शनिवार, 30 अप्रैल 2022

हमारा समाज कहाँ जा रहा?

                                                        हमारा समाज यानि हमारी व्यवस्था

यानि हमारा राज्य यानि हमारा राष्ट्र

यानि हम कहाँ जा रहे हैं?

30 अप्रैल (1945) को जर्मन तानाशाह हिटलर को आत्म हत्या करना पड़ा था| आज पडोसी देश श्रीलंका अपनी अव्यवस्था से परेशान है| यह सब किन किन प्रक्रियायों की परकाष्ठा है? ये दो उदाहरण हमारे समाज के सामयिक विश्लेषण को बाध्य करता है|

इन विषयों के मूल तत्व को यदि देखा जाय, तो यह सुस्पष्ट होगा कि हमारी अवधारणा एकात्मकतायानि एकत्व” (Unity) के सम्बन्ध में अस्पष्ट है या गलत है या पूर्णरुपेण भ्रमित है| हमें एकता में विविधताएवं विविधता में एकताको समझना होगा| एकता में भी विविधता होती है, और विविधता से भी एकता स्थापित होती है| एक देश में कई राज्य, और एक राज्य में कई जनपद (जिला); एक संविधान में कई भाग, और एक भाग में कई अनुच्छेद; एक राष्ट्र में कई सामाजिक समूह, और एक सामाजिक समूह में कई जातियां; एक समाज में कई सम्प्रदाय, और एक सम्प्रदाय में कई पंथ| एक भारत में निवासियों की विविधता, खेतों की विविधता, मौसम की विविधता, भाषाओं की विविधता, पहाड़ों एवं मैदानों की विविधता| ऐसे कई अनन्त उदहारण है, जो एकता में विविधता को स्पष्ट करता हैयदि हमें यह विविधता स्वीकार्य नहीं हो, तो इन कई आधारों पर एक ही क्षेत्र में कई राष्ट्रों की झड़ी लग जाएगी, कई राष्ट्रों में देश को विभाजित करना पड़ सकता है| और बात यही समाप्त नहीं होती है| जिसे एकता देखने नहीं आता, सिर्फ विविधता में भिन्नता ही देखने की आदत हो जाती है, वो अपने परिवार एवं समाज में भी विविधता या विभाजन के आधार बना ही लेते हैं, खोज लेते हैं, अपने जाति में भी विविधता यानि विभाजन के आधार बना लेते हैं|

शायद एकात्मकतायानि एकत्वमें भी विविधता अनन्त प्रज्ञा (Infinite Intelligence) यानि तथाकथित ईश्वरको भी स्वीकार्य है| और इसलिए ब्रह्माण्ड में वस्तुओं में भी मैटर एवं एंटी मैटर है, आवेश में भी घनात्मक एवं ऋणात्मक है, और मानवता या किसी भी जीव में भी विविधता (Duality यानि Diversity) है, यानि हर एक्य में विभाजन यानि विविधता है, यानि विविधता ही प्रकृति को मान्य है, स्थापित है| हम भी एक स्त्री और एक पुरुष (दो भिन्नता) के एकात्मकता (मिलन) के परिणाम हैंशून्य (Zero, not Nothing) भी विविधता का एक्य स्वरुप है| यदि विविधता नहीं है, तो वह निश्चित शून्य है|

क्या आपको लगता है कि धर्म हमें एक कर सकता है? नहीं| दुनिया में सभी कुछ सापेक्ष है| कोई यदि हिन्दू के नाम पर एक है, तो वह दुसरे किसी और धर्म के सन्दर्भ में एक है| अर्थात कोई दूसरा धर्म भी है और उसी सन्दर्भ में दूसरा कोई एक हैंजब कोई दूसरा धर्म सन्दर्भ में नहीं होता है, तो कोई हिन्दू में भी अछूत होता है, कोई दलित होता है, कोई पवित्र जाति का होता है, कोई नीच जाति का होता है| कोई यदि इस्लाम के नाम पर एक है, तो वह किसी और दुसरे धर्म के सन्दर्भ में एक है, अन्यथा वह भी शिया एवं सुन्नी के नाम पर, या क्षेत्रीयता के नाम पर या वंश के नाम पर विभक्त होता है| इसी कारण जहां ईसाई बहुसंख्यक हैं, वहां भी विभाजनकारी अपने को कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट आदि में विभक्त कर लेते हैंइतिहास से भी कुछ सिखा एवं समझा जा सकता है| अपना सब कुछ जला कर या बर्बाद कर ही नहीं सिखा जाता| कम से कम समझदार लोग या समाज तो दूसरी घटनाओं से सीख लेते हैं|

