हमारी प्रतिक्रिया (Reaction) और हमारे विकास के स्तर में भी कोई सबंध है क्या? हां, बहुत गहरा संबंध है। यह संकेतक यह बताता है कि हमारा बौद्धिक स्तर किस स्तर पर है यानि पशुवत है या बौद्धिक है?
वस्तुत: हमारी प्रतिक्रिया मात्र हमारे विकास के स्तर का
संकेतक (Indicator)
है, कि हम विकास के किस स्तर पर हैं और हम कहाँ जा रहे हैं?
यह प्रतिक्रियाएं हमें अपने ‘सामान्य जीवन’ में और ‘सोशल मीडिया’ में बहुत देखने को मिलती हैं| इस संकेतक से हमें यह पता चलता है कि अब हमें क्या करना
चाहिए?
प्रतिक्रिया क्या है? जब यह महत्वपूर्ण है, तो हमें इसे समझना चाहिए|
मैं “प्रतिक्रिया” का यहाँ अर्थ “विरुद्ध क्रिया” (Against Action) से ले रहा हूँ| इसे प्रतिवचन (Response), उत्तर (Answer), या प्रतिपुष्टि (Feedback) भी माना जाना चाहिए| जैसा कि आप भी जानते हैं कि आइजक
न्यूटन ने यांत्रिकी के क्रियाविधि (Mechanics) को समझाने के लिए गतिकी (Motion) के तीन नियम (Laws)
दिए (1687 – Mathematical Principles of
Natural Philosophy)| पहले नियम में
बल (Force)
की परिभाषा (Definition) दिया, दुसरे में बल को मापने (Measurement) का सूत्र (Formula) दिया, तो तीसरे में बल की विशेषता (Characteristic)
यानि उसकी प्रकृति (Nature) को बताया है| “प्रत्येक क्रिया के विपरीत एवं बराबर प्रतिक्रिया होती है”
– यही गति का तीसरा नियम है|
अत: यह सभी वस्तुओं का प्राकृतिक स्वभाव है|
लेकिन हमलोग वस्तुओं (Objects) से कई अर्थों में भिन्न होते हैं|
हम लोगों में चेतनता (Consciousness)
होती है,
जो वस्तुओं में नहीं
होती है| इसीलिए
हमलोगों को मानवीय मनोविज्ञान समझना होता है|
चेतनता तो सभी जीवों (Organism) और पशुओं में भी होती है| सभी जीव सोच (Think) नहीं सकते,
परन्तु हम लोग सोच सकते हैं| ‘सोच’ तो पशु (Animal – Mammal) भी लेते हैं| परन्तु हमलोग और अन्य पशुओं में इस ‘सोच’ के मामले में भी अंतर है| हमलोग अपने ‘सोच’ पर भी ‘सोच’
(Think over Think) सकते हैं, जो पशुओं से नहीं होता है| “स्वत: स्फूर्त क्रिया” (Reflex Action) से प्रतिक्रिया सभी जीव करते हैं,
पशु भी और हमलोग भी| साधारण शब्दों में, त्वरित प्रतिक्रिया को Reflex Action कहते हैं और विचारित प्रतिक्रिया को मानसिक क्रिया (Mental Action) कहते हैं।
हमलोग और पशु अपनी प्रतिक्रिया में “स्वत: स्फूर्त क्रिया” (Reflex Action) तथा मानस क्रिया (Mind Action) दोनों का उपयोग करते हैं| लेकिन पशु की यह मानसिक क्षमता नहीं होती कि वह “अपनी सोच” पर विचार कर सके| चूँकि एक मानव अपनी सोच पर विचार कर सकता है, और इस प्रक्रिया में ‘कुछ’ समय लगता है; इसीलिए एक मानव प्रतिक्रिया में अपने मस्तिष्क (Mind) का उपयोग करता है| इसी कारण एक मानव को होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) कहते हैं, जिसका अर्थ “बुद्धिमान मानव” (Wise Man) होता है|हमें Reflex (Spinal Cord) Action और Mind Action में अन्तर समझना चाहिए।
