सोमवार, 9 जनवरी 2023

मन का विज्ञान एवं क्रियाविधि (The Science n Mechanism of Mind)

मन क्या है? मन या चेतना आज भी मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है| क्या यह मष्तिष्क है, या उससे भिन्न इसका कोई और अस्तित्व है? इस सम्बन्ध में विज्ञान क्या कहता है? यह अध्यात्म से कैसे और क्यों जुड़ता है? अध्यात्म क्या है और विज्ञान क्या है? मन यदि मष्तिष्क से भिन्न है, तो मष्तिष्क क्या है और मन से यह कैसे जुडा हुआ है?

मन के आधुनिक एवं वैज्ञानिक अवधारणा के लिए मानव जगत तंत्रिका वैज्ञानिक स्पेरी (Roger Wolcott Sperry) एवं भौतिकी वैज्ञानिक पेनरोज (Sir Roger Penrose) का आभारी रहेगा| तंत्रिका वैज्ञानिक स्पेरी ने चेतना अर्थात मन, मस्तिष्क एवं व्यवहार को जैववैज्ञानिकी के आधार पर उनके अन्तरक्रियाओं को समझाया है| पेनरोज का मानना है कि मन एक हवा हवाई अवधारणा नहीं है, बल्कि मन का संरचना भी क्वांटम स्तर पर उत्पन्न होता है और कार्यरत है|

मैंने मन को जो समझा है, ‘मन’ को ‘Mind’, या ‘आत्म’ (Self) या ‘चेतना’ (Consciousness) कह सकते हैं, लेकिन इसे ‘आत्मा’ (Soul) कदापि नहीं कहा जाना चाहिए| यह मन किसी भी जीव या व्यक्ति विशेष में एक विशिष्ट “उर्जा आव्यूह” (Energy Matrix) का अस्तित्व है, जो उसके शरीर से संपोषित (Cherished/ Nourished) होता रहता है और उसके अनुभव, ज्ञान, एवं समय के साथ विकसित होता रहता है, लेकिन यह उसके मष्तिष्क (Brain) की क्रिया प्रणाली (Mechanism) से अभिव्यक्त होता है,और अपने संपर्क में आए अन्य ऊर्जा से अनुक्रिया (Actions) एवं प्रतिक्रिया (Reaction) करता रहता है| यह अवधारणा मन से जुड़ी लगभग सभी प्रश्नों को समाधान की ओर दिशा देती है और सभी स्थितियों की संतोषप्रद व्याख्या भी करती है| यही मन सभी मनोवैज्ञानिक क्रियाएँ यथा संवेदन (Sensation), अवधान (Attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना यानि अधिगम (Learning), स्मृति (Memory), चिंतन (Thinking), आदि आदि भी सम्पादित करता है|

चूँकि मन उर्जा का एक आव्यूह है, इसलिए मन उर्जा के विभिन्न स्वरुप एवं अवस्था से क्रिया एवं प्रतिक्रिया करता रहता है| आव्यूह (Matrix) को एक वस्तु (Substance, not Goods), या एक अवस्था (Situation), या एक संरचना (Structure), या एक स्थान, या एक बिंदु, या एक वातावरण (Environment) के रूप में जाना जाता है, और इसमें किसी की उत्पत्ति (Origin) होती है, कोई स्वरुप ग्रहण (Takes Form) करता है या उससे घिरा हुआ (Enclosed) होता है| इस ऊर्जा आव्यूह को कोई व्यक्ति या तंत्र किसी व्यक्ति के ‘आभा मंडल’ (Halo) की तरह अभिव्यक्त होता हुआ देख या समझ पाता है| चूँकि यह किसी के शरीर से संपोषित होता रहता है, इसीलिए उस शरीर के नष्ट हो जाने पर वह ‘उर्जा आव्यूह’ भी संपोषण एवं संरक्षण के अभाव में खंडित होकर ‘अनन्त ऊर्जा भण्डार’ में विलीन हो जाता है और अपना मौलिक स्वरुप को खो देता है, जबकि तथाकथित ‘आत्मा’ अपने तथाकथित मौलिक स्वरुप को यथावत बनाए रखता है| चूँकि यह ‘मन’ उर्जा का ही एक ‘आव्यूह’ स्वरुप है, तो यह आव्यूह भी विद्युतीय चुम्बकीय तरंग (Electro Magnetic Wave) ही होगा, चाहे उसकी आवृति (Frequency) या तरंग दैर्ध्य (Wave length) यानि उर्जा (Energy) की मात्रा कुछ भी हो|

