गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानवीय बुद्धिमत्ता से आगे निकल जाएगा?

Will Artificial Intelligence overpower Human Intelligence?

इस आलेख का सन्दर्भ “चैट जीपीटी” है| आजकल “चैट जीपीटी” की चर्चा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के क्षेत्र में एक नए अवतार के रूप में फिर से आ गयी है| इसके साथ ही यह भी चर्चा में है कि क्या प्राकृतिक मानवीय बुद्धिमत्ता पर मशीनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता हावी हो जाएगी? यानि क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता ही मानवीय बुद्धिमत्ता से आगे निकल जायगी? तो हमें पहले यह समझना चाहिए कि “चैट जीपीटी” क्या है? कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्या है? और यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्राकृतिक मानवीय बुद्धिमत्ता से अलग कैसे है?

“चैट जीपीटी” वह ‘चैटबाट’ (Chatbot – दोस्ताना बातचीत करना) है, जो अभी हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में उभरा है और यह एक Generative Pre-trained Transformer (GPT) की तरह कार्य करता है| इसे कुछ लोग Global Power Transformar (GPT) of Learning भी कहते हैं| चैट (Chat) दोस्ताना बातचीत को कहते हैं| ‘चैटबाट’ वह कम्प्यूटर प्रोग्राम है, जो प्राकृतिक भाषा का उपयोग करते हुए अपने प्रयोगकर्ता से उसकी भावनात्मक समझ रखते हुए पूर्व निर्धारित नियमों एवं आंकड़ों के आधार पर बातचीत करने में समर्थ होता है, या उत्तर देता है| 

इसी तरह ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence) मशीनों की ऐसी बुद्धिमत्ता के निर्माण एवं उपयोग से सम्बन्धित है, जो किसी चीज का बोध (Perceive) कर सके, यानि उसे समझ सके, उसका विश्लेषण (Analyse) कर सके, उसका मूल्याङ्कन (Evaluate) कर सके और उसको आवश्यकता अनुसार समेकित (Integrate) कर वांछित परिणाम दे सके| कुछ लोग इसे कृत्रिम मानव भी कहते हैं, जो कुछ मायने सही भी है और गलत भी है| यह सही इस मायने में है, कि यह मानव  के कई कार्यों को सफलतापूर्वक कर मानव की अभूतपूर्व सहायता करता है| यह सौपे गए कार्यो को बड़ी शुद्धता के साथ, बड़ी तेज गति से, बहुत बड़ी मात्रा में और अगम्य स्थान एवं विपरीत परिस्थिति में भी जाकर पूर्व निर्धारित नियमों एवं सूचनाओं के आधार पर वांछित परिणाम देता है| लेकिन इसे कृत्रिम मानव कहना इस आधार पर गलत है, कि यह मशीन आध्यात्मिकता (Spirituality) के आधार पर यानि अनन्त प्रज्ञा (Infinite Intelligence) से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है, क्योंकि इसमें “स्वयं चेतना” का अभाव होता है|

कृत्रिम बुद्धिमत्ता को दो भागों – प्रतिक्रियात्मक प्रक्रिया (Reactive Process) और मन की क्रियाविधि (Mind Process) में बांटा जा सकता है| जब किसी मशीन का कृत्रिम बुद्धिमत्ता पूर्व निर्धारित नियमों एवं सूचनाओं के आधार पर प्रतिक्रियात्मक रूप में अपना निष्कर्ष देता है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का “प्रतिक्रियात्मक प्रक्रिया स्वरुप” कहलाता है| लेकिन जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता पूर्व निर्धारित नियमों एवं सूचनाओं के आधार पर निष्कर्ष देने में मानव चेतना की तरह तर्क (Logic), विश्लेषण (Analysis), मूल्यांकन (Evaluation), समेकन (Integration), एवं निष्कर्षण (Conclusion) कर विवेकपूर्ण (Rational) परिणाम (Result) देता है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का “‘मन’ यानि ‘चेतना’ प्रक्रिया” कहलाता है| इस तरह यह दूसरा प्रकार ‘मानव चेतना’ की अवधारणा पर निर्भर हो गया, कि ‘मानव चेतना’ से हम क्या समझते हैं? तो हमें “मानव चेतना” यानि ‘मानव मन’ को समझना चाहिए|

