उसने मुझे कहा - “तुम कुत्ता हो|”
मुझे ऐसा कहने वाला व्यक्ति
हमारे समाज का एक प्रतिष्ठित और स्थापित तथाकथित विद्वान यानि ज्ञानी एवं संस्कारक
माना जाता है, इसलिए मुझे गहरा आघात लगा| लेकिन मैंने थोड़ा धैर्य दिखाते हुए उनसे पूछ ही
लिया कि आप ऐसा किस आधार पर कह रहे हैं; आखिर मैं भी एक डिग्रीधारी स्थापित
बुद्धिजीवी जो ठहरा| उसने तुरंत एक मोटी सी तथाकथित पवित्र पुस्तक निकाली, जो लाल कपड़ा
में बंधा हुआ एक तथाकथित पुरातन सनातन ग्रन्थ था| उसने कहा – देखो, यह “कुत्ता” शब्द तुम्हारे समाज के लिए ‘ईश्वर’ ने लिखा
है| मैंने फिर विरोध किया - आप किस आधार पर कह रहे हैं, कि इसे ईश्वर ने
खुद लिखा है? तब उसने बड़े प्यार से समझाया कि मेरा ज्यादा सवाल करना मेरे द्वारा स्थापित धार्मिक
विरोध के स्वभाव को दर्शाता है और मैं धर्म विरोधी हो गया हूँ| अब मुझे चुप हो जाना पडा, क्योंकि धार्मिक होने और धर्म का विरोधी
होने का प्रमाण पत्र देने की क़ानूनी अधिकार सिर्फ उन्ही के पास है, जो हमारे ग्रह
के न्यायालयों में भी मान्य है|
लेकिन आपसे यह सादर अनुरोध है कि आप उनके और
मेरे धर्म और मेरे धर्मग्रन्थ का नाम मत
पूछिए और यह भी नहीं पूछिए कि मैं आपके ब्रह्माण्ड के किस ग्रह पर रहता हूँ| यह
सावधानी इसलिए रखनी पड़ती है, क्योंकि कुछ ग्रह वाले जैसे पृथ्वी ग्रह
वाले धर्म के मामले में बड़े ही नाजुक होते हैं और बड़ी जल्दी नाराज भी हो जाते हैं|
इनके धर्म इतने नाजुक होते हैं कि किसी के कुछ
बोलने से ही या किसी के कुछ करने से ही कईयों के धर्म अपवित्र हो जाते हैं |
इन मामलों में उनका सर्व शक्तिशाली, सर्व व्यापी और
सर्व ज्ञाता ईश्वर भी लाचार रहता है, लेकिन ग्रंथों में ये सर्व शक्तिशाली, सर्व
व्यापी और सर्व ज्ञाता माने जाते है| पता नहीं क्यों, उस ईश्वर को तब सब
कुछ में सर्व शक्तिशाली, सर्व व्यापी और सर्व ज्ञाता क्यों मान लिया जाता है?
पृथ्वी ग्रह वाले लोगों की एक यह भी एक विशेषता है कि किसी
भी बात में सिर्फ धर्म शब्द का प्रयोग कर लेने से ही उन सभी बातों को धार्मिक मान ली जाती
है|ऐसे लोगों को 'मानवता के दुश्मन' बड़ी आसानी से पशुओं की तरह हांक
भी ले जाते हैं और साढ़ों की तरह भड़का भी देने में सफल रहते हैं| इसीलिए मैं यह
पृथ्वी ग्रह के वासियों को छोड़ कर अन्य ग्रह वासियों के लिए लिख रहा हूँ|
तो बात मेरे “कुत्ते” होने की चल रही थी| चूँकि
यह बात मुझे हमलोगों के समाज के माननीय एवं सम्मानित संस्कारक व्यक्ति ने बतायी
थी, और हमारे तथाकथित ईश्वरीय धर्मग्रन्थ का हवाला दिया था, इसलिए मैं इस मामले पर
थोडा गंभीर हो गया| अब मुझे कुत्तों के गुणों से अपना विश्लेषण करना था| मैंने
पाया कि मुझे भी एक कुत्ते की ही तरह सांस लेने, खाना खाने, और पानी भी पीने की आवश्यकता है,
इसलिए मैं सचमुच ही कुत्ता हूँ| तब लगा कि वह गलत नहीं कह रहा था|