तब एक बड़ा सवाल यह उठता है कि जब एक बुद्धिमान मानव सिर्फ “स्वत: स्फूर्त क्रिया” (Reflex Action) से ही प्रतिक्रिया देता हो, तो क्या उसे भी मानव समझा जाय? ऐसा प्रतिक्रिया तो जीव एवं पशु ही देते हैं| इस तरह मानव का भी दो प्रकार हो गया – “पशुवत मानव” एवं “बुद्धिमान मानव”| इस तरह हमलोग दोनों वर्गीकरण में आ जाते हैं| ऐसा लिखना तो कड़वा लगता है, परन्तु यह “कटु सत्य” है| अब हम सामान्य जीवन में जो “तत्काल प्रतिक्रिया” देते हैं, उससे क्या निर्धारित होता है? विचार करें|
ऐसी स्थिति भारत में बहुसंख्यकों की है। विचारक बताते हैं कि तात्कालिक प्रतिक्रिया से 'प्रतिक्रिया देने वाले' को ही नुकसान होता है, लेकिन प्रतिक्रिया विचार कर देने से क्रिया वाले को नुक़सान होता है मतलब 'तात्कालिक प्रतिक्रिया'' प्रतिक्रिया देने वाले' के लिए ही ज़हर है और 'विचारित प्रतिक्रिया' 'क्रिया करने वाले' के लिए ही ज़हर है। अन्तर पर ध्यान दिया जाए।
प्रतिक्रिया के विषय वस्तु एवं स्वभाव पर Eleanor Roosevelt (एलिनोर रूज़वेल्ट) की टिपण्णी महत्वपूर्ण है| उन्होंने 3 “I” - ‘Idea’ (विचार, ), ‘Incidence’ (घटना), and ‘Individual’ (व्यक्ति, व्यक्तिगत) के बारे में बताया| बड़े लोग यानि स्तरीय एवं बौद्धिक लोग “विचारों” पर विमर्श (Discuss) करते हैं, मध्यम (औसत) दर्जे के लोग (Mediocre) घटनाओं को विस्तार से कहते (Elaborate) रहते हैं, एवं निम्न तथा गरीब लोग (Lower People n Poor) व्यक्तियों पर आख्यान देते (Narrate) रहते हैं, लेकिन उनके विचारों से कुछ नहीं सीखते, उसे नहीं अपनाते| इसे एक बार फिर पढ़ें|
Great
People – Discuss – IDEA
Mediocre
People – Elaborate – INCIDENCE
Lower
People and the Poor – Narrate - INDIVIDUAL
इसे दुसरे शब्दों में --
बड़े, स्तरीय एवं बौद्धिक लोगों का समय, संसाधन, धन, उत्साह एवं उर्जा किसी बडे विचारों (Ideas) के विमर्श (Discuss) में लगता है| अर्थात Idea को Discuss करने वाले लोग ही बड़े एवं बौद्धिक हैं|
यही विकसित देशों एवं समाजों में है|
मध्यम (औसत) दर्जे के लोग (Mediocre) घटनाओं (Incidence) को विस्तार से कहते (Elaborate) रहते हैं,
अर्थात पूरे मन से और उत्साह से उनका वर्णन करते रहते हैं|
अर्थात सदैव घटनाओं को विस्तार से वर्णन करने वाले लोग ही
औसत लोग हैं|
निम्न एवं गरीब लोग व्यक्तिगत लोगों पर बहुत विस्तार से
व्यौरा देते रहते हैं और इस पर ही समय देते हैं| ऐसे लोग हर बार और हर समय व्यक्तिगत टिपण्णी तक ही सीमित
होते हैं|
अर्थात सदैव व्यक्तिगत टिपण्णी देने वाले लोग निम्न सोच के
हैं|
इनकी प्रतिक्रिया को ‘कोसना’, ‘उलाहना’ तथा ‘शिकायत’ करने की श्रेणी में रखते हैं| यह सब नकारात्मकता की श्रेणी में आता है| ऐसे लोग कुछ भी सकारात्मक नहीं करते, सिर्फ दूसरों की आलोचना में लगे रहते हैं।
कभी-कभी और अक्सर शासन व्यवस्था (System) सामान्य लोगो का समय, संसाधन, धन, उत्साह एवं उर्जा को खपाने (Consume) यानि बर्बाद करने के लिए भी “प्रतिक्रिया” लेता रहता है| यह व्यवस्था की रणनीति (Policy) है, उपागम (Approach) है, विचार है| ऐसा करना शासन व्यवस्था के लिए भी आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से शासन व्यवस्था के विरुद्ध मुख्य मुद्दों की ओर सामान्य लोगों का ध्यान नहीं जाता। जनता अपनी तथाकथित प्रतिक्रिया में अपनी बहादुरी और दिलेरी दिखाने में मस्त रहता है और शासन अपने मूल एजेंडे पर कार्यरत रहता है। इस खेल को समझिए। इसलिए चतुर शासन अपने देश की जनता को विवादास्पद मुद्दों को प्रस्तुत करता रहता है, ताकि उस देश की जनता पशुवत प्रतिक्रिया देने में उलझी रहे।