एक राष्ट्र एक धर्म पर नहीं बनता| यदि एक राष्ट्र का आधार धर्म होता, पाकिस्तान देश पूर्वी पकिस्तान (बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान में नहीं टूटता? आज एक ही धर्म ईसाई के देश उक्रेन और रूस आपस में लड़ता हुआ नहीं होता| चीन और ताइवान आपसी दुश्मन नहीं होता| इस आधार पर ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि अलग अलग राष्ट्र नहीं होते| धर्म को राष्ट्र से जोड़ कर नहीं देखा जाताराष्ट्र तो ऐतिहासिक रूप से एकायानि एकात्मकताकी भावना है, और इसके अलावे यह कुछ भी नहीं है|

कोई धर्म इतना कमजोर या नाजुक नहीं होता कि दुसरे धर्म के संपर्क में आकर टूट जाय या नष्ट हो जाय या बिगड़ जाय| कोई धर्म कमजोर होता है, टूटता है, तो उसके अगुआ के दुष्टता, नासमझी एवं शैतानियों के कारण| अपने सदस्यों के प्रति किसी दुसरे फालतू यानि अवैज्ञानिक आधार पर विभाजन करना यानि विभेदकारी मानसिकता ही उस धर्म को कमजोर करता है| आर्थिक शोषण को जन्म के आधार पर और संस्कृतिक आवरण में करना ही अपने धर्म के सदस्यों के बीच ही दुर्भावना पैदा कर देता हैभारत में जाति, उपजाति, सम्प्रदाय, पंथ, आदि के आधार पर अपने तथाकथित धर्म के अन्दर ही दुर्भावना पैदा किया जाता है, जो व्यवस्था के मौन समर्थन एवं संरक्षण मिलने से अमरबेल की भांति फैलता जाता है| इसके लिए दुसरे तथाकथित धर्म का डर दिखाया जाता है| आधुनिक युग में इस आधार पर यह देश एक बार टूट (भारत विभाजन) चुका है, लेकिन इस विद्वेष के आधार पर आज फिर भावनाओं को भड़क जाने दिया जाता है| तात्कालिक लाभ तो कुछ लोग को मिलता है, परन्तु समाज और देश के नुकसान से किसी को कोई मतलब नहीं है| ऐसे तत्वों से सरकार भी परेशान है|

यदि भारत का राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म पर आधारित है और यह राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, तो तथाकथित बुद्धिवादियों एवं तथाकथित प्रगतिवादियों को चाहिए कि इस अभियान में सिर्फ दूसरों को ही शामिल होने का आह्वान नहीं करें, बल्कि अपने परिवार के सदस्यों को भी इसमें शामिल करें| राष्ट्र निर्माण अभियान को कौन फर्जी और फालतू मानता हैऐसे लोग वही है, जो किसी धर्म के पक्ष में और किसी धर्मं के विरोध में लम्बी लम्बी बातें करेगा, बड़ी बड़ी बातें लिखेगा और सामान्य जनों को धर्मों के आधार पर भावनाएँ भड़काएंगें, लेकिन अपने बेटों बेटियों एवं पत्नी को इससे दूर रखेगें| अंग्रेजी में ऐसे लोगों को ड्युअल कैरेक्टर (Dual Character) का लोग कहते हैं, हिंदी में इसके लिए अभद्र शब्द होता है, जिसे लिखना कुछ लोगों को आपत्तिजनक लग सकता है| ऐसे फर्जी और फालतू लोगों की पहचान का यही एकमात्र शर्त है, कि अपनी ऐसी घोषणाओं से अपने परिवार को दूर ही रखते हैंइसी शर्त पर देश, समाज एवं मानवता के दुश्मनों को जाना और पहचाना जा सकता है|

