शनिवार, 7 जनवरी 2023

एक अच्छा ‘संस्कारक’ क्यों और कैसे बनें?

संस्कार से सम्बन्धित एक सच्चा प्रसंग है| एक बड़े अफसर के यहाँ एक कुत्ता पाला गया था| उस अफसर के विधुर वयोवृद्ध पिताजी भी उसी अफसर बेटे के साथ रहते थे| कुत्ता और उनके पिताजी के रहने का कमरा पास पास था| नौकरों की लापरवाही से पिताजी और उनके कुत्ता के खाने का वर्तन भी कभी कभी बदल जाया करता था| लापरवाही किसकी थी, मैं तय नहीं करना चाहता, परन्तु घर का मुखिया इस उत्तरदायित्व से बच नहीं सकता| एक बार कुत्ता के खाने का बर्तन गायब हो गया और उस वृद्ध पिताजी को खाना देने का समय हो गया| काफी खोज के बाद गायब बर्तन उस साहब के बेटे यानि उस वृद्ध के पोते के कमरे में मिला| उस बच्चे से पूछा गया कि उसने उस बर्तन को क्यों छिपाया? उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब उसके पिताजी बूढ़े हो जायेंगे, तब वह पिताजी को खाने देने के लिए ऐसा बर्तन कहाँ से लायेगा? इसीलिए अपने पापा के लिए वह अभी से बर्तन को सुरक्षित रख दिया है| यह भी एक संस्कार है| यह एक अलग प्रश्न है कि एक संस्कारक की आवश्यकता किसको है?

यह विषय ही महत्वपूर्ण एवं गंभीर है, परन्तु उतना ही उपेक्षित भी है, जबकि सभी इस बारे में बहुत चिंतित भी हैं| संस्कारित व्यक्ति, संस्कारित समाज, संस्कारित राष्ट्र एवं संस्कारित मानवता सभी समय एवं सभी क्षेत्र के किसी भी समाज एवं राष्ट्र के सुख, शांति, विकास एवं समृद्धि के लिए अनिवार्य एवं पूर्व अपेक्षित शर्त है| तो, पहले हमें एक ‘संस्कारक’ की परिभाषा एवं अवधारणा को समझना चाहिए|

किसी में ‘संस्कार’ विकसित करना, या विकसित कराना, या विकसित होने का मार्ग प्रशस्त करना ही एक ‘संस्कारक’ की भूमिका है, दायित्व है, कर्तव्य है, समझदारी है| यह संस्कार सामाजिक जीवन से सम्बन्धित हो सकता है, या सांस्कृतिक जीवन से, या धार्मिक जीवन से या जीवन के अन्य पक्ष से भी सम्बन्धित हो सकता है| तो ‘संस्कार’ क्या है, जो जीवन में इतना महत्वपूर्ण है? 

‘संस्कार’ की अवधारणा  मूलत: व्यक्ति एवं प्रक्रिया के लिए होता है, जिसका अर्थ दोनों में अलग अलग होता है| किसी व्यक्ति को संस्कारयुक्त बनाने का तात्पर्य यह है कि उस व्यक्ति में उन गुणों का अधिस्थापन (स्थापित) कर दिया जाय, जिसे उस संस्कृति एवं सभ्यता में आदर्श माना जाता है| ‘संस्कार’ शब्द का अर्थ उसको सुसज्जित करना या सुसंस्कृत करना भी कहा जा सकता है, लेकिन इसे ‘शुद्धिकरण’ नहीं माना जाना चाहिए| शुद्धिकरण किसी अपवित्र या गन्दगी को हटाना या साफ़ करना हुआ, सुसज्जिकरण किसी अनगढ़े या संस्कार रहित व्यक्ति को उस संस्कृति एवं सभ्यता के अनुरूप आदर्श विचार, व्यवहार, अभिवृति एवं मानसिकता के गुणों से युक्त करना हुआ|