लेकिन अपने मुंशी
भाई ने बताया कि हमलोग अपने देश के प्रमुख कानून के अनुसार यहाँ के
सम्मानित नागरिक हैं, इसलिए धर्म ग्रंथों में लिखी हुई ईश्वरीय बातों के बावजूद
हमलोग सभी एक समान हैं| तब मैंने उनसे पूछा कि हमें क्या करना चाहिए? उन्होंने
बताया कि हमलोगों को राष्ट्रीय स्तर पर और प्रांतीय
स्तर विरोध करना चाहिए, धरना और प्रदर्शन करना चाहिए, सरकार को भी ज्ञापन देना चाहिए| मैंने उनसे सहमति जताई और आन्दोलन तथा प्रदर्शन तेज करने
के लिए अपनी कुछ खानदानी जमीन भी बेच कर संसाधन जुटाए| यह सब कुछ विगत कई वर्षो
से चल रहा है| मैंने समाज में एक विभाजन रेखा खिची| चूँकि मुझे ऐसा कहने वाले
एक ख़ास समाज से हैं, तो मैं भी एक खास समाज से हूँ| उनके तरफ भी कई सामाजिक
समूह जुड़े हुए हैं, तो मेरी तरफ भी कई सामाजिक समूह जुड़े हुए हैं| कहने का मतलब यह
है कि यह आन्दोलन और प्रदर्शन पहले से चल रहे राष्ट्रव्यापी विरोध एवं समर्थन अभियान का
हिस्सा हो गया और इसमें राष्ट्रीय समाज के लगभग सभी वर्गों की हिस्सेदारी हो गयी| आप
कह सकते हैं कि हमारे लोग इसके लिए अपना
सब कुछ जैसे धन, मन, वैचारिकी, उर्जा, उत्साह, जवानी, संसाधन झोंके हुए हैं| हमें यह लगता है कि हमारे पीछे रह जाने का यही मूल कारण है
कि वे लोग हमें कुत्ता समझते हैं, और आन्दोलन करना ही इसका एकमात्र समाधान है|
लेकिन एक दिन प्रोफ़ेसर
शिव कुमार जी मिल गए| हालाँकि ये भाषा के प्रोफ़ेसर हैं, लेकिन इनकी समझ
गहरी और तेज है| मैंने उन्हें अपनी व्यथा कथा सुनाई, और इसके विरुद्ध अपनी प्रखर बौद्धिक
रणनीति को भी स्पष्ट किया| मुझे उनसे पूरा समर्थन यानि धन, मन, उर्जा,
उत्साह, जवानी के साथ समर्थन मिलने की आशा थी, क्योंकि मैं एक स्थापित समझदार हूँ
और एक लोकप्रिय जननेता भी हूँ| लेकिन उन्होंने मेरी सारी अवधारणा और रणनीति को ही ध्वस्त
कर दिया| वे इस समस्या पर एक अलग दृष्टिकोण से प्रकाश डालने लगे, जिसके बारे
में यानि उस पक्ष को मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था| मैं पूरी तरह से हिल गया था, मुझे यह समझ में ही
नहीं आ रहा था, कि मैं बेवकूफ हूँ, कि खोखला समझदार ही हूँ|
प्रोफेसर ने मुझे समझाया कि मैं इन सभी
प्रकरणों को दूसरे सन्दर्भ और पृष्ठभूमि में देखूं| उन्होंने कहा कि मेरे दुश्मन
चाहते हैं कि मैं अनावश्यक दिशा में ही उलझा हुआ रहूँ और वे आगे बढ़ते रहें, जिसमे
उनको सफलता भी मिलती जा रही है| उन्होंने
समझाया कि मैं विगत कई वर्षों से सब कुछ यानि सभी रचनात्मक और सृजनात्मक कार्य छोड़
कर अपने धन, मन, वैचारिकी, उर्जा, उत्साह, जवानी को यूँ ही बर्बाद करता रहा| यही तो वे लोग
चाहते हैं, जिसे मैं अपनी आक्रोश में समझ नहीं पा रहा था| अब मुझे समझ में आया कि मैं तो उनकी ही योजना के अनुसार उनके लिए अपना काम कर रहा था| स्पष्ट है कि इसका लाभ
