के रूप में समझते और मानते हैं| परम्परागत धर्म के रूप में मान लेने से ही इसमें अन्य परम्परागत धर्म के अनिवार्य तत्वों को स्थापित कर देना पड़ता है, यानि अन्य परम्परागत धर्म के अनिवार्य तत्वों को इसमें मान लेना पड़ता है| और इसीलिए इसमें भी किसी भी अन्य परम्परागत धर्म की ही तरह बुद्धि का स्थान या भूमिका महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है, या नहीं ही रह गया है| अब कोई भी गोतम बुद्ध का चित्र या मूर्ति लगाकर और उसी एक खास तरह का वस्त्र धारण कर बौद्ध बनने की कोशिश करता है| अन्य परम्परागत धर्म के अनिवार्य तत्वों को भी जान लेना चाहिए| अन्य परम्परागत धर्म के अनिवार्य तत्वों में दो ही तत्व – “ईश्वर” (God) एवं “आत्मा” (Soul) महत्वपूर्ण होते हैं, और इसके अन्य सभी तत्व – पुनर्जन्म, कर्म का सिद्धांत एवं स्वर्ग- नर्क तो सिर्फ इन्हीं दोनों के ही सहायक या सह- उत्पाद होते हैं| इसीलिए कुछ लोगों द्वारा अन्य परम्परागत धर्म की ही तरह भगवान बुद्ध से भी एक ईश्वर की ही तरह कुछ प्राप्त करने की कामना की जाती है, जबकि बुद्ध मात्र एक पथ- प्रदर्शक ही थे| बुद्ध एक मात्र गुरु थे, और इसीलिए वे ईश्वर के अस्तित्व के ही विरोधी थे| बाद के काल में इसी तरह बुद्ध के “आत्म” (Self) को “आत्मा” (Soul) बना कर सब घालमेल कर दिया गया है|

लोग ‘बुद्धि’ यानि ‘समुचित ज्ञान’ की अवधारणा को समझे बिना ही बौद्ध होने यानि बुद्ध के अनुयायी होने की घोषणा करते हैं। इस ‘बुद्धि’ के उदय को समझने के लिए आपको ऐतिहासिक काल में पीछे जाना होगा, यानि बुद्धों का उदय क्यों हुआ?| ध्यान रहे कि गोतम बुद्ध के काल से कोई साढ़े सात हजार साल से पहले पाषाण युग था, अर्थात ‘पत्थर’ पर ही जीवन आधारित था| आप भी जानते हैं कि आज से कोई दस हजार साल पहले के काल को नवपाषाण काल बताया जाता है, मतलब कि उस काल तक सभ्यता एवं संस्कृति का उदय ही नहीं हुआ था|| इसी पाषाण यानि पत्थरों के युग के बाद ही धातु युग आया, जिसमे पत्थरों की निर्भरता समाप्त हो गई| अर्थात धातु के प्रयोग एवं उपयोग के साथ ही लोग पहाड़ों से उतर कर नदी घाटियों में बसना शुरू कर दिया था| धातुओं के उपकरण, औजार, हथियार आदि पत्थरों की तुलना में ज्यादा परिष्कृत हुए और जीवन ज्यादा सुगम एवं सरल हो गया|इसी धातुओं के साथ ही पशुओं एवं पौधों का ‘घरेलुकरण’ (पालतू बनाने का कार्य – Domestication) का काम तेजी से शुरू हो गया| कृषि एवं पशुपालन के साथ ही ‘खाद्य पदार्थो’ का अत्यधिक (Surplus)  उत्पादन होना संभव हो सका| इससे उसमे, यानि कृषि कार्य एवं पशुपालन में जितने आदमी लगे हुए थे, उनके खपत से ज्यादा खाद्य सामग्री का उत्पादन एवं भण्डारण होने लगा| ऐसी स्थिति में वैसे लोगों के लिए भी खाद्य पदार्थ समुचित एवं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो गया, जो कृषि एवं पशुपालन से भिन्न कार्य कर सकते थे|