यह ध्यान रहे कि किसी भी व्यक्ति या किसी भी अस्तित्व का ‘मन’ को हम ‘चेतना’ कह सकते हैं| इस ‘मन’ यानि ‘चेतना’ को उसका “स्वयं” या “आत्म” (यानि Self) भी कह सकते हैं, या कहते हैं| मैंने इस ‘मन’ यानि ‘चेतना’ यानि ‘आत्म’ (आत्मा नहीं) को वैज्ञानिक रूप में परिभाषित किया है| मेरे अनुसार यह मन किसी भी जीव या व्यक्ति विशेष में एक विशिष्ट उर्जा आव्यूह(Energy Matrix) का अस्तित्व है, जो उसके शरीर से संपोषित (Cherished/ Nourished) होता रहता है और उसके अनुभव, ज्ञान, एवं समय के साथ विकसित होता रहता है, लेकिन यह उसके मष्तिष्क (Brain) की क्रिया प्रणाली (Mechanism) से अभिव्यक्त होता है, और अपने संपर्क में आए अन्य ऊर्जा से अनुक्रिया (Actions) एवं प्रतिक्रिया (Reaction) करता रहता है| यह अवधारणा मन से जुड़ी लगभग सभी प्रश्नों को समाधान की ओर दिशा देती है और सभी स्थितियों की संतोषप्रद व्याख्या भी करती है| यही मन सभी मनोवैज्ञानिक क्रियाएँ यथा संवेदन (Sensation), अवधान (Attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना यानि अधिगम (Learning), स्मृति (Memory), चिंतन (Thinking), आदि आदि को भी सम्पादित करता है|

चूँकि मन उर्जा का एक आव्यूह है, इसलिए मन उर्जा के विभिन्न स्वरुप एवं अवस्था से क्रिया एवं प्रतिक्रिया करता रहता है| कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी उर्जा के स्वरूप का उपयोग एवं प्रयोग करता है, लेकिन यह मन की उर्जा की आव्यूह की तरह नहीं होता है| आव्यूह (Matrix) को एक वस्तु (Substance, not Goods), या एक अवस्था (Situation), या एक संरचना (Structure), या एक स्थान, या एक बिंदु, या एक वातावरण (Environment) के रूप में जाना जाता है, और इसमें ही किसी ‘मन’ की उत्पत्ति (Origin) होती है, कोई स्वरुप ग्रहण (Takes Form) करता है या उससे घिरा हुआ (Enclosed) होता है| चूँकि यह किसी के शरीर से संपोषित होता रहता है, इसीलिए उस शरीर के नष्ट हो जाने पर वह उर्जा आव्यूहभी संपोषण एवं संरक्षण के अभाव में खंडित होकर अनन्त ऊर्जा भण्डारमें विलीन हो जाता है और अपना मौलिक स्वरुप को खो देता है, जबकि तथाकथित आत्मा(Soul) अपने तथाकथित मौलिक स्वरुप को यथावत बनाए रखता है, ऐसा माना जाता है|

कोई भी व्यक्ति ‘मन’ या ‘चेतना’ या ‘आत्म’ को अपने अपने ढंग से परिभाषित कर सकता है या करता है, लेकिन सभी का मौलिक एवं सार तत्व एक ही है, जिसे ऊपर परिभाषित किया गया है| विज्ञान यह स्पष्ट करता है कि मानसिक क्रिया (Mental Actions) और मस्तिष्क की क्रिया (Brain Actions) एक ही नहीं है, तथापि ये एक दुसरे पर आश्रित है| मस्तिष्क कोशिकीय (Cellular) क्रियाएँ करता है, जबकि मन उर्जीय (Energetic) क्रियाएँ करता है, लेकिन दोनों एक दुसरे से आच्छादित लगती है, परन्तु वे समरूप (Identical) भी नहीं है| यह भी सत्य है कि मन मस्तिष्क के बिना कार्यरत नहीं रह सकता, फिर भी मन एक पृथक सत्ता है, एक अलग अस्तित्व है| इसलिए एक मानसिक क्रिया एक मस्तिष्क की क्रिया से ज्यादा व्यापक होता है| इस तरह एक मस्तिष्क उसके शरीर के मन का मोड्यूलेटर (Modulator) है| मोड्यूलेटर एक यंत्र होता है, जो डाटा या कम उर्जा वाले तरंगो को क्रियाशील होने योग्य बनाता है| जबकि “चैट जीपीटी” का ट्रांसफार्मर (Transformar) एक ऐसा यन्त्र है जो किसी खास प्रकार की ऊर्जा की प्रकृति को किसी खास दिशा में संवर्धित करता है|