किसी व्यक्ति में संस्कार का अधिस्थापन व्यक्ति के शारीरिक स्तर पर, मानसिक स्तर पर एवं आध्यात्मिक स्तर पर किया जा सकता है, जबकि किसी विधि या प्रक्रिया या कर्म के संस्कार में उन घटनाओं या संबंधों को सांस्कृतिक एवं सामाजिक विधि स्थापित मान्यता  के अनुसार निष्पादित किया जाता है| और इसके साथ ही उन्हें उस समाज की सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप कर्तव्यों, दायित्वों, भूमिकाओं, व्यवहारों, आदर्शों, अभिवृत्तियों, परम्पराओं एवं विचारों के बारे में बताया जाता है और उसका उनमे स्थापना किया जाता है| इस तरह एक संस्कार किसी धर्म के सापेक्ष नहीं होकर सभी प्रचलित संस्कृति के सापेक्ष होता है| पालि में इसे ‘संखरा’ कहते हैं| इस तरह संस्कार में हर व्यक्ति को उनकी उस अवस्था से सम्बन्धित प्रकृति के नियमों एवं सांस्कृतिक सामाजिक नियमों एवं मूल्यों से उस व्यक्ति एवं समाज को अवगत कराना होता है| एक पशुवत मानव और एक परिष्कृत मानव में अन्तर उसका संस्कार ही कराता है, जिसे मानव समाज ही उसे "संस्कृति" के रुप में देता है|

अत: किसी  व्यक्ति का संस्कार उस व्यक्ति द्वारा किये गए उसके प्रत्येक क्रिया, विचार या आदर्श में होता है, जो उस व्यक्ति की अचेतन, अवचेतन, चेतन एवं अधिचेतन की संरचना (Structure) एवं ढांचा (Frame) में निहित होता है| इसी ‘संस्कार’ की ‘कृति’ ही किसी व्यक्ति या समाज की ‘संस्कृति’ कहलाती है| अर्थात संस्कृति का मुख्य कार्य व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र में ‘संस्कार’ देना है, यानि उसमें ऐसा मनोवृत्ति एवं अभिवृत्ति विकसित करना है, यानि उसमे संस्कार स्थापित करना है|

यही संस्कार

उनमे अभिवृति (Attitude) को निर्धारित करता है,

उनकी मानसिकता (Mentally) को आकार देता है,

उनकी उम्मीद एवं अपेक्षाओं (Expectation) को साकार करता है,

उनको भविष्य का रास्ता दिखाता है,

अपना आत्म मूल्यन (Self Evaluation) एवं आत्म निरीक्षण (Self Inspection) कराता है,

उसको सामाजिक मूल्यों (Values) एवं प्रतिमानों (Norms) की ओर ले जाता है और

भिन्न परिस्थितियों में उसके अनुरूप उसके व्यवहार, विचार एवं उसके आदर्श को संचालित एवं प्रभावित करता है|

इस तरह यही संस्कार उनकी प्रवृतियों (Tendencies), व्यावहारिक आवेगों (Impulses), अचेतन, चेतन, एवं अधिचेतन प्रभावों (Effects), अभ्यस्त स्वभावों (Mood /Dispositions), एवं सहज प्रवृतियों (Basic Instincts) के रूप में प्रकट होता है| इसे आइसबर्ग (Iceberg) का आन्तरिक भाग कह सकते हैं, जो किसी के ‘व्यक्तित्व’ के दिखने वाले भाग को नियमित एवं संचालित करता है, लेकिन यह भाग पानी के भीतर ही रहता है| ऐसे ही संस्कार आइसबर्ग का आन्तरिक संरचना हुआ| इस तरह संस्कार किसी भी व्यक्ति एवं समाज को सफलता के शिखर पर ले जाने में सहायक होता है|

मैं अब तक एक व्यक्ति के संस्कार की बात कर रहा था, अब प्रक्रियाओं के संस्कार की बात की जानी है| जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ होती रहती है, जिसमे लोगों की सामाजिक प्रस्थितियाँ (Status), भूमिकाएँ (Role), एवं पदों (Post) में महत्वपूर्ण बदलाव होता है, कई नई संस्थाओं (विवाह, परिवार, नातेदारी) का गठन होता है, और कई नए उत्तरदायित्वों को ग्रहण या समापन किया जाना होता है| ऐसे अवसरों पर परिवार, नातेदार, मित्र समूह एवं सामाजिक सदस्यों को आमंत्रित कर इन सामाजिक प्रस्थितियाँ, भूमिकाएँ, एवं पदों में महत्वपूर्ण बदलाव एवं अन्य सम्बन्धित जानकारी दी जाती है, साक्ष्यात्मक उपस्थिति (गवाही) ली जाती है और नए उत्तरदायित्वों को ग्रहण या समापन किया जाता है|