इसी खाद्य पदार्थों की सुनिश्चितता के साथ ही अर्थव्यवस्था के द्वितीयक प्रक्षेत्र (Secondary Sector) एवं तृतीयक प्रक्षेत्रों (Tertiary Sector) का उदय होने लगा| लोग अब अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने लगे, जो कृषि एवं पशुपालन से उत्पादन, भंडारण के अतिरिक्त जीवन के अन्य पहलुओं को सुगम और सरल बना रहा था| अर्थव्यवस्था के तीसरे प्रक्षेत्र में कृषि, पशुपालन एवं खनन के लिए सेवा प्रदाताओं का भी उदय होने लगा, यानि इसके ही साथ परिवहन, व्यापार एवं वाणिज्य का उदय हुआ| इसी के साथ कई संस्थाओं – विवाह, परिवार, शासन, सत्ता, मुद्रा, आदि का भी क्रमश: उदय होने लगा| इसी के साथ ही चतुर्थक प्रक्षेत्र (Quaternary Sector) एवं पंचक प्रक्षेत्र (Quinary Sector) का भी उदय संभव हो सका, जो क्रमशः "बुद्धि के विकास" और "नीति निर्धारण" से संबंधित था। बुद्ध इन्हीं दोनों प्रक्षेत्रों में कार्य कर रहे थे। इस सब के लिए जो समझ यानि ज्ञान (Knowledge) चाहिए था, उसे ही भारत में बुद्धि (Intelligence) कहा गया| इसी बुद्धि के उदय से सभ्यता (Civilisation) और संस्कृति (Culture) का उदय और विकास हुआ। इसीलिए प्राचीन काल को बौद्धिक काल भी कहा जाता है।

यदि एक बुद्ध का सामान्य औसत काल पचास साल होता है, तो बुद्धि की यह परम्परा, यानि बुद्धों की यह परम्परा गोतम बुद्ध से 28 * 50 = 1400 साल पहले चला जाता है| चूँकि बुद्धत्व की परम्परा कोई वंशगत नहीं था, और यह बुद्धि की सर्वोच्च एवं विशिष्ट अवस्था पाने की उपाधि था, इसलिए यह माना जा सकता है, कि एक बुद्ध कोई एक सौ साल में कोई एक ही होता रहा| इस तरह बुद्धि की व्यवस्थित परम्परा ही बुद्ध से पहले कोई 28 * 100 = 2800 साल पुरानी हो जाती है| स्पष्ट है कि इन्ही बुद्धों की परम्परा ने “मेहरगढ़ सभ्यता” को विश्व प्रसिद्ध “सिन्धु घाटी सभ्यता’ यानि “मोहनजोदड़ो की नगरीय सभ्यता” में बदल दिया| यह इतिहास है कि इन नगरीय सभ्यताओं में “बुद्धि के विहार” यानि “बौद्ध विहार” का ही उत्खनन शुरू किया गया था| यदि आप मानव इतिहास की व्याख्या वैज्ञानिक तरीके से करना कहते हैं, तो आपको सब कुछ स्वत: स्पष्ट हो जायगा| “इतिहास की वैज्ञानिक व्याख्या” उस समय और उस क्रियाविधि के साधनों एवं शक्तियों के उपयोग से किया जाता है, यानि जब इतिहास की व्याख्या में उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग के साधनों और शक्तियों तथा इनके अंतर्संबंधों के आधार पर किया जाता है| इसे ही ‘आर्थिक शक्तियाँ’ (Economic Forces) भी कहते हैं, जिसे ‘बाजार की शक्तियाँ’ (Market Forces) भी कह सकते हैं|इन्ही शक्तियों को “समकालिक शक्तियाँ” (Contemporary Forces) या “समकालीन शक्तियाँ” भी कहा जाता है| इतिहास के काल में इन्हें ही “ऐतिहासिक शक्तियाँ” (Historical Forces) भी कही जाती है, जो इतिहास को बदलता रहता है|