इस तरह स्पष्ट है कि जब तक मन यानि चेतना को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया जाता है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता की गुणवत्ता और शक्तियों को मानवीय बुद्धिमत्ता की गुणवत्ता और शक्तियों से तुलना किया जाना समुचित नहीं होगा| कृत्रिम बुद्धिमत्ता और विज्ञान के सहारे कोई “मशीनी मस्तिष्क” (Machine Brain) का स्वरुप दे सकता है, लेकिन क्या कोई व्यक्ति ‘मन’ (Mind) का निर्माण भी कर सकता है, जो अभी तक स्वयं परिभाषित नहीं है?  यही मन यानि चेतना ही अनन्त प्रज्ञा से क्रिया और प्रतिक्रिया कर अंतर्ज्ञान यानि आभास यानि दिव्य ज्ञान प्राप्त करता है| इसके अतिरिक्त यही ‘मन’ विवेकशीलता (Rationaliy) का भी उपयोग एवं प्रयोग करता है| स्पष्ट है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता यह सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकता है और इसीलिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता की एक निश्चित सीमा होगी, जबकि मानवीय बुद्धिमत्ता की कोई निश्चित सीमाएं नहीं होगी|

यदि कोई कृत्रिम बुद्धिमत्ता और विज्ञान का उपयोग कर उपर्युक्त परिभाषित यानि अवधारित संकल्पना के अनुसार ‘जीवन्त चेतना’ यानि ‘जीवन्त मन’ का निर्माण करने में सफल हो जाता है, जो मानवीय चेतना की वास्तविक स्वरुप को प्रतिस्थापन्न कर दे, तो निश्चितया कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानवीय बुद्धिमत्ता पर प्रभावी हो जायगा, अन्यथा यह संभव नहीं है| हाँ, यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसा मशीन, या उपकरण, या हथियार, या अन्य कोई नाम का ओजार बना ले, जिसका मकसद ही मानव के विरुद्ध दुरूपयोग करना है, तो यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव नहीं होकर उस प्रयोगकर्ता व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का प्रभाव माना जाना चाहिए, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव यानि इसका हावी होना नहीं माना जाना चाहिए| इसी तरह किसी आकस्मिक दुर्घटना से उत्पन्न मानवीय संकट को भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभावी परिणाम नहीं माना जा सकता, अपितु यह प्रयोगकर्ता की असावधानी, या असंतुलन, या पूर्वानुमान का अभाव, या चूक का परिणाम माना जाना चाहिए|

स्पष्ट है कि ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ शायद कभी भी ‘मन’ यानि’ चेतना’ यानि ‘आत्म’ के अभाव में मानवीय बुद्धिमत्ता का स्थान नहीं ले सकता है| हाँ, यदि किसी मानव की मंशा ही गलत होगी, तो वह इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता का दुरूपयोग कर सकता है| लेकिन यह दुरूपयोग करने वाला मानवीय बुद्धिमत्ता ही होगी और यह मानवीय बुद्धिमत्ता अपने प्रयुक्त कृत्रिम बुद्धिमत्ता को मशीन, या उपकरण, या हथियार, या अन्य कोई नाम का ओजार के रूप में उपयोग कर रहा होगा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता अपना स्वयं उपयोग नहीं कर रहा होगा| यानि कृत्रिम बुद्धिमत्ता मस्तिष्क (Brain) का विकल्प बन सकता है, मन (Mind) का विकल्प नहीं, जैसा स्वभाव ऊपर वर्णित है?

अत: यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी भी मानवीय बुद्धिमत्ता पर प्रभावी नहीं होगा, यदि प्राकृतिक चेतना यानि मन (मस्तिष्क नहीं) या आत्म (आत्मा नहीं) का विकल्प उपलब्ध नहीं होता है|

आचार्य निरंजन सिन्हा 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब, लेखक महोदय,
    सच में, ज्ञान हम तीन तरह से पा ही सकते है
    1) चिंतन से, जो उत्तम है
    2) अनुकरण से, जो आसान है
    3) अनुभव से, जो कडुआ है

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  2. बहुत ही सुन्दर एवं तर्कपूर्ण आलेख।

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