इन सबों के लिए कुछ कार्यक्रमों का आयोजना किया जाना होता है, जिसे कुछ बुद्धिजीवी ‘कर्मकांड’ कहते हैं और कुछ ‘संस्कार’ विधि कहते हैं| ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि उपस्थित लोगों की संलग्नता यानि सहभागिता स्पष्ट हो सके| इस प्रक्रिया में कुछ समय भी लग जाता है, और इसीलिए उन आगुन्तकों के लिए आहार (Food) की सुविधानुसार व्यवस्था भी की जाती है| इन कार्यो के सम्पादन के लिए किसी संस्कारक को बुला लिया जाता है| समाज में ऐसे संस्कारक ‘पुरोहित’, ‘पुजारी’, ‘Priest. या अन्य शब्दों से संबोधित किया जाता है| ये धार्मिक कर्म, धर्मिक कृत्य, एवं अन्य सांस्कृतिक संस्कार कराते हैं| आजकल अतिव्यस्त एवं आधुनिक समाज में उपलब्ध संस्कारक अल्प ज्ञानी यानि मूढ़, विवेकहीन, संस्कारविहीन, स्वार्थी, लोभी और सम्बन्धित शास्त्रों के अल्प ज्ञाता भी होते हैं, या हो सकते हैं| इसके शिक्षण एवं प्रशिक्षण के लिए मैंने एक अलग आलेख “पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान क्यों?” में सम्पर्क के बारे मे लिखा है। यह आलेख आप niranjan2020.blogspot.com  पर भी अवलोकनार्थ उपलब्ध है|

यदि हमलोग अपने अपने समाज में शिक्षित, अनुभवी, विवेकशील, सामाजिक, स्तरीय, प्रशिक्षित एवं संस्कारी ‘संस्कारक’ तैयार करते हैं, तब ये संस्कारक इन प्रक्रियाओं के अलावे उस समाज के बच्चे एवं अन्य व्यक्तियों में भी अच्छे अच्छे संस्कार दे सकते हैं। इससे उनमें सामान्य बुद्धिमत्ता (General Intelligence) के अलावे ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता ’(Emotional Intelligence), ‘सामाजिक बुद्धिमत्ता(Social Intelligence), एवं ‘बौद्धिक बुद्धिमता’ (Wisdom Intelligence) का संस्कार, अभिवृति एवं नेतृत्व (Leadership) का संस्कार और ‘वित्तीय समझदारी’ (Financial Understanding) इत्यादि का संस्कार भी उत्पन्न एवं विकसित होगा| इसके अलावा उस क्षेत्र एवं काल और उस समाज की आदर्श संस्कृति को जागृत करने, विकसित करने एवं सशक्त करने में अहम् भूमिका निभायेगा| समाज इसे ही ‘सलाहकार’, ‘परामर्शदाता’ एवं ‘काउंसलर’ (Counsellor) भी कहते हैं| आजकल प्रत्येक समाज में ऐसे ‘सलाहकार संस्कारको’ की भारी कमी है, लेकिन इसकी पूर्ति अवकाश प्राप्त वरिष्ठ नागरिकों एवं युवाओं से की जा सकती है।

