(यह निबंध बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा वर्ष 2023 में आयोजित मुख्य परीक्षा से है, लेकिन इस सीरिज में आगे के निबंध इसके अतिरिक्त संघ लोक सेवा आयोग के भी होंगे| यह इस सीरीज का चौथा निबन्ध है|)
‘विचार जीवन का आधार है’, के विश्लेषण एवं
मूल्याङ्कन से पहले हमें ‘विचार’ को समझना चाहिए| विचार क्या है? यह ‘सोच’ पर
स्थिरता से ‘सोचना’ है, यानि यह अपनी ‘सोच’ पर फिर से ‘सोच’ करना ही विचार है| अर्थात
‘स्थिर सोच’ ही विचार कहलाता है| एक पशु भी चेतनशील होने के कारण ‘सोच’ सकता है,
लेकिन वह अपनी सोच पर भी फिर से सोच करना नहीं जानता है, और इसी कारण वह एक पशु
है| यही विचार करना ही एक पशुवत मानव को, जिसे होमो सेपियंस कहते हैं, को मनुष्य यानि
होमो सोसिअस (Socious) और सृजनशील मानव यानि होमो फेबर (Faber) बनाया|
लेकिन क्या यही विचार जीवन का आधार है? यदि हम
होमो सेपियंस यानि पशुवत मानव की बात करे, तो विचार जीवन का आधार नहीं है| ऐसा
इसलिए क्योंकि वैसे जीव भी अपना जीवन जी ले रहे हैं, जो विचार नहीं करते हैं या
नहीं कर सकते हैं| लेकिन जब बात एक मानव की हो रही है, तो यह स्पष्ट है कि ‘विचार’
ही जीवन का मूल आधार है| यही विचार मानव जीवन में संस्कार एवं संस्कृति के स्वरुप
में आता है|
विचार जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है, और इसीलिए बुद्ध
कहते हैं कि
‘हम वही बन जाते हैं, जो
विचार हम उत्पन्न करते हैं,
उन्ही विचारों के अनुरूप
हम अपनी दुनिया बना लेते हैं’|
और बोद्ध साहित्य में कहा गया है कि ‘मानव जीवन
बैल गाडी की तरह उसी तरह चलता है, जैसे मन रूपी बैल आगे आगे चलता है’| हम जानते
हैं कि विचार का उत्पादन केंद्र उसका ‘मन’ हो होता है| इसीलिए मन पर ध्यान देना,
मन का अवलोकन करना. मन को स्थिर करना और मन का संकेन्द्रण करना ही जीवन की सफलता
है| दरअसल यह अपने विचारों का अवलोकन है, उसका संकेन्द्रण है, और उसकी गहराइयों
में उतरना है|
किसी का आधार वह पृष्ठभूमि होता है, या वह नीव
होता है, जिस पर वह टिका हुआ होता है| यदि वह भवन है, तो यह आधार उसका नीव होगा,
और यदि यह जीवन है, तो यही से उसका भोजन पानी एवं सब कुछ प्राप्त होता रहता है,
यानि उसका परितंत्र उसी आधार पर अवस्थित होता है| इस तरह कोई आधार ही उसके
कार्यात्मक जीवन को संपोषित करता है और उसके अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराता है|
यदि हम मानव जीवन के शुरू से अब तक के इतिहास
का विश्लेषण करेंगे, तो मानव जीवन की सम्पूर्ण यात्रा का सूत्र मानव के विचारों
में ही सिमट जाता है| मानव विज्ञानी बताते हैं कि यही विचार की शक्ति थी, जिसके बदौलत
एक होमो सेपियंस ने अपने समकालीन शारीरिक रूप से अधिक शक्तिशाली होमो इरेक्टस और
नियंडरथल को पराजित किया और उसको मिटा भी दिया| कोई पचास हजार साल पहले मानव को ‘संज्ञानात्मक
समझ’ (Cognitive Understanding) आई| किसी चीज को देखना, समझाना और निष्कर्ष निकलना
ही संज्ञानात्मक समझ है| यह सब विचारों की प्रक्रिया से ही संभव हुआ| इस तरह विचार
ही मानव जीवन का वह ‘मोड़’ है, जिसने मानव प्रगति की शुरुआत किया|
इसी विचारों के क्रमबद्ध प्रक्रम ने मानव के
अर्थव्यवस्था में प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक प्रक्षेत्र के बाद चौथे एवं पाँचवें
प्रक्षेत्र के स्तर पर पहुँच गया है| आज ज्ञान एवं नीतियों का निर्धारण प्रक्षेत्र
सिर्फ शुद्ध विचारों की कलाकारी ही है|
इसी विचारो की शक्ति को Soft Power कहते हैं|
इसीलिए कहा गया है कि हमें इस मामले में सदैव
सचेत रहना चाहिए कि कोई नकारात्मक एवं विध्वंसात्मक विचार हमारे मन में कभी नहीं
आए| हमें सचेतन होकर सिर्फ सकारात्मक एवं सृजनात्मक विचार ही मन में जाने देना
चाहिए| मन तो विचारों का निरपेक्ष उत्पादन केंद्र है, अर्थात जैसा भी विचार मन में
जायगा, वैसा ही विचारों का वह उत्पादन करता है| और यह विचार उनकी कल्पनाओं में आता
है| इसीलिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने कहा है कि कल्पनाशीलता ही सृजन का
आधार है| यही सत्य को उद्घाटित करने का उपक्रम है| यही कल्पना विचारों को उत्पन्न
करता है|
आजकल भौतिकी का क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत कहता
है कि हम जिस चीज का अवलोकन करना चाहते हैं, वही वास्तविकता में बदल जाती है| इसे
सूक्ष्म कणों के सन्दर्भ में सही पाया गया है| भौतिकी का अवलोकनकर्ता का सिद्धांत
यही है| जब हम किसी सोच पर स्थिर हो जाते है, अर्थात अपने विचार को स्थायी एवं
स्थिर कर देते हैं, तो हम कल्पनाओं को अतिरिक्त ऊर्जा का सम्प्रेषण करने लगते हैं,
और वह भौतिकता में बदलने लगता है|
इसीलिए कहा गया है कि जो हम सोचते हैं यानि
स्थिरता से विचार करते हैं और उस पर विश्वास करते हैं, वह भौतिकता में हमारे जीवन
में उपलब्ध हो जाता है| अब यह वैज्ञानिक सिद्धांत हो गया है| इस तरह स्पष्ट है कि
विचार ही जीवन का आधार है|
आचार्य
निरंजन सिन्हा
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