इस भौगोलिक उपमहाद्वीप का नाम इस क्षेत्र की विशिष्ट बुद्धि की पहचान के कारण ही इस उपमहाद्वीप का नाम “भारत” पड़ा| बुद्धि के इस आभा से युक्त प्रदेश को ही “आभा से रत” माना जाने लगा| इसी “आभा से रत” से “आ (भारत)” शब्द बना| विश्व की समकालीन अन्य नदी घाटी सभ्यताओं में भी बुद्धि के विविध उपयोग एवं प्रयोग पर मंथन चल रहा था, जो नव उदित समाज, राज्य एवं अन्य संस्थाओं के विकास के लिए अनिवार्य था| भारत बुद्धों की परम्परा के कारण ही विश्व में उत्कृष्ट कोटि के सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान एवं आध्यात्मिक ज्ञान का विशिष्ट स्तर पा सका, जिसे ही प्राप्त करने के लिए तत्कालीन सम्पूर्ण विश्व से विद्वान भारत आते रहे| इसी कारण भारत विश्व गुरु बन सका| यह अलग बात है कि सामन्त काल में सामन्ती शक्तियों ने इन ज्ञान के भण्डार को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित, संवर्धित एवं संपादित कर प्रस्तुत किया और शेष ग्रंथो को नष्ट कर दिया|

आज भी बुद्धों के ज्ञान में ‘सामान्य बुद्धिमत्ता (General Intelligence)’, ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता’ (Emotional Intelligence), ‘सामाजिक बुद्धिमत्ता (Social Intelligence)’ को अपने में समेटे हुए “बौद्धिक बुद्धिमत्ता” (Wisdom Intelligence) का सिद्धांत दिया, जो उनके प्रसिद्ध “आष्टांग मार्ग” के रूप में वर्णित है| बुद्ध को ‘मार्केटिंग प्रबंधन’ का पितामह माना जाना चाहिए, जिन्होंने अपने ज्ञान की उस समय ऐसी मार्केटिंग किया, कि आज भी उस पर विमर्श हो रहा है| बुद्ध वह पहला वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने मानव समाज को ‘संज्ञानात्मक क्रान्ति’ (Cognitive Revolution) का सूत्र दिया, जिसके कारण ही आज मानव सभ्यता और संस्कृति इस अवस्था तक आ पाई| इन्होने व्यक्ति, समाज, राज्य और मानवता के संवर्धन एवं विकास के लिए वह स्थायी सिद्धांत दिया, जिससे व्यक्ति, समाज, राज्य और मानवता का उद्विकास तेजी से संभव हो सका| इनके पारिस्थिकी न्याय (Ecilogical Justice) की अवधारणा में मानव एवं पशुओं सहित प्रकृति भी समाहित हो जाती है| ज्ञान एवं विज्ञान में कई ऐसे मौलिक एवं मुलभुत तत्व दिए, जिस पर आज का आधुनिक क्वांटम भौतिकी भी चकित है|

इसलिए ध्यान रहे कि बुद्धि के अनुयायी ही बौद्ध है, नहीं कि किसी मूर्ति के अनुयायी या किसी ख़ास परिधान वाले या किसी कर्मकांड करने वाले ही बोद्ध हैं| बाकी सब बुद्ध के नाम पर ढकोसले करते हैं|

आचार्य निरंजन सिन्हा

भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक

1 टिप्पणी:

  1. *सम्मान्नीय सिन्हा सर, नमस्कार!*
    *बुध्द और बुद्धि* पर आलेख के प्रारंभिक अभिवादन के रूप में, मैं आपका स्वागत करता हूँ। बुद्ध की बुद्धि एक *अद्वितीय और आश्चर्यजनक विषय* है, जिसके विस्तारित *अध्ययन और विचार* अगाध और अत्यंत प्रेरणादायक हैं। बुद्ध का *विचारशील मन*, जो उनकी बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है, समस्त मानवता को समझने और उसे अधिक उच्च अर्थों की ओर अग्रसर करने में निहित है।
    *आप ने आलेख में* तथ्यों के साथ बुद्ध की बुद्धि के महत्व को समझाने का प्रयास किया है जो समाज के विकास और संघर्षों के साथ जुड़ा हुआ है। किसी भी *विषय में* *अध्ययन* करना, *सोचना* और *समझना* एक *नया दृष्टिकोण प्रदान* कर सकता है, जो हमें *उस विषय* के प्रति *अधिक सही और संवेदनशील* बना सकता है। जो आज के वर्तमान विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है।
    सादर
    🙏🏻

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