इससे भारत को अपनी पुरानी गौरवमयी सांस्कृतिक विरासत को शुद्धता, पूर्णता और मौलिकता में पुनर्जीवित करने एवं स्थापित करने में मदद मिलेगी| चूँकि यह योग्यता आधारित कौशल है, इसीलिए इसमें कोई भी उपयुक्त व्यक्ति प्रशिक्षित हो सकता है| चूँकि यह योग्यता आधारित पद है, उपाधि है, और इसीलिए इस संवैधानिक अधिकार को कोई भी समाज इसे अपने में स्थापित कर सकता है| ये संस्कारक अपने अपने समाजों के लिए ‘देवदूत’ साबित होंगे| ये अपने अपने समाज में वैज्ञानिक मानसिकता एवं आधुनिकता भी स्थापित करेंगे| ये संस्कारक प्रत्येक समाज में, परिवार में और देश में सुख, शांति, समृद्धि, एवं विकास के लिए आवश्यक है| इससे समाज में आ गई विकृतियों एवं विसंगतियों का शुद्धिकरण भी होगा और उसे अपनी मौलिक संस्कृति के स्थापना में सहायता भी मिलेगी|

तो आइए, इस दिशा में हमलोग एक विमर्श शुरू करें और इस दिशा में आगे बढे| इसके लिए आप मध्यप्रदेश के रीवा के सजग एवं सक्रिय श्री जनार्दन पटेल (संपर्क ईमेल – indianpurohit1@gmail.com) से संपर्क कर सकते है| आप भी इस दिशा में अपने समाज को ले जा सकते हैं|

इसी महत्वपूर्ण कार्य को एक ‘संस्कारक’ संपन्न करता है, जिसे हम किसी अनपढ़, स्वार्थी, लोभी , विवेकहीन एवं गैरजवाबदेह व्यक्ति को नहीं सौंप सकते हैं। यही संस्कार हम लोगों का, हमारे समाज का और हमारे राष्ट्र का भविष्य भी निश्चित करता है, आकार देता है|

एक अच्छा संस्कारक बनाना, समाज के सामने इसका विकल्प नहीं  है, बल्कि एक अनिवार्यता है! इसे करना ही पड़ेगा, यदि हमलोग अपने भविष्य को सुधरता हुआ देखना चाहते हैं।

आचार्य निरंजन सिन्हा

 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय निरंजन सिन्हा सर,
    इस महत्वपूर्ण विषय पर लेख के लिए अभिनंदन!🙏

    सचमुच में अच्छे संस्कारको की बहुत कमी है! एक अनुभवी संस्कारक न केवल जीवन के महत्वपूर्ण अवसर पर परिवार एवं रिश्तेदारों को संलग्न रखता है, अपितु हमारेपरिवार की काउंसलिंग भी कर सकता है!!
    जिस परिवार में बच्चे माता पिता की बात नहीं सुनते, उस परिवार के लिए तो एक ज्ञानवान संस्कारक रामबाण की तरह साबित होगा!!
    सुसंस्कृत संस्कारको के माध्यम से हमारे समाज की अनेक बुराइयां ख़त्म होंगी एवं हमारा देश, हमारा समाज सभी के अनुकरणीय बनेगा!!
    शानदार लेख हेतु, आपका अभिनंदन वंदन आभार!!🇮🇳🙏❤️☸️
    सादर
    जनार्दन पटेल, 9726044701
    नवी मुंबई

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  2. महत्वपूर्ण सूचना, सिंह सर जैसे ज्ञानी व्यक्ति की समाज विकास में आवश्यकता है।

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  3. बहुत ही बुद्धिमत्तापूर्ण एवं दूरदर्शितापूर्ण आलेख।
    समाज के वास्तविक उत्थान के लिए तथा भारत को अपनी खोई हुई गरिमा तथा गौरव को पुनर्जीवित कर पुनर्स्थापित करने हेतु पुरोहित/संस्कारक अभियान को समाजोत्थान की सच्ची भावना के साथ शांतिपूर्वक ढंग से तेजी से आगे बढ़ाना होगा।
    आचार्य निरंजन सिन्हा जी को इस मार्गदर्शक आलेख के लिए कोटिश: धन्यवाद।।

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  4. आचार्य निरंजन सिन्हा जी, इस सारगर्भित लेख के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद, आभार 🙏🏻 आपने इस लेख के माध्यम से समाज में पुरोहित की भूमिका और पुरोहित प्रशिक्षण की आवश्यकता को बहुत अच्छे से रेखांकित किया है, पुनः आपके सुखद जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं

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