इसलिए शासन व्यवस्था के लोग बड़े विचारक होते हैं| यथास्थितिवादी भी अपने देश एवं समाज के बड़े हिस्से यानि बहुसंख्यकों को इसी
में उलझाए रखते हैं। इसके लिए कभी-कभी “बेतुके” विषय या बयान आते रहते हैं| इस पर मध्यम दर्जे एवं निम्न तथा गरीब लोगों की प्रतिक्रिया
तात्कालिक होती है, पशुओं की तरह स्वत: स्फूर्त (Reflex Action) होती है| इन विषयों पर बहुसंख्यकों द्वारा बहुत उत्साहपूर्ण एवं विद्वतापूर्ण तथ्यों का उपस्थापन (Presentation)
होता है| ये पशुओं की तरह चीखते चिल्लाते होते हैं और पशुओं की तरह ही शारिरिक गतिविधियां भी दिखाते रहते हैं। ध्यान दें, यही तात्कालिक, उत्साहपूर्वक एवं स्वत:स्फूर्त प्रतिक्रिया सामान्य जीव
करते हैं,
जिनमें दिमाग (Mind) नहीं लगाना पड़ता है| हम सामान्य जीव को पशु भी कहते हैं|
हमारा विकास भी इन्हीं के स्तर के अनुरूप तय है|
हम देखते हैं कि ऐसे लोगों या समूहों के पास कोई सकारात्मक कार्यसूची नहीं
होती है, कोई सृजनात्मक योजना का विचार ही नहीं होता इनके पास। ये बस
सिर्फ प्रतिक्रिया देने के लिए विषयों के इन्तजार में रहते हैं|
यदि शासन या व्यवस्था या समाज कोई बेतुका या बेकार बात नहीं कहता है,
तो ये मध्यम एवं निम्न दर्जे के लोग एवं तथाकथित
क्रान्तिकारी नेता “बेरोजगार” हुए
रहते हैं|
ये नेता अपने समाज से “Reflex Action” के सहारे ही अपनी नेतागिरी चलाते है|
ये नेता इसीलिए लोगों को पशुओं की तरह हांक (Drive)
ले जाते हैं|
या यो कहें अपनी आजीविका चलाते रहते हैं|
उन्हें भी विचारों एवं नीतियों का पता नहीं होता,
क्योंकि इसके लिए विचारों में पैरेडाइम शिफ्ट करना होता है|
इसलिए चेहरे बदलते रहते हैं, व्यवस्था या नीतियाँ नहीं बदलती|
एक बार अल्बर्ट आइन्स्टीन
ने “पागलपन” की परिभाषा
में बताया कि ‘प्रत्येक दिन एक ही तरह का काम करना और
परिणाम नया खोजना ही पागलपन है’|
क्या हमें ऐसे कार्य से बदलाव यानि परिवर्तन की आशा करनी
चाहिए?
विचारों एवं व्यवहारों में बिना किसी “पैरेडाइम शिफ्ट” (Paradigm Shift)
के बदलाव की उम्मीद भी पागलपन ही तो है,
चाहे हम हवा में कितनी भी क्रान्तिकारी (Revolutionary)
बात कर लें|
(आप मेरे अन्य आलेख www.niranjansinha.com या niranjan2020.blogspot.com पर देख सकते हैं।)
निरंजन सिन्हा|
मानव मनोविज्ञान और उसपर विषयों के पङनेवाले प्रभाव और प्रतिक्रिया पर प्रस्तुत आलेख चिन्तन की अतुल गहराई मे उतर कर देखने का आईना (दृष्टी मार्ग) आपने दिया है।बेहतर बिषय पर लेख प्रस्तुत करने के लिए आपको विशेष बधाई।🌷🌷
जवाब देंहटाएंvaluable lessons of life by this blog..
जवाब देंहटाएंSpecially level of thinking ,thought and mindset.
तर्किक एवम विचारणीय विषय, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा लिखा article एकदम साक्ष्य एवं तर्क के आधार पर विद्वता से लबालब है सर। आपके उत्कृष्ट लेखनी के लिए ककोटी कोटी धन्यवाद सर।
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