इस आलेख के शुरू में मैंने यह सवाल किया कि हिटलर को आत्महत्या क्यों करना पड़ा? उसने एक अवैज्ञानिक आधार पर अपनी जाति के लोगों को सर्वोत्कृष्ट बताया और शेष को नीच यानि निम्न समझा| इसी आधार उसने तथाकथित राष्ट्रवादको उभारा, लोगों को भड़काया और देश को युद्ध (आंतरिक एवं बाह्य) में झोंक दिया| धर्म के नाम पर उसने अपने देश को फ्रांस या रूस में शामिल नहीं किया, बल्कि विभाजन का नया आधार प्रजाति बना लियाविभाजनकारी लोग विभाजनकारी मानसिकता के बीमार लोग होते हैं, और वे सदैव विभाजनकारी आधार खोज ही लेते हैं| इसने जर्मनी को दो टुकड़े में बाँट दिया और बिस्मार्क के उभरते हुए जर्मनी को पीछे ठेल दिया| परिणामत: हिटलर को आत्महत्या करना पडा|

श्रीलंका का संकट क्या है? उसके द्वारा अनाप सनाप लिया अनुत्पादक कर्ज तो है ही, उसकी सबसे बड़ी समस्या को भारतीय मीडिया रेखांकित नही करता| यह अनुत्पादक कर्ज क्यों लेना पडा? राजनीतिक कारणों से श्रीलंका में सिंहली, तमिल एवं मुस्लिमों में भयानक दुर्भावना को बढ़ने दिया| सभी का लक्ष्य राजनीतिक सफलता रहा| परिणाम यह हुआ कि लोगों के इस वर्ग को या उस वर्ग को लुभाने के लिए बेतहाशा अनुत्पादक खर्च किया गया, देश की उत्पादक शक्तियों एवं व्यवस्था को अंदरूनी संघर्ष को बढ़ाने और निपटाने में लगा दिया| और उसका परिणाम विश्व के सामने है|

यदि धर्म के लिए जान देने से तथाकथित स्वर्गमिलता है, इन तथाकथित बुद्धिवादियों एवं तथाकथित प्रगतिवादियों को क्यों नहीं इस स्वर्ग में रूचि है? यदि स्वर्ग वास्तव में सच्चा है, और यदि धर्म के लिए मरने से स्वर्ग मिलता ही है, तो इन उपदेशों को देने वाले लोग इसमें अपनी जान देने में पीछे क्यों रहते हैं? जो अत्यधिक समृद्ध हैं, वे तो विदेशों में भी आशियाना तैयार कर लिए हैं, लेकिन जिनकी औकात अरबों” (एक सौ करोड़ का एक अरब) रुपयों की नहीं है, उनको समृद्ध विदेशों में कोई पूछने वाला नहीं है| आप धर्मों के लिए मरने वालों का आंकड़ा उठा कर देख लीजिए| जितने लोग इस तथाकथित पवित्र कार्य के लिए आह्वान कर रहे हैं, वे अपने बीबी बच्चों को क्यों नहीं इस पवित्र कार्य में लगाते हैंइन दुहरे चरित्र के लोगों को पहचानिए, अपने समाज, देश और राष्ट्र को बचाइए| सम्हालने का समय अभी भी है| पहले अपनी मानसिकता पर तो विचार कर लीजिए, अन्यथा हांकने वाले तो हांक कर ले जाने के लिए हांका”  लगाने को तो तैयार बैठे ही हैं| जो आदमी है, वे इनसे सावधान हैं| ये हांका वाले लोग भी जंगल के इसी भयानक आग के हवाले होंगे, जैसे आम जन होगें|

निरंजन सिन्हा


 

6 टिप्‍पणियां:

  1. One religion One country, then why Bangaladesh and Pakistan are different

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  2. रोजगार के अवसर के साथ अधिक से अधिक लोगों के बिच जनजागृक्ता करने हेतु कुछ सक्षम लोगों को आपके साथ काम करने की जरूरत है।—आनन्द जी

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  3. बहुत ही अच्छा लेख लिखा है किंतु हम हाथ पर हाथ रखकर तो नहीं बैठ सकते। आने वाली पीढ़ी को हम कैसा भारत छोड़कर जाना चाहते हैं इस पर चिंतन करना जरूरी है।

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  4. बहुत ही तर्कसंगत एवं भारत की राष्ट्रीय एकता के दुश्मनों के वास्तविक चरित्र को अत्यंत सरल ढंग से उजागर करने वाला आलेख।

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