तो मन क्या क्या करता है? मन की प्रक्रिया यानि मानसिक प्रक्रिया किसी की चेतनाओं की प्रक्रिया है, और उनके अनुभवों एवं व्यवहारों को संचालित करता है, नियमित एवं नियंत्रित करता है और इस तरह पूर्ण रूपेण इन सभी को प्रभावित भी करता रहता है और इसीलिए मन इन सबों से भी प्रभावित होता रहता है| चेतना क्या है? चेतना अपने मानस यानि मन की सामान्य स्थिति से अवगत रहना, या विशेष मानसिक विषयवस्तु की जानकारी रखना, या स्वयं अपने अस्तित्व के बारे में अवगत रहना है| विज्ञान यह स्पष्ट करता है कि मानसिक क्रिया (Mental Actions) और मस्तिष्क की क्रिया (Brain Actions) एक ही नहीं है, तथापि ये एक दुसरे पर आश्रित है| मस्तिष्क कोशिकीय (Cellular) क्रियाएँ करता है, जबकि मन उर्जीय (Energetic) क्रियाएँ करता है, लेकिन दोनों एक दुसरे से आच्छादित लगती है, परन्तु वे समरूप (Identical) भी नहीं है| यह भी सत्य है कि मन मस्तिष्क के बिना कार्यरत नहीं रह सकता, फिर भी मन एक पृथक सत्ता है, एक अलग अस्तित्व है| इसलिए एक मानसिक क्रिया एक मस्तिष्क की क्रिया से ज्यादा व्यापक होता है| इस तरह एक मस्तिष्क उसके शरीर के मन का मोड्यूलेटर (Modulator) है| मोड्यूलेटर एक यंत्र होता है, जो डाटा या कम उर्जा वाले तरंगो को क्रियाशील होने योग्य बनाता है| जब हम सोते रहते हैं, तब भी मन जागता रहता है और सूचनाओं को ग्रहण, विश्लेषण एवं संश्लेषण करता रहता है| सोते समय भी अधिगम (सीखना / Learning) और स्मरण (Memory) की क्रिया जारी रहता है| विज्ञान ने यह भी स्थापित किया है कि किसी दुर्घटनावश यदि किसी का कोई अंग भंग भी हो जाय, यानि नष्ट हो जाय, तो भी वह व्यक्ति उस अंग का लाभ ले पा रहा था, जो निश्चितया उसका मन कर रहा था, भले ही वह पूर्णता तक नहीं था (जिसके विकसित किये जाने की संभावना है)| यह भी मन के द्वारा विज्ञान का नया अध्याय जोड़ रहा है यानि संभावनाओं के प्रयोग को प्रक्षेपित (Project) कर रहा है|

अनुभव (Experience) क्या है? किसी भी कार्य को करने से प्राप्त जानकारी, जो मन एवं मस्तिष्क में संग्रहीत होता है, अनुभव है| किसी का अनुभव वास्तव में आत्मपरक होता है, और यह उसकी चेतना यानि मन में ही रचा बसा होता है| अनुभवकर्ता का अनुभव उसकी आंतरिक एवं बाह्य दशाओं से प्रभावित होता है यानि संचालित, नियंत्रित एवं नियमित होता है| हमने देखा है कि एक ही भौतिक अवस्था में भी मन की स्थितियों के अनुसार अनुभव भी भिन्न भिन्न होता है, जैसे किसी थके हुए गृहिणी के यहाँ रात्रि काल में भोजन के समय अन्य अतिथि का आना और उसके नैहर (माता के आवास) के अतिथि का आना भिन्न भिन्न अनुभव देता है| किसी का अनुभव तो पूर्णतया ‘आंतरिक अवस्था’ होता है, लेकिन किसी का व्यवहार ‘आंतरिक एवं बाह्य’ दोनों होता है| आंतरिक अवस्था अप्रकट होता है, लेकिन बाह्य अवस्था प्रकट होता है और इसीलिए यह दूसरों के द्वारा प्रेक्षनीय (देखे जाने योग्य) भी होता है| यह व्यवहार उद्दीपक (Stimulus) एवं अनुक्रिया (Response) के सम्बन्ध से जाना जाता है| यह व्यवहार क्या है? किसी मानव या जीव का कोई भी प्रकट क्रिया या प्रतिक्रिया, जिसका प्रेक्षण किया जा सके, व्यवहार है|

हम जानते हैं कि चेतना यानि चेतनता का अनेक स्तर होता है, - अचेतन, अवचेतन, चेतन एवं अधिचेतन| चूँकि चेतना ही मन है, आत्म है और इसीलिए मन भी चेतना के इन सभी अवस्थाओं पर कार्यरत होता है| मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि मन की संरचना का लगभग 90 % भाग अचेतन स्तर पर है और इसीलिए मन का सञ्चालन अधिकांशतया अचेतन स्तर पर ही होता है, जिसे वह व्यक्ति भी अपनी चेतना में आसानी से समझ नहीं पाता है| लेकिन चेतनता के हर स्तर पर अनन्त प्रज्ञा (Infinite Intelligence) छाया रहता है|