भी वही ले जा रहे थे, क्योंकि उनके आगे बढ़ते क्षेत्रों में हमारे लोग प्रतिद्वंद्विता
में कहीं थे ही नहीं| सभी आस्था में डूबे हुए हैं, और समझ रहे हैं, कि पूरा विश्व
इनके विशिष्ट सांस्कृतिक ज्ञान से अति प्रभावित हैं| वे
तो हमें खाने और पचाने वाले बाजार भर ही समझ रहे थे|
प्रोफ़ेसर साहेब ने कहा कि स्पष्ट है कि उनके द्वारा लिखा ग्रन्थ उनके लाभ के लिए ही लिखा गया है,
तो आज के आधुनिक युग में हमें उसे पढने की क्या जरुरत है? उनके ग्रंथों मे स्वतन्त्रता,
समानता, बंधुत्व और न्याय की किसी भी बात की कोई चर्चा, आलोचना के रूप में भी, नहीं रहने से ये सब ग्रन्थ आधुनिक युग में समाज से विलुप्त होता गया| मैंने कहा कि मैं
आपकी बात नहीं समझ रहा हूँ, क्या मुझे विरोध भी नहीं करना चाहिए? उन्होंने समझाया
कि मैं यानि हमलोग उनकी गलत, लेकिन बेकार की बातों का ही विरोध कर यानि उसे चर्चा
में लाकर उन गलत बातों और आदर्शो को जीवित ही नहीं रख रहे हैं, बल्कि उसे मजबूत भी कर रहे हैं और उसे समाज
में प्रसारित भी कर रहे हैं, जो वे चाहते हैं| उन्होंने
कहा कि यह जीतने की रणनीति नहीं है| हमें जो रचनात्मक और सकारात्मक कार्य करना चाहिए, उस ओर पर्याप्त ध्यान ही नहीं दे रहे हैं| साथ ही याद दिलाया कि इतने दिनों में मैं
कितने दिनों उद्यमिता, वित्तीय साक्षरता, सामाजिक अंकेक्षण, बौद्धिक बुद्धिमता,
इतिहास, मनोविज्ञान, कानून और दर्शन का अध्ययन किया है? स्पष्ट था कि मैं इन सब विषयों से अपना
ध्यान हटा लिया था, जबकि इस तेजी से बदलती दुनिया में हमेशा अपडेट रहने की
आवश्यकता है|
आगे उन्होंने कहा कि शासन संख्या बल से भले ही चलता हुआ दिखता है, लेकिन शासन
बुद्धि बल से ही किया जाता है|
शासन नीति
निर्धारण में सदैव ही बहुत कम लोग शामिल रहते हैं,
जिसके
लिए अध्ययन करना पड़ता है और
विचारों
में पैरेडाईम शिफ्ट भी करना पड़ता है|
सिर्फ
पुराने महान विचारकों के नाम जपने से ही बात आगे नहीं बढती है, बल्कि समय के सन्दर्भ में
विचारों की अवधारणा, क्रियाविधि और उपागम भी बदलना पड़ता है| इसलिए कभी सत्ता में आ भी जाइएगा, तो वहां से हटने में देर भी नहीं लगती
है| वे तो चाहते हैं कि हम अपने युवाओं को दिशाहीन करते रहे और उनकी
सकारात्मक उर्जा एवं उत्साह को विध्वंसात्मक दिशा में मोड़ दें, जो हम करते आ रहे
हैं|
तब वीरेंदर
भाई ने कहा – आपलोग ‘शूद्र’ वाले प्रसंग में तो यह सब नहीं कह रहे हैं?
प्रोफेसर साहब कोई जबाव
दिए बगैर अपनी गाड़ी में प्रस्थान कर गए| मैं तो वहीं उमड़ घुमड़ रहे विचारों में खो
गया| मेरा दिमाग ठनका| आपको क्या लगता है?
आचार्य
निरंजन सिन्हा
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उनकी बेकार की बातों में ध्यान न देकर अपने लक्ष्य को निर्धारित और हसिल करने में प्रयास करना ही उचित है
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