चेतनता का यानि मन का यानि आत्म का ‘अधि’ (Above) से यानि ऊपर से जुड़ना यानि किसी की ‘चेतना’ का अनन्त प्रज्ञा से जुड़ना ही “अध्यात्म” (Spirituality- Connecting Spirit to Infinite Intelligence) है| और विज्ञान क्या है? किसी भी विषय का क्रमबद्ध (Systematic) एवं सुव्यवस्थित (Well Organised) ज्ञान, जिसे कोई भी प्रयोग एवं निरिक्षण कर उसे सत्यापित कर सकता है, विज्ञान है| मतलब विज्ञान में प्रयोग, निरिक्षण, सत्यापन, प्रक्षेपण (Projection) एवं पुनर्परीक्षण की निश्चित क्रियाविधि (Methodology) ही प्राथमिक होता है| साहित्य में क्रमबद्धता एवं व्यवस्था के होते हुए भी इस क्रियाविधि (Methodology) के अभाव के कारण ही साहित्य आदि विज्ञान नहीं है|

चूँकि एक मन चेतना ही है, और यह अनुभव एवं व्यवहार सम्बन्धी चेतनाओं का अन्तरप्रक्रिया है, जो समय के साथ साथ विस्तृत होता जाता है और गहराता जाता है, इसीलिए कोई भी व्यक्ति अपने मन को क्षैतिज विस्तार एवं उर्घ्वाकार गहराई  दे सकता है और उसका असीमित लाभ भी ले सकता है| इसी कारण कोई व्यक्ति अपने को इस तरह विकसित कर पाता है कि वह अनन्त प्रज्ञा से ज्ञान प्राप्त करने लगता है, जिसे सहज बोध (Intuition) से नवाचार (Innovation) पाना भी कहते हैं| आप भी जानते हैं कि ज्ञान प्राप्ति की साधारण अवस्था में एक ज्ञान देने वाला (शिक्षक, पुस्तक, या अन्य स्रोत) होता है और दुसरा ज्ञान प्राप्त करने वाला, परन्तु ज्ञान प्राप्ति के उच्चतर अवस्था में ज्ञान देने वाला एवं ज्ञान पाने वाला, दोनों ही एक ही व्यक्ति होता है| हालाँकि दोनों अवस्था में मन का ही विस्तार होता है, लेकिन दुसरे अवस्था में यानि उच्चतर अवस्था में मन अनन्त प्रज्ञा से जुड़कर ज्ञान प्राप्त करने लगता है, जिसे कुछ लोग इसे ‘दिव्य ज्ञान’ या ‘दिव्य लोक से सन्देश प्राप्त करना समझते हैं| ज्ञान प्राप्त करने की इस विधि से कोई भी अनन्त प्रज्ञा से जुड़ कर ज्ञान प्राप्त कर सकता है|

जब कोई व्यक्ति समाज या मानवता के बेहतरीन भविष्य के लिए कार्यरत हो जाता है, तो उसके दिशा में कोई द्वंद नहीं रह जाता है और इसलिए उसके मानस उर्जा के आव्यूह की दिशा में कोई भटकाव नहीं होगा। ऐसी स्थिति में अनन्त प्रज्ञा उस मानस की उर्जा को बहुगुणित करने लगता है। इस तरह इन विचारों और कार्यों में अनन्त प्रज्ञा का अकल्पनीय सहयोग मिलने लगता है।

‘आत्म’ यानि ‘मन’ के होते हुए ‘आत्मा’ की अवधारणा की कोई आवश्यकता नहीं है| ‘आत्म’ शरीर के साथ उत्पन्न होता है और शरीर के साथ ही नष्ट हो जाता है, जबकि ‘आत्मा’ अपनी निरन्तरता शरीर की समाप्ति के बाद भी बनाए रखती है| ‘आत्म’ एक वैज्ञानिक अवधारणा है, जबकि ‘आत्मा’ एक काल्पनिक एवं अवैज्ञानिक अवधारणा है| ‘आत्म’ का उद्देश्य ‘मन’ की क्रियाविधि समझना है, जबकि ‘आत्मा’ का उद्देश्य यथास्थितिवाद को यथावत बनाए रखना है, जो मध्य काल के सामन्तवाद के समर्थन में ज्यादा विकसित हुआ| ‘आत्मा’ निश्चितया ‘पुनर्जन्म’, एवं ‘कर्मवाद’ से जुड़ा हुआ है, जो तथाकथित सुख या दुःख भोगने के लिए स्वर्ग - नरक भी जाता है, इत्यादि इत्यादि| यह तो बौद्धिक षड्यंत्रकारियों का खेल है कि ‘आत्म’ (Self) को या Spirit को ‘आत्मा’ बताते हैं या अनुवाद कर देते है| इसी तरह इन्होने ‘जाति’ (Jati) व्यवस्था को ‘Caste’ व्यवस्था बता दिया| यह सर्वज्ञात है कि ‘जाति’ आजन्म नहीं बदलने वाली भारतीय व्यवस्था है, जबकि ‘Caste’ एक ही जन्म में बदलने वाली एक पुर्तगाली अवधारणा है, और इसी कारण पश्चिमी जगत भारतीय ‘जाति’ को ढंग से नहीं समझ पाया|

मन के इसी वैज्ञानिक स्वरुप एवं क्रियाविधि के कारण ही ‘बुद्ध’ कहते रहे कि वास्तविकता यानि भौतिकता किसी के मन का अनुसरण ही करता है| इसीलिए यह कहा गया है कि मन जिसका भी कल्पना करता है और उसमे विश्वास करता है, वह उसे उस स्वरुप में पा भी लेता है, जिस स्वरुप में वह उसे पाना चाहता है| क्वांटम सिद्धांत का “अवलोकनकर्ता का प्रयोग” (Observer Experiment) भी इसी को संपुष्ट करता है| ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मन उर्जा का एक निश्चित आव्यूह (Matrix) है, और इसीलिए वह मन अनन्त से एवं अन्य स्रोत से भी ऊर्जा ग्रहण कर, विश्लेषण एवं संश्लेष्ण कर मन के चित्रण (Imagination) को वास्तविकता यानि भौतिकता में बदल देता है, जिस चित्रण की वास्तविकता में वह मन विश्वास करता है|

इसी तरह कोई भी किसी भी विषय के प्रति ‘जुनून’ (Passion) के साथ समर्पित होता है, तो उसके मन की ‘ऊर्जा आव्यूह’ ब्रह्माण्ड की समस्त उर्जाओं पर संकेंद्रित होकर उसे उपलब्ध कराने के लिए क्रियाशील हो जाता है| अनन्त प्रज्ञा मन के उर्जा आव्यूह के कारण मानसिक चित्रण के स्वरुप निर्धारण में क्रियाशील हो उठता है, इस तरह इस प्रक्रिया में मन का उर्जा आव्यूह (Energy Matrix) एक उत्प्रेरक (Catalyst) के रूप में कार्य करता है|

‘मन’ के इसी ‘उर्जा आव्यूह’ के कारण ही कोई किसी भी घटना या अवस्था को आभास (Forewarning) या पूर्वाभास (Premonition/ Apprehension) कर लेता है| हम जानते हैं कि किसी घटना या अवस्था परिवर्तन का स्रोत ‘ऊर्जा की अवस्था’ में परिवर्तन होता है| इसी कारण कोई जीव अपने प्राकृतिक स्वाभाव के कारण मानव की अपेक्षा किसी प्राकृतिक घटना यथा भूकंप या सुनामी आदि का पूर्वाभास पहले ही कर लेता है, जो उर्जा के स्रोत में बदलाव की जानकारी से ही संभव है| मानव भी अपने ‘ऊर्जा आव्यूह’ को इस तरह विकसित कर सकता है, या विकसित कर लेता है कि कुछ घटनाओं एवं अवस्थाओं को कुछ समय पहले जान सकता है| इसका अर्थ यह नहीं होता है कि वह एक भविष्यवक्ता हो जाता है, क्योंकि एक परम्परागत भविष्यवक्ता किसी घटना या किसी अवस्था परिवर्तन के लिए ऊर्जा स्रोत में बदलाव से भी पहले की सूचना देने का वादा करता है, जो एक पाखंड है और इसीलिए एक धंधा है| इसे आभास से भिन्न माना जाना चाहिए|

अत: मन को समझिये, और

मन की क्रियाविधि को समझिये, और

अपनी कल्पनाओं को साकार कीजिए|

आचार्य निरंजन सिन्हा

1 टिप्पणी:

  1. मन या चेतना (Mind or consciousness) तथा अध्यात्म(Super self)) की अवधारणाओं की बहुत ही तर्कपूर्ण, क्रमबद्ध एवं सुसंगत व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए आचार्य निरंजन सिन्हा जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
    अध्यात्म में रूचि रखने वालों को अंधविश्वास तथा पाखंड से सुरक्षा प्रदान करने वाला एक अप्रतिम आलेख।
    माननीय आचार्य जी को ऐसे विषयों पर इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण आलेख प्रस्तुत करने के लिए कोटिश: धन्